जीवनधारा - 4 Shwet Kumar Sinha द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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जीवनधारा - 4

...अगले दिन, शाम चार बजे ।

छूट्टी होने पर अन्य महिला सहकर्मियों के साथ, पूजा ऑफिस से बाहर निकल रही थी। तभी, रूपेश सामने से रूपेश अपनी कार से आता दिखा ।

“कॉफी हो जाये ।” – अपनी कार से निकलते हुए रूपेश ने पूजा से पूछा ।

मुस्कुराते हुए पूजा रूपेश के साथ कार में आकर बैठ गयी और दोनों पास के ही एक कॉफी हाउस पहुँच गएँ । रूपेश ने दो कॉफी लाने का ऑर्डर दिया ।

“आपको कैसे पता चला कि मैं ऑफिस से अभी निकलती हूँ ?” – पूजा ने सवाल दागा ।

“आपके ऑफिस के बगल में ही मेरा ऑफिस हैं । मैंने आपको ऑफिस से निकलते हुए देख लिया था । मेरी भी छुट्टी का समय यही है । कॉफी पीने का मन किया तो सोचा कि क्यूँ न आपको भी साथ ले लिया जाये ।“ – रूपेश ने पूजा को बताया ।

इस तरह, दोनों के मिलने का सिलसिला कुछ महीनो तक चलता रहा ।

एक दिन, रूपेश ने पूजा को बताया कि वह उसे पसंद करने लगा है और उससे शादी की पेशकश कर डाली ।

पूजा भी मन ही मन रूपेश को पसंद करती थी । अपना जवाब हाँ में देते हुए वह उसके गले से लिपट गयी ।

“आज ही, घर पर बात करके माँ-पापा को शादी का रिश्ता लेकर तुम्हारे घर भेजता हूँ ।” रूपेश ने पूजा को कहा ।

घर पहुंचकर रूपेश और पूजा अपने-अपने घर में एक-दूसरे को अपना जीवनसाथी चुनने की बात बताते हैं ।

रूपेश के मां-पापा शादी के लिए तैयार हो जाते हैं । शादी की रजामंदी मिलने की बात रूपेश फोन करके पूजा को बताता है । साथ ही, यह भी कहता है कि अगले दिन शादी की बात करने वह अपने माता-पिता के साथ पूजा के घर आ रहा है ।

दूसरी तरफ, पूजा की मां रूपेश से पहले मिल चुकी थी जब वह बैग वापस करने उनके घर आया था । अपनी बेटी के जीवनसाथी के रूप में रूपेश उन्हे पसंद भी था ।

पूजा के पापा दूसरे शहर में नौकरी करते थें । रूपेश के घरवालों से पूजा की शादी की बात करने के लिए वह भी घर पहुँच जाते हैं ।

अगले दिन, रूपेश अपने माँ-पापा के साथ पूजा के घर रिश्ता लेकर आता है ।

पूजा के माता-पिता रूपेश और उसके मां-पापा का स्वागत करते हैं । रसोई से चाय-नाश्ता लिए पूजा बाहर कमरे में आती है और सामने टेबल पर रख खुद भी एक तरफ बैठ जाती है ।

"पूजा तुम थोड़ा अंदर कमरे में जाओ । हमें रूपेश और उनके पापा से कुछ जरूरी बातें करनी हैं ।"- पूजा के पापा ने पूजा से कहा । थोड़ा संकुचाकर पूजा अंदर कमरे में चली जाती है ।

"देखिए, मुझे घुमा-फिराकर बातें करना पसंद नहीं । पूजा बहुत ज़िद्द कर रही थी, इसलिए मैंने उसे कुछ कहा नहीं । मुझे लगा कि सीधे आपलोगों से ही बात करना ज्यादा सही होगा ।" पूजा के पापा ने रूपेश के पिताजी से कहा ।

"ये रिश्ता नही हो सकता । हमलोग ऊंचे खानदान से संबंध रखते हैं और आपलोगों तो निम्न कुल से आते हो न ! यहां आने से पहले एक बार पता तो कर लिया होता । इसलिए, हमें क्षमा करें। पूजा तो अभी बच्ची है। पर, उसका सही-गलत देखना मेरी जिम्मेदारी है ।"- इतना कहते हुए पूजा के पिता हाथ जोड़कर सोफे से उठ खड़े हुए ।

उनके साथ ही रूपेश और उसके मां-पापा भी खड़े हो गए ।

"आपलोग अपनी बिरादरी में रूपेश के लिए कोई सुंदर-सुशील लड़की देखिए । यह समझदार है। इससे अच्छी लड़की जरूर मिल जायेगी । नमस्ते ।" - इतना कहकर पूजा के पिताजी ने रूपेश और उसके मां-पापा को घर के दरवाजे के बाहर तक लाकर छोड़ा और दरवाजा बंद कर दिया ।...