🅺🅷🆄🅽🅸_🅺🅰🅱🆁🅰By - Mr. Sonu Samadhiya Rasik एक तूफानी रात में शहर से दूर एक फ़ार्म हाउस पर करीब रात के ९ बजे परिवार के सदस्यों में एक अजीब सा शोरगुल था।
आसमान में बादल छाए हुए थे और तूफान आस पास के पेड़ों का झकझोर कर बुरा हाल कर रहा था।
उसी वक़्त एक महिला घर के अन्दर से तकरीबन ८ वर्ष के बच्चे को घसीटते हुए बाहर ले आई। उसके एक हाथ में लकड़ी की छड़ी और दूसरे हाथ में उस बच्चे का हाथ था।
बच्चे का रो रोकर बुरा हाल हो रहा था। वह हर हाल में बाहर आने का विरोध कर रहा था। लेकिन वह महिला उसे बेरहमी से पीटते हुए, बाहर गेट पर धकेल कर अंदर चली गई।
बच्चा बिलखते हुए अंदर जाने के लिए गेट की ओर दौड़ा लेकिन तब तक उस महिला ने गेट को बंद कर दिया।
बच्चा गेट को पटकते हुए रोये जा रहा था। लेकिन उसकी सुनने वाला वहां कोई भी नहीं था।
"माँ! भैया ने कुछ नहीं किया। खिड़की का मिरर ग़लती से टूट गया था। प्लीज माँ गेट खोल दो।"
"ज्यादा बोला तो तुझे भी दो खींच के मारूँगी और बाहर फेंक दूँगी। समझे न तुम। आज उस नालायक को न ही खाना मिलेगा और न ही आज वो अंदर सोएगा।" - महिला ने चार साल के बच्चे निकेश को आंख दिखाते हुए कहा।
" पापा, आप ही बोलो न माँ को, प्रतीक भैया के लिए गेट खोल दे।"-घर के मैन हॉल में बैठे निकेश ने अपने पिता गौरव से कहा।
" अरे! श्वेता अब बहुत हुआ। गेट खोल दो। बेचारा बच्चा ही तो डर जाएगा। बाहर तूफान आया हुआ है। अंदर ले आओ उसे। इतनी पनिसमेन्ट काफ़ी है, ग़लती से ही टूटा होगा काँच।"
वह महिला अपने पति की बात को इग्नोर करती हुए बङबङाते हुए सोफ़े पर बैठ गई।
"सुन रही हो न। मैं क्या कर रहा हूँ। तुम जा रही हो या फिर मैं जाऊँ गेट खोलने के लिए।"
" अब नहीं आएगा वो अंदर समझे न तुम। अगर तुमने कुछ किया न, तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। या तो वो रहेगा अंदर या फिर मैं।" - स्वेता ने निर्थक हठ करते हुए कहा।
"अच्छा। अगर वो तुम्हारा अपना बेटा होता तो, क्या तुम तब भी ऎसा ही करती?"
" ओ! ज्यादा प्यार उमड़ रहा है न। अपने बेटे के लिए तुम भी जाओ बाहर और रहो अपने लाड़ले बेटे के साथ रात भर बाहर जंगल में।"
इतना कहते हुए स्वेता, निकेश को लेकर अपने रूम में चली गई।
स्वेता, गौरव की दूसरी पत्नी थी और वह प्रतीक की सौतेली माँ थी। जो आये दिन उसे एसी तरह की सजाएँ देती थी।
गौरव भी न चाहते हुए भी अपने रूम में सोने चला गया। उसको प्रतीक की चिंता सता रही थी। वह मन ही मन श्वेता के किए पर गुस्सा हो रहा था। न जाने श्वेता को आज कल प्रतीक से कुछ ज्यादा ही चिढ़ थी।
उधर प्रतीक रोते हुए गेट के पास भूखा ही सो गया।
रात के २ बजे......
तूफ़ान थम चुका था और घर के सभी सदस्य सोये हुए थे। प्रतीक की अभी तक सोते हुए सिसकियाँ निकल रही थी।
उसी वक़्त प्रतीक के पास लगे लाइट के खंभे की लाईट में हरकत हुई और वह ब्लिंक करने लगी।
"प्रतीक ऽऽऽऽऽऽऽ........ ।"
एक हल्की सी आवाज ने प्रतीक की नींद तोड़ दी। वह डरता हुआ। सिमिट कर बैठ कर चारों तरफ़ देखने लगा।
पूरा भाग पढ़ने के लिए नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करें 👇 🙏
http://myultimatestories1.blogspot.com/2020/07/blog-post.html
Or
Please comment 'khuni kabra'
if you face any problems to read this book 📙.
CONTECT me for any inquiry on facebook, blog, Instagram and whatsapp
Follow me ON
INSTAGRAM :-https://www.instagram.com/sonusamadhiyarasik/
FACEBOOK :-https://www.facebook.com/sonu.samadhiya.3
YOUTUBE:- https://www.youtube.com/c/SonuSamadhiyaRasik
CONTECT ME
Email 📧 sonusamadhiya10@gmail.com
अन्य ऎसे ही इंट्रेस्टिंग और entrainer ब्लॉग पढने के लिए नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करें और मेरी ब्लॉग पर विजिट करें 🙏
Myultimatestories1.blogspot.com
आपका सोनू समाधिया रसिक 🇮🇳 🚩 🌻 💝 🌼 🙏
राधे 🙏 राधे 🙏