बेपनाह - 29 - अंतिम भाग Seema Saxena द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बेपनाह - 29 - अंतिम भाग

29

दर्द से हाथ में बहुत तकलीफ हो रही थी लेकिन वो अपने दर्द को जाहिर नहीं करना चाहती थी ! वैसे कोई भी महिला अपने दर्द कभी किसी से नहीं कहेगी, भले ही वो उस दर्द को सहते हुए मर ही क्यों ना जाये लेकिन कहना नहीं है उन्हें लगता है कहने सुनने का कोई मतलब भी नहीं है सुनेगा कौन ?

हम जिसे प्रेम करते हैं उससे हम यह चाहते हैं कि वो हमारे किसी भी तरह के दर्द, दुख या तकलीफ को बिना कहे समझ जाये और यह तो ऋषभ को पता था फिर क्या हुआ उसे ? उसे अपना दर्द याद रहा और मेरा भूल गया ! ऋषभ तुम कितने भोले हो ! शुभी मन ही मन बड़बड़ाई !

“क्या हुआ शुभी, बड़ी शांत बैठी हो ?”

“कुछ नहीं बस यूं ही !”

“क्या माँ से मिलने की खुशी नहीं हो रही है ? अभी तक तो हरवक्त माँ की याद सताती थी और अब क्या हुआ ? क्या मुझसे दूर जाने का गम सता रहा है ? यार मैं तेरे दिल में हूँ जब चाहे नजर नीचे झुकाना और देख लेना !” ऋषभ अपनी रौ में बोले जा रहा था !

ये मर्द जात क्या ऐसी ही होती है एकदम से लापरवाह ? इनसे हर बात कहना जरूरी है क्या? इन्हें खुद समझ क्यों नहीं आता है ? शुभी के दिल में फिर एक दर्द की लहर उठी ! रास्ते सिमटते जा रहे थे और वे दूर होते जा रहे थे ! तभी ऋषभ के मोबाइल पर रिंग टोन बजने लगी ! सुन रहा है न तू, रो रही हूँ मैं ......

हाँ मैं रो रही हूँ मन ही मन, क्या तुम सुन नहीं पा रहे हो ?

ऋषभ ने कानों में हेडफोन लगाया और शुभी को देख कर बोला, “देख शुभी आज कितने दिनों बाद हमारा फोन बजा है ?”

“हाँ क्योंकि आज ही तो चार्ज हुआ है ! किसका है ? दादा जी का ?”

“नहीं यार घर से आ रहा है,”

“ओके ओके बात करो न !”

“हाँ हाँ कर रहा हूँ !”

“ओहह ओहह,,,,,क्या हो गया अचानक से ...हाँ मैं आ रहा हूँ निकल आया हूँ वहाँ से .....हाँ बहुत बुरा फंसा था ! बस जल्दी ही पहुंचता हूँ !”

“क्या हुआ ऋषभ ? सब ठीक है न ?”

“नहीं यार कुछ भी सही नहीं है, बहन का फोन था,,, मम्मी बहुत बीमार हो गयी हैं, हास्पिटल में एड्मिट है!”

“अरे ....

“हाँ जल्दी पहुँचना होगा !”

“कोई बात नहीं ऋषभ परेशान मत हो सब ठीक हो जायेगा !”

“हाँ हो ही जाना चाहिए !” ऋषभ की आवाज कुछ रुंधी हुई थी !

“ऋषभ ॥!” शुभी ने प्यार से उसके सर के ऊपर अपना हाथ फिराया ! जैसे आशीष दे रही हो ! लेकिन हाथ ऊपर उठाते ही कलाई में बहुत तेज दर्द उठा ! उसने अपने होठों को भींच लिया मानों अपने दर्द को पीने की कोशिश कर रही हो !

“शुभी अब मैं क्या करूँ ? उसके चेहरे पर चिंता साफ दिख रही थी !”

“क्या मतलब ?”

“यहाँ से तुम अकेले कैसे जा सकती हो ?”

शुभी एकदम चौंक गई, “अकेले ? क्या उसे यहाँ से अकेले जाना होगा ? वो कैसे जाएगी ? एक तो हाथ में दर्द है और समान भी है और कभी गयी भी नहीं है लेकिन जाना ही पड़ेगा क्योंकि ऋषभ को अपनी माँ के पास जाना है और शायद वो जरूरी भी है !

“क्या सोचने लगी ? यार शुभी तू सोचती बहुत है बस इसीलिए मुझे डर लग रहा है तुझे अकेले भेजने में !”

“नहीं ऋषभ आप मम्मी के पास जाओ वहाँ तुम्हारी जरूरत है मैं चली जाऊँगी ! मुझे किसी बस में बैठा देना जो मुझे सीधे यहाँ से रामपुर तक पहुंचा दे !”

“हाँ यही करूंगा ! शुभी भूख तो नहीं लगी अगर कुछ खाने का मन हो तो मैं कहीं कार रोक लूँ ?”

“न न रहने दो फिर देर हो जायेगी ! तुम किसी बस स्टॉप तक चलो जहां से मुझे बस मिल जाये !”

“हाँ ठीक है ! कोई शहर आने दो, फिर देखते हैं !”

“क्या यह ऋषभ इतना ही भोला है ? क्या इसे सब बातें कहनी जरूरी हैं ? क्या यह मन की भाषा नहीं समझता है ? क्या इसे खामोशी समझ नहीं आती ? अचानक से ढेरों सवाल उसके मन में उठ खड़े हुए ! करने दो इसे ऐसा मैं इसके जैसी कभी नहीं बनूँगी शुभी ने अपने मन में ठाना ! ऋषभ देख शायद कोई शहर आने वाला है, अपनी बात का रुख मोड़ते हुए उसने कहा ! जिससे उसे यह अहसास तक न हो कि उसके मन में कोई बात चल रही है !

“हाँ मुझे भी ऐसा ही लग रहा है !” ऋषभ ने कहा !

वो एक छोटा सा शहर था ! उसका बस स्टैंड भी काफी छोटा था ! लेकिन जाना है तो जाना ही है कैसे भी और किसी तरह से अपने घर पहुँचना है अपनी माँ के पास ! दुनिया में माँ से प्यारा और घर सा अपनापन कोई नहीं दे सकता चाहें कोई कुछ भी करे ! एक बस आकर रुकी थी जो पूरी तरह से भरी थी उसी में ऋषभ ने उसके दोनों बैग रख दिये ! वो स्वयं उसमें चढ़ती उससे पहले उसने सामने के काउंटर से दो पानी की बोतल और दो सादा आलू चिप्स खरीद लिए !

एक पानी की बोतल और चिप्स का पैकेट उसे पकड़ाते हुए कहा, “सुनो ऋषभ यह ध्यान से रास्ते में खा लेना !”

“हाँ सही, आराम से खा लूँगा तुम बेफिक्र रहो !”

बस चल पड़ी और ऋषभ कार की तरफ बढ़ गया ! दूर तक दिखाई देने के बाद धीरे धीरे वो अक्स धुंधला गया और फिर दिखना भी बंद हो !

परिवहन निगम की साधारण बस में बैठे बैठे सोचने लगी, देखो जिंदगी का हर लम्हा कीमती होता है उसका एक हर पल अनमोल ! वक्त का भी कोई भरोसा नहीं, अभी कार में थी और अब इस बस में ! अगर कभी भरोसा करना ही है तो खुद पर करो क्योंकि उसे कोई नहीं तोड़ सकता है जब तक हम खुद न चाहें !

अब मैदानी इलाके शुरू हो गए थे ! शुभी ने चिप्स का पैकेट खोला और खाना शुरू कर दिया ! अच्छा ही हुआ कि उसने पानी और चिप्स के पैकेट खरीद लिए ! उसे बड़ा अचरज भी हुआ कि जब बर्फ गिर रही थी तो वहाँ कमरे पर ऋषभ उसका कितना ख्याल कर रहा था और बाहर आते ही उसे कुछ भी परवाह नहीं रही ! न दवाई का पूछा, न खाने का और घर का फोन आते ही उसे अकेला छोड़ कर चला गया ! क्या यह लड़के लोग ऐसे ही होते हैं ? इनको किसी लड़की का मन पढ़ना क्यो नहीं आता है ? और यह बस भी तो बदलनी पड़ेगी क्योंकि उसके शहर तक यह बस नहीं जायेगी ! हे भगवान इसे थोड़ी बुद्धि दे देना जिससे इसे मेरा दर्द समझ आए ! हाथ में बहुत दर्द था और उसमें थोड़ी सूजन भी आ गयी थी ! ओहह !! अब वो दूसरी बस में यह सामान कैसे शिफ्ट करेगी ? चलो तब का तब देख लेंगे अभी क्यों बेकार में परेशान होना !

यह अकेला रह जाना बहुत सताता है ऋषभ ! क्या तुम भी मेरी तरह से अकेलापन महसूस करते हो या फिर सबके साथ मस्त हो जाते हो ? शुभी अपने आप से सवाल जवाब करने लगी आंखों से आँसू बह निकले ! तुम बहुत याद आओगे ! चलो शुभी मन इतना उदास मत करो वो जल्दी आ जायेगा !

मात्र तीन घंटे का सफर है लेकिन बस बदलने की वजह से शायद थोड़ा टाइम और लग जाये।

ऋषभ तुम मुझे अकेला क्यों छोड़ गए हो ? शुभी की आँखें भर आई थी !

अरे अकेली कहाँ हो मैं हूँ न तेरे साथ ! लगा जैसे ऋषभ ने जवाब दिया हो !

ऐसे तो मेरा मन पागल हो जाएगा मुझे अपने मन को थोड़ा बहलाना पड़ेगा ! किसी तरह से बस बदल ली थी और जल्दी ही अपने घर पहुँच गयी ! दरवाजे के पास पहुँचते ही बड़े ज़ोर से माँ की याद आई मन किया जल्दी से उनके गले लग जाये ! “माँ मैं आ गयी दरवाजा खोलो?” शुभी ने बहुत तेज आवाज लगाई ।

कोई प्रतिउत्तर नहीं आया ! “माँ ॥ मम्मी ... !” एक बार फिर ज़ोर से दरवाजा खटखटाया ! अरे यह क्या घर में तो ताला लगा है और वो बिना देखे दरवाजा खटखटा रही है।

कहाँ गयी हैं मम्मी ? वो किससे पूंछे? सर ने तो उनके लिए एक सेविका भी दी थी ! तभी पास वाले घर से एक लड़की निकली ! “अरे दी आप आ गयी ? अच्छा ही हुआ ! पता है आपकी मम्मी की बहुत तबीयत खराब हो गयी मेरे पापा उन्हें हॉस्पिटल में लेकर गए हैं ।

“क्या हुआ उनको ? और मेरी मेड कहाँ गयी ?” शुभी का स्वर थोड़ा घबराया हुआ था !

“वो भी उनके ही साथ है ! सुबह ही तो लेकर गए हैं उनको बीपी की प्राबलम हो गयी थी”उसने बताया ।

“किस हॉस्पिटल में हैं ? घर की चाबी किसके पास है ?”

“मेरे घर पर ही है, आप मेरे घर आ जाओ न !”

“नहीं बहन चाबी ला दो !”

“ठीक है, मैं अभी लाती हूँ !

सामान घर में रख कर वो सीधे माँ के पास पहुँच गयी ! माँ बेड पर लेटी हुई थी उनको ग्लूकोस चढ़ाया जा रहा था ! “क्या हुआ माँ को?”

“मम्मी आँखें खोलो मैं आ गयी हूँ !”

“क्यों परेशान कर रही हो इतना शोर मचा कर, यह अभी सोई हैं, इनको सोने दो और हुआ कुछ भी नहीं है सिर्फ बीपी हाई है ! शाम तक घर आ जायेंगी।” वहाँ पर खड़ी नर्स ने कहा ।

“ओहह !!” माँ मुझे माफ करना, यह सब मेरी ही वजह से हुआ होगा ! मेरी ही गलती से माँ परेशान हुई होंगी और तबीयत खराब हुई ! उसने मन ही मन सोचा ! वो वही कमरे में पड़ी हुई सीट पर बैठ गयी और अपनी माँ के चेहरे को देखने लगी, जो सोते हुए भी फिक्रमंद नजर आ रहा था।

“बेटा तुम्हें बता देना चाहिए था न ?”माँ ने शाम को घर में वापस आते ही कहा ।\

“हाँ माँ मैं आपको बताना चाहती थी लेकिन फोन बंद हो गया था, लाइट आ नहीं रही और हर तरफ सिर्फ बर्फ ही बर्फ, न खाना न पीने को पानी और न पहनने को कपड़े लगातार चार दिन एक ही कपड़े में काटे हैं ! कार में कपड़े रखे थे लेकिन हम कार तक जा नहीं सकते थे क्योंकि हम बर्फ से घिर गए थे।“

“क्या तुम्हें अहसास भी है कि एक अकेली माँ के दिल पर क्या बीती होगी ? तेरे पापा होते वे क्या कुछ नहीं कर लेते लेकिन मैं अकेली क्या करती ? किसी गैर से कह भी नहीं सकती थी क्योंकि मेरी ही बदनामी होती न !” माँ का आंसुओं से भरा गला रुँध गया था।

“मम्मी ऐसे मत कहो मैं सब समझ रही थी ! मुझे पता है आप किस तरह कष्ट में रही होगी ! सच कहूँ तो मैं भी खुश नहीं थी ! मैं वहाँ कोई मजे नहीं कर रही थी बस किसी तरह वहाँ से निकल कर आने की प्रतीक्षा कर रही थी !” शुभी ने माँ को गले से लगाते हुए कहा !

“कौन था वहाँ तेरे साथ ?” उनका स्वर थोड़ा संयत हुआ था।

“मैं ऋषभ के साथ थी लेकिन मम्मी यकीन मानों ऋषभ मुझसे बहुत प्यार करता है एकदम सच्चा और पवित्र प्यार। मैं भी उसे सच्चे मन से चाहती हूँ । मम्मी ऋषभ सच में बहुत अच्छा और प्यारा लड़का है।“

“अच्छा लड़का ? यह वही ऋषभ है न जो तुम्हें एक बार छोड़ कर चला गया था और तेरी क्या हालत हुई थी मुझे सब पता है मम्मी हूँ तेरी !” वे गुस्से में बोल रही थी ।

“हाँ !लेकिन उसकी कोई मजबूरी थी” शुभी उदास होकर बोली ! “मम्मी हम प्यार करते हैं और साथ जीना भी चाहते हैं।”

“अब वो तुझे कभी नहीं छोड़ कर जायेगा यकीन है न तुझे, कहो न, बताओ ?”

शुभी चुप ही रही, वो आज भी तो गया था उसे आधे रास्ते में छोडकर, हाथ में दर्द था और इतना समान था फिर भी, लेकिन नहीं वो गलत नहीं है उसकी मजबूरी थी । उसे विश्वास है अपने ऋषभ पर, सच्चा विश्वास और चाहें कुछ भी हो इस बार वो अपने विश्वास को कमजोर नहीं पड़ने देगी । विश्वास से तो बड़े बड़े पहाड़ भी हिल जाते है ।

“क्या हुआ बोल न ?” शुभी को सोचता देख कर मम्मी ने कहा ।

“पता नहीं मम्मी ।” वो अचानक से यूं ही बोल पड़ी ।

“फिर किसे पता होगा ?”

“मम्मी मुझे विश्वास है कि वो सिर्फ मेरा है और मैं उसकी बस, मैं इसके अलावा और कुछ भी नहीं जानती ।“

सिर्फ तेरे सोचने और कहने से क्या होता है बेटा यह दुनिया बहुत कठोर है । फिर भी मैं चाहती हूँ “काश तेरा विश्वास कभी न टूटे” ।

तभी शुभी का फोन बज उठा, उसने जल्दी से फोन उठाया और उसके हैलो बोलने से पहले ही उसने बोलना शुरू कर दिया । “शुभी तुम घर पहुँच गई और तुम्हारे हाथ का दर्द कैसा है ? यहाँ मम्मी का बीपी हाई हुआ था, वे अब ठीक हैं, यहाँ से अब मैं सीधे तुम्हारे पास आ रहा हूँ तुम्हारे शहर, तुम्हारी माँ से मिलने जो अब मेरी माँ होने वाली हैं और हाँ तेरा हाथ भी तो डॉक्टर को दिखाना है न ?”

ऋषभ अपनी ही रौ में बोले जा रहा था और शुभी निशब्द हो अपनी मम्मी के गले लग कर रो पड़ी थी ! क्या यह लड़के ऐसे ही होते हैं ? क्या इन्हें थोड़ा देर से समझ आता है ? क्या इनको किसी अपने के दूर हो जाने का अहसास ही प्रेम से भर देता है ? क्या सच में विश्वास में बहुत शक्ति होती है ? उसके मन में यह सवाल गूंजे जा रहे थे, तभी एक हवा का झोंका आँगन में लगे नीम के पेड़ की पत्तियों को उसके ऊपर बिखरा गया और वो रोते रोते हँस पड़ी ।

“अरे बावरी हुई है क्या ?” यह कहते हुए माँ भी अपने आँसू पोंछते हुए मुस्कुरा दी।

 

सीमा असीम, बरेली

09458606469