बेपनाह - 20 Seema Saxena द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

बेपनाह - 20

20

“क्या हुआ तुम यहाँ ?”

“हाँ मुझे नींद नहीं आ रही है।”

“अरे ! जाओ सो जाओ जाकर।”

“नहीं तुम भी मेरे साथ चलो वहाँ पर।”

“पागल हुई है क्या ? यहाँ दादा जी क्या सोचेंगे?”

“सोचने दो, जो भी सोचना है ! मुझे किसी की परवाह नहीं है ! मैं तुमसे प्रेम करती हूँ कोई मज़ाक नहीं है प्रेम करना ! मेरी जान निकलती है तुमसे पल भर को भी अगर दूर जाती हूँ तो।”

“हम हमेशा साथ हैं और साथ ही रहेंगे तुम मेरी हो।”

“तुम भी सिर्फ मेरे हो ! समझे ऋषभ।”

“हाँ भाई हाँ ! अब तो जाओ ।”उसने दरवाजा बंद करते हुए कहा ।

“नहीं जाऊँगी मैं ।”

“तो मत जाओ ! मैं दादा जी के सामने अपनी बेइज्जती नहीं करा सकता !”

ऋषभ ने दरवाजा बंद कर लिया था ! वो रोती हुई वही जमीन पर बैठ गयी ! हाय, क्या मैं यही सब देखने के लिए ही इसके साथ चली आई ! घर पर मम्मी को तक नहीं बताया ! इसके प्यार में अंधी हो गयी हूँ ! मैं क्या करूँ मेरे ईश्वर ? उसने अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा ! आँसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे ! शायद वो खुद ही गलत है क्योंकि ऋषभ ऐसे कैसे आ सकते हैं ? मन को समझाने की कोई कोशिश काम नहीं आ रही थी ! क्या एक बार फिर से कहूँ ऋषभ से या दादी के कमरे में चली जाऊँ ? सुबह वो यहाँ से वापस चली जाएगी कोई न कोई साधन तो मिल ही जाएगा जाने के लिए !

“रूपोली अरे ओ रूपोली!” उसे दादी की हल्की सी आवाज सुनाई दी !

शुभी जल्दी से उठकर दादी के पास आ गयी और धीरे से बेड पर लेट गयी !

“रूपोली आज तू मेरे साथ ही सो जा, और हाँ घर पर फोन कर दे कि मैं दादी के साथ हूँ!” सोती हुई दादी रुक रुक कर सब बोल गयी।

कितने प्यारे होते हैं, यह हमारे बुजुर्ग जो अपने बचपने को फिर से जीने लगते हैं! बच्चों जैसी बातें और ज़िद भी बिलकुल वैसे ही हो जाते है बिना दांत वाले बच्चों से क्योंकि बुढ़ापे ने उनके दांतों की बलि ले ली होती है! हमारे बचपने में हमारा लाड़ प्यार उठाने के लिए हमारे माँ बाप और बड़े लोग होते हैं लेकिन इनके साथ कोई नहीं! बच्चे बड़े होकर अपने कारोबार को संभालने में घर से दूर निकल जाते हैं अपने परिवार के साथ लेकिन अपने माँ बाप को छोड़ जाते हैं अकेले तन्हा ! अगर दोनों हैं तो किसी तरह से जिंदगी गुजर जाती है और अगर एक भी साथ छोड़ गया तो जीना मरने के समान हो जाता है! उसे दादी पर तरस आया हल्के से उनके बालों पर हाथ फिरा कर गाल को चूम लिया।

“अरे रूपोली तू अभी तक सोई नहीं ! अब तू सो जा सुबह जल्दी उठना है!” दादी सोते सोते ही बोल पड़ी, वे उसे रूपोली समझ रही थी लेकिन शुभी कुछ नहीं बोली।

कितनी कच्ची नींद होती है जरा सा हाथ लगते ही जग गयी, बच्चे भी तो कच्ची नींद में ही सोते हैं थोड़ी भी आहट हुई नहीं कि उनकी आँख खुली।

यह सब सोचते सोचते आँखों में नींद भरने लगी थी साथ ही ऋषभ पर बहुत गुस्सा आ रहा था ! जो इंसान जैसा होता है वैसा ही रहता है उसकी आदतें कभी नहीं बदलती ! तुम कहीं अपनी ही नजरों में न गिर जाओ ऋषभ ! मैंने एक बार तुम्हें तुम्हारी गलती के लिए माफ कर दिया, क्या फिर वही गलती करोगे ? नहीं गलत हमेशा गलत ही रहता है वो कभी सही नहीं हो सकता है ! यह बात समझनी ही होगी ! रोते रोते सिर बहुत भारी हो गया था। कब आँख लगी पता ही नहीं चला ! सुबह दादी ने जगाते हुए कहा, “बेटा पहले चाय पी लो फिर सो जाना ! लगता है रात नींद पूरी नहीं हुई है !” यह कहकर दादी फ्रेश होने के लिए वाश रूम में चली गयी।

शुभी ने आँख खोली देखा रूपोली चाय लेकर खड़ी है ! फूलों वाले प्रिंट का सलवार सूट पहन कर एक दम नहाई धोई लग रही थी ! लंबे वालों की चोटी, आँखों में काजल बस और कोई मेकअप नहीं रंग तो वैसे ही साफ है और होंठ बिना लिपिस्टिक के भी गुलाबी लग रहे थे ! खूब मोटी जैकेट पहन रखी थी सर्दी भी तो बहुत है !

“रूपोली तुम बहुत जल्दी आ गयी ?”

“हाँ जी ! मैं रोज जल्दी आ जाती हूँ !”

“इतनी ठंड में नहा कर भी आई हो ?”

“हाँ गरम पानी से ! मम्मी कर देती हैं सुबह जल्दी उठकर ! वो मेरी आदत बन गयी है जल्दी नहाने की। पहले मेरी मम्मी काम करती थी यहाँ पर अब मैं क्योंकि वे बीमार रहती हैं और उनसे चला फिरा भी नहीं जाता ! उनको बड़ी मुश्किल होती है !” रूपोली बड़े अपनेपन के साथ बातें करने लगी।

“तो तुम उनका ख्याल रखा करो न।” शुभी भी उसी अपनेपन के साथ बोली।

“हाँ रखती तो हूँ ! अच्छा दीदी जी अब पहले चाय पी लीजिये वरना ठंडी हो जाएगी और दादी आकर डांटेगी !”

:हाँ दे दो !” सर्दी बहुत हो रही थी, इसलिए कंबल से हाथ भी बाहर निकालने का मन नहीं हो रहा था !

रूपोली ने स्टील के छोटे से गिलास को उसके हाथ में पकड़ा दिया और वहाँ से चली गयी! गरम गिलास से हाथों में गर्माहट आ गयी।

चाय में बहुत स्वाद था लेकिन मीठी थोडी ज्यादा थी ! रात ठीक से नींद पूरी न होने के कारण उठने का मन नहीं कर रहा था सो उसने कंबल को अपने सिर तक ढंका और आँखें बंद कर ली।

अब उठ जाऊँ नहीं तो दादी सोचेंगी कि कैसी लड़की है इतनी देर तक सोती रहती है। उसने कंबल हटाया और बेड पर ही बैठ गयी। रात के ख्यालों ने अभी तक उसे मुक्त नहीं किया था ! वो बेकार की बातें सोचकर अपना और ऋषभ का मूड खराब कर लेती है, उसने अपने सिर को झटकते हुए सोचा और ऋषभ से ऐसी कोई भी बात नहीं करेगी जिससे उसका मूड खराब हो जाये।

“शुभी तुम अभी तक उठी नहीं?” ऋषभ ने कमरे में आकर उसे गले से लगाते हुए कहा ! आँखों से अपने आप आँसू बह निकले थे ! उसने कस कर ऋषभ को अपनी बाहों में बांध लिया ! कहीं पकड़ ढीली हुई और वो फिर पहले की तरह कहीं दूर न चला जाये ! ऋषभ की बाहों में आते ही कितना सकूँ मिल गया था मानों सारी खुशी आ गयी हो और अब वहीं पर डेरा बनाकर बैठ गयी हो !

“रूपोली अरे ओ रूपोली !” दादी ने वाशरूम से ही आवाज लगाई !

“हाँ दादी आ रही हूँ !” रूपोली की इस आवाज को सुनकर वे दोनों अलग हट गए कि कहीं रूपोली ने देखा तो अच्छा नहीं लगेगा।

एक दूसरे के आगोश से दूर होने के बाद भी उस प्यार की गर्माहट महसूस हो रही थी ! “मैं बाहर हूँ तुम चाहों तो आओ मेरे साथ बाहर बैठते हैं ।” ऋषभ ने शुभी से कहा।

“हाँ चल रही हूँ लेकिन मुझे ठंड बहुत लग रही है।”

“बाहर आग जल रही है न ! वहाँ पर दादा जी बैठे हुए हैं, अभी दादी भी आ जाएंगी।” ऋषभ ने उसके हाथ को पकड़ कर बाहर चलते हुए कहा ! बड़ा सा दालान जैसा जहां दादा जी बैठ कर हुक्का पी रहे थे और सामने अलाव जल रहा था ! ठंडी हवाएँ और सर्द मौसम उसे बिलकुल भी नहीं पसंद है, आग गर्माहट अच्छे लगते हैं ! उठ गयी बेटा और रात को नींद अच्छी आई न ? वो कुछ कहती उससे पहले ही दादा जी बोल पड़े, “आओ यहाँ कुर्सी पर आकर बैठ जाओ !” अलाव के पास पड़ी हुई कुर्सी आ इशारा करते हुए कहा !

“जी, दादा जी” और वो उस पर बैठ गयी !

आग की गर्माहट से शरीर थोड़ा नर्म सा हो गया नहीं तो हाथ पाँव सब ठंड से अकडे हुए लग रहे थे।

“क्या हो रहा है ? तुम सब यहाँ बातें कर रहे हो और मुझे बुलाया भी नहीं !” दादी अंदर से आते हुए बोली ! सफ़ेद रंग के कपड़े पहने हुए वे बहुत सुंदर लग रही थी और उनके चेहरे का गोरा रंग उन्हें बेहद खूबसूरत होने का अंदाजा दे रहा था । वे अपनी जवानी के दिनों में खूब सुंदर रही होंगी ! उम्र हो जाने के कारण उनकी कमर झुक गयी थी और एक हाथ में छड़ी लेकर चलना पड रहा था ! आँखों में खूब मोटा चश्मा ! दादा जी की उम्र तो इनसे ज्यादा ही होगी लेकिन वे एकदम से स्वस्थ दिख रहे थे । न आँखों में चश्मा, न हाथ में छड़ी ! शुभी के मन में यह ख्याल आया ।

“क्या सोच रही हो ! चलो अपने बाग में घुमा कर लाता हूँ !” उसे यूं चुप बैठा देख ऋषभ बोले।

“अभी रुको बेटा नाश्ता करके जाना ! मैं भी डॉ को दिखाने जाऊँगी ! खाना आ कर खा लेना तब तक मैं भी वापस आ जाऊँगी !” दादी ने पूरा प्लान बना दिया।

“दादी हम नाश्ता करके वापस चले जाएँगे ! खाना कहीं रास्ते में खा लेंगे ! ठीक है न !”

“बेटा जैसा सही समझो ! सुनो आप जल्दी तैयार हो जाओ यह बच्चे आज ही वापस भी जाएँगे क्योंकि यहाँ का मौसम सही नहीं है कब बर्फ पड़ने लग जाये और कितनी पड़े कुछ भी नहीं कहा जा सकता !” दादी ने दादा जी से कहा !

“रूपोली अरे ओ “रूपोली,, आज नाश्ते में क्या बनाया है ?” दादी ने “रूपोली को आवाज लगते हुए कहा ।

“दादी आज गोभी के पराँठे बनाए हैं !”

“ठीक है जल्दी से लगा दो क्योंकि मुझे डॉ के यहाँ और इन बच्चों को बाग देखकर वापस चले जाना है ।”

“जी दादी, अभी लगा रही हूँ ।” रूपोली ने कहा।

“शुभी बेटा, तुम फ्रेश हो जाओ फिर हमारे साथ ही नाश्ता कर लेना !” दादी ने बड़े प्यार से शुभी से कहा।

“हाँ बस मैं अभी आती हूँ !” उसका मन कर रहा था जल्दी से बाग में पहुँच जाये ! एक तो उसने कभी बाग नहीं देखे ऊपर से यहाँ तो सेब के बाग देखने को मिलेंगे।

नहा लेती हूँ थोड़ा अच्छा लगेगा सोचते हुए उसने अपने बैग में से पिंक कलर का सूट और पीले रंग का ब्लेजर निकाल लिया !

जब वो तैयार होकर बाहर आई तो देखा नाश्ता लग गया था ! रूपोली तो कह रही थी कि गोभी के पराँठे बनाए हैं लेकिन यहाँ पर कितनी ढेर प्लेटे लगी हुई हैं ! मखाने, काजू और बादाम फ्राई किए हुए एक प्लेट में, एक में उबले अंडे, पापड़, बिस्किट, नमकीन और गोभी पराठा, दही, आचार और साथ में चाय ! रूपोली ने एक प्लेट में सारा समान लगा कर उसे पकड़ा दिया, “अरे इतना सारा मैं नहीं खा पाऊँगी।”

“खा लोगी बेटा अभी जब बाग में जाओगी न तब सब हजम हो जायेगा क्योंकि वहाँ पर घूमते घूमते और भी भूख लगेगी !” दादी बड़े प्यार से उसे समझाते हुए बोली !

हमारे प्यारे यह बड़े बुजुर्ग ! इनके पास अनुभवों की खान होती है लगता है इनको सब पता होता है तभी तो हर बात को बड़े अच्छे से, प्यार से समझा देते हैं ।

“क्यों बेटा नाश्ता अच्छा नहीं लगा ?” दादा जी बोले ।

“हाँ हाँ, सब कुछ बहुत अच्छा बना है !”

वाकई स्वाद था गोभी के पराठों में हालांकि उसे सिर्फ आलू के भरवां पराठे ही अच्छे लगते हैं लेकिन आज यह गोभी के पराठों ने मन तृप्त कर दिया ! रूपोली बार बार गरम गरम एक एक करके पराँठे लाती जा रही थी ।

“एक और लो न दीदी ? यह कहते हुए रूपोली ने गरम गरम एक पराठा उसकी प्लेट में रख दिया।”

“नहीं नहीं रूपोली अब नहीं खाया जायेगा, प्लीज हटा लो बहन !”

“अरे दीदी पतला सा ही तो है।”

“पराठे तो पतले ही हैं लेकिन अब एक कौर खाना भी मुश्किल है।”

“खा लिया जायेगा !” मानों रूपोली बिल्कुल हार नहीं मानने वाली है और उसे खिला कर ही रहेगी