टापुओं पर पिकनिक - 58 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टापुओं पर पिकनिक - 58

आगोश का कोर्स जल्दी ही अब पूरा होने वाला था। तेन भी अब वापस अपने देश जापान लौट जाने की तैयारी करने लगा था।
उन दोनों के बीच अब घनिष्ठ यारी हो गई थी। दिल्ली के इन दिनों के साथ ने उन दोनों को ही बहुत कुछ दिया था। दोनों की दुनिया ही बदल दी थी।
सच में, जीवन में जब आदमी ये तय कर लेता है कि उसे क्या करना है तो एक सुकून सा मिलता है। जीवन की एक दिशा तो तय हो ही जाती है फ़िर चाहे उसमें कितने ही उतार - चढ़ाव आते रहें।
अब पर्यटन की दुनिया को ही अपनी ज़िंदगी की मंज़िल बना लेने की ठान ली आगोश ने।
वो कमरे में बैठा एक पत्रिका को पलटता हुआ उस के नयनाभिराम चित्रों में खोया ही हुआ था कि एकाएक किसी आंधी की तरह तेन ने कमरे में प्रवेश किया।
आते ही उसने हाथ पकड़ कर आगोश को कुर्सी से खींचा और उसे बाहों में उठा कर गोल- गोल घूमने लगा।
हड़बड़ा गया आगोश।
- क्या हुआ... अरे यार क्या हो गया?
तेन ने बिना कुछ बोले उसके मुंह पर एक के बाद एक चुंबनों की झड़ी लगा दी।
चार- छः चक्कर खिलाने के बाद तेन उसे ज़मीन पर उतार कर उसके हाथ अपने हाथों में लेकर थिरकने लगा।
आगोश पूछता रह गया कि आख़िर हुआ क्या, क्यों तेन इतना आल्हादित है?- कुछ बोल तो सही राजा।
तेन इस समय केवल शॉर्ट्स पहने हुए था और इसी वेशभूषा में वो बौखलाया हुआ आगोश को ये खबर देने दौड़ता हुआ चला आया था।
खबर ये थी कि मधुरिमा का फ़ोन आया था।
मधुरिमा का फ़ोन आना आगोश के लिए कोई खबर हो या न हो, तेन के लिए तो बड़ी खबर थी।
ये खबर इसलिए भी और बड़ी बात बन गई कि मधुरिमा ने तेन के प्रस्ताव पर अपनी सहमति की मोहर लगा दी थी।
तेन मधुरिमा को दिए गए तोहफ़े के पैकेट में अपनी इल्तिज़ा का जो एक छोटा सा पुर्जा छोड़ आया था उसे मधुरिमा ने दिल से लगा लिया था।...और तब उसका ये फ़ोन तेन के लिए बेहद ख़ास बन गया था।
शाम को तेन और आगोश का ज़बरदस्त जश्न मना।
तेन ने हयात रीजेंसी में उसे शानदार डिनर दिया।
इस ट्रेनिंग प्रोग्राम के दरम्यान इन सभी लोगों का संपर्क दुनिया भर के कई नामचीन टूर- ऑपरेटर्स से हो गया था।
एक से बढ़कर एक मंसूबे और एक से बढ़कर एक महत्वाकांक्षी लोग! बड़े - बड़े प्लांस बनने लगे।
देखते - देखते समय भी अपनी गति से खिसकता गया और आगोश हॉस्टल छोड़ कर वापस घर लौट आया।
लेकिन जो आगोश अपना घर छोड़ कर इस कोर्स के लिए दिल्ली गया था, ये वो नहीं था जो दिल्ली से कोर्स पूरा करके वापस लौट कर आया। उसमें बहुत कुछ बदल गया था। आमूलचूल परिवर्तन!
लौटते ही आगोश अब तन -मन -धन से अपना कारोबार जमाने में मशगूल हो गया। अब उसके पास एक क्लियर विज़न था, एक स्पष्ट रोडमैप था और था एक अनंत हौसला। सपने... उम्मीदें!
आगोश और तेन ने अब मिलकर काम करने का प्लान बनाया था।
इस बार भी हर बार की तरह आगोश ने अपने सब दोस्तों को अपनी पसंदीदा जगह रूफटॉप में इकट्ठा तो ज़रूर किया पर मनन, सिद्धांत, मनप्रीत और मधुरिमा से लेकर साजिद तक ने आगोश में एक बड़ा परिवर्तन महसूस किया।
ऐसा लगता था मानो वो सब आर्यन के साथ- साथ अपने दोस्त आगोश को भी मिस कर रहे हैं, जबकि आगोश वहीं, उन सब के बीच, उनके साथ ही था।
आर्यन तो अब स्टार हो गया था। उसकी खबरें तो अब उन लोगों को भी मीडिया से ही मिलती थीं। वो बहुत दिनों से आया भी नहीं था।
आर्यन को किए गए उन सबके फ़ोन उठते ज़रूर थे पर अब पहले की तरह लंबी- लंबी गप्प - गोष्ठियां नहीं, बल्कि सूचनाओं का महज़ आदान- प्रदान होता था- जा रहा हूं, आया हूं, स्टोरी सैशन में हूं, सेट पर हूं... डिनर था!
आगोश भी खोया - खोया सा लगता था। सब भांप रहे थे इस बदलाव को।
...तो क्या अब उनके गुलशन का एक और परिंदा ऐसी ही अनजान दुनिया के लिए परवाज़ लेने वाला है? क्या अब आर्यन की तरह आगोश भी उन सब से इसी तरह दूर चला जाएगा? क्या किसी गुंचे से निकल कर एक- एक फूल इसी तरह मिट जाता है! यारियां ऐसे ही किसी धुंध में खोती जाती हैं?
मज़ा नहीं आ रहा था। आगोश की बातों में आज वो गमक नहीं थी जो हमेशा उन सब को बांध कर रखती थी।
और रही- सही कसर मधुरिमा ने पूरी कर दी। बोली- आगोश, मैं भी!
सब उसकी ओर देखने लगे।
मधुरिमा फ़िर बोली- मैं भी पियूंगी आज...
- मैं भी..
- चीयर्स! सबकी आवाज़ एक साथ आई। जैसे कोई समवेत संगीत बज रहा हो, जिसमें हर वाद्य अपनी अपनी खनक भुला कर एक साथ ताल दे रहा हो।
... आगोश, मैं भी... थोड़ी और..
मनन ने इस बार पानी भी नहीं मिलाया... वो सिद्धांत से कहां पीछे रहने वाला था।
... मनप्रीत ने साजिद के गिलास से घूंट भरा।
साजिद ने मनप्रीत के गाल पर लगा एक छोटा सा हरे धनिए का पत्ता जीभ से चाट लिया।
मेज पर बोतल नाच रही थी और डगमगा रही थी कायनात। यारियां दूध की तरह उफ़न कर फ़ैल रही थीं।
मधुरिमा आगोश के गिलास में अपने नए ईयररिंग्स की छवि देखने झुकी तो सिद्धांत के सिर से उसका सिर टकरा गया। मनन ने सिद्धांत की छाती पर एक मुक्का मार कर जैसे उसे पीछे धकेला... साजिद ने ज़ोर से मनप्रीत के बालों में फूंक मारी...
... प्लेट फूटी नहीं थी, केवल ज़ोर से नीचे गिरी थी जिसकी आवाज़ सुनकर एक वेटर उसे उठा ले जाने के लिए दौड़ा चला आया था। लेकिन सिद्धांत का फ़ैला हुआ पैर शायद उसे दिखा नहीं, वह उलझ कर गिरा... संभल के.. संभल के.. संभल के, बोलता हुआ आगोश एक ओर निढाल होकर मनन के कंधे से लग गया!
- चीयर्स! सबकी आवाज़ एक दूसरे की आवाज़ में गुंथ- उलझ कर जैसे गुनगुनाई... मधुरिमा साजिद की जांघों पर थाप देने लगी। वेटर कुर्सी का सहारा लेकर उठने लगा तो सिद्धांत के हाथ के बोझ से फ़िर लुढ़का..
और ये क्या???
हॉल में दीवार पर लगे बड़े से टीवी के स्क्रीन पर.. घूर कर देखते एक वेटर ने आवाज़ का वॉल्यूम फुल कर दिया।
वह नाचने लगा।
एक- एक करके और भी लोग उसे देखते हुए खड़े होकर उसके पास आने लगे और सब मिल कर नाचने लगे। मनप्रीत ने साजिद का हाथ पकड़ कर खींचा और वह भी घूम- घूम कर नाचने लगा।
सिद्धांत ने मधुरिमा का कंधा पकड़ा और दोनों गले लग कर नाचने लगे। मनन भी उछल- उछल कर वेटर का हाथ पकड़ कर नाचने लगा।
मेजें झूमने लगीं, कुर्सियां नाचने लगीं।
आगोश भी बालों को ज़बरदस्त झटका देता हुआ नाचने लगा। आवाज़... थिरकन... जवानियां... शराब... आलम... हवा.. सब झूमने लगे, नाचने लगे, थिरकने लगे!
टीवी के पर्दे पर भी एक हुड़दंग चल रहा था। वहां भी सब नाच रहे थे। ओह ये क्या?
सबके बीच एक सितारा नाच रहा था। ऐसा सितारा.. जिसे इस ज़मीन का ज़र्रा- ज़र्रा जानता था, पहचानता था.. आर्यन नाच रहा था। मानो अपने सब दोस्तों की खुशी में शामिल होकर आसमान से यारों का यार बिना बुलाए महफ़िल में चला आया था... महफ़िल सिमट कर सितारे के पहलू में चली गई थी... उन्माद आलम के गले लग कर उन्मादी हो रहा था.. रात गा रही थी।