बेपनाह - 13 Seema Saxena द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बेपनाह - 13

13

दोपहर के करीब दो बज रहे थे और सब लोग खूब मस्ती करके वापस लौट आए थे लेकिन शुभी के दिलो दिमाग में रात की वो घटना दिन भर उथल पुथल मचाए रही, अब तो उस स्त्री से जाकर बात करके ही आऊँगी ! सब लोग थके हुए थे इसलिए खाना खाकर सो गये और शुभी चुपके से किसी से भी बिना कुछ कहे अकेले ही उसके घर की तरफ चल दी । अब जो होगा देखा जायेगा, किसी की परेशानी मेरी डांट से ज्यादा बड़ी है अगर सर डाँटेंगे तो सह लेंगे । शुभी के कदम बिना किसी डर या भय के स्वतः बढ़ते जा रहे थे । उसे पता था अगर यह बात किसी को बता देती तो वो भी साथ आ जाता लेकिन अभी तो शुभी को अकेले ही उस स्त्री को देखना और समझाना है । मुश्किल से 300 मीटर चलने के बाद ही उसका घर आ गया था ।

उस घर का छोटा सा दरवाजा था, जो अंदर से बंद था, कोई डोरवेल कहीं दिख नहीं रही थी । इसका मतलब यह लोहे की मोटी चैन नुमा कुंडी को खटखटा कर दरवाजा खुलाना पड़ेगा ? हाथ कुंडी की तरफ बढ़ाया लेकिन फिर पीछे की तरफ खींच लिया, कहीं किसी को बुरा न लग जाये ? डरना क्या जो होगा सब अच्छा होगा। यह सोचकर उसने अपने मन को समझाया । कुंडी खटखटाने को हाथ इस बार फिर सांकल पर पहुँच गये । कोई भी निकल कर न आया, शायद हल्के से बजाई है इसलिए लगता है किसी को सुनाई ही नही पडा ? एक बार तेज करके बजा देती हूँ फिर जो होगा देखा जायेगा ! इस बार उसने बहुत तेज बजाई थी । अंदर से थप थप की आवाज आई मानों कदमों की थाप थी । एक महिला लगभग लड़की जैसी ही लग रही थी उस ने दरवाजा खोला । यह कल वाली महिला ही थी जो अपने पति के लिए पानी का गिलास लिए खड़ी थी और वो सिर के ऊपर हाथ रखे रो रहा था ।

लंबे कद की पतली दुबली छरहरी काया,वक्षस्थल तक के काले खुले बालों में, उसके चेहरे का गोरा रंग और भी निखरा हुआ लग रहा था ! उसने नीले रंग के सूट पर रानी कलर की चुन्नी डाल रखी थी ! आँखें सूजी हुई सुर्ख लाल जिनमे हल्का सा काजल लगा हुआ था ! कुल मिला कर बिना मेकअप के भी वो एक खूबसूरत महिला लग रही थी ! उसके भोले चेहरे से मासूमियत झलक रही थी ! कोई भी उनको देखकर उनकी उम्र का अंदाजा नहीं लगा सकता था । क्या रात को इनके ही रोने धोने की आवाज़े आ रही थी ! इतनी प्यारी पत्नी के होते हुए भी कोई मर्द कैसे उस पर हाथ उठा सकता है ?

“जी आप कौन ?” वे बड़ी प्यारी आवाज में बोली ।

“मैं शुभी हूँ और यहाँ थियेटर करने के लिए आई हूँ ।“

“अच्छा अच्छा इस बराबर वाली बिल्डिंग में रुकी हैं न ?”

“जी हाँ यही पर ! क्या आप हमें अंदर नहीं बुलाएंगी यही पर खड़े होकर सारे सवाल पूछ लेंगी ?”

वे हल्के से मुस्कुराई ! कितनी प्यारी है इनकी मुस्कान,एक एक दाँत सफ़ेद मोती जैसा चमक रहा था । “आइये आ जाइए न ।“

“आ जाऊ न या जाऊँ ?” उसने मज़ाकिया लहजे में कहा ।

“अरे आइये न ।” वे मुस्कुराती हुई बोली ! उनकी आवाज और लहजे में अपनापन झलकने लगा था ।

वो अंदर आ गयी ! साफ सुथरा कमरा था जिसमें एक तरफ छोटा सा गोल सोफा पड़ा हुआ था सामने एक शीशे की मेज और किनारे से दीवान था । घर में उनके सिवाय और कोई भी नजर नहीं आ रहा था ! उसने अपनी नजरें घुमा कर इधर उधर देखना चाहा ! पर उनके अलावा कोई और नहीं दिखा । कितना सूना सूना सा घर लग रहा था ! कैसे रहती होंगी यह अकेले यहाँ ? शायद बच्चे स्कूल गए होने और पति दफ़तर लेकिन घर में कोई रौनक क्यों नहीं लग रही इतना साफ सुंदर सा घर लेकिन कुछ कमी सी लग रही थी।

“आप क्या लोगी ? शुभी को देखते हुए वे बोली, चाय या कॉफी या कुछ और ?”

“नहीं मैं कुछ नहीं लूँगी बिलकुल अभी लंच किया है, मुझे तो आपसे मिलना था, कुछ बातें करनी थी और यहाँ के बारे में भी जानना था।“

“मैं सब बता दूँगी लेकिन उसके लिए पहले आपको हमारे हाथ का मिल्क शेक पीना पड़ेगा, अगर मंजूर है तो बोलो ?” वे बड़े प्यार से मुस्कुराते हुए बोली ।

अब कोई इतने प्यार से कहे तो कैसे मना किया जा सकता था ! “ठीक है आपकी जो मर्जी हो पिला दीजिये ।”

वे बहुत खुश लग रही थी जैसे उनको मेरा ही इंतजार था ! जब दरवाजा खोलने आई थी तब तो चेहरा उतरा हुआ लग रहा था ! वैसे जब इंसान हंसने लगता है न, तो उसके चेहरे पर अलग तरह का निखार आ जाता है और अब उनके चेहरे पर जो हल्की सी मुस्कान खेल रही थी, वो दिखावा भी हो सकती है लेकिन जो भी है वे खुश तो हैं।

कुछ ही देर में वे एक ट्रे में काम्प्लान वाला दूध, एक काँच के गिलास में और एक छोटी प्लेट में बिस्किट लेकर आ गयी थी ।

“आप अपने लिए नहीं लाई ?”

“मैंने अभी चाय पी ली थी ।”

“मैं भी अभी खाना खाकर आई हूँ न ?”

वे मुस्कुराई, “चलो मैं अपने लिए भी बना कर लाती हूँ अब खुश ?”

“हाँ खुश लेकिन इस गिलास में से ही आधा आधा कर लो । यह बहुत ज्यादा है मैं पी नहीं पाऊँगी ।” शुभी ने उनसे बड़े प्यार से कहा । वे उसका यह आग्रह टाल नहीं पाई और एक गिलास ले आई ! उसने उस गिलास में अपने गिलास से आधा दूध लौट दिया ।

वे साथ में दूध और बिस्किट खाने लगे। वे तो कभी मिले भी नहीं थे लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे उनकी बरसों की जान पहचान हो ।

उनका व्यवहार बहुत अच्छा लग रहा था, और वे खुश इतना ज्यादा थी मानों उनको मेरे आने से खुशी का कोई तोहफा मिल गया हो ।

“आप यहाँ अकेले रहती हैं ?”शुभी ने बात बढ़ाने की गरज से उनसे सवाल पूछा ।

“नहीं तो, मैं यहाँ अपने पति के साथ रहती हूँ ।”

“आपके बच्चे ?”

“मेरे कोई बच्चे नहीं हैं तीन बार मिसकेरेज हो गया फिर मैं कभी क्न्सीव ही नहीं कर पाई और अब तो उम्र ही निकल गयी ।”

कितनी सरलता और सहजता से हर बात कर रही थी कहीं कोई बनावट नहीं थी। अब वे कुछ उदास नजर आने लगी थी ।

“कोई बात नहीं आप कोई बच्चा गोद ले सकती है ।”

“नहीं इन्हें पसंद नहीं है कि मैं किसी बच्चे को गोद लूँ क्योंकि न जाने वो किसका बच्चा होगा ।“ उनकी उदासी बढ़ती जा रही थी ।

“आजकल तो इतने ऑप्शन हैं लेकिन कोई बात नहीं, आप कोई और बात करो । चलो जब मेरा बच्चा होगा तो वो मैं आपको दे दूँगी । मुझसे उनकी उदासी देखी नहीं जा रही थी इसलिए मैंने बातों का रुख मोड दिया । आपका देहारादून बहुत ही प्यारा शहर है ! कितना खूबसूरत है यहाँ का माहौल ।“

“हाँ हैं तो सही ! अप लोग कब तक हैं यहाँ पर ?”

“अभी हम 8 दिन और रुकेंगे ।“

“चलो फिर तो ठीक है ।“ वे खुश होकर बोली ।

शायद मेरे आने से इनको किसी तरह की कोई तसल्ली सी हुई है । शुभी ने मन में सोचा।

“लेकिन आप मुझसे मिलने आते रहना, जब तक यहाँ पर हो।”

“हाँ बिल्कुल आऊँगी ।” उसने उनकी मुस्कान को कायम रखने के लिहाज से कहा ।

“कभी आपका मन करे तो आप भी प्ले देखने आ सकती हो ।”

“हाँ यह भी सही बात है लेकिन हमारे पति हमें कभी भी कहीं जाने नहीं देते हैं । मैं कितने सालों से अपनी माँ के घर नहीं गयी हूँ ।” वे फिर उदास हो आई ।

“क्यों ? ऐसा क्यों है ?”

“लंबी कहानी है फिर कभी सुनाऊँगी ।”

“आज ही सुनाओ न ? मैं अभी यही पर बैठी हूँ ।”

“हाँ ठीक है बेटा, मैं अपने कर्मो को दोष देने के अलावा और क्या कर सकती हूँ, सब मेरे कर्मों का ही फल है ।“

“अरे आप अपने मन में कोई हीन भावना मत रखिए, खुद को कष्ट भी मत दीजिये अपनी आत्मा पर कोई बोझ क्यों पाल रही हैं ? क्या आप जानती नहीं हैं कि इंसान के मन में ही सब है, वो अपने मन से ही बन जाता है और मन से ही बिखर जाता है ।”

“फिर तुम ही बताओ, क्या मैं गलत हूँ या मेरी गलती क्या है ? मैं अपने पति को बेहद प्यार करती हूँ उनकी किसी भी ज्यादती का मुझे दुख नहीं होता लेकिन वे अपनी गलत आदतें छोड़ दें बस ।”

गलत आदतें ? ज्यादती ? उसके मन में अनेकों प्रश्न जग गए ।

“हाँ बेटा, वे एक औरत से संतुष्ट नहीं हो पाते हैं, कभी कोई औरत उन्हें पसंद आ जाये तो वे उसका पीछा नहीं छोड़ते, मैं अगर कभी कुछ कह दूँ तो मेरे साथ ज्यादती करते हैं यानि की मारपीट गाली गलौज ।” वे रुआंसी हो आई ।

“देखिये आप बिलकुल मत रोईए, देखना एक दिन सब सही हो जायेगा ।“ शुभी ने उनकी आँखों को अपने हाथों से पोछ दिया । “आपको कमजोर नहीं बनना है आप अपने पति को प्रेम करती हो न, तो बताओ कैसे कमजोर हो गयी क्योंकि प्रेम हमें मजबूत बनाता है कमजोर नहीं ।” मैंने उनको हिम्मत बँधाते हुए कहा ।

रात का रोना धोना और चीख पुकार याद आई । कितना बुरा होता है वो इंसान जो अपनी पत्नी को दुख देता है । बदनसीब है वो, उस इंसान को अपने झूठे प्यार की परवाह है लेकिन अपनी पत्नी की नहीं ।”

“क्या वे आपको प्रेम नहीं करते ?”

“करते तो हैं ! लेकिन इस बार किसी युवा लड़की के चक्कर में पड गये हैं जो इनको खूब मूर्ख बना कर लूट रही है और यह हमें, सच तो यह है कि यह बिल्कुल उस तरह के अंधे हो गए हैं जो देख कर भी नहीं देखता है ।”

“क्या मैं उनसे बात करूँ ?” उसने कहा ।

“कोई फायदा नहीं होगा । वो वही करेंगे जो उनकी मर्जी होगी । तुम खुद सोचो कोई युवती इनको प्यार क्यों करेगी जबकि उसे तो अनेकों युवा लड़के मिल जाएँगे, बस इनके पैसे पर ऐश कर रही है, अगर यही बात इनसे कह दूँ तो झगड़ा शुरू कर देते हैं ।

“क्या रिश्ता है उस लड़की से ?” शुभी ने पूछा ।

“अभी तो कोई रिश्ता नहीं है, बस यह उसे अपना बनाना चाहते हैं । वो आती है इनसे मिलने फिर खूब खर्चा करा के वापस चली जाती है । अपने हाथ की दोनों अंगूठियाँ और गले की सोने की चैन भी मुझे बिना बताए उसे दे दी । एक सोने की अंगूठी थी और एक हीरे की । जब आती है तो खुशी के मारे फ़ूले नहीं समाते हैं लेकिन जब वो चली जाती है तब रोते हैं और मुझे पीटते हैं !” वो महिला यह कहते हुए फफक कर रो पड़ी ।

“आप चुप हो जाओ, मत रोओ ऐसे इंसान के लिए जिसे तुम्हारी जरा भी कदर नहीं है ! कैसे किसी गैर के लिए इतने अंधे हो गए । जो अपनों का न हुआ वो गैरों का कैसे हो जायेगा ?”

“हाँ बेटा, मैं हर बार यही सोचती हूँ, पर मेरा प्रेम मेरे आड़े आ जाता है और मैं मजबूर हो जाती हूँ ! पता है हमने लव मैरिज की है, मेरे प्रेम में मेरे प्रेमी पति देव उस समय पूरी तरह से दीवाने थे ! उन्होने ठान लिया था कि शादी करूंगा तो मुझसे ही करूंगा ! बस इनकी ज़िद कामयाब हुई और अब यह हालत कर दी ! वैसे देखा जाये तो वे दीवाने अभी भी हैं पहले मेरे थे अब और किसी के ।” वे अभी भी रो रही थी !

“आप रोना बंद कीजिये हम आपके साथ है, अब आप अकेली नहीं हो मैं आपकी हर तरह से मदद करूंगी ।” मैंने उनको ढांढ़स बँधाया ।

“लेकिन आप तो चली जाएगी न ?” उनकी नजरों में उदासी थी ।

“मैं दूर जाकर भी आपसे जुड़ी रहूँगी ।” शुभी ने उनके कंधे पर हाथ रखकर कहा। “एक बात बताइये कौन है वो लड़की ?”

“कालेज में पढ़ने वाली कोई है ।”

“अरे फिर तो उम्र का बहुत अंतर होगा ?”

“दिवानगी में आदमी उम्र नहीं देखता है ।“

“वो तो सही है फिर भी ! खैर,,”

“कहाँ मिल गयी वो आपके पतिदेव को ?”

“एक कालेज फंक्शन में मिले थे फिर बाद में मिलने जुलने लगे ! कब उसके हो गए पता ही नहीं चला ! पहले वो घर आती थी तो मैं उसकी खूब केयर करती थी ! बढ़िया खाना खिलाती, गिफ्ट देती थी ! क्या पता था कि यह मेरा घर ही बर्बाद करने आ गयी है ।”

“अभी भी घर आती है ?”

“अब आती नहीं, इनको बुला लेती है । जब यह नहीं जाते हैं तो नाराज होकर कहीं छुप जाती है, फोन बंद कर देती है फिर यह दीवानों की तरह से परेशान घूमते हैं, रोते हैं, खाना नहीं खाते हैं ! ऐसा लगता है जैसे कोई जादू हो गया है सारी बुद्धि घास चरने चली जाती है।“

“आपकी बाते सुनकर मुझे तो घबराहट होने लगी, कोई ऐसे भी इंसान होते हैं कमाल है।”

“हम्म मुझे तो सहना होता है ! अपने प्रेमी और अपने पति को किसी दूसरी के लिए तड़पते हुए देख कर मेरा क्या हाल होता होगा ?”

“हाँ मैं समझ रही हूँ ।“

“उसके बहुत नखरे हैं और यह सारे नखरे उठाते हैं ! मुझे एक तरह से बिलकुल नकार दिया है मानों मिट्टी में मिला दिया। मैं कुछ हूँ ही नहीं, मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं बचा ।

“आप ऐसा बिलकुल मत सोचना । आपने बहुत सब्र कर लिया ।“

“उसे महंगे महंगे गिफ्ट दिलाते हैं ! होटलों में ले जाते हैं ! जैसे उनकी जिंदगी बन गयी हो ! जैसे वो है तो उनका जीवन है अगर वो नहीं है तो मर जाएँगे ! बिल्कुल वैसे ही हो गए हैं जैसे आज से 25 साल पहले थे जब मुझसे प्रेम करते थे ।”

“आपको एक बात कहूँ भगवान के यहाँ देर हो सकती है लेकिन अंधेर नहीं हो सकता ! देखना एक दिन सब सही हो जाएगा ।”

“नहीं होगा कुछ भी नहीं सही होगा !” ना जाने कब का भरा हुआ दर्द अचानक से बहने लगा था ! मेरे स्नेह की तपिश में वो पिघलने लगी थी । उनका रोना देखकर  वो भी रो पड़ी ।

“होगा, सब सही होगा ! हमेशा पॉज़िटिव रहना चाहिये न !” उसकी बातों से उनको कोई तसल्ली नहीं मिल रही थी।

मुझे सच में इनके लिए किसी तरह कुछ करना ही होगा। अगर मैंने इनका जीवन किसी तरह से संवार दिया तो मेरा मानव जीवन सफल हो जायेगा। शुभी ने सोचा।

“मैं आपको एक बात कहूँ आंटी जी ?”

“हाँ बेटा !”

“क्या आपको नहीं लगता कि आप बहुत कमजोर और बेबस हो गयी हैं ?”

“हाँ हो गयी हूँ क्योंकि मैं अपने पति को किसी कीमत पर खोना नहीं चाहती, मैं उनको बहुत प्यार करती हूँ।”

“आपको पता है कि आपकी यही कमजोरी आपके पति को मजबूत बनाए हुए है, रही बात पति को खोने की तो उनको आप अभी भी कब अपना बना कर रख सकी हैं ?”