प्रेत-लोक 15
तांत्रिक योगीनाथ जी एक बार फिर सभी की ओर देख कर इशारे से हाँ या न पूछते हैं पर सभी हाँ में सर हिला कर उनके साथ होने का आश्वासन दे देते हैं, तब योगीनाथ जी कहते हैं “कल अमावस्या की रात है हमें किसी भी तरह इस काम को कल ही अंजाम देना होगा” और वो सभी को अपना-अपना काम बता कर खुद दूसरे कमरे में जा कर ध्यान की मुद्रा में बैठ जाते हैं।
अब आगे : रात के करीब ११:०० बज रहें हैं आज अमावस्या की रात्रि है तांत्रिक योगीनाथ जी सभी लोगों रुद्र, मनोज बाकी दोनों दोस्त और राजकुमार अचिंतन की आत्मा के साथ रायसेन के किले के नीचे खड़े हुए हैं। उनके पास तंत्र से संबंधित सभी वस्तुएं हैं और वो अब किले के पश्चिमी तरफ से पहाड़ पर चढ़ना चालू करते हैं और कुछ ही देर में वो सभी किले के अन्दर पहुँच गए। कुछ ही देर में राजकुमार अचिंतन की सहायता से वो तालाब के पास पहुँच गए।
तालाब को आज के समय में तालाब कहना गलत होगा क्योंकि उसमें न तो पानी है और न ही उसका आकार ऐसा बचा है की उसे कोई तालाब कह सके, करीब आधा एकड़ में फैला हुआ एक गड्ढा मात्र है जिसके बीचों-बीच पुराने समय में चलने वाले फव्वारे के लिए एक चबूतरा बना हुआ है, उस चबूतरे तक पहुंचने के लिए एक पतली मगर एक आदमी के चलने लायक पुल जैसी चीज बनी हुई है उसे पूरी तरह से पुल कहना भी गलत होगा।
तांत्रिक योगीनाथ जी उस चबूतरे की तरफ इशारा करके कहते हैं की “हमें इस चबूतरे के जैसे ही किसी चीज की जरूरत थी अब हम अपना सारा काम इसी पर आराम से पूरा कर पाएंगे, रुद्र तुम और बाकी सभी लोगों को साथ लेकर ये सारा सामान चबूतरे तक पहुंचा दो, अभी तक हमें यहाँ पहुँचने में कोई दिक्कत नहीं हुई पर इसका मतलब यह नहीं है की सब कुछ इसी तरह आराम हो जायेगा, प्रेत संघतारा केवल सही समय का इंतजार कर रहा है”।
रुद्र और बाकी सभी दोस्त चबूतरे को साफ़ करके उस पर सारा सामान रख देते हैं तब तक तांत्रिक योगीनाथ जी तालाब के चारों ओर सुरक्षा कवच तैयार करते हैं जिससे की जो आत्माएं तालाब से बाहर आयें वो कहीं उस क्षेत्र से बाहर न निकल पायें साथ ही कोई और प्रेत या कोई बाधा उस तालाब के क्षेत्र में प्रवेश न कर पाए। अब योगीनाथ जी तालाब के बीच में बने चबूतरे पर पहुँच जाते हैं, अब तक रात के १२:०० बज चुके हैं और तांत्रिक योगीनाथ जी क्रिया को प्रारंभ करते हैं।
तालाब को सुरक्षा घेरे से सुरक्षित करने के बाद, चबूतरे को भी उसी तरह से सुरक्षा घेरे में लेने के बाद तांत्रिक योगीनाथ जी पूजा की तैयारी में जुट जाते हैं, चबूतरे पर सामने की ओर सिंदूर, काले तिल, मोर पंख, तिल के तेल का दीपक, मिट्टी के घड़े में सिंदूर मिश्रित जल, खड़ी हल्दी, और साबुत चावल के दाने रखे हुए हैं, एक लाल कपड़े के आसन पर तांत्रिक महाराज बैठे हुए हैं, उन्होंने भी लाल कपडे पहने हुए हैं, मस्तक पर त्रिपुण्ड बना हुआ है।
तांत्रिक योगीनाथ जी ने मंत्र उच्चारण करने लगे कुछ चावल और सिंदूर को हाँथ में लेकर देवी का आवाहन करते हुए योगीनाथ जी मंत्रों के साथ चावल और सिंदूर को चबूतरे के चारों ओर फेंकने लगे। पूजा में उपयोग होने वाली सुपारी के एक ओर सिंदूर और तिल लगाकर चबूतरे के चारों तरफ मंत्र पढ़ते हुए डाल देते हैं, और फिर अपने आसन पर बैठ कर मंत्र जाप करने लगते हैं, कुछ समय तक मंत्र पढ़ते रहने के बाद चबूतरे के दाहिने तरफ की मिट्टी अपने आप हटने लगती है और वहां पर एक कंकाल ऊपर आ जाता है।
कंकाल को देख कर तांत्रिक योगीनाथ जी समझ जाते हैं की ये हड्डियाँ संघतारा प्रेत की ही हैं, वो सोच ही रहे थे की तभी पुरे तालाब से अलग-अलग जगह इसी तरह मिट्टी उठती जाती है और कई नर कंकाल निकलकर बाहर आ जाते हैं, वहाँ उस जगह इस समय पूरा इलाका सड़न से भर जाता है, बदबू इतनी ज्यादा ख़राब है की मुंह को रुमाल से ढकने के बाद भी सांस लेना बहुत मुश्किल है, महल के अन्दर से अजीब-अजीब सी आवाजें आने लगती हैं, तालाब में बाहर आये कंकाल अपनी जगह पर खड़े हो जाते हैं।
रुद्र और बाकी सभी दोस्त इन आवाजों को सुनकर और तालाब में कंकालों को अपनी ओर बढ़ते हुए देख कर पसीना-पसीना हो जाते हैं, सुनील और विकास चबूतरे से भागने की कोशिश करते हैं पर तांत्रिक योगीनाथ जी उन्हें इशारा कर के वहां से हिलने के लिए मना करते हैं और कहते हैं,
“खबरदार और कोई भी यहाँ से हिला तो, ये चबूतरा पूरी तरह से सुरक्षित है, यहाँ पर हमें किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं हो सकता, पर अगर तुम या कोई और यहाँ से बाहर निकला तो इस परिस्थिति में उसका बचना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है, इसलिए चुपचाप यहाँ खड़े रहे और मैं जैसा कहता हूँ वैसा करो, पर फिर भी अब अगर तुम में से कोई यहाँ से जाना चाहता है तो वो अभी चला जाये, क्योंकि जो क्रिया में अब करने बाला हूँ उसमें मुझे हिम्मत वाले लोगों की जरूरत है”
इतना कह कर तांत्रिक योगीनाथ जी बहुत ही गुस्से के साथ सभी को देखते हैं और किसी को भी वहां से न जाते हुए पाकर अपनी क्रिया चालू कर देते हैं, चबूतरे के सामने तरफ राजकुमार अचिंतन की आत्मा है और तांत्रिक योगीनाथ जी इस समय संघतारा प्रेत की आत्मा को बुलाने के लिए मंत्रों का तेज-तेज उच्चारण कर रहे हैं, वो बीच-बीच में सफ़ेद ऱार को अग्नि में डालते जाते हैं जिससे आग की लपटें बहुत ऊँची हो जाती है, तभी एक काला साया बहुत तेजी से तालाब के चारों ओर चक्कर काटने लगता है, उसके आने के बाद से तालाब के अन्दर मौजूद कंकाल अब उस पहले निकले कंकाल को चारों ओर से घेर लेते हैं।
संघतारा प्रेत अब आ चूका है और आते ही उसने अपने जाल फैलाने चालू कर दिए, वो अपनी हरकतों और अजीब-अजीब तरह की आवाजों से रुद्र और उसके दोस्तों को डराने के कोशिश करने लगा, ठीक उसी समय तांत्रिक योगीनाथ जी की पहले से सोची हुई योजना के तहत राजकुमार अचिंतन की आत्मा अब अपने सही आकर में आने लगती है और कुछ ही देर बाद चबूतरे पर एक सुन्दर, गठीला और राजसी परिवेश पहने हुए राजकुमार अचिंतन दिखाई देने लगता है, संघतारा प्रेत उसे देख कर शांत हो जाता है, और उसके पास जाने के लिए तालाब में आने की कोशिश करता है पर योगीनाथ जी के सुरक्षा घेरे को पार करना इतना आसन नहीं है, वो कई बार कोशिश के बाद भी जब अन्दर नहीं जा पाया तब शांत होकर एक जगह ही रुक गया वो इस समय एक काले धुएँ के रूप में है।
अगला भाग क्रमशः : प्रेत-लोक 16
सतीश ठाकुर