प्रेत-लोक - 13 Satish Thakur द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्रेत-लोक - 13

प्रेत-लोक 13

उस परछाई ने एक जोर की कराह के साथ तांत्रिक योगीनाथ से कहा “योगीनाथ जी आप जो चाहते हैं में वैसा ही करूँगा पर आप कृपया अपनी मंत्र शक्ति का प्रयोग बंद कर दीजिये क्योंकि मैंने आज तक कभी किसी को परेशान नहीं किया पर पता नहीं क्यों आप ने मुझे यहाँ कैद कर के रखा है और कुछ भी कहे बिना मुझे मंत्रों से प्रताड़ित कर रहो हो, कृपया आप बताइए आप क्या चाहतें है में वो कुछ भी करने को तैयार हूँ जो में कर सकता हूँ”।

अब आगे: तांत्रिक योगीनाथ जी मंत्र पढ़ना बंद कर देते हैं क्योंकि वो समझ गए हैं की अब राजकुमार अचिंतन की आत्मा पूरी तरह से उनके वश में है, वो अब वही करेगा जो उसे कहा जायेगा पर फिर भी पूरी तरह से संतुष्टि करने के उद्देश्य से योगीनाथ जी उसे अपना पूरा विवरण देने के लिए कहते हैं उससे उसका पूरा परिचय जानने का कारण ये है की इससे योगीनाथ जी उसके बात करने के लहजे और बात के दौरान उसके बर्ताव से ये समझ सकते हैं की ये उनसे छुटकारा लेकर भागने की कोशिश में तो नहीं है, क्योंकि कई बार भूत और प्रेत तांत्रिकों से छुटकारा पाने के लिए वश में होने का नाटक करते हैं।

राजकुमार अचिंतन बिना किसी परेशानी के अपना पूरा परिचय दे देता है और साथ ही अपने मरने का कारण, प्रेत संघतारा के साथ उसके संबंध सभी बातों को स्पष्ट तरीके से बिना पूछे ही कह देता है, उसके इस तरह के व्यवहार से अब ये तो पक्का हो गया है की वो योगीनाथ जी को धोका नहीं दे रहा है और वो किसी भी सूरत में वहां से भागने का नहीं सोच रहा है बल्कि वो तो चाहता है की वो योगीनाथ जी का काम करे और मुक्त हो जाए।

योगीनाथ जी राजकुमार अचिंतन की आत्मा को उसी काले कपडे से बंधी चौकी पर बैठने के लिए इशारा करते हैं और फिर कहते हैं “तुम्हें परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है मैं या कोई और तुम्हें परेशान नहीं करेगा बल्कि हम तो तुमसे सहायता चाहते हैं, पिछले कुछ दिनों में इन निर्दोष बच्चों के ऊपर कुछ ऐसी परेशानी आई है की जिसका हल इस समय केवल तुम्हारे पास है, सिर्फ इसलिए तुम्हें यहाँ बुलाया है, पर फिर भी तुम अपने लिए स्वतंत्र हो अगर तुम इस काम को नहीं करना चाहोगे तो हम तुम्हें मजबूर नहीं करेंगे”।

इतना कह कर योगीनाथ जी राजकुमार अचिंतन को उसके वास्तविक रूप में लाने के लिए उस पर सिंदूर की एक फूंक मरते हैं और देखते ही देखते राजकुमार अचिंतन की आत्मा अपने वास्तविक रूप में आने लगती है, वो करीब २८ से ३० साल का सुंदर नौजवान है, उसका रंग गोरा, बाल काले, आंखें बड़ी-बड़ी और चमकदार हैं, उसके पहनावे और रूप रंग को देख कर कोई भी कह सकता है की वो एक राजकुमार है, उसका आकर्षण लाजवाब है कोई भी स्त्री उसके रूप और उसकी सुन्दरता पर मोहित हुए बिना नहीं रह सकती, यही कारण था की संघतारा आज भी उसके मोह को त्याग नहीं पाया है।

योगीनाथ जी कहना जारी रखते हैं “ये चारों बच्चे किसी और सामान्य व्यक्ति की तरह ही तुम्हारे रायसेन महल को देखने और वहां के भूतकाल को जानने के उद्देश्य से रायसेन गए थे, इन लोगों ने बिना किसी को परेशान किये पूरा महल देखा और अनजाने में भूल-भुलैया में चले गए, वहां पर कई सालों से प्रतिशोध की आग में जल रहे संघतारा प्रेत ने इन्हें देखा और इनके साथ यहाँ तक आ गया, अब वो इन सभी को परेशान कर रहा है, वो इनके शरीर के माध्यम से अपनी तृप्ति के साथ-साथ अपना प्रतिशोध भी पूरा करना चाहता है”

“मैं अब तक दो बार इन निर्दोष बच्चों को उसके चंगुल से बचा चूका हूँ पर हर समय मेरा इनके साथ रहना संभव नहीं है, और आखिर कब तक ये लोग सुरक्षा घेरे के बीच अपने घर में ही कैद रहेंगे, संघतारा से मुक्ति के लिए हमें तुम्हारी आवश्यकता है, जैसा की तुम जानते हो, संघतारा आज भी तुम्हारे लिए तड़प रहा है, हम चाहते हैं की तुम संघतारा प्रेत को बुलाओ और अपने साथ उसे प्रेत-लोक में लेकर चले जाओ, जो की उस जैसे प्रेत का सही ठिकाना है। कहो क्या तुम हमारे लिए इतना सा काम करोगे? क्या तुम इन निर्दोष बच्चों को बचाने में हमारी सहायता करोगे?”

राजकुमार अचिंतन कुछ देर तक शांत रहा और फिर उसने बोलना चालू किया, उसने कहा “मैं आपके उद्देश्य को पूरी तरह से समझ गया हूँ, और मुझे इन निर्दोष बच्चों से पूरी तरह से सहानुभूति भी है पर आप शायद संघतारा को पूरी तरह से जानते नहीं हैं, उसने अपने जीवित रहते हुए ही कई तरह की काली शक्तियों और कई तरह की आसूरी शक्तियों की शिक्षा पाई है, वो कई-कई दिनों तक भूखा रह कर श्मशान में साधना किया करता था, मैंने तो यहाँ तक भी सुना था की उसने अपनी इन शक्तियों को पाने के लिए कई बार नर बली भी दी है, मुझे भी उसने इन्हीं सब शक्तियों के बल पर मोहित किया हुआ था जिनसे छुटकारा उसकी मौत के बाद ही हो पाया”

“अपनी मौत के बाद भी उसने सारे रायसेन को चैन से नहीं रहने दिया और आये दिन कुछ न कुछ अनिष्ट होता रहता था, महाराज को भी उसकी वजह से ही एक अनजान बीमारी ने घेर लिया था जिसका इलाज उस समय किसी भी वैध या हाकिम के पास भी नहीं था, धीरे-धीरे सभी मंत्रियों के मन बदल दिए और वो सभी राज्य के विरूद्ध हो गए, हमारी सैन्य ताकत से लोहा लेना किसी भी राज्य के वश की बात नहीं थी, यहाँ तक की दो से तीन राज्य भी मिलकर रायसेन दुर्ग पर चढ़ाई करने का हौसला नहीं कर सकते थे, पर महाराज के स्वस्थ, मंत्रियों के विद्रोह और सेना के एकजुट न होने की वजह से सिर्फ एक मुस्लिम शासक ने ही अजेय कहे जाने वाले रायसेन दुर्ग को जीत लिया और हमारा सारा वंश ख़त्म हो गया”

“मैं आपकी सहायता तो करना चाहता हूँ पर संघतारा को वश में करना इतना आसान नहीं है, मेरी मृत्यु के बाद भी में कभी एक ईंट से बाहर नहीं आया और न ही मैंने कभी अपनी उपस्थिति का अहसास ही संघतारा को होने दिया, अगर मैं ऐसा करता तो निश्चित ही वो मुझे अपनी काली शक्ति के बल पर अपने अधीन कर लेता और मुझसे बहुत से गलत कामों को करवाता, इसी वजह से आज तक में भूत योनि में होने के बाद भी कहीं पर भी भटका नहीं और न ही मैं अपनी मुक्ति का कोई उपाय करने वहां से बाहर निकला, अब आप ही बताएं की मैं किस तरह से उस शक्तिशाली प्रेत संघतारा का सामना कर पाऊंगा”।

तांत्रिक योगीनाथ जी राजकुमार अचिंतन के शांत हो जाने पर उससे बोले “तुम्हारा कहना बिलकुल सही है, मैं भी ये जानता हूँ की वो अनेक शक्तियों का मालिक है उसने कई काली शक्तियों पर अधिकार पाया हुआ है और आज के समय में उससे लड़ना मतलब की अपने विनाश को न्योता देना जैसा होगा पर राजकुमार अचिंतन संसार में हर समस्या का समाधान है, संसार में आसूरी शक्तियां आती जरूर हैं पर देवों के देव महादेव और आदि शक्ति माता भगवती के बढ़ कर कोई और शक्ति नहीं है और वो ही इन शक्तियों के विनाश का कोई न कोई मार्ग प्रशस्त करते हैं, इसलिए तुम्हें परेशान होने या भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है”।

राजकुमार अचिंतन की आत्मा तांत्रिक योगीनाथ को प्रणाम करते हुए बोली “हे महात्मा आपने जो कुछ भी कहा वो बिलकुल सही है, शायद में उससे कुछ ज्यादा ही डर गया था और जहाँ आप जैसे महान तांत्रिक और महात्मा हैं वहां किसी को डरने की क्या जरूरत है, अब मेरे पास कुछ खोने को तो बचा नहीं है इसलिए में अपने सम्पूर्ण अस्तित्व को आपको अर्पित करता हूँ, अब आप जैसा चाहें मेरे उपयोग कीजिये, मुझे अब किसी भी प्रकार से कोई शंका या परेशानी नहीं हैं, कृपया अपनी योजना और उसमें मेरे कार्य को मुझसे कहें, जिससे में आपके किसी काम आ सकूं”।

अगला भाग क्रमशः - प्रेत-लोक 14

सतीश ठाकुर