ये उन दिनों की बात है - 28 Misha द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ये उन दिनों की बात है - 28

पहली बार मैं किसी लड़के की मोटरसाइकिल पर बैठी थी और वो लड़का कोई और नहीं बल्कि सागर था, "मेरा सागर" जिसे मैं बहुत ज्यादा चाहती थी | फिर भी मैं कुछ अजीब और शर्म-सा महसूस कर रही थी |
तुम बिलकुल परेशान ना हो, दिव्या, आराम से बैठो |
हे भगवान ये मेरा मन पढ़ सकता है, मैं मन ही मन बुदबुदाई |
कुछ कहा तुमने...........
नहीं!!
अगर ऐतराज ना हो तो तुम अपना हाथ मेरे कंधे पर रख सकती हो |

कुछ शर्माकर, सकुचाकर मैंने अपना हाथ उसके कंधे पर रख दिया |
सागर के चेहरे पर एक बड़ी से मुस्कान आ गई थी जिसे मैं शीशे में से देख सकती थी |

ट्रस्ट करने के लिए शुक्रिया |
हम चले जा रहे थे और मन गुनगुना रहा था "ऐसा समां ना होता......कुछ भी यहाँ ना होता..........मेरे हमराही जो तुम ना होते" | मुझे ऐसा लग रहा था......जैसे मैं हवा में उड़ रही हूँ | बस गाड़ी यूँ ही चलती रहे और मैं उसकी पीठ पर अपना सर रखकर ये नज़ारे यूँ ही देखती रहूँ |

करीब 10-15 मिनट में हम नाहरगढ़ पहुँच गए थे |

दिव्या, दिव्या!!!

उसने पुकारा मुझे, पर मैं तो अपने ख्यालों में ही खोयी हुई थी | ना जाने उस पल में कितने ही सपने बुन लिए थे मैंने |

दिव्या.......उसने फिर पुकारा |
हम्म्म्म.......
हम पहुंच गए | किन ख्यालों में खोयी हुई हो मैडम, आप ?

नहीं!! कहीं भी तो नहीं | मैं शर्माते हुए मोटरसाइकिल से उतरी |

सागर सच ही कह रहा था | ये जगह दरअसल प्रेमियों के लिए ही थी क्योंकि जहाँ भी मेरी नजर जाती वहां कोने-कोने में प्रेमी जोड़े ही नज़र आये मुझे | कुछ बातों में मशगूल, कुछ एक दुसरे की आँखों में आँखें डाले और कुछ वो करते हुए..........

वो यानी किस!!!

तुम बैठो मैं आइसक्रीम लेकर आता हूँ |

जल्दी आना |

बस अभी आया, सागर मुस्कुराते हुए बोला |

और थोड़ी ही देर में वो आइसक्रीम लेकर आ गया |

एक उसने मुझे दे दी और दूसरी वो खोल कर खाने लगा |

क्या सोच रही हो! खाओ ना! नहीं तो पिघल जाएगी!

हूँ......और मैं भी आइसक्रीम खाने लगी |

अच्छा तुमने मम्मी से क्या कहा? आइस क्रीम खाते हुए ही उसने पूछा |

दरअसल मम्मी को मैंने एक दिन पहले ही बता दिया था की मुझे नीलम के घर जाकर कुछ फाइलें तैयार करनी है |

नीलम? उसने आश्चर्य से पूछा, क्योंकि ये नाम उसने पहली बार सुना था |

हाँ.....मेरी क्लासमेट है |

और कामिनी इस वक़्त वो कहाँ होगी?

नीलम के घर ही |

देट्स नाइस!! यू हेव मेड ए फुल प्रूफ प्लान!! आई लाइक इट!!


और तुमने? छोड़ो लड़कों को तो किसी को बताने की जरूरत ही नहीं है | वे कहाँ जा रहे हैं, क्या कर रहे है, घर पर बताने की जरूरत ही कहाँ पड़ती है | वे तो कहीं भी आ जा सकते हैं | उन्हें तो कोई रोकने टोकने वाला भी नहीं है | परेशानी तो हम लड़कियों को उठानी पड़ती है | सौ तरह के सवालों से दो चार होना पड़ता है, घरवालों को झूठ बोलना पड़ता है, मैंने मुँह बनाते हुए कहा | वो भी इसलिए क्योंकि.......... और ये कहकर मैं चुप हो गई |

क्योंकि!! क्योंकि!! बोलो ना, प्लीज!! उसने रिक्वेस्ट की |

कुछ नहीं बस ऐसे ही......

बताओ ना क्योंकि......

क्योंकि वे अपने दिल का हाथों मजबूर होती है और जहाँ दिल कहता है, वहीँ चल पड़ती है | क्योंकि लडकियां दिल से सोचती है और तुम लड़के दिल से नहीं दिमाग से सोचते हो |

अच्छा!!! हम लड़के दिमाग से सोचते हैं और आप दिल से सोचती है, दिव्या मैडम, सागर हँसा |

और नहीं तो क्या!!

फिर तो हम गुनाहगार हुए आपके!! आप जो सज़ा दे वो हमें मंजूर है, ऐसा कहकर वो मेरे सामने घुटनों पर बैठ गया |

उसे इस तरह घुटनों पर बैठा देख मुझे अजीब सा लगा |
सॉरी सागर.....मेरा....मेरा.......वो.....वो मतलब नहीं था |

इट्स ऑलराइट दिव्या!! डोंट फील एम्बैरस!! आई एम जस्ट किडिंग!! एक्चुअली यू आर राइट!! हम लड़के अधिकतर दिमाग से ही सोचते है |

पर तुम और लड़कों की तरह बिलकुल नहीं हो सागर!! तुम बहुत अच्छे हो | मैं तो बस तुम्हें चिढ़ा रही थी |

सच्ची!! मैं तुम्हें पसंद हूँ!! सागर का चेहरा खिल उठा था |

मैंने हाँ में सिर हिलाया फिर शर्माकर अपनी आँखें झुका ली |

जब तुम इस तरह शर्माती हो तो और भी क्यूट लगती हो | जानती हो दिव्या, पहली बार मैं किसी लड़की को डेट पर लेकर आया हूँ |

डेट?

हाँ, इसे डेट ही कहते हैं | जब एक लड़का और एक लड़की पहली बार एक दुसरे से किसी ऐसी ही जगह पर मिलते हैं, जहां वे ढेर सारी बातें करते हैं, हाथों में हाथ डाले घुमते है |

तुम सोच रही होगी कि झूठ बोल रहा होगा | इसके आगे पीछे तो कई लडकियां घूमती होंगी पर............

नहीं!!! मुझे तुम पर पूरा विश्वास है, मैंने उसकी बात बीच में ही काटकर कहा और शर्मा कर फिर से अपनी आँखें झुका ली |

सच, डू यू ट्रस्ट मी!! ओह माय गॉड!! आई एम सो हैप्पी!! उसकी आँखें खुशी से चमक उठी |

और फिर उसने मेरा हाथ अपने हाथों में ले लिया | उसकी आँखें एकटक मुझे ही देखे जा रही थी और मैं उससे नज़रें नहीं मिला पा रही थी |
ऐसे मत देखो ना मुझे |
क्यों? क्यों ना देखूं तुम्हें!!