ये उन दिनों की बात है - 2 Misha द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ये उन दिनों की बात है - 2

मम्मा, चाय!!!! और इतने में समर चाय की ट्रे लिए लॉन में आया |
स्वरा दी का कॉल था |
पूछ रही थी, "मम्मा, कैसी है"?
अच्छा तो बात नहीं कर सकती थी |
एक्चुअली उनको कॉलेज के लिए लेट हो रहा था |
अब अपनी मम्मा से झूठ भी बोलने लगा है |
नहीं, नहीं, मम्मा ऐसा नहीं है, समर झेंपते हुए बोला |

"मुझसे नाराज तो है ही" |
ऐसा नहीं है, मम्मा |

स्वरा मेरी बेटी इन दिनों मुंबई में है और आईआईटी से इंजीनियरिंग कर रही है और इसलिए उसके पापा ने अपना ट्रांसफर चंडीगढ़ से मुंबई करवा लिया | हालाँकि वो हॉस्टल में रहती है लेकिन वीकेंड में पापा के पास आ जाती है | पापा की लाड़ली जो है.............. और यूँ भी बेटियां पापा की परियाँ होती है |

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एक साल पहले.........................

दिव्या!!!!!! नाश्ता तैयार है? जल्दी करो.......... मुझे जल्दी निकलना है |

"धीरज", मेरे पति | बिलकुल एक्सप्रेस ट्रैन की तरह और ये इनका रोज का डायलॉग है......'जल्दी करो निकलना है' |

नाश्ता करते हुए पेपर पढ़ते हैं | ऐसा नहीं कि इत्मीनान से बैठकर नाश्ता करे | पता नहीं, कहाँ की जल्दी है |

"आज फिर तुम्हारी वजह से लेट हो गया", कहकर ये चले गए और मैं बस मुस्कुरा भर दी...... क्योंकि ये भी इनका रोज का डायलॉग है | हमेशा टाइम पर सारे काम हो जाते हैं पर इनकी ये ताना मारने की आदत अभी तक नहीं गई |

"दिव्या भाभी", "ओ.....दिव्या भाभी" |

"सुगंधा", मेरी पड़ोसन |

हाँ, सुगंधा |

भैया ऑफिस गए |

हाँ, हाँ, बस अभी ही |

भाभी, थोड़ा-सा गरम मसाला चाहिए था | अभी ऐन मौके पर कुछ मेहमान आ गए हैं तो पुलाव बना रही थी |

अभी लाई तू बैठ |

नहीं, नहीं, भाभी, बड़ी जल्दी में हूँ | शाम को आती हूँ | चाय साथ बैठकर पीयेंगे | आपके हाथ की चाय बहुत अच्छी लगती है |

सुगंधा बहुत अच्छी है | मुझे कभी मार्केट जाना होता है तो सुगंधा के साथ ही जाती हूँ | क्योंकि धीरज के पास इतना टाइम होता नहीं है और अधिकतर टूर में बिजी रहते है | वो हमेशा तैयार रहती है, कभी मना नहीं करती | उसके साथ टाइम बहुत अच्छा पास हो जाता है |

शाम के 5 बज रहे थे |

मम्मा, खेलने जा रहा हूँ, समर हाथ में बैट पकड़ते हुए बोला
ठीक है जाओ, पर जल्दी आ जाना |
ओके मम्मा |


स्वरा आईआईटी की परीक्षा के लिए जी तोड़ मेहनत कर रही थी और इसके लिए उसने कोचिंग भी ज्वाइन कर रखी थी | कोचिंग से घर आती थी......फिर लाइब्रेरी जाकर पढ़ती थी | इन बच्चों को खाने पीने की कोई सुध नहीं.......अगर मम्मा ध्यान न रखे तो बीमार ही पड़ जाए |

समर स्वरा से दो साल छोटा है लेकिन उसकी इच्छा ना तो इंजीनियरिंग करने में है और ना ही डॉक्टर बनने में | उसकी इच्छा तो शेफ बनने में है | वो बहुत अच्छा खाना बना लेता है | यूट्यूब पर नयी नयी रेसिपीज देखता रहता है और ट्राई करता रहता है | जबकि स्वरा का किचन से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं |

लेकिन समर अपने पापा से डरता है........क्योंकि जब उसने अपने मन की बात अपने पापा को बताई थी तो उसके पापा ने उसे डांटा था | क्या?..... खानसामा बनना चाहता है| हमेशा किचन में ही रहेगा तो कमायेगा क्या |

वो काफी डिस्टर्ब था |

मैंने उसे सांत्वना दी | तुम वही करोगे, जो तुम हमेशा करना चाहते हो | बस अपने दिल की सुनो और किसी की मत सुनो |

पर.........पापा.............

उनकी टेंशन तुम मत करो | मैं सब संभाल लूंगी |

धीरज को समझाना इतना आसान नहीं था..........पर फिर भी मुझे करना था.....अपने बच्चे के लिए और उसमें मैं कामयाब भी हो गई | कुछ ऐसे एग्जाम्पल्स दिए जिसमें बच्चों को उनकी इच्छानुसार सब्जेक्ट दिलाये गए और उन्होंने उस सब्जेक्ट में काफी अच्छा भी किया और जिन बच्चों को उनकी इच्छा के विरुद्ध सब्जेक्ट दिलाये गए...... वे अपने पेरेंट्स की उम्मीदों के मुताबिक खरा नहीं उतर पाये और बच्चे डिप्रेशन का शिकार हो गए |

क्या आप भी समर को इसी हालत में देखना चाहते हो ? मेरे चेहरे पर गुस्सा था |

उन्होंने कुछ नहीं कहा....... फिर समर को आवाज़ दी |

तुम्हारी जो इच्छा हो वही करो.......मैं तुम्हे रोकूंगा नहीं |

समर बहुत खुश हो गया और मेरे लग गया |

हालाँकि अभी भी उन्हें थोड़ा अजीब लगता है........जब लोग उनसे बच्चों के बारे में पूछते हैं | स्वरा के बारे में तो बड़े गर्व से बताते है पर समर की बात आते ही चुप्पी साध लेते हैं |

तो क्या बताऊँ लोगों को.....मेरा बेटा शेफ बनाने की इच्छा रखता है |

अगर आप ही उसे सपोर्ट नहीं करंगे तो लोग तो तरह तरह की बातें ही बनाएंगे |