ये उन दिनों की बात है - 10 Misha द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ये उन दिनों की बात है - 10

चूँकि आज संडे था तो मम्मी के साथ मैं और नैना भी मार्किट के लिए निकल गए थे और वापस आते समय हम गोविन्द देव जी मंदिर होते हुए आ रहे थे|

दिव्या की मम्मी !!! ओ दिव्या की मम्मी !!!!

जल्दी चलिए |

शीला बहन, इतनी जल्दबाजी में कहाँ से आ रही हो?

ये थी शीला आंटी, जिन्हें उस ज़माने की गूगल सर्च इंजन कहें तो कोई अतिशोयक्ति नहीं होगी, क्योंकि उनके पास सबकी खबरें हुआ करती थी | मसलन छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी हर बात उन्हें पता होती थी | मसलन काजल की मम्मी ने नया सोने का हार बनवाया है | वर्मा जी की बेटी और मिश्रा जी के बेटे का आपस में चक्कर चल रहा है, और आजकल तो पद्मा बहन और उनकी बहु में काफी अच्छी पट रही है | आपने वो स्वेटर की डिज़ाइन सिखाई थी ना वो बहुत ही शानदार थी | मेरी सहेलियां खूब तारीफ कर रही थी | मेरी मम्मी सिलाई-कढ़ाई-बुनाई में काफी माहिर थी | उन्होंने थोड़े ही समय में काफी सहेलियां बना ली थी अपने इस हुनर के चलते |


आज भी पक्का कोई ना कोई खबर लेकर ही आई होंगी | जब ही तो मम्मी को आवाज लगा रही थी |

आप चलिए तो और वो उनका हाथ पकड़ कर ले गयी |

हमारे घर के सामने एक हवेलीनुमा घर था जिसमें दादा दादी रहते थे | आज उनके घर साज सजावट हो रही थी और एक अलग रौनक ही झलक रही थी |

आज कोई स्पेशल दिन है !

अरे दिव्या की मम्मी ! आज इनका पोता आ रहा है बम्बई से, तो उसी के स्वागत की तैयारियां हो रही है |

अच्छा!! ये तो बड़ी ही ख़ुशी की बात है |

चलो अच्छा ही है | बेचारे कबसे अकेले रह रहे थे, मुझसे तो उनका दुःख देखा ही नहीं जाता था | इतनी बड़ी हवेली के होते हुए भी कितने अकेले थे वो, शीला आंटी ने कहा |

हाँ...... पर वो तो थोड़े से ही दिन के लिए आ रहा होगा ना |

अरे नहीं, नहीं | हमेशा के लिए आ रहा है | दादीजी ने बताया था |

क्या सच में, मम्मी बहुत खुश हुई |

अभी उन्हीं के घर से ही तो होकर आ रही हूँ | छत्तीस तरह के पकवान बन रहे हैं वहां | पूरे घर में दीये जलाये जा रहे हैं |

सच में जब किसी को भगवान खुशियां देता है तो शायद वो इसी तरह से जश्न मनाता है | इसी तरह से घर को सजाता है, जैसे आज ये दादा दादी जश्न मना रहे थे | बिलकुल उसी तरह जिस तरह भगवान श्री राम और माता सीता लक्ष्मण सहित १४ वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या लौटे थे तो अयोध्या वासियों ने दीये जलाकर खुशियां मनाई थी | ठीक-ठीक वैसा ही आज हमारी कॉलोनी में भी इस घर में हो रहा था | आज लग रहा था जैसे दिवाली आ गई हो और इनकी ख़ुशी सारे मोहल्ले के लोग भी शामिल थे | सच में घर तभी घर लगता है जब उसमें लोग मिल जुलकर रहते हैं अन्यथा वो घर, घर नहीं, सिर्फ ईंट-पत्थरों का मकान लगता है |

मेरी मम्मी भी आते ही सबसे पहले दादीजी के यहाँ ही गई |

बड़ा ही सुंदर लड़का है | गौरा रंग, बड़ी-बड़ी आँखें, लम्बा-चौड़ा, बड़े बड़े बाल, कुरता-पजामा पहना हुआ है | जब मैं नीचे आई तो कुछ इसी तरह की बातें मैंने मम्मी और शीला आंटी के मुँह से सुनी |

मम्मी!!! मैं कामिनी के घर खेलने जा रही हूँ | अपनी साइकिल पर बैठते हुए मैंने कहा |

ठीक है, पर जल्दी आ जाना |

कभी मैं कामिनी के घर चली जाती थी | कभी वो मेरे घर और कभी हम दोनों मिलकर बाकी दूसरी लड़कियों के घर खेलने चले जाते थे | वही पुराने खेल जो आजकल सुनाई-दिखाई नहीं पड़ते, जैसे स्टापू, सितोलिया, लुका छिपी, कबड्डी, रस्सी कूद, लंगड़ी टांग, रुमाल झपट्टा, नदी –पहाड़, झूला झूलना, अंताक्षरी और हम खूब साइकिल भी चलाया करते थे |

वो हमारे सामने दादा दादी रहते हैं ना!!

हाँ, हाँ, वो हवेलीनुमा घर वाले, कामिनी ने कहा |

उनका पोता आया हुआ है बम्बई से |

बम्बई से? अच्छा? सोनिया की आँखें चमक उठी |

देखने में कैसा है? मानसी ने पूछा |

मुझे क्या पता! पर हाँ, मम्मी और आंटी बात कर रही थी तब सुना था मैंने कि बड़ा ही सुन्दर गौरा-चिट्टा है |

हाय! सच में! सोनिया ने राधिका के गले में बाहें डालते हुए कहा |

स्कूल में पढ़ता है या कॉलेज में? मानसी ने फिर सवाल किया |

मुझे क्या पता? मैंने थोड़े ही ना देखा है उसे |

और एक तो तू सवाल बहुत पूछती है, मैंने चिढ़कर कहा | हालाँकि मेरे मन में भी उसको देखने की इच्छा थी |

फिर चल | तेरे घर चलते हैं | हम भी तो देखें, कितना फूटरा है छोरा, निशा ने राजस्थानी भाषा में कहा |

राजस्थानी भाषा में फूटरा का मतलब सुंदरता से है | छोरा यानी लड़का और छोरी मतलब लड़की |