ये उन दिनों की बात है Misha द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ये उन दिनों की बात है

और देखते ही देखते जयपुर सिटी से मेट्रो सिटी हो गया बड़े बड़े मॉल्स, बिल्डिंग्स, मल्टीप्लेक्सेज इत्यादि देखते देखते खड़े हो गए हैं और यहाँ भीड़भाड़ भी बहुत हो गयी है | जब देखो तब जाम लग जाता है निजात ही नहीं मिल पाती| अब तो सब लोग फिल्में देखने के लिए मल्टीप्लेक्सेज का रुख करने लगे है, पहले सिंगल स्क्रीन सिनेमा घर हुआ करते थे अब भी हैं, पर अब उनकी पूछ नहीं रही कुछ तो बंद भी हो चुके हैं | हाँ, लेकिन राजमंदिर अपनी उसी शान से अभी खड़ा है, जैसा पहले था | इसकी आभा अब भी बरकरार है, चाहे कितने मल्टीप्लेक्स बन जाए पर जो बात राजमंदिर में है वो इनमें नहीं | कम से कम मेरे लिए तो बिलकुल नहीं |

मेरी परवरिश यहीं हुई और शादी भी यहीं हुई| यूँ कहिये की इस शहर से मेरा जन्मों का नाता है | इस शहर को छोड़कर मैं कहीं नहीं गयी या इसने ही मुझे खुद से दूर जाने नहीं दिया | पांच साल के लिए गई थी इस शहर से दूर चंडीगढ़ पर इसने मुझे फिर से बुला ही लिया क्योंकि ना तो मैं और ना ही ये एक दुसरे को भूल पाए | हम दोनों ने एक दुसरे को बहुत मिस जो किया था |

मैं बापू बाजार में रहती हूँ जो मेरा मायका है, जिसे मेरे मम्मी पापा ने अपने हाथों से सजाया है | दो मंजिला ये घर जिसमें तीन कमरे, हॉल, आँगन, किचन, और एक स्टोर रूम है | कमरे ऊपर वाली मंज़िल पर है नीचे हॉल, किचन और स्टोर रूम है | आँगन में पापा ने झूला लगवाया था जो अभी भी वैसा का वैसा ही है | मैंने आज के ज़माने के हिसाब से थोड़ा-बहुत मॉडिफिकेशन करवाया है | आगे छोटा सा लॉन भी है क्योंकि पेड़-पौधों से मुझे बहुत लगाव है और होना भी चाहिए क्योंकि प्रकृति बिना हमारा कोई वजूद नहीं मैंने अपने लॉन में गुलाब, गेंदा, मोगरा, गुड़हल, इत्यादि फूलों के पौधे और नीम अशोक अमरुद नींबू आदि के पेड़ लगा रखे हैं

मम्मी पापा दोनों अब इस दुनिया में नहीं है | मेरी एक छोटी बहन है, जो दिल्ली में रहती है| उसके पति दिल्ली एम्स में डॉक्टर है और वो कॉलेज में लेक्चरर है, मिलने आ जाती है और मैं भी उसके पास चली जाती हूँ तब जब बच्चों की छुट्टियां होती है|

बेसिकली मैं मध्य प्रदेश के भोपाल से हूँ, लेकिन पापा की नौकरी जयपुर में लगी थी इसलिए भोपाल छोड़कर जयपुर आ बसे थे और उन्हें जयपुर इतना पसंद आया कि यहीं मकान बना लिया | यहाँ बहुत से दर्शनीय स्थल जो कि एक दुसरे से पास पास ही है जैसे गोविन्द देव जी का मंदिर, सिटी पैलेस जो पहले चंद्र महल था, आमेर, अल्बर्ट हॉल, हवा महल, जंतर -मंतर, नाहरगढ़, जयगढ़, सरगा सूली आदि और मार्केट्स जैसे बापू बाजार, इंदिरा बाजार, जोहरी बाजार, संजय बाजार, चौड़ा रास्ता, बड़ी चौपड़, छोटी चौपड़, त्रिपोलिया बाजार, पुरोहित जी का कटला आदि | तीज की सवारी इन्हीं मार्केट्स के बीच से होकर गुजरती है |

मम्मी पापा ने घर को हम दोनों बहनों, मेरे और नैना के नाम कर दिया था | एक कमरा जो कभी हम बहनों का हुआ करता था जिसके आगे बालकनी है, अब वो समर यानी मेरे बेटे का है | बचपन की बहुत सी यादें जुड़ी है जिसे मैंने सहेज कर रख रखा है, जैसे वो पुरानी कुर्सी, वो सुन्दर सा झूला, वो हम दोनों बहनों की गुड़िया, हमारी किताबें, डायरी, खिलोने, कपड़े, मम्मी की चूड़ियाँ, श्रृंगारदानी, पापा का ओवरकोट और भी बहुत सी ख़ास चीज़ें जो हम दोनों बहनों ने मम्मी पापा के कमरे में करीने से रख रखी है, ताकि हमें ये अहसास रहे की मम्मी पापा हमारे आस पास ही है और उनका आशीर्वाद सदा हमारे साथ है |

चूँकि मुझे अकेलापन बिलकुल भी पसंद नहीं है इसलिए पेंटिंग, डांस और कुकिंग की क्लासेज लेती हूँ

मेरा और नैना का जन्म बेशक भोपाल में हुआ हो पर हमारा घर तो जयपुर ही है | जब भी हमारे रिश्तेदार घर पर आते और पूछते की तुम दोनों बहनें कहाँ की हो
जयपुर! हम दोनों का जवाब होता

फिर वे कहते, नहीं! तुम दोनों तो भोपाल की हो | तुम्हारा जन्म ही वहीँ हुआ है | हम दोनों बहनों को गुस्सा आ जाता |

नहीं!!!!!! हम जयपुर के हैं, जयपुर के हैं, और जयपुर के ही रहेंगे | हर साल दिवाली पर घर को पेंट करवाती हूँ ताकि हमारा ये घर हँसता-मुस्कुराता रहे