प्लीज, दिव्या!! मुझे छोड़कर मत जाओ | "मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता," दिव्या!! आई लव यू, सो मच!!
हमारा साथ बस यहीं तक था, सागर | प्लीज, मुझे भूल जाओ | हम कभी एक नहीं हो सकते |
ये उसके शब्द थे | जब उससे आखिरी अलविदा लिया था मैंने | अभी भी याद है मुझे |
वो तुझे कितना प्यार करता था, दिव्या | काश!! तेरी शादी उसके साथ हुई होती तो, शायद आज तेरी ज़िन्दगी कुछ और ही होती | उसमें ग़मों के लिए शायद कोई जगह नहीं होती | कामिनी भावुक थी |
हर किसी को वो सब कहाँ मिलता है, कामिनी, जो हम चाहते हैं | मेरी किस्मत में सागर का साथ बस उन दिनों तक ही था | अपने आँसू रोकते हुए मैंने कहा |
ये उसी की डायरी है | जिसमें उसकी ग़ज़लें, नज्में, शायरियाँ, कवितायेँ इत्यादि लिखे हुए थे, जो उसने गिफ्ट के तौर पर मुझे दिए थे, आखिरी विदाई के वक़्त |
देख!! इसमें हमारे प्यार की खुशबू अब भी बरकरार है | ये लाल गुलाब उसी की निशानी है |
क्यों ना आज उन लम्हों को फिर से जिया जाए, कामिनी ने कहा |
कहाँ से शुरू करें? मैंने पूछा |
शुरू से | उसने इत्मीनान से लम्बी सांस लेते हुए कहा |
हम दोनों आँगन में लगे उसी झूले पर बैठ गए, जहाँ पर कभी बचपन में बैठा करते थे | मम्मी-पापा, नैना, कामिनी और मैं | फिर हम दोनों पुरानी यादों की सिलवटों में खोते चले गए, उस बचपन में, जिसको हमने काफी एन्जॉय किया था और किसी पिक्चर की तरह यादें हमारे सामने आती चली गई |
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1 जुलाई, साल 1987
बात उन दिनों की है | जब मैं दसवीं क्लास में थी | तब का जयपुर बहुत ही आज के जयपुर से बहुत ही अलग हुआ करता था | तब इतनी भीड़भाड़ नहीं थी और अधिकांश लोग आने जाने के लिए तब साइकिल और लूना का ही यूज़ करते थे | वहीं “हमारा बजाज” स्कूटर लाने की ख़ुशी भी दौगुनी हुआ करती थी | जिसके घर बजाज स्कूटर आता था, उसे देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती थी | कम ही थे ऐसे लोग, जिनके पास कार हुआ करती थी, जो बहुत ज्यादा अमीर थे |
लोग केवल सुख ही नहीं दुःख में भी हमेशा एक दुसरे का साथ निभाते थे | आज की तरह ईर्ष्या-असंतोष की भावना नहीं होती थी | उन दिनों हमारी दुनिया का दायरा बहुत छोटा हुआ करता था | घर से स्कूल, स्कूल से घर | दोस्ती, प्यार, उम्मीदें, लापरवाही और लड़कपन |
तब दादा दादी से खूब कहानियां सुना करते थे, जैसे राजा-महाराजाओं की, परियों की, शैतानों की, देवी-देवों की, भूत-प्रेतों की और हर कहानी का अंजाम बुराई पर अच्छाई की जीत का ही होता था |
जब ना मोबाइल होते थे, ना इंटरनेट, ना व्हाट्सएप के मैसेज, ना फेसबुक के रिलेशनशिप स्टेटस, ना वीडियो कालिंग, ना ट्विटर हैंडल और ना ही फोटो शेयरिंग इंस्टाग्राम |
तब रेडियो का एक ही चैनल था, जो पुराने और नए गाने सुनाया करता था |
दिव्या, दिव्या, उठ बेटा | स्कूल के लिए देर हो रही है, मम्मी ने पुकारा | अब तक सो रही है |
मैं अलसायी-सी आँखे मलती हुई उठी | क्या मम्मी!! थोड़ी देर भी सोने नहीं देती तुम, मैंने कहा |
वो देख, कितना टाइम हो गया है | चल जल्दी उठ और नैना यह महारानी भी तेरे ही जैसी होती जा रही है |
नैना, और मैं, हम दोनों एक ही स्कूल में जाते है | वो आठवीं क्लास में पढ़ती है | पहले वो मेरे साथ मेरी ही साइकिल पर जाती थी, पर इस साल पापा ने उसको नयी साइकिल दिलाई है, तो वो उसी पर जाती है |
चल मैडम उठ |
उँह! दीदी! सोने दो ना | कितना बढ़िया सपना देख रही थी | "मय से मीना से ना साक़ी से” गाने पे, गोविंदा के साथ डांस कर रही थी | तुमने सपना तोड़ दिया मेरा |
आहा, हा...हा...हा...हा....डांस और वो भी गोविंदा के साथ | चल, चल, उठ जा | नहीं तो, लेट हो जायेंगे |
मम्मी! मेरी चोटी बाँध दो ना | मेरे बाल काफी लम्बे और घने थे, पर चोटी बाँधने में टाइम लगता था | इसलिए मम्मी को बोलती थी चोटी बांधने के लिए | मम्मी को सुबह-सुबह और भी काम होते थे, इसलिए कभी-कभी वो झल्ला उठती थी |
ये लड़की, अभी तक चोटी बांधना नहीं सीखी | क्या दिवू! तू भी! चल जल्दी आ, मम्मी ने परेशान होकर कहा |
मेरी भी चोटी बांधो, नैना बोली |
और नैना के बाल, मेरी अपेक्षा छोटे थे | लेकिन मेरी देखा-देखी वो भी मम्मी को ही चोटी बनाने के लिए कहती थी |
तुम दोनों बहने, तुम्हारे बाल कटवाने पड़ेंगे, ताकि न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी, मम्मी डांटने लगी |
नहीं, नहीं, मम्मी!! बाल मत कटवाना | प्लीज ! सॉरी, प्लीज, प्लीज, प्लीज |
ठीक है, ठीक है, पर अब तो सीख लो, बाल बांधना | मुझे भी तो कितने काम होते हैं | घर की साफ़-सफाई करना, पूजा करना, तुम्हारे लिए टिफ़िन बनाना | ऐसे में तुम दोनों परेशान करोगी तो कैसे चलेगा | अब अपना काम खुद करना सीखो, मम्मी चोटी बांधते-बांधते बोली |
ठीक है, हम अपना काम अब खुद ही करेंगे |
ये लो तुम दोनों का लंच | मैंने आज तुम्हारे पसंदीदा आलू के परांठे बनाये हैं |
अरे वाह!! आलू के परांठे! हम दोनों बहनें खुश होते हुए बोली और दोनों स्कूल के लिए निकल पड़ी |