कहानी :- मैं माँ हूँ
शोभा अपने गाँव में पति और एकलौते बेटे के साथ खुशहाल ज़िन्दगी जी रही थी . अभी उसका बेटा चंदू दस साल का था . उसका पति शंकर उसे बहुत प्यार करता था .चंदू गाँव के स्कूल में ही पढता था. शंकर का गाँव में अपना छोटा सा घर था और कुछ खेत और एक जोड़ी बैल भी थे .उसके खेत से कुछ अनाज और सब्जियाँ आ जाती थीं. जिस से उसके छोटे से परिवार का पेट भर जाता था . खेती से बचे समय में वह राज मिस्त्री का काम करता था जिस से बाकी कपड़ा लत्ता , बेटे की पढ़ाई लिखाई वगैरह का खर्च निकल जाता था .
शोभा भी एक कुशल और मेहनती गृहिणी थी .उसने एक बकरी भी पाल रखी थी.गाँव में घर के सामने ही एक छोटा सा मंदिर था और मंदिर के बगल में एक कुँआ था .इसी कुएँ से आसपास के घरों में पानी जाता था .शोभा सुबह प्रायः सूर्योदय के पहले ही उठ जाती थी . नित्य क्रिया से निवृत्त हो कर बैलों को चारा देती और तब बकरी दूहा करती थी . बर्तन तो रात में ही धो लिया करती थी .सुबह नहा धो कर मंदिर में पूजा करती और वहीँ कुँए से पानी ले नित्य सूर्य को अर्घ्य देती थी .उसके बाद चूल्हा जलाती और सब के लिए चाय नाश्ता बना कर सभी साथ में ही नाश्ता करते थे .इसके बाद शंकर खेती के मौसम में खेत चला जाता या फिर राज मिस्त्री के काम पर .उसका मिस्त्री का काम काफी अच्छा होता था .इसलिए आस पास के गाँवों के अतिरिक्त बीच बीच में कुछ मील पर स्थित आरा शहर तक जाना पड़ता था. इधर चंदू स्कूल चला जाता था . शोभा दोनों को दिन के लिए साथ में कुछ रोटी , चना वगैरह दे देती थी .
सब कुछ ठीक चल रहा था मगर एक दिन अचानक शंकर को एक विषैले नाग ने डस लिया और चंद मिनटों में उसने दम तोड़ दिया .शोभा पर दुःख का पहाड़ टूट पड़ा . कुछ दिनों तक तो शोभा को होश नहीं था . कुछ मील की दूरी पर ही उसका मैके था .उसके बड़े भाई और भतीजे ने मिल कर शोभा की गृहस्थी संभाल ली .शोभा का बेटा चंदू इस बीच दसवीं कक्षा में पहुँच गया था .पढ़ने लिखने में वह काफी अच्छा था .घर के काम में भी माँ की मदद करता था . पर आगे पढ़ाई के लिए उसे कुछ मील दूर आरा शहर जाना होता . माँ दिन भर अकेले ही सब काम करते करते थक जाएगी . इसी डर से उसने माँ को कहा " माँ , अब मैं आगे नहीं पढूंगा .पोस्टमैन की वैकेंसी निकली है , कोशिश करूँगा .भाग्य ने साथ दिया तो निकल जाऊँगा ."
शंकर की इच्छा थी कि चंदू पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बने इसलिए माँ ने कहा " तेरा बाबू तुझे साहिब बनाना चाहता था .स्वर्ग में जा कर उसे क्या मुँह दिखाऊँगी .तुझे आगे पढ़ना है बेटे . यहाँ सब ठीक रहेगा , तू चिंता न कर .तेरे मामू हैं न मेरी मदद के लिए .वैसे भी अकेली जान के लिए काम ही कितना बचा है . और तुझे बाबू की इच्छा पूरी करनी है या नहीं ?"
खैर चंदू अच्छे अंकों से दसवीं बोर्ड परीक्षा में सफल हुआ और आरा के स्कूल में ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ने लगा . शोभा ने उसके लिए एक साइकिल ले दी स्कूल जाने के लिए .वह बस से स्कूल जाता था , पर बस स्टैंड घर से काफी दूर था सो वहाँ तक साइकिल से जाता था .साइकिल वहीँ एक जान पहचान की दुकान में रख कर बस पकड़ कर स्कूल जाता और लौटते वक़्त फिर साइकिल से घर आता था .
देखते देखते चंदू बारहवीं भी अच्छे अंकों से पास कर गया और इंजीनियरिंग के टेस्ट में भी सफल हुआ .उसने पटना के इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया .पटना उसके घर से लगभग पैंतीस किलोमीटर की दूरी पर था तो अक्सर शनिवार शाम को वह घर आ जाता और रविवार शाम तक चला जाता था .
देखते देखते चार साल बीत गए और चंदू इंजीनियर बन गया . उसे दिल्ली की एक कंपनी में नौकरी मिल गयी थी . दो महीने बाद ही चंदू दिल्ली से घर आया . उसने पास ही पोस्ट ऑफिस में माँ का खाता खुलवा कर उसमें पैसे जमा किये और हर महीने उस खाते में पैसे भेजने लगा . उसने अपने घर में पैसे खर्च कर उसकी रूप रेखा ही बदल डाली .बैल और बकरी मामू को सौंप देने को कहा और माँ को बाहर का कोई काम करने से मना कर दिया .खेत भी मामू के हवाले कर दिया और कहा जो भी उचित समझें उतना हिस्सा माँ को दे दिया करें .एक सेल फोन भी माँ को दे दिया जिससे रोज माँ से बात करता था .दिल्ली में अभी तो फ्लैट शेयर कर रहा था .पर उसने माँ को कहा कि जल्द ही वह दूसरे फ्लैट में शिफ्ट कर माँ को भी साथ रखेगा .
कुछ दिनों बाद चंदू ने दो कमरे का एक फ्लैट किराये पर ले लिया और माँ को भी दिल्ली ले आया .वैसे तो चंदू ने माँ के लिए सभी सुविधाएँ जुटा रखी थी पर फिर भी माँ का मन वहाँ नहीं लग रहा था . उसे वहाँ घुटन सी लगती .वह खुली हवा में रहने की आदि थी. उसका पूजा पाठ वहाँ ठीक से नहीं हो पाता था .फ्लैट में किधर सूर्योदय होता उसे दिखता ही न था जिस से वह अर्घ्य दे सके, न ही आस पास कोई मंदिर था .उसे अपना गाँव याद आ रहा था .किसी तरह दो महीने दिल्ली रह कर वापस गाँव चली आई .
इधर चंदू जिस फ्लैट में रहता था वह एक पंजाबी का था .उसकी बेटी रीना चंदू के ऑफिस में ही रिसेप्शनिस्ट थी .दरअसल रीना ने ही पापा से कह कर किराया और एडवांस दोनों कम करा दिया था .जब चंदू की माँ थी उसी समय से उसने चंदू के यहाँ आना जाना शुरू किया था .कभी पंजाबी छोले , कभी लस्सी तो कभी बिरयानी आदि ले कर आ जाया करती थी .माँ के जाने के बाद भी यह सिलसिला जारी रहा .बल्कि रीना अब चंदू पर कुछ ज्यादा मेहरबान थी .धीरे धीरे चंदू भी रीना को चाहने लगा .
चंद माह बाद चंदू ने माँ को फोन पर कहा “ माँ तुम रीना से से मिल चुकी हो . तुम्हें रीना कैसी लगती है ? मुझे उस से प्यार हो गया है . अगर तुम्हें रीना स्वीकार है तो मैं उस से शादी करना चाहता हूँ . "
शोभा ने कहा " हाँ , बहुत अच्छी है .तेरी ख़ुशी में ही मेरी ख़ुशी है ."
चंदू बोला " अब तुम जल्दी दिल्ली आ जाओ और शादी की तैयारी करो."
शोभा दिल्ली गयी और चंदू और रीना की शादी के बाद कुछ हफ्ते साथ भी रही .फिर वापस अपने गाँव आ गयी थी . चलते समय चंदू बोला " अब तुम्हारा मन यहाँ जरूर लगेगा .मैं जल्द ही रीना को ले कर गाँव आऊँगा और साथ में तुम्हें भी दिल्ली आना होगा ."
शोभा जब दिल्ली गयी तब लौटते समय चंदू से बोलकर एक सिलाई मशीन अपने साथ लायी थी .उसे सिलाई में भी रुचि थी. इससे पहले भी अपने कपड़े कुर्ती , पेटीकोट वगैरह हाथ से ही सिल लिया करती थी . दिल्ली वाले फ्लैट के मालिक के नीचे एक लेडीज सिलाई की दुकान थी . वहां सिलाई भी सिखाई जाती थी .शोभा ने वहाँ कुछ हफ्ते ट्रेनिंग भी ली थी . ब्लाउज , पैजामा , पेटीकोट ,फॉल ,पीको आदि छोटी मोटी सिलाई तो मजे में कर लेती थी .गाँव में अब उसने सिलाई का काम भी शुरू कर दिया . ऐसा नहीं था कि उसे अपने खर्च के लिए पैसे चाहिए थे . सिलाई से आमदनी तो थी ही साथ में दिन भर व्यस्त भी रहती थी. अपने गाँव के अतिरिक्त पास के गाँव से भी उसे सिलाई के काम मिलने लगे .
कुछ महीने बाद चंदू अपनी पत्नी रीना से साथ गाँव आया .रीना कभी गाँव में नहीं रही थी .उसे हर तरफ गन्दगी नज़र आती थी .आस पास के घरों से गोबर की बू आती थी. बिजली भी दिन भर में एकाध घंटे के लिए भूले भटके आती .चंदू ने बताया कि वह छः महीने के अंदर दादी बनने वाली है .हालांकि दोनों माँ बेटे ने भरसक प्रयास किया था कि रीना को कोई कष्ट न हो फिर भी चौथे दिन ही वह दिल्ली वापस आ गयी . चंदू ने गाँव से चलते समय माँ से कहा था कि प्रसव के समय उसे दिल्ली आना पड़ेगा .
चंदू को गए छः महीने भी नहीं हुए थे कि उसने माँ को फोन कर बताया कि वह दादी बन चुकी है .समय से दो सप्ताह पूर्व ही सीजीरियन डिलीवरी करानी पड़ी है .उसने कहा कि पोते की देखभाल करने दादी को आना होगा .शोभा दादी बनने पर बहुत खुश हुई .उसने बेटे से पूछा कि उसे कब आना होगा तो चंदू ने कहा " तुम जल्दी से आओ . वैसे रीना अभी तीन महीने तक छुट्टी में रहेगी ."
शोभा बोली " ठीक है , मैं अभी एक हफ्ते के लिए आ रही हूँ .छठी के बाद वापस आ जाऊँगी .अभी फसल भी कटने वाली है .फिर तीन महीने बाद ही आऊँगी .तब तक रीना और उसकी माँ बच्चे की देखभाल कर सकती हैं ."
शोभा अपने पोते के लिए ढ़ेर सारे कपड़े और खिलौने लेकर दिल्ली गयी .पारिवारिक रीति के अनुसार धूम धाम से छठी मनाई गयी . इस दौरान करीब एक सप्ताह दिल्ली रही .एक दिन उसने रीना को चंदू से कहते हुए सुना कि यह फ्लैट उसको अब खाली कर देनी चाहिए क्योंकि उसके माता पिता की आमदनी बस किराये और सिलाई दुकान से ही होती है . और अगर वे इसे खाली करते हैं तो उसके पिता इस फ्लैट को दूने किराए पर दे सकते हैं .चंदू ने कहा था कि ठीक है दो तीन महीने में हमलोग एक दूसरा फ्लैट किराये पर लेलेंगे .
तब रीना ने कहा " अब और किराये के फ्लैट में नहीं रहना है .बगल में ही गुप्ताजी के अपार्टमेंट काम्प्लेक्स मे तीन बेड का एक फ्लैट सेल के लिए तैयार है .वहाँ कार पार्किंग की भी सुविधा है .आखिर मुन्ने को लेकर स्कूटर पर कब तक चलेंगे ? "
चंदू ने कहा " ठीक है , संडे को गुप्ताजी से मिल कर बात करते हैं ."
इसके बाद शोभा अपने गाँव चली गयी .इधर चंदू ने गुप्ताजी से मिलकर एक ग्राउंड फ्लोर अपार्टमेंट बुक कर लिया और तीन महीने के अंदर वह सपरिवार नए घर में आ गया .शोभा भी आ गयी थी, वैसे भी तीन महीने बाद उसे आना ही था और अब तो नए घर का गृहप्रवेश भी था .चंदू ने माँ से कहा " माँ , देख तेरे लिए हमने ग्राउंड फ्लोर लिया है .अब तुझे पूजा पाठ में भी कोई दिक्कत नहीं होगी .तुम रोज सूर्य को जल दे सकोगी ."
यह घर शोभा को भी अच्छा लग रहा था और फिर पोते के साथ उसका दिन भी कट जाता था .बीच बीच में कभी कुछ दिनों के लिए गाँव चली जाती तो बगल में ही नानी थी मुन्ने की देख भाल के लिए. इसी तरह चार साल बीत गए .शोभा अब गाँव आ गयी थी .मुन्ना भी रोज दादी से फोन पर बात किया करता .दिन में मुन्ना डे केयर में रहता या फिर नानी के यहाँ .
इधर चंदू ने एक कार भी ले ली थी .घर और कार के मासिक किश्त और घर के अन्य खर्चों के बाद बचत ना के बराबर थी . माँ को भी अपनी मजबूरी बताते हुए अब आधे पैसे ही भेजता था .माँ ने उस से कहा था कि एक अकेली जान का खर्च वह खुद उठा लेगी ,पैसे न भेजे. पर कुछ न कुछ वह हर माह भेजता ही था जिसे शोभा खाते में जमा करा देती थी .
इस तरह करीब दो साल और बीत गया .अब चंदू अपने बेटे मुन्नू के प्राइवेट स्कूल में एडमिशन के लिए परेशान था .बिना डोनेशन के बात नहीं बन रही थी .कम से कम पचास हज़ार तो चाहिए थे उसे .इस स्कूल में एडमिशन के बाद बारहवीं कक्षा तक वह चैन से रह सकता था .
एक दिन रीना ने चंदू से कहा " कुछ पैसे का इंतज़ाम तो यहाँ हो जायेगा .बाकी के लिए माँ से बात कर देखो .आखिर पाँच छः सालों से घर पैसे भेजते रहे हो , माँ ने कुछ बचाया तो होगा ही ."
पहले तो चंदू माँ से पैसे माँगने को तैयार न था पर रीना के दबाव में आकर वह मान गया . उसने माँ को फोन पर कहा कि रविवार के दिन वह गाँव आ रहा है .उसने कोई कारण नहीं बताया पर शोभा को लग रहा था कि अचानक आने की कोई वजह तो होगी .इसी बीच दिल्ली से रीना का फोन आया तो माँ ने पूछा " बहु , सब कुशल मंगल तो है ? चंदू इस रविवार को यहाँ आ रहा है .तुम सबलोग आ रहे हो क्या ?"
रीना बोली " नहीं माँ , ये अकेले ही जा रहे हैं .आजकल मुन्ने के एडमिशन को लेकर थोड़ा परेशान हैं .और कोई चिंता की बात नहीं है ."
इधर शोभा ने पोस्ट मास्टर को पहले से ही बोल कर अपने खाते से तीस हज़ार रुपये निकलवा लिए .उन रुपयों को एक रूमाल में बाँध कर ठीक से रख दिया . रविवार को चंदू आया . माँ ने उस की पसंद का खाना पहले से ही बना रखा था .चंदू ने माँ से तो कुछ बताया नहीं पर उसके चेहरे की परेशानी शोभा भलीभांति समझ रही थी .चंदू ने माँ को कहा कि वो सोमवार दोपहर की गाड़ी से दिल्ली लौट जायेगा तो वह बोली " बेटे अभी नहा धो कर खा पी ले , थोड़ा आराम कर ले फिर और बातें होंगी ."
इस बीच कुछ गाँव वाले सिले कपड़े लेने आये थे और कुछ सिलने देने के लिए .चंदू यह सब देख रहा था .उसने कहा भी " माँ , तुम यह सब क्यों कर रही हो ? तुम्हें कुछ पैसे चाहिए तो मुझसे कहती ."
माँ ने कहा " अरे नहीं रे , मुझ अकेली जान का खर्च ही कितना .तू चिंता न कर ."
ऐसे में चंदू को माँ से रुपयों की बात करना ठीक नहीं लगा .उसने माँ से दिन भर कुछ भी नहीं कहा .रात में भी सिर्फ इधर उधर की बातें
हुईं .अगले दिन दोपहर जब चलने लगा तो माँ ने उसे तीन पैकेट
दिए .चंदू ने पूछा इनमें क्या हैं, तो शोभा बोली
" बेटे , एक पैकेट में तो तेरे रास्ते का भोजन है और दूसरे में रूमाल में कुछ रूपये हैं .इन्हें संभाल के रख ले .तीसरे में मुन्ने के लिए कुछ मिठाई और कपड़े हैं ."
चंदू ने रुपये गिन कर रख लिए .उसकी आँखों में आँसू भर आये और उसने कहा " माँ ,मैंने तो तुझसे कुछ कहा भी नहीं था .तुमने कैसे समझा कि मुझे पैसों की जरुरत है . "
शोभा बोली " बेटे , मैं तेरी माँ हूँ . तू जब से पेट में आया उसी समय से तेरी जरुररतों का पता मुझे स्वतः चल जाता है .माँ सब जानती है "
चंदू नम आँखों से माँ का आशीर्वाद लेकर दिल्ली लौट गया .
समाप्त