ये उन दिनों की बात है - 22 Misha द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ये उन दिनों की बात है - 22

"शुरू ये सिलसिला तो उसी दिन से हुआ था, अचानक तूने जिस दिन मुझे यूँ ही छुआ था, लहर जागी जो उस पल तन बदन में वो मन को आज भी महका रही है............" | यूँ ही ये गाना मेरे जेहन में नहीं आया था | कुछ बहुत ही ख़ास वजह थी जिसने मुझे इक अलग ही एहसास में बाँध दिया था | बहुत ही ख़ास था वो दिन जब में सागर को उसकी गेंद वापस करने गई |

"कॉन्ग्रैचुलेशन्स" |

मैंने उसे इस तरह देखा मानो पूछ रही होऊँ की तुम्हें कैसे पता |

अरे बाबा!!! ये सरप्राइज़ लुक देना बंद करो | तुम्हारा खिलखिलाता हुआ चेहरा आप ही बता रहा है की तुम ये मैच जीत चुकी हो |


"ओह हाँ", "थैंक यू" और मैं खिलखिलाकर हँस पड़ी |


फिर उसने मुझे गले लगा लिया | पहली बार किसी लड़के का स्पर्श मैं अपने अंदर महसूस कर रही थी | रोम-रोम खिल उठा था मेरा | पर अगले ही पल मैं उससे हटकर थोड़ी दूर जा खड़ी हुई |

"सॉरी….सॉरी", वो एक्चुअली तुम्हारी जीत की खबर सुनकर मैं अपने आपको रोक ही नहीं पाया |

"अगेन आई एम सॉरी", सागर ने झेंपते हुए कहा |


सॉरी कहने की ज़रूरत नहीं सागर!! मुझे बिलकुल भी बुरा नहीं लगा, क्योंकि मैं खुद भी यहीं चाहती थी की तुम मुझे गले से लगा लो |


"ट्रीट नहीं दोगी"!! उसने कहा और मैं अपने ख्यालों से बाहर आई |

"ट्रीट"!! मतलब ?

मतलब की, कुछ खिलाओगी पिलाओगी नहीं |

हाँ, हाँ, जरूर |

बताओ क्या खाना पसंद करोगे? "आइसक्रीम", "काला खट्टा", "पानी पताशी", "कोल्ड ड्रिंक", "समोसा", "कचोरी"...............

अरे बाबा!! बस, बस, सागर ने बीच में टोका मुझे |

फिलहाल तो कुछ नहीं पर जल्दी ही तुम्हें बता दूँगा मैं की मुझे क्या चाहिए |

ठीक है तो फिर मैं चलती हूँ |


"उसका मुझे गले लगाना", घर आकर भी सिर्फ उसी के बारे में सोच रही थी और रात भर मुस्कुराती रही मैं |

अब हमारी दोस्ती होने लगी थी | हम दोनों एक दुसरे के लिए अपने दिलों में एक अलग-सा एहसास महसूस करने लगे थे | ये क्या था, हमें नहीं पता था, पर बहुत जल्दी ही समझ आ गया की इस एहसास को ही प्यार कहते हैं | और प्यार समय देखकर नहीं होता, वो चुपके-चुपके ही आपकी ज़िन्दगी में आता है |


सितोलिया, छुपम छुपाई, पकड़म-पकड़ी, कंचा, गिल्ली डंडा, स्टापू, जैसे खेल के ना तो उसने कभी खेले थे और ना ही कभी नाम सुने थे | हमारे साथ वो भी शामिल हो जाता था | धीरे-धीरे उसे इन खेलों में मजा आने लगा |

परसों सागर का बर्थडे है और दादी ने तुम दोनों और कामिनी को भी इन्वाइट किया है, स्कूल से आते ही मम्मी ने बताया |

"अच्छा", हम दोनों खुश होते हुए बोली |

मैं बहुत ही उत्साहित थी उसकी बर्थडे पार्टी में जाने को लेकर, पर थोड़ी ही देर में उत्साह मंद पड़ गया | क्योंकि मैं अपनी अलमारी को खंगाल चुकी थी पर मुझे ऐसी एक भी ड्रेस नहीं मिली जो मैं उसकी बर्थडे पार्टी में पहनकर जा सकूँ |

ये क्या बिस्तर पर कपड़े बिखेर दिए है | सोने की जगह भी नहीं बची है, नैना झल्लाई |

तू बता ना!! नैना, क्या पहनूँ ?

कुछ भी पहन ले |

ऐसे कैसे कुछ भी पहन लूँ | सागर का बर्थडे है |

हाँ, तो?

हट!! तू नहीं समझेगी |

क्या मेरे पास एक भी ढंग की ड्रेस बची नहीं है? मैं अपने में ही सोच रही थी |

दिव्या, नैना, नीचे तो आओ जरा |

नैना नीचे चली आई थी |

पर मैं परेशान थी ड्रेस को लेकर इसलिए कमरे में ही थी |

दिव्या नहीं आई!!

मम्मी!! उसका ना कुछ समझ नहीं आता | इतने कपड़े होकर भी कह रही है, मेरे पास कपड़े ही नहीं है, सागर भैया की बर्थडे पार्टी में पहनने के लिए |

तभी मुझे कुछ याद आया और मैं नीचे आ गयी थी |

अरे मेरा सफ़ेद रंग का झालर वाला मिडी-टॉप कहाँ गया?

उसकी मैंने एक बढ़िया-सी फ्रॉक तैयार कर दी

हैं!! सच्ची!! और मम्मी ने मुझे वो फ्रॉक दिखाई |

इसीलिए तो तुम दोनों को आवाज लगा रही थी | पहनकर दिखा तो दिवू कैसी बनी है?

वाओ! बहुत खूबसूरत है, मम्मी | "थैंक यू" मैंने अपनी दोनों बाहें मम्मी के गले में डाल दी |

सच में बेहद ही खूबसूरत ड्रेस तैयार की थी मम्मी ने |

मम्मी को सिलाई, कढ़ाई, बुनाई का बहुत शौक था | अक्सर वे कुछ ना कुछ बनाती रहती थी | कभी स्वेटर, कभी फ्रॉक, कभी रुमाल, कभी सूट और कभी खुद के किये ब्लाउज वगैरह, वगैरह |

और मेरे लिए? नैना ने मुँह बनाते हुए पूछा |

तेरे लिए भी बनाऊंगी, तू चिंता मत कर |

तो डिसाइड हो गया, अब सागर के बर्थडे पर यही ड्रेस पहनकर जाऊँगी |

शाम को कामिनी और मैं बाजार जाकर सागर के लिए गिफ्ट खरीद कर ले आये |


मैं तैयार हो रही थी | आगे से थोड़े से बाल लेकर फ्रॉक के रंग से मेल खाते हुए रबड़बैंड से पोनी बना ली थी और बाकी के बाल खुले रखे थे | हाथ में सफ़ेद कलर का मोतियों वाला ब्रेसलेट और पैरों में ड्रेस से मेल खाती हुई जूतियां पहनी थी |

जब कामिनी अंदर आई तो मुझे देखती ही रह गई |

कहीं, कहीं, मैं गलत घर में तो नहीं घुस गई, उसकी आँखें आश्चर्य से चौड़ी हो गई |

आज तो तू सच में क़यामत ढा रही है, दिवू | देखना कहीं सागर बाबू के होश ना उड़ जाए, उसने धीरे से मेरे कान में आकर कहा |

तू भी पता नहीं, कभी-कभी बकवास करती है, मैंने शर्माकर कहा |

आय!! हाय!! "मेरी शर्मीली", मन में तो लड्डू फूट रहे होंगे |

चलें? या तुम दोनों ऐसे ही बातें करती रहोगी हमेशा की तरह, नैना को पार्टी में जाने की जल्दी थी |

जल्दी तो मुझे भी थी लेकिन दिल जोरों से धड़का जा रहा था | नैना को जल्दी इस बात की थी की वहां तरह तरह के पकवान और चॉकलेट्स होंगी और मुझे जल्दी इस बात की थी की सागर कैसा लग रहा होगा, उसने क्या पहना होगा |

हम तीनों सागर के घर पहुँचे |

बहुत ही खूबसूरती से घर को सजाया गया था | तरह तरह के रंगों वाले गुब्बारों से, चमकीले कागज़ों से | एक गुब्बारे में चॉकलेट भी भरी गयी थी और वो भी विदेशी, जिसे बीच में लटकाया गया था | कुल मिलकर बहुत अच्छी सजावट की गयी थी जैसी हम फिल्मों में देखा करते हैं |

बच्चे इधर-उधर भागदौड़ कर रहे थे | उन सभी ने बर्थडे वाली टोपी पहनी हुई थी | सागर के कुछ दोस्त भी थे जिसमें लड़कियाँ भी थी | उन लड़कियों ने कुछ अलग तरह के कपडे पहने हुए थे जो केवल घुटनों तक थे और उनमें बाजुएँ नहीं थी, जैसाकि हम फिल्मों में हीरोइनों को पहने हुए देखा करते थे | असल में देखकर हम दोनों को बहुत ही आश्चर्य हो रहा था |

कामिनी और मेरा मुंह खुला का खुला रह गया | पहले हम दोनों ने उन्हें देखा फिर खुद को देखा |

नैना तो आते ही बच्चों के साथ लग गई थी | उसे इन सब में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी, बिलकुल बच्ची थी वो |

अपन दोनों ठीक तो लग रहे हैं ना, कामिनी, मायूस हो गई थी मै |

मेरा मन सबसे ज्यादा इस बात पर परेशान हो रहा था कि उन लड़कियों के रहते हुए क्या सागर मुझे देखेगा | उसी के लिए इतना तैयार हुई हूँ मैं |

यहीं सोच सोचकर परेशान हो रही थी कि तभी सागर नीचे आ गया था | उसने क्रीम कलर का कुरता पजामा पहना हुआ था | बहुत सुन्दर लग रहा था वो, किसी राजकुमार की तरह | वही राजकुमार, जो सफ़ेद घोड़े बैठकर आता है | हर किसी लड़की के सपने जैसा | उसको देखकर दिल की धड़कनें और बढ़ गई थी |