मुरगा वाटरफाॅल टू मुरगा महादेव टेम्पुल Mukteshwar Prasad Singh द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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मुरगा वाटरफाॅल टू मुरगा महादेव टेम्पुल

ओड़िसा राज्य के क्योंझर जिलान्तर्गत 'नुआमंडी आयरन ओर्स माइन प्रक्षेत्र’ में ’’मुरगा हिल्स’’ और उस पर उगे हरे-भरे जंगलों की प्राकृतिक छटाओं के बीच एक मंदिर में स्थापित शिवलिंग- ’’मुरगा महादेव ’’ आदिवाशियों और गैर आदिवासी हिन्दू धर्मावलम्बियों के आकर्षण और मनोकामना सिद्धि का स्थल है।बिहार के श्रद्धालु झारखंड राज्य के चायबासा /टाटानगर /चक्रधरपुर एवं मनोहरपुर अयस्क खादान प्रक्षेत्र से सारंडा के जंगल के बीच से चिरैया,छोटानागरा, बड़ा जामदागड़ा राष्ट्रीय मार्ग से मोटर वाहनों द्वारा नुआमंडी खादान प्रक्षेत्र में टाटा टाउनशिप के मध्य से "मुरगा महादेव"तक पंहुचते हैं।
"नुआमंडी के ओर्स माइन एरिया"में आयरन ओर (लौह अयस्क) के खादान ’’टाटा स्टील’’ के नियंत्रण में है। ओड़िसा के "मुरगा महादेव ’’ मंदिर झारखण्ड के 'चायबासा ’ जिला के सन्निकट है। "मुरगा महादेव ’’ का दर्शन करने सावन व कार्तिक माह में तथा महाशिवरात्रि पर भारी भीड़ लगती है। इस महादेव के बारे में कई स्रोतों से जानकारी मिली,इसलिए मैं भी यहां जाने की चिरप्रतीक्षित यात्रा पर निकल गया।
मेरी यात्रा ’’साउथ बिहार’’ एक्सप्रेस गाड़ी द्वारा राजेन्द्रनगर (पटना) से शूरू हुई तथा झाझा, चितरंजन, आसनसोल, पुरुलिया , टाटानगर, चक्रधरपर होते हुए मनोहरपुर स्टेशन (माइन्स लोडिंग अनलोडिंग साइडिंग स्टेशन के रुप में चिन्हित) पर आकर समाप्त हुई। यह यात्रा राबत्र 8 बजे रात्रि से शुरु होकर अगले दिन 10 बजे मनोहरपुर स्टेशन पर ट्रेन की यात्रा से खत्म हुई। अब मनोहरपुर से मुरगा महादेव तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग से जाना था। यहां अपने एक संबंधी के यहां एक घंटा रूक कर फ्रेस हुआ। फिर उनकी मदद से टैक्सी की तलाश की।मनोहरपुर से कार/एसयूवी वाहनों से जाने की सुविधा है। मैंने एक स्कार्पियो ली। ड्राइवर 'मुरगा महादेव' की यात्रा कराने का अनुभवी व्यक्ति था। मनोहरपुर कस्बा वनाच्छादित पथरीली जमीन और पहाड़ी नदी ’कोयना’ के तट पर बसा है। यहां की मिट्टी लाल है ।कोयना नदी के तल में चट्टान और लाल बालू स्पष्ट नजर आ रहे थे। कारण कि पानी का जलस्तर कम था। गर्मी के मौसम में जल धारा सूख गयी थी। मनोहरपुर से निकलते ही "सारंडा’’ का एशिया प्रसिद्ध जंगल से गुजरने वाले सड़क मार्ग से आगे बढ़ा। सूनसान सड़क पर इक्का दुक्का वाहन ही आते जाते मिले। जंगलों में तीक्ष्ण घुमावदार सड़क पर तीखे मोड़ भी लगातार मिल रहे थे। इसलिए ड्राइवर सावधानी से 60-70 कि॰मी॰ प्रतिघण्टा की रफ्तार से स्कार्पियो चला रहा था। मेरे पूछने पर कि सड़क पर चलने वाली गाड़ियां संख्या काफी कम दिखती है।ड्राइवर ने बताया आज खदानों में रविवार को छुट्टी रहती है। वरना हजारों हाइवा, डोजर व लारियां सड़क पर मिल जाते। सचमुच थोड़ी दूर चलने पर सेल (स्टील आथोरिटी आफ इण्डिया) की चिरैया अयस्क खादान के गेट के सामने से सड़क पर कतार में सैकड़ों हाइवा खड़े मिले। इसलिए रविवार को ’’मुरगा महादेव ’’ की यात्रा सुखदायी बन गयी। वाहनों की आवाजाही नहीं रहने से स्कार्पियो बिना अवरोध तेजी से बढ़ रही थी अनुमान के मुताबिक मनोहरपुर से मुरगा महादेव मंदिर तक की यात्रा ढाई घंटे की थी।चिरैया ओर माइन्स के निकट सड़क किनारे एक लौह अयस्क (पत्थर के टुकड़ों जैसा) को देखकर उठाया।रसायन विज्ञान का छात्र होने के कारण पढी गयी इन्डस्ट्रीयल केमिस्ट्री याद आ गयी।’’एक्सट्रैक्शन आफ आयरन’’ चैप्टर में “रेड हेमाटाइट”अयस्क से आयरन एक्सट्रैक्शन की विधियां के बारे में विस्तार से पढ़ाया गया था।आज अयस्क के खदानों में अयस्क की खुदाई और अयस्क देख काफी खुश हुआ।
चिरैया से आगे बढ़ने पर साल,शीसम व सागवान पेड़ों से भरे सारंडा के जंगल और बहती किरीबुरु नदी सहित अन्य छोटी पतली जलधारा वाली अनेक पहाड़ी नदियां मन को मुग्ध करती गयी। गाड़ी को रोक इसके मनोहारी दृर्श्यों के फोटो ग्राफ/विडियो ग्राफ भी लेते रहे। 10 किलो मीटर दूर चिरैया माइन प्रक्षेत्र से आगे बढ़ा तो 'इन्डियन रिजर्व बटालियन'का कैम्प एवं पुलिस थाना "छोटा- नागड़ा "में मिला। ज्ञात हुआ कि ’’सारंडा वन क्षेत्र ” में ’’नेक्सलाइट’’ लोग छिपे रहते हैं। जो जंगल और क्षेत्र की आबादी को अपनी जागीर समझते हैं।इसलिए सरकार के विरुद्ध अभियान चलाते रहते हैं। बारुदी सुरंगे बिछाकर, छिपकर हमला कर पुलिस बल की हत्या कर राइफल , एके॰47 जैसे शस्त्र को ले भागते हैं। थोड़ा डर मन में समाया पर चालक द्वारा यह बताने पर कि ऐसे घातक वारदात कभी-कभी होते हैं। यात्रियों के साथ नहीं होते। खैर, थोड़ी दूर आगे चलकर ’’नागड़ा’ मंदिर मिला। इस मंदिर में दो नगाड़ों की पूजा होती है। कहा जाता है कि निःशब्द रात्रि में स्वतः दोनों नगाड़े बज उठते थे। जिसकी आवाज मनोहरपुर तक जाती थी। कोई अदृर्श्य शक्ति नगाड़ा बजाकर भगवान शिव की पूजा किया करती थी। मंदिर में आज भी छोटा-बड़ा दो नगाड़ों की ,उसकी अलौकिक शक्ति की प्रतिमूर्ति के रुप में पूजा की जाती है। छोटा नगाड़ा’ के कारण ही इस जगह का नाम छोटा नागड़ा पड़ा है। यहाँ से 15 किलोमीटर दूरी पर स्थित ’’बड़ा जामदा’’ है नामक जगह है।ठीक सड़क किनारे ही भव्य सत्संग मंदिर है। यह मंदिर ठाकुर अनूकुल चन्द्र के मत के मानने वाले का ध्यान स्थल है।मंदिर की बनावट आकर्षक है तथा रंग गेरुआ है।ध्यान पूजा के लिए बड़ा हाल है जिसमें एक साथ करीब पांच सौ शिष्य बैठ सकते हैं।हाल की भव्यता भी दर्शनीय है। मंदिर परिसर के अन्दर जाने के लिए बना मुख्य द्वार भी काफी आकर्षक है मंदिर के ऊपर वाह्य भाग में शिखर पर चक्र बना हुआ है। इस मंदिर पर व मुख्य द्वार पर उकेड़ी यह मंत्र दूर से ही पढ़ा जा सकता है – “ददातु जीवनवृद्धि निरन्तर स्मृति चिद्येते।वन्देपुरुषोत्तमम् !’’
जामदागड़ा से थोड़ी ही दूर आगे बढ़ा कि तूफान के साथ ओला वारिस शुरू हो गयी। डरावनी गरज के साथ बिजली चमक रही थी।मेरे साथ मेरा पुत्र, पुत्रवधू और दो वर्षीय पौत्र भी था।महादेव का नाम जपने लगा। वज्रपात से बचने के लिए लम्बे पेड़ों के निकट से अलग खुले स्थान पर स्कार्पियो को रूकवाया।वर्षा छूटने का नाम ही नहीं ले रहा था।लगभग 30-40मिनट की तूफानी वर्षा कम हुई। परन्तु बुन्दा बुन्दी हो ही रही थी।पानी पड़ने से सम्पूर्ण मार्ग गीला हो गया।
सारंडा के जंगल और रास्ते में मिलने वाले दर्शनीय स्थल, अनेक मंदिर व आयरन ओर्स के खदानों को पार करने वक्त वर्षा नहीं मिली पर टाटा टाउनशिप हल्की वर्षा के बीच पार करते हुए ओड़िसा राज्य के क्योंझर जिलान्तर्गत मुरगा हिल्स में स्थापित 'मुरगा महादेव मंदिर' के परिसर में पंहुच स्कार्पियो की पार्किंग की।
मुरगा महादेव, प्राकृतिक आवरण से आवृत आकर्षक झरनों के पार्श्व में पहाड़ी घाटी में पौराणिक गुफा मंदिर है जिसमें स्थापित शिवलिंग ’’मुरगा महादेव’’ नाम से सम्पूर्ण भारत में प्रसिद्ध है। मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश द्वार के ठीक सामने की दीवार पहाड़ की सतह को काटकर बनायी गयी है जिसकी बांयी व दांयी दीवार ईटों से बनी है।
मंदिर के बायें पार्श्व में 'मुरगा हिल्स ’ से तीन श्रोतों से झरनों का जल सदा बहता है और काफी ठण्डा रहता है। आने वाले श्रद्धालुजन और पर्यटक झरने के लगातार बहते पानी में नहाना नहीं छोड़ते। झरना में स्नान सुगम एवं सुरक्षित हो इसलिए ’’टाटा स्टील’’ के सौजन्य से स्टील की बार लगा घेरा बंदी कर रेलिंग बनायी गयी है। झरने का पानी जिस चट्टान पर गिरता है वहाँ से पानी एक पक्के चार फीट की गहराई वाले छोटे तालाब में जमा हो कर कर घाटी की गहराइयों में लगातार जाता रहता है।
’’मुरगा महादेव ’’ मंदिर के अन्दर प्रवेश के लिए दक्षिण भाग से बड़ा सा सुन्दर बनावट का मुख्य द्वार बना है। इसमें दो प्रवेश द्वार हैं। एक से झरना (वाटर फाल) की तरफ जाने का
रास्ता है। दूसरा प्रवेश द्वार मंदिर के अन्दर जाने का है। मुख्य द्वार की समतल ऊँचाई से नीचे ढ़ालान में मंदिर लगभग 50-60 फीट नीचे है। ढालन पर सीढ़ियां बनी है जिस पर खुरदरे टाइल्स और घाटी की गहराई से सुरक्षा हेतु किनारे किनारे मंदिर तक स्टील की मजबूत रैलिंग लगी है। पानी पड़ने के कारण झरने का जल बिल्कुल गेरुआ हो गया था।झरना जल की गति भी तीव्र थी।मंदिर प्रवेश करने के क्रम में जारी हल्की वर्षा में हम सब भींग चूके थे।हमारे सिवा एक भी अन्य श्रद्धालु नहीं दिखे।पुष्प व चढ़ावे के स्टाल भी बंद थे।हमारे पहुंचने से पहले यहां भी तेज वर्षा हुई थी।खैर बाधाओं को पार करते हुए महादेव के दर्शन पूजन के लिए उनकी ही कृपा से समर्थ हो सका। झरना के लाल पानी और तीव्रता के कारण नहाने की इच्छा त्यागनी पड़ी। परन्तु झरना जल के छींटे निकट जाकर जरूर लिया। तत्पश्चात मंदिर के पुजारी के मंत्रोच्चार द्वारा महादेव की पूजा सम्पन्न हुई। ओड़िया भाषा में पुजारी ने मंत्रोच्चार किया।मंदिर में बिजली गुल थी।अंधेरा में दीया की ज्योति प्रकाशमान थी। चारो ओर की प्राकृतिक छटा को वर्षा के बीच अवलोकन करते हुए एक विशिष्ट अनुभव प्राप्त हुआ।लगभग दो घंटा मुरगा महादेव के सानिध्य में बिताया ।अब तक पानी बंद हो चुका था, आकाश साफ हो गया।पुनः महादेव को प्रणाम कर मनोहरपुर के लिए वापस प्रस्थान किया।इस प्रकार मुरगा हिल्स स्थित मुरगा महादेव तक की यात्रा पूरी हुई।
इस यात्रा वृतांत को सजीव और पठनीय बनाने के लिए प्रासंगिक तस्वीरों को साथ-साथ देख उन स्थलों के दर्शन कर आनन्द उठायें।
* यात्रा वर्णन लेखक
मुक्तेश्वर प्र0 सिंह
सहरसा, बिहार