वह सच था या सपना HDR Creations द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

वह सच था या सपना

रात के 11:30 बजे के आस-पास का टाईम होगा | मै अपनी रुम की खिड़की से बाहर की ओर झाँक रहा था | मुझे उस टाईम कुत्तों के भौंकने की आवाजे आ रही थी | वैसे भी ये कोई नई बात नही थी हमारे लिए | क्युँकी कुत्ते तो रात को भौंकतें ही है |

ऊपर से मेरा घर ( Beach ) किनारे पे पड़ता | जिस्से रात को गाडीयों की आवाज से सही से सोना भी मुश्किल पड़ता था मुझे | मै कुत्तों और हाईवे में चलती गाड़ीयों की आवाज से काफी तंग हो गया था |

ईसिलिए मैनें खिड़की बंद करकेे सोने का फैसला किया | मै खिड़की बंद करके सो गया उस दिन


सुबह नींद से जागते साथ मै निकल गया घर से बाहर कयुँंकी आज मुझे उन कुत्तों को मजा चखाना था | ईसिलिए मै सुबह सुबह बाहर निकल गया उस टाईम सुबह के 5:30 बज रहा होगा | मै ईधर-उधर घुम रहा था | कुत्तो को खोज खोज के दौड़ा दौड़ा कर मार रहा था मैने उस दिन खुब कुत्तों को मारा

कुछ कुत्तों को मारकर लंगड़ा कर दिया था | मै अब घर को वापस जा रहा था | तभी मुझे खजुर के पेंड़ के नीचे सोया हुआ एक कुत्ता दिखा

मै उसके पास तेजी से बड़ा सा पत्थर उठा कर भागा
और उसपर पत्थर से हमला कर दिया | वह कुत्ता भौंकता चिल्लाता हुआ भाग गया

मुझे आज बहुत सुकुन मिला | क्युँकी आज मैने अपना बदला उन कुत्तों से ले लिया था

दिन भर मै खुशनुमा मिजाज से सबके साथ पेश आ रहा था | जब शाम हुई तो मै अपने दोस्तों को ये बात बताई वह सब भी ये सुनकर हँसने लग गए मै भी उन सबके साथ हँसीं मजाक कर रहा था


हँसीं मजा और बातचीत मे टाईम कब पार हो गया पता ही नही चला
अभी रात के 8:38 बज रहा था मै अपने देस्तों को by बोलकर निकल गया
घर में आके खाना पीना करने के बाद सोने चला गया
खिड़की बंद था
ईसिलिए मैने सोचा चलो देखतें है की कुत्तें चिल्ला रहे है या नही

ईसिलिए मैने खिड़की खोल कर खिड़की के साबने बैठ कर बाहर देखने लगा

मेरी सोच सही साबीत हुआ आज बहुत कम कुत्तों की आवाज आ रही थी

मै भी मुश्कुराते हुए सोचने लगा चलो आज सुकुन से नींद आएगी

मै खिड़की बंद किया और सो गया | रात के करीब 2:30 बजे मेरी नींद अचानक खुल गई ( मै अचानक जाग गया )


नींद खुली तो मै गेम खेलना शुरु कर दिया कयुँकी अब मुझे नींद नही आ रहा था

ईसिलिए मै गेम खेल रहा था | तभी मै खिड़की खोलके बाहर देखने का ईरादा बनाया

मुझे खिड़की खोलने का मन हुआ | ईसिलिए मै खिड़की खोल दिया | और बाहर झाँकने लगा

तभी मुझे बाहर कुछ सफेद आकृती जैसा कुछ दिखा | मै उसे गौर से देखे जा रहा था | वह ईधर उधर घुम रहा था

मुझे उस टाईम लग रहा था के वह कुत्ता है | ईसिलिए मै घर से बाहर आ गया

और एक पत्थर उठा के उसकी तरफ बढ़ने लगा | उस्से थोड़ी सी मै दुर था |

करीब रोड के उस पार वह था और रोड के ईस पार मै

मै उसको पत्थर मारा | पर वह भागा नही | ईसिलिए मै फिर एक पत्थर उठा के उसे मारा | पर वह नही भागा | ईसिलिए मै पत्थर उठा उठा के उसे मारे जा रहा था


पर वह भागने का नाम ही नही ले रहा था | मै अब थोड़ा और सामने जाके उसके उपर बड़ा सा पत्थर पटक दिया

तब भी उसे कोई फर्क नही पड़ रहा था | मै बडे़ बड़े पत्थरों से उसे मारे जा रहा था पर उसे कुछ लग ही नही रहा था

तभी अचानक से कोई पीछे से मेरा कंधा में हाथ रखता है | मै एकदम से चौक गया

मेरी आँखे बंद हो गई थी उस टाईम | तभी मै हल्के से आँख खोलकर देखा तो वह मेरे बगल वाले अंकल थे

वह बोले क्या कर रहे हो ईधर | मै बोला ईस कुत्ते को मार रहा था | उसे मैने बहुत बडे़ बडे़ पत्थरो से मारा पर उसे कुछ हो ही नही रहा था

वह बोले कौन कुत्ता मै बोला ये | जो यहाँ बैठा हुआ है |

वह बोले कहाँ

जैसे मै उस तरफ मुड़ा मुझे वह दिखाई नही दिया

मै अंकल से बोला वह अभी यहीं था

फिर अंकल मुझे ये बात बताए के मै तुम्हें बहुत देर से देख रहा था के तुम ईटा पत्थर चला रहे थे

पर दुर से कुछ नही दिख रहा था | तभी मै तुमसे थोड़ी ही दुर में खडा़ हो गया

और देखा के तुम जमीन में लगातार बडे़ बडे़ पत्थर चला रहे थे

मुझे दुर से लग रहा था के तुम किसी को मार रहे थे

पर सामने से देखा तो तुम बेवजह जमीन में पत्थर चला रहे थे

मै अंकल की बातें सुन एक दम सन्न् हो गया मेरी सिट्टी पीट्टी
गुल ( गुम ) हो गयी

मुझे विश्वास ही नही हो रहा था के मै ये कर रहा ह
था

अंकल से एैसे ही बातें करते करते घर चला गया
| और दिन भर मै यही सोच के बेचैन था के क्या
ये सच था के सपना

मै अंकल की बाते भी सोच रहा था के वह क्या बता दिए मुझे

मै उत्नी देर फाल्तु में पत्थर मार रहा था