साइड इफेक्ट्स ऑफ़ टूरिज्म S Sinha द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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साइड इफेक्ट्स ऑफ़ टूरिज्म


आलेख - साइड इफेक्ट्स ऑफ़ टूरिज्म

शायद आपको सुनने में अटपटा लगे , पर यह सत्य है कि बढ़ते पर्यटन के भी कुछ साइड इफेक्ट्स या कुप्रभाव होते हैं . जिस तरह अच्छी दवाओं के भी कुछ साइड इफेक्ट्स होते हैं उसी तरह हम तो सैर सपाटे कर मजे में निकल जाते हैं , पर चाहे - अनचाहे या जाने - अनजाने कुछ साइड इफेक्ट्स छोड़ जाते हैं . आईये उन पर एक नज़र डालते हैं .


आज वैश्विक स्तर पर पर्यटन एक उद्योग बन गया है , हर देश अपने यहां के आकर्षक स्थलों का विकास कर सैलानियों को आकर्षित करने की होड़ में लगा है . पर्यटन कुछ राज्यों या देशों की जीविका बन गया है . अधिकतर लोग इसके दुष्प्रभाव से अनभिज्ञ हैं . धीरे धीरे लोगों में इसके प्रति जागरूकता हो रही है और अनावश्यक या अनियंत्रित पर्यटन के प्रति स्थानीय निवासी जागरूक हो रहे हैं . भीड़ भाड़ , बढ़ते ट्रैफिक , प्रदूषण , महंगाई , देर रात तक शोर शराबा , पार्टी और उनके रोजमर्रा में दखल के चलते पर्यावरण प्रभावित हो रहा है और साथ ही स्थानीय निवासियों की परेशानियां बढ़ रहीं हैं .


व्यावहारिक रूप से देखा जाए तो पर्यटन अब पर्यावरण के लिए ख़तरा बनते जा रहा है . हम जहाँ भी पर्यटन के लिए जाते हैं , यातायात के साधन का इस्तेमाल करते हैं - वायुयान , ट्रेन , बस , कार या शिप आदि . पर जब हम किसी भी साधन से जाते हैं तो कार्बन उत्सर्जन ( carbon emmission ) होता है और हम कार्बन पदचिन्ह छोड़ जाते हैं . इसके अतिरिक्त होटलों में ठहरते हैं और कार्बन फुटप्रिंट छोड़ जाते हैं . एक शोध में देखा गया है दुनिया भर में पूरे कार्बन एमिशन का 8 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन पर्यटन से होता है .


सिडनी की एक संस्था ने 2009 से 2013 तक करीब 160 देशों से पर्यटन / पर्यटकों द्वारा दूषित पर्यावरण का अध्ययन किया , तो उसके आंकड़ें चौकाने वाले थे . हमारे यातायात के साधन , होटलों में ठहरने , खान पान और यहाँ तक कि हम अपनी यादगार के लिए जो सुवेनीर ( स्मारिका ) खरीदते हैं उनका असर पर्यावरण पर पड़ता है . अकेले फ्रांस के आईफ़िल टावर के चौचकी ( tchotchkes ) - टावर का एक सुवेनीर , के निर्माण और बिक्री से काफी मात्रा में कार्बन का उत्सर्जन होता है . देखा गया है कि पर्यटन उद्योग द्वारा 4. 5 गीगाटन ( 1 gigaton = 1000, 000 , 000 Ton ) के समकक्ष कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है जो 2025 तक 6. 5 गीगाटन हो सकता है . अनुमान किया गया है कि वैश्विक पर्यटन द्वारा उत्सर्जन विश्व के कारखानों , निर्माण व अन्य उद्योगों द्वारा हुए उत्सर्जन से भी ज्यादा है .

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देखा गया है कि सबसे ज्यादा कार्बन प्रदूषण अमेरिका जाने वाले पर्यटक , अमेरिका के बाहर जाने वाले अमेरिकी पर्यटकों और चीनी सैलानियों द्वारा होता है . इसके अतिरिक्त अमेरिका , जर्मनी , भारत के घरेलू पर्यटक भी काफी मात्रा में कार्बन प्रदूषण के जिम्मेदार हैं . अन्य देशों की तुलना में धनी देशों के पर्यटक हवाई यात्रा , होटलों , खरीदारी और खान पान पर ज्यादा खर्च करते हैं जबकि अन्य देशों के सैलानी पब्लिक ट्रांसपोर्ट और अनप्रोसेस्ड फ़ूड पर ज्यादा .


पर्यटन तो कुछ छोटे देश व द्वीपों की आमदनी का मुख्य श्रोत है जैसे - मॉरीशस , मालदीव , साइप्रस , आदि और ये देश अपने कार्बन प्रदूषण के लिए प्रमुख जिम्मेदार भी हैं . इनकी अपनी जनसंख्या तो बहुत कम है पर पर्यटकों द्वारा प्रचुर मात्रा में इनके साधनों ( पानी , ऊर्जा , खाद्य ) की खपत होती है और साथ में ह्यूमन वेस्ट और प्रदूषण पैदा होता है .


हम कहते हैं “ अतिथि देवो भवः “ . आईये अब एक झलक देखते हैं सैलानियों के प्रति स्थानीय निवासियों के क्रोध को -


इटली का वेनिस विश्व का एक पसंदीदा पर्यटन स्थल है . यह छोटा सा शहर एक यूनेस्को धरोहर है . महज 54500 आबादी वाले शहर में करीब तीन करोड़ सैलानी हर साल यहाँ आते हैं .पर्यटन से तंग आकर , जो बचे हैं उनमें भी कुछ शहर छोड़ना चाहते हैं . यूनेस्को की रोक के बावजूद बड़े बड़े क्रूज शिप अक्सर यहाँ आते रहते हैं . हाल ही में स्थानीय निवासियों ने पर्यटन के विरुद्ध प्रदर्शन कर अपना रोष प्रकट किया था . उनका कहना है - सैलानियों का स्वर्ग उनके लिए नर्क बनते जा रहा है .


स्पेन का बार्सिलोना विश्व भर में पर्यटकों के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थलों में एक है . पर यहाँ भी जब आप शहर में प्रवेश करेंगें तो दीवारों या पत्थरों पर लिखा देखेंगे “ टूरिस्ट , आप एक टेररिस्ट हैं “ , “ टूरिस्ट्स आर बास्टर्ड्स “ और

“ टूरिस्ट्स ने हमारी जिंदगी तबाह कर दी है “ , “ गो होम “ आदि .


थाईलैंड का “ कोह खाई “ द्वीप अपने रंगीन कोरल रीफ के लिए मशहूर है . सैलानियों की बढ़ती संख्या से यहाँ का करीब 80 प्रतिशत कोरल लाइफ बर्बाद हो चुका है और प्रशासन अब सैलानियों पर लगाम लगाने की सोच रहा है .


हिमालय की गोद में बसा भूटान अपनी प्राकृतिक छटा के लिए प्रसिद्ध है . हालांकि यहां पर्यटन का सिलसिला काफी देर से शुरू हुआ - 1974 के बाद . भूटान ने अपनी प्राकृतिक सुंदरता , स्वच्छता बरक़रार रखने के लिए प्रयास किया है . प्रशासन ने सैलानियों की संख्या पर लगाम लगाने की दिशा में भूटान दर्शन के लिए मोटी फीस लगा रखी हैं .


दक्षिण भारत के तमिलनाडु का ऊटी एक लोकप्रिय हिल स्टेशन और पर्यटन स्थल है . इस छोटे से शहर के निवासियों की जरूरतें पूरी करना एक समस्या है . ऊपर से लाखों सैलानी यहाँ के नीलगिरी पर्वत श्रृंखला का आंनद लेने आते हैं . स्थानिय निवासियों में बढ़ते पर्यटन के प्रति गुस्सा है .

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इसी तरह विश्व के अन्य जगहों के निवासी बढ़ते टूरिज्म से परेशान हैं - एम्स्टर्डम ( हॉलैंड ) ; ओनसेन ( जापान ) , सेंटोरिनी ( ग्रीस ) ; सिंक्विटेरे , रोम , मिलान ( इटली ) ; आर्लिंग्टन ( टेक्सॉस , USA ) ; पाल्मा डी

मालारोका , बिबाओ , सैन सेबस्टियन ( स्पेन ) : दुब्रनविक , ह्वार ( क्रोएशिया ) ; रिक्जाविक ( आइसलैंड ) ; न्यूज़ीलैंड के कुछ द्वीप और ग्लेशियर आदि .

पर्यटन के अपने फायदे भी है , यह रोजगार और व्यापार का साधन है . फिर भी इसके दुष्परिणाम को पूरी तरह नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं . तो इस समस्या का समाधान क्या हो ? लोगों को पर्यटन या अनावश्यक यात्रा के कुप्रभाव के प्रति जागरूक होना चाहिए .


पर्यटन रोकना न सही है न सम्भव - इन्हें पूर्णरूप से रोकना न तो उचित होगा और न ही संभव , पर हम अपने प्रयास से इसके दुष्प्रभाव का असर कम जरूर कर सकते हैं . अपने साथ अनावश्यक सामान न ले जाएँ , जहाँ कहीं जाएँ वहां के निवासियों की सुविधा का ध्यान दें , अनावश्यक कचरा न फैलाएं , गैरजरूरी खरीदारी न करें . स्थानीय भ्रमण के लिए , अगर उपलब्ध हों तो प्रदूषण रहित यातायात के साधन , का उपयोग करें या यथासंभव पैदल ही चलें .