चाहत - 17 sajal singh द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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चाहत - 17

पार्ट -17

औरतों का तो शॉपिंग मानो जनम सिद्ध अधिकार है। यही हाल हमारा था हम भी अपना अधिकार बखूबी ले रहे थे शॉपिंग करके। हमने सुबह से लेकर शाम तक हर फंक्शन के लिए कुछ न कुछ ख़रीदा। थक हार कर शाम को हम लोग घर लोटे। आकर थोड़ा आराम करके डिनर के लिए पहुंचे।

दादाजी - तो बच्चो , बताओ कैसा लगा हमारा जयपुर ?

नेहा - बहुत अच्छा दादाजी।

छाया - आपको पता है दादू , आज इन सब ने कितनी शॉपिंग की है। जोहरी मार्केट से लेकर नेहरू बाजार तक हर जगह से कुछ न कुछ जरूर लिया।

प्राची - हाँ लिया है हमने। तो इसमें गलत क्या है ?

सुमन - वैसे भी छाया क्या पता हम कब दोबारा यहाँ आ पाए ?

शिव भैया - तो इसलिए तुम ने इतना सामान खरीद लिया।

पूजा - हाँ तो इसमें कोनसी बड़ी बात है ?

अमन - (सुमन की ओर देख कर ) बात खरीदने में बड़ी नहीं है बिल पे करने में है।

सुमन - दोबारा कहना अमन क्या कहा तुमने ? मुझे सुनाई नहीं दिया।

अमन - कुछ नहीं कहा मैंने। (हड़बड़ा कर ) बस मैं तो ये कह रहा था कि तुम शादी में राजस्थानी कपडे पहनना बड़ी अच्छी लगोगी।

(अमन की बात सुनकर सब मुँह दबा कर हंस रहे थे। )

सुमन - हाँ मैं जरूर पहनूंगी।

अमन (खुद से ही )- बच गया आज तो मैं।

मैं - छाया , कल क्यों ना हम हवा महल देखने चले ?

नेहा - हाँ , बहुत सुना है हमने हवा महल के बारे में। चलते हैं सब। ..

दादीजी - शिव , ऐसा करो तुम बच्चे घूम आओ।

आशीष - दादी आप लोग नहीं आओगे ?

दादीजी - नहीं बेटा ,हमे यहाँ रह कर शादी की तैयारियां देखनी हैं।

मैं - भाभी ,आप तो आएंगी ना ?

दादाजी - हाँ , भाई। रिया और राघव को भी ले जाना अपने साथ।

नेहा - वाह। कल कितना मजा आएगा सबके साथ । मैं तो सोने जा रही हूँ कल सुबह जल्दी जो उठना है।

प्राची - रूक , मैं भी आ रही हूँ।

(धीरे -धीरे सब सोने चले गए। मैं छाया के साथ हॉल में ही बैठी रही। )

मैं - छाया , कुछ अपने बारे में बताओ ?

छाया - दीदी , आप मुझे और मेरे माता -पिता को तो जानती हैं ही। तो और क्या बताऊँ मैं अपने बारे में ?

मैं - बुद्धू ,मैं तुमसे तुम्हारी कॉलेज लाइफ, तुम्हारी पसंद के बारे में पूछ रही हूँ।

छाया - अच्छा , मैं ग्रेजुएशन हिस्ट्री ऑनर से कर रही हूँ। अभी सेकंड ईयर चल रहा है।

मैं - वाव ! ये तो बड़ी अच्छी बात है। और बताओ तुम्हे क्या पसंद है ?

छाया - मुझे कुकिंग का बड़ा शौक है दीदी। नई -नई चीजे बनाना बहुत पसंद है। मुझे हेंडीक्राफ्ट करना भी बड़ा अच्छा लगता है।

मैं - तुम तो बड़ी टैलेंटेड हो छाया। पढ़ाई के साथ -साथ इतना सब कुछ कर लेती हो तुम।

छाया - थैंक्स दीदी ! आपको पता है दीदी सलिल भैया हमेशा मुझे inspire करते हैं अपने शौक को बढ़ावा देने के लिए। वो कहते हैं अपने शौक को कभी भी नहीं छोड़ना चाइये। बल्कि उसे भी टाइम देना चाइये।

मैं - सही कहते हैं तुम्हारे भैया। (तभी भाभी की आवाज़ आती है )

भाभी - चीनू , देख ना। आज सावी सो ही नहीं रही है। उल्टा तंग किये जा रही है।

मैं - भाभी , आप मुझे दीजिये सावी को। मैं थोड़ी देर इसे गार्डन में घुमा लाती हूँ। (भाभी से सावी को लेकर मैं गार्डन में आ गयी। गार्डन में सलिल फ़ोन पर किसी से बात कर रहा था तो मैं गार्डन के दूसरे कोने में सावी को लेकर घूमने लगी। )

सलिल - (पास आकर ) क्या बात है ? चांदनी रात में दो खूबसूरत लड़कियां अकेले -अकेले टहल रही हैं।

मैं - अपना वाक्य ठीक करें। लड़की एक ही है। दूसरी तो बच्ची है।

सलिल - पता है मुझे। और क्या तुम मेरे वाक्य के पीछे पड़ी हो। वाक्य को छोड़ कर मुझ पर ध्यान दो जरा।

मैं - आप पर क्या ध्यान देना है ?

सलिल - (इतराते हुए ) यही की एक हैंडसम लड़का तुम्हारे पास खड़ा है। और नहीं तो उसकी भी थोड़ी सी तारीफ कर दो।

मैं - आपने वो वाली कहावत सुनी है - "अपने मुँह मियां मिठूं बनना ".

सलिल - हाँ , सुनी है। लेकिन तुम ये मुझसे क्यों पूछ रही हो ?

मैं - क्या है ना ? वो कहावत आप पर बिलकुल फिट बैठती है। अपने मुँह से ही खुद की तारीफ करना तो कोई आपसे सीखे।

सलिल -(मुस्कुरा कर ) - तो सीख लो। शादी के बाद रोज मेरी तारीफ करना। मुझे बड़ा अच्छा लगेगा जब मेरी बीवी शरमाते हुए मेरी रोज तारीफ करेगी। हाय ! इमेजिन करके ही मुझे तो कितना अच्छा लग रहा है .......

मैं - कुछ ज्यादा ही सोच रहे हैं आप। मैं तो आपसे शादी नहीं करने वाली।

सलिल -(मेरी गोद से सावी को लेते हुए ) देखो सावी बेटा। अपनी इस ज़िद्दी बुआ को कितने अच्छे लड़के को मना कर रही है। अब बेटा , तुम्हारी बुआ को क्या पता कि इतना अच्छा लड़का उसे बगैर किसी मेहनत के मिल गया। वरना मेरे जैसे लड़के मिलते ही कहाँ है आजकल ?

मैं - ओह्ह ! अपने पर बड़ा गुमान है आपको ?

सलिल - हाँ , हो भी क्यों ना ? हज़ारों लड़कियां दिल हारती हैं मुझ पर।

मैं - तो जाइए उन हज़ारों के पास। मेरे पीछे क्यों पड़े हो ?

सलिल - (हँसते हुए ) उनके पास जाकर क्या करूं ? मैं अपना दिल तो तुम पर हार चूका हूँ। अब इस दिल को तुम्हारे सिवा कोई और अच्छा लगता ही नहीं।

मैं - एक बात बताए। ये आपको मुझ से प्यार कैसे हो गया ? मैं तो आपको भाव तक नहीं देती।

सलिल - (सावी को मुझे देकर ) देखो ,(अपने दिल पर हाथ रख कर ) ये जो दिल है ना , इसे बस तुम्हे देखना अच्छा लगता है। तुम्हे देखकर मैं सारी बातें भूल जाता हूँ याद रहता है बस तुम्हारा हँसता हुआ चेहरा। तुम्हे लगता है कि मैंने पिछले एक साल से तुम्हे इग्नोर किया। तुम्हे गलत लगता है बल्कि मैंने तो जब भी मौका मिला जी भर कर तुम्हे ही देखा। जब भी तुम मेरे घर आती थी तो सर्त की वजह से मैं तुमसे बात नहीं करता था और ना ही देखता था। लेकिन ऐसा तुम्हे लगता है। ... मैं अपने कमरे से छिप कर तुम्हे ही देखता था। खैर , अब तो तुम सच जानती हो तो सर्त तो रही नहीं हमारे बीच।

मैं - आपको पता है मैं आपसे प्यार नहीं करती फिर भी आप मुझसे प्यार करते हो क्यों ? इस सब से क्या मिलेगा आपको ?

सलिल - चाहत , प्यार कोई बिजनेस डील नहीं है मेरे लिए जिसमे मैं अपना प्रॉफिट देखूं। मैं तुमसे प्यार करता हूँ वही बहुत है मेरे लिए। तुम शादी के लिए हाँ बोल दो। देखना मेरे साथ रहकर तुम्हे भी मुझ से मोहब्बत हो ही जाएगी।

मैं - मैं सादी के लिए आपको हाँ नहीं बोल सकती। अच्छा होगा आप इस बात को यहीं खत्म कर दे।

सलिल - पर क्यों ?

मैं - बहुत देर हो चुकी है। मैं सावी को भाभी के पास ले जाती हूँ। वो वेट कर रही होंगी। गुड नाईट !

(सलिल को वही छोड़कर मैं सावी को लेकर अंदर आ गयी। सावी को भाभी को देकर मैं अपने कमरे में आ गयी। बिस्तर पर तो मैं लेट गयी लेकिन ये मन सलिल की बातों में ही अटका हुआ है। अब क्या वजह बताऊँ मैं सलिल को अपनी ना की। ना जाने कब आँख लग गयी सोचते हुए। )

सुबह हम सब दोस्त जल्दी से तैयार होकर हवा महल देखने के लिए निकले। आधे घंटे में हम हवा महल के सामने थे।

भाभी - हमे कोई गाइड कर लेना चाइये राघव। मदद मिल जाएगी।

छाया - भाभी , उसकी कोई जरुरत नहीं है। मैं हूँ ना।

मैं - हाँ भाभी। छाया को सब पता है। ऊपर से हिस्ट्री ही इसका सब्जेक्ट है यही सब बताएगी हमे हवा महल के बारे में।

राघव भैया - तो छाया चलो भाई। हो जाओ शुरू जानकारी देना।

नेहा - छाया इसमें कोई मेन दरवाज़ा तो नहीं दिख रहा। अंदर कैसे जायेंगे ?

छाया - आप सब मेरे पीछे आये। (हम सब छाया के साथ चल दिए। वो एक दरवाज़े के बाहर रुकी और बोली ) यह है हवा महल का प्रवेश द्वार। यह शाही दरवाज़ा है जो सिटी पैलेस की और से हवा महल में प्रवेश करने का द्वार है।

सब ने अपने फ़ोन निकाल कर फोटो लेना शुरू कर दिया। उसके बाद हम अंदर आये।

नेहा - बता तो छाया ये महल किसने बनवाया था ?

छाया - हवा महल को महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने सन 1799 में बनवाया था। हवा महल की दीवारों पे बने हुए फूल पतियों का काम राजपुताना शिल्पकला का बेजोड़ नमूना है। उत्सव के लिए पहली मंजिल पर शरद मंदिर बना हुआ है ,जबकि दूसरी मंजिल पर रतन मंदिर बना हुआ है। जिसे ग्लासवर्क से सजाया गया है। अन्य तीन मंज़िलों पर विचित्र मंदिर ,प्रकाश मंदिर और हवा मंदिर हैं। महल में 953 झरोखे हैं।

मैं - वाह ! छाया। तुम्हे तो सब पता है।

प्राची - पता क्यों नहीं होगा ? यहीं तो रहती है छाया।

छाया - हाँ ,मैं तो बहुत बार आ चुकी हूँ। यहाँ पर। आप लोग जल्दी से देख लीजिये वरना 2 घंटे खतम हो जायेंगे।

सुमन - चलो जल्दी से देखो अब सब।

सब महल के कोने -कोने को देखने में लग गए। सच में , बड़ी ही बारीकी से पथरों पर नक्कासी की गयी है। हर खिड़की और जरोखे से सिटी को देखा जा सकता है। सब कैमरे और फ़ोन से पिक क्लिक करने में व्यस्त हैं। हम सब ने एक ग्रुप फोटो भी खींची याद के तौर पर। मैं सावी को लेकर एक कोने में बनी नक्काशी को देख रही हूँ तभी सलिल आया।

सलिल - क्या देख रही हो ?

मैं - देख रही हूँ कितनी ख़ूबसूरती से ये महल बनाया गया है। सुंदरता और कला का अद्भुत मिश्रण है ये महल।

सलिल - सच कह रही हो तुम। जितनी बार भी देखो हर बार नया सा लगता है। खैर , तुम सावी को मुझे दे दो मैं संभाल लूँगा इसे। तुम आराम से महल देख लो।

मैं - आपको नहीं देखना क्या ?

सलिल - मैं तो बचपन से अब तक कई बार देख चूका हूँ।

मैं - अरे हाँ। आप तो यहीं से हैं।

सलिल -(सावी को लेकर ) चल बेटा सावी। आज तुम्हारे फूफाजी तुम्हे हवा महल दिखाएंगे।

मैं - क्या कहा आपने ?

सलिल - (मुस्कुराते हुए ) फूफा जी। तुम बुआ तो मैं फूफाजी।

मैं - रहने दे आप। सावी को मुझे दीजिये। आपसे नहीं सम्भलेगी ये।

सलिल -क्यों नहीं रहेगी सावी मेरे पास ? देखो कितनी खुश है मेरी गोद में। और वैसे भी मैं बच्चे सँभालने की अभी से प्रैक्टिस कर रहा हूँ। ताकि आगे जाकर तुम्हे बच्चे परेशान ना करे।

मैं - क्या बच्चे ? किसके ?

सलिल - (हँसते हुए ) हमारे।

मैं - आपका दिमाग खराब है। जा रही हूँ मैं यहाँ से। (मैं तुरंत सलिल के पास ही सावी को छोड़कर सबके पास आयी। )

भाभी - चीनू , सावी कहाँ है ?

मैं - वो सलिल के पास है।

भाभी - चलो ठीक है फिर तो।

थोड़ी देर बाद हम सब हवा महल से निकले। और हवा महल के आसपास हमने सिटी पैलेस और जंतर -मंतर को देखा। शाम हो चुकी थी तो सब थक कर घर आये। घर आकर सब ने खाना खाया और सो गए।