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चाहत - 16

पार्ट -16

सलिल के अचानक चले जाने से सब हैरान हुए। तभी शिव भैया बोले - बहुत रात हो गयी है। सब जा के सो जाओ।

आशीष - लेकिन सलिल बीच में ही गाना छोड़ कर चला गया। वो ठीक तो है ना ?

शिव भैया - अरे , उसे कुछ नहीं हुआ है। वो मूडी है। बस मन नहीं किया होगा गाने का तो चला गया। मैं देखता हूँ उसे। ( इतना कहकर शिव भैया चले गए। )

हम सब भी अपने रूम में आ गए।

वहां शिव भैया सलिल से बात करने के लिए चले गए। सलिल बाहर गार्डन में ही खड़ा हुआ था।

शिव भैया - सलिल तू यहाँ बाहर क्यों खड़ा है ?

सलिल - बस ऐसे ही।

शिव भैया - सलिल तू ठीक है ना ?

सलिल - हम्म।

शिव भैया - मुझे तो नहीं लग रहा। और ये मुँह मोड़ कर क्यों खड़ा है मुझसे ?

सलिल - और तुझे ऐसा क्यों लग रहा है ? कि मैं ठीक नहीं हूँ।

शिव भैया - कौन है वो सलिल ?

सलिल - किसके बारे में बात कर रहा है तू ?

शिव भैया - उसी के बारे में जिसे तू चाहता है।

सलिल ( शिव की ओर बिना देखते हुए ) - क्या बकवास कर रहा है शिव कोई नहीं है ?

शिव भैया - अच्छा ,ऐसा है तो नजरे क्यों नहीं मिला रहा तू ? बता ?

सलिल - शिव , मत पूछ। झूठ मैं बोल नहीं पाउँगा और सच मैं बता नहीं सकता तुझे। ......

शिव भैया - चीनू को चाहता है ना तू ?

सलिल शॉकड होकर शिव को देखते हुए - क्या कह रहा है ?

शिव भैया - सच कह रहा हूँ। मैंने सही कहा ना ?

सलिल - हां , चाहता हूँ मैं चाहत को।

शिव भैया - तूने चीनू को बताया अपने प्यार के बारे में ?

सलिल - दो साल हो गए हैं उसे अपनी फीलिंग्स बताये हुए। पर तेरी बहन मुझे देखना भी पसंद नहीं करती।

शिव भैया - क्या दो साल से प्यार करता है तू चीनू को ?

सलिल - तीन साल से चाहता हूँ मैं उसे। खैर , ये बता तुझे केसै पता चला मेरे प्यार के बारे में ?

शिव भैया - वो आज जब तू गा रहा था तब मुझे तेरी आँखों में दिख गया अपनी बहन के लिए प्यार। और ये मत भूल कि मैं तेरा जिगरी यार हूँ मुझसे कब तक छिपती ये बात ?

सलिल फीकी मुस्कान के साथ - तेरी बहन को छोड़ कर हर किसी को मेरी आँखों में उसके लिए प्यार दिखेगा। एक उसे ही नहीं दिखता।

शिव भैया - सलिल , मैं खुश हूँ की तू चीनू से प्यार करता है। वो तेरे लिए परफेक्ट choice है। और तू चीनू के लिए।

सलिल - तेरे खुश होने से क्या होता है साले ? तेरी बहन तो खुश नहीं है ना ?

शिव भैया - अबे गधा , साला तो तू मेरा है। और बोल मुझे रहा है।

सलिल - मैं तो तुझे अपना साला बनाने के लिए तैयार हूँ। पर तेरी बहन ही नहीं मान रही।

शिव भैया - तो मना ना उसे। क्या सारी ज़िंदगी ये देवदास की तरह sad सांग गाने का इरादा है ?

सलिल - ( खाली आँखों से ) मनाया उसे जाता है जो कुछ सुनने और समझने के लिए तैयार हो। तेरी वो बहन तो अपने दिल को सात तालों के अंदर कैद किये हुए है। तू मदद कर ना मेरी।

शिव भैया - देख सलिल इसमें मैं तेरी कोई मदद भी नहीं कर सकता। पता चले तेरी मदद के चकर में मेरी अपनी बहन से ही अनबन हो जाये। हाँ वो बाकी लड़कियों से अलग है। पर तू कोशिस कर मेरी बहन इतनी भी पत्थर दिल नहीं है कि तेरा प्यार ना मह्सूस कर पाए।

सलिल - तू सही कह रहा है।

शिव भैया - चल सोते हैं चलकर।

सलिल - तू जा मैं आ रहा हूँ।

शिव भैया - मैं जा रहा हूँ। जल्दी आना।

यहाँ मुझे नींद ही नहीं आ रही है। मैंने प्राची की तरफ देखा तो प्राची बड़े सुकून से सो रही है। मैं अपना दुपटा लेकर छत पर टहलने के लिए आ गयी। खुली छत पर मैं यहाँ से वहां घूम रही हूँ पर पता नहीं मन शांत क्यों नहीं है ? क्यों आँखों में नींद नहीं है ?

पीछे से सलिल की आवाज़ आयी - क्यों नींद नहीं आ रही ?

मैं - ( उसकी और मुड़ कर ) आप , अब तक सोये नहीं ?

सलिल - ( मेरी ओर आते हुए ) सोई तो तुम भी नहीं।

मैं - बस ऐसे ही नींद नहीं आ रही है। लेकिन आप क्यों नहीं सोये ?

सलिल - मेरे ना सोने का कारण तुम जानती तो हो।

मैं - भला मुझे कैसे पता होगा ?

सलिल - (मेरे करीब आकर ) अच्छा। जान कर अनजान बन रही हो।

मैं - मुझे कुछ नहीं पता।

सलिल - (मेरे दोनों हाथों को पकड़ कर ) क्या तुम्हे मेरी मोहब्बत अपने लिए नहीं दिखती ? मेरी बेचैनी जो बढ़ती ही जा रही है तुम्हे नहीं दिखती ?

मैं - (अपने हाथ छुड़ाकर ) कोनसी मोहब्बत ? आप तो मेरी और देखते तक नहीं हैं। आज अचानक से ये मोहब्बत कैसे जाग गयी ?

सलिल - ( मुझे अपनी और खींच कर अपनी बाँहों में लेते हुए ) मैंने तुम्हरी तरफ एक दो बार क्या नहीं देखा तो तुम्हे इतना चुभा। मेरा सोचो , मेरा क्या हाल होता होगा जब तुम मेरी अनदेखी करती हो ?

मैं - (उसके हाथों से निकलने की कोशिस करते हुए ) आप मुझे छोड़िये। नहीं तो मैं आप पर हाथ उठा दूंगी।

सलिल - नहीं छोड़ रहा। उठाओ किसने रोका है। (मेरा हाथ अपने सीने पर रखते हुए ) देखो , कितनी जोर से धड़क रहा है ये दिल।

मैं - (अपना हाथ सलिल से छुड़ाते हुए ) डॉक्टर को दिखाएँ अपना दिल। वही इसका इलाज़ कर सकता है।

सलिल ( हँसते हुए ) - इस दिल का इलाज़ तुम हो जान। डॉक्टर क्या करेगा ?

मैं - आप आ गए फिर से अपनी हरकतों पे। मुझे तो लगा था कि इस एक साल में आप भूल गए होंगे सब।

सलिल - तुम्हे तो मैं मर कर भी नहीं भूल सकता। इस एक साल में तो मेरे मन में तुम्हारे लिए चाहत और बढ़ गयी है।

मैं - आप छोड़ो मुझे।

सलिल - बिलकुल नहीं। एक साल बाद मिली हो ऐसे कैसे छोड़ दूँ।

मैं - अच्छा , तो ये बताए। मुझ से इतना ही प्यार है आपको तो वो रूडली बात क्यों की थी मुझसे ?

सलिल - ( मेरे गाल को छूते हुए ) अच्छा , याद करो। तुमने क्या कहा था फ़ोन पर कि प्राची तू अपने भाई को मेरी और से विश कर देना। मुझे बहुत गुस्सा आया इसलिए मैंने तुमसे भी अनजान की तरह बात की।

मैं - और वो बैडमिंटन मैच क्यों हारे जान -बुझ कर ?

सलिल - ( हल्का सा मुस्कुरा कर ) तुम्हारी सुई वही अटकी हुई है। अब तक।

मैं - हाँ मुझे सच जानना है। बताओ ? आपने ऐसा क्यों किया ? आप क्यों हारे ?

सलिल - किसने कहा मैं हारा ? तुम्हारे जीत में ही मेरी जीत है। तुम जीती मानों मैं जीता। जब दिल ही तुम्हारे सामने हार गया तो मैच तो छोटी सी चीज है।

मैं - आप मैच जीत कर मेरा साथ मांग सकते थे। आपने मौका गवा दिया।

सलिल - मांग सकता था। पर मुझे वो साथ नहीं चाइये जिस में तुम्हारी मर्जी ना हो।

मैं - ( बूत बन कर उसकी ओर देखे ही जा रही हूँ। )

सलिल - (मेरे कान के पास आकर धीरे से ) यूँ ही देखती रही तो मुझे ना नहीं कह पाओगी।

मैं - (खुद को सम्हालते हुए ) मुझे सोना है छोड़िये।

सलिल ( मेरे माथे को अपने होठों से छूकर ) सो जाओ। किसने मना किया है ? ( इतना कहते ही सलिल ने मुझे अपने गले से लगा लिया। )

मेरे अंदर सलिल की छुअन से अजीब सी हलचल हो रही है। फिर भी मैंने हिम्मत करके अपने आप को उससे छुड़वाया। और दौड़ कर अपने कमरे में आ गयी। मेरी साँसे मुझे ही सुनाई दे रही हैं।

मैं (खुद से ही ) - आज एक साल बाद सलिल के पास आने से मुझे इतना बुरा क्यों नहीं लगा ? क्यों जब मैं उसकी बाँहों में थी तो मैं उस पर हाथ नहीं उठा पायी ?

सलिल के पास आ जाने से मन में सवाल और बेचैनी दोनों ही आ गए थे। ना जाने कब सोचते -सोचते आँख लग गयी। सुबह जल्दी से तैयार होकर सब शॉपिंग के लिए निकल पड़े।

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