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चाहत - 5

पार्ट -5

कॉलेज के बाद मैं और नेहा उसका जरुरी सामान लेकर घर आ गए थे। भैया -भाभी बहुत खुश थे कि नेहा हमारे साथ एक वीक रहेगी। भाभी ने नेहा को गेस्ट रूम में शिफ्ट कर दिया था। अब डिनर के बाद मैं और नेहा छत पर बैठकर गप्पे मार रहे हैं।

मैं -नेहा ,मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि हम इतनी जल्दी दोस्त बन जायेंगे।

नेहा -सोचा तो मैंने भी नहीं था कि तुम जैसी अपने में ही खोये रहने वाली लड़की ऐसे सबसे घुल -मिल जाएगी।

मैं -अच्छा जी। मेरा मजाक उडा रही हो......

नेहा -कुछ भी समझ सकती हो ........

ये कहने के बाद नेहा और मैं ज़ोर से हॅसे।

मैं -देख नेहा ,कितनी अजीब बात है। सुमन को अमन से प्यार हो गया।

नेहा -हाँ। अजीब तो है। कैसे हमने अमन का बैंड बजाया था ? उसकी वो शक्ल मुझे अब तक याद है।

मैं -याद तो मुझे भी है। बस अब वो खुश रहें हमेशा।

नेहा -वो दोनों खुश ही रहेंगे।

मैं -नेहा ,कहाँ सुमन विश्वामित्र के पीछे पड़ी थी और कहाँ एकदम से अमन ?

नेहा -सुमन का सलिल पर बस क्रश था जो धीरे -धीरे कम हो गया।

मैं -शायद।

नेहा -वैसे भी सलिल तो किसी और को चाहता है।

मैं -पर प्राची तो मना कर रही थी।

नेहा -हाँ वो सच ही कह रही है। पहले इतने सालों में मैंने भी कभी सलिल को किसी लड़की के साथ ना देखा और ना सुना।

मैं -इतने सालों से मतलब ?

नेहा -मैंने अपनी ग्रेजुएशन इसी कॉलेज से की है। सलिल और तेरे शिव भैया भी यहीं से ग्रेजुएट हुए हैं। वो हमेशा से मेरे सीनियर्स रहे हैं। दोनों ही अच्छे इंसान हैं। मैंने कभी भी उनके बारे में कोई गलत बात नहीं सुनी।

मैं -तो तुम तो उनकी दोस्त पहले से होगी।

नेहा -नहीं ,ये तो हम सब अभी इसी साल दोस्त बने हैं।

मैं -फिर तुझे कैसे पता सलिल किसको चाहता है ? हम सब तो नहीं जानते।

नेहा -अपना -अपना नज़रिया है देखने का। वैसे तुम जानती हो उस लड़की को।

मैं -अच्छा !कौन है ?

नेहा -तुम।

मैं -(कुछ देर बाद ) पी रखी है क्या ?

नेहा -नहीं। वो जिस तरह से तेरी ओर देखता है किसी को भी पता चल जाये कि वो तुजे चाहता है।

मैं -पर मैंने तो कभी नहीं देखा उसे अपनी ओर देखते हुए।

नेहा -अब तू किसी की ओर देखे तो पता चले ना.....

मैं -नेहा ,ये तेरा वहम है।

नेहा -चल देखते हैं। कौन सही है।

मैं -ओके। चल अब सोते हैं। (फिर हम अपने -अपने कमरे की ओर चल दिए। )

मैं अपने रूम में जाकर सोचती हूँ क्या नेहा ने जो कहा वो सच है ? फिर अगले ही पल सोचती हूँ वो पागल कुछ भी कहती रहती है। फिर आराम से अपनी नींद की दुनिया में प्रवेश किया। सच में सारी चीजें नींद के आगे बेमानी सी लगती हैं।

मॉर्निंग की शुरुआत भाभी की चाय से करो तो सारा दिन थकान होती ही नहीं। हम सब नास्ता कम्पलीट करके हॉल में बैठे हैं। भैया हॉस्पिटल गए हैं। नेहा ,मैं और भाभी अपनी बातों में मशगूल हैं। तभी door बेल बजती है।

भाभी -कौन आया होगा ?

मैं -भाभी मैं देखती हूँ। (मैं जाकर दरवाजा खोलती हूँ। तो सामने सलिल खड़ा है। )

सलिल -हेलो !

मैं -हेलो !आप यहाँ ?

सलिल -अंदर नहीं आने को कहोगी ?

मैं -आइये। (सलिल अंदर आ जाता है )

सलिल -नमस्ते भाभी ! हेलो नेहा !

भाभी -नमस्ते ! बैठो। मैं tumahre लिए कॉफ़ी लती हूँ। (भाभी किचन में चली जाती हैं )

नेहा -हे सलिल आप यहाँ कैसे ?

सलिल -शिव के यहाँ आया था।

(भाभी भी कॉफी लेकर आ जाती हैं और सलिल को देती हैं। )

भाभी -और सलिल अचानक यहाँ कैसे ?

सलिल -थैंक्स भाभी ! कॉफी अच्छी है। मैं शिव की फॅमिली को होली की पार्टी के लिए invite करने आया था। हालांकि मैंने चाहत को कॉलेज में invite किया था। फिर भी प्राची ने दोबारा आप सब को आने के लिए कहा है।

भाभी -थैंक्स ! आप लोगों ने हमे परिवार माना। पर मैं और राघव तो नहीं आ पाएंगे। लेकिन चीनू और नेहा जरूर आएंगी।

(मैं मन ही मन सोच रही हूँ भाभी ने मुझसे पूछा तक नहीं और हाँ बोल दिया। )

सलिल -ओके ,भाभी। मैं अब चलता हूँ कल के लिए तैयारी भी करनी है।

भाभी -चीनू ,सलिल को बाहर तक छोड़ कर आओ।

मैं -नेहा ,चल तू भी साथ में। (फिर हम दोनों महाशय को बाहर तक छोड़ कर आये। )

आज होली है। सुबह से ही नेहा पूरे घर में ज़ोर -ज़ोर से चिल्लाए जा रही है -बुरा ना मानो होली है। भाभी और भैया भी बहुत खुश हैं घर में इतने शोर -शराबे से। भाभी और भैया ,भैया के किसी सीनियर के यहाँ पार्टी में जा रहे हैं। बचे मैं और नेहा। नेहा तो प्राची के यहाँ जाने के लिए बार -बार घडी को देखे जा रही है। मेरा मन नहीं है पार्टी में जाने का। मैं वैसे भी होली नहीं खेलती हर होली अपने ही कमरे में छुपी रहती हूँ ताकि कोई रंग न लगा दे।

नेहा -हम कब जायेंगे प्राची के घर ?

मैं -मेरी तबियत ठीक नहीं है। तुम शिव भैया के साथ चले जाना।

भैया -क्या हुआ गुड़िया ?

मैं -कुछ नहीं भैया। बस थोड़ा सर दर्द है।

भाभी -तो मैं पार्टी में जाना कैंसिल कर देती हूँ।

मैं -नहीं भाभी आप जाओ। मैं आराम कर लुंगी।

नेहा -अब तेरे बिना क्या मजा आएगा पार्टी में ?

मैं -ड्रामा मत कर। बाकी सब तो होंगे ना वहां पर।

काफी समझाने के बाद नेहा शिव भैया की फॅमिली के साथ प्राची के यहाँ गयी। भैया और भाभी भी पार्टी के लिए निकल गए हैं। मैं दरवाज़ा बंद करके अपने रूम में आयी।

मैं -अभी तो 12 ही बजे हैं। क्यों न थोड़ी देर सो जाऊं।

चारों और पानी के टब भरे हुए हैं। गुलाल के थाल सजे हुए हैं। बहुत सारे लोग होली खेल रहे हैं। मैं एक कोने में अकेली खड़ी हूँ। तभी कोई पीछे से मेरे गालों पे रंग लगा देता है। मैं मुड कर देखती हूँ तो सलिल मेरे पीछे खड़ा हुआ मुस्करा रहा है। ज़ोर की फ़ोन की आवाज़ से आंखे खुलती हैं तो ख्याल आया कि ये सपना था। मैं फ़ोन उठाती हूँ -हेलो भाभी।

भाभी -चीनू तेरी तबियत ठीक है ना ?

मैं -हाँ मैं ठीक हूँ। आप पार्टी एन्जॉय कीजिये। टेंशन मत लीजिये। (ये कहकर मैंने फ़ोन काट दिया और टेबल पर रख दिया। )

फिर चेयर पर बैठकर सोचा यार ये हो क्या रहा है। दिन -दहाड़े ये विश्वामित्र मुझे क्यों दिख रहा है। खुद को समझाते हुए लगता है सच में मुझे सर दर्द है जो ऐसे सपने आ रहे हैं।

मैं -(खुद से ही ) डांस कर लेती हूँ। कुछ अच्छा लगेगा।

फिर मैंने अपने घुंघरू बांधे और म्यूजिक ऑन किया। गाना लगाया madhuri जी का " नच ले मेरे यार .........". आज मैं डांस तो कर रही थी पर दिमाग सपने में ही उलझा हुआ है। तेजी से घूमते -घूमते मैं ना जाने किसी से टकरा गयी। चोट के डर से आंखे ही बंध हो गयी। धीरे से आँख खोली तो मेरा सर किसी के कंधे पर है। मैंने गर्दन ऊपर उठा कर देखा तो बस आंखे फटी की फटी रह गयी। सामने सलिल था। (मैं एकदम से पीछे हट गयी और अपना दुपट्टा ठीक किया। )

मैं -आप यहाँ ? कैसे और कब ?

सलिल (हँसते हुए ) ज़रा सांस ले लो। बताता हूँ। मैं शिव के घर की छत पर से होकर tumahre घर आया हूँ।

मैं -आप कब से यहाँ पर हैं ?

सलिल -जब तुम डांस स्टार्ट करने वाली थी तब आया था। पहले मैं खिड़की से तुम्हारा डांस देख रहा था फिर जब तुम गिरने वाली थी तब अंदर आया।

मैं -लेकिन आप यहाँ आये क्यों हो ?

सलिल -तुम तो आयी नहीं मैं ही आ गया। चलो अच्छा ही हुआ इसी बहाने पता तो चला कि तुम इतना अच्छा डांस करती हो।

मैं -आप यहाँ चोरी से मेरे घर सिर्फ डांस देखने आये हैं ?

सलिल -नहीं ,मुझे तुम्हे कुछ बताना था।

मैं -क्या ?

सलिल -(मेरी आँखों में देखते हुए ) मैं तुमसे प्यार करता हूँ। i love u !

मैं -क्या ? ज़रा फिर से कहना ?

सलिल -(आगे बढ़ कर मेरे कंधो पर हाथ रखते हुए ) आई लव यू !

मैं -(उसके हाथों को हटाते हुए ) दिमाग तो सही है आपका ?

सलिल -हाँ बिलकुल।

मैं -पर मेरे मन में आप के लिए कोई भावना नहीं है। मैं तो आपको अच्छे से जानती भी नहीं हूँ।

सलिल -जानोगी कैसे ? देखती तक तो हो नहीं मुझे। बस इग्नोर करती रहती हो।

मैं -मैंने कब आपको इग्नोर किया है ?

सलिल -मुझे पता है लाइब्रेरी में तुम इसीलिए जाती थी कि कहीं मुझसे बात न करनी पड जाये।

मैं -सब पता है फिर ये प्यार कैसे ?

सलिल -मैंने तुम्हें पहली बार मंदिर में देखा था। तब तुम मुझे बहुत अच्छी लगी थी। फिर उस दिन लाइब्रेरी के बाहर। ज्यों -ज्यों वक़्त बीतता गया मेरा दिल tumahra हो गया।

मैं -लेकिन आप तो विश्वामित्र थे। फिर ये अचानक प्यार कैसे ?

सलिल -(हँसते हुए ) तो तुम भी मुझे इसी नाम से बुलाती हो। हाँ ! मैं किसी को पसंद नहीं करता था लेकिन अब मैं तुम्हें करता हूँ।

मैं -पर मैं नहीं करती।

सलिल -(अपनी जेब से कुछ निकालते हुए ) दोनों हाथ मेरे गालों पे रखते हुए हैप्पी होली मेरी चाहत !

मैं -(आईने में देखते हुए ये क्या मेरे पुरे मुँह को लाल कर दिया , गुस्से में अपना हाथ सलिल की ओर उठाते हुए ) हाउ dare u ?

सलिल -(मेरे हाथ को थामते हुए ) रंग ही तो लगाया है।

मैं -पता है मुझे आज तक किसी ने रंग नहीं लगाया। आपकी हिम्मत कैसे हुई ?

सलिल -(मेरे हाथ को चूमते हुए ) अभी तो रंग लगाया है। बहुत जल्द tumahri मांग में सिन्दूर लगाऊंगा।

मैं -(सलिल के छूने से पुरे शरीर में अजीब सा करंट दौड़ रहा था ) मेरा हाथ छोड़ो।

सलिल -अब तुम्हारा हाथ छोड़ने के लिए थोड़ी पकड़ा है ?

मैं -आप से मेरा कोई रिश्ता नहीं है। आप किस हक से मेरा हाथ पकडे हुए हैं ?

सलिल -तुम्हारे होने वाले पति के हक से।

मैं -पति ! किसने कहा मैं आपसे शादी करूंगी ?

सलिल -मेरे दिल ने।

मैं -आप हाथ छोड़िये मेरा। और अपनी खुशफहमी से बाहर आइए।

सलिल -(हाथ को छोड़ते हुए ) अभी मैं जल्दी में हूँ। लेकिन याद रखना हाथ तो मैं तुम्हारा कभी नहीं छोडूंगा।

मैं -अभी आप मेरे घर से निकलिए।

सलिल -जा रहा हूँ। (तभी जाते हुए मेरी ओर मुड़ कर) वैसे खुले बालों में तुम ज्यादा अच्छी लगती हो। (ये कहकर वो चला जाता है )

मैं -(उसके जाने के बाद अपना सर दोनों हाथों से पकड़कर बेड पर बैठ जाती हूँ। ) यार ,ये मेरे साथ हो क्या रहा है ?उसे पूरे कॉलेज में मैं ही मिली थी क्या ? मैंने तो मंदिर जाकर मुसीबत ही मोल ले ली। ना मंदिर जाती और ना ये कबाड़ा होता।

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