उमंग - संक्राति काल डॉ अनामिका द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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उमंग - संक्राति काल

परशुराम का तेज
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शस्त्र,शास्त्र दोनों बल हैं
इससे मानव रचता है इतिहास
मानवता जब पूजी गयी
हुआ तम का ह्रास
रक्षक बने परशुराम
दधीचि की हड्डियों का करते
नित्य अभिषेक
हड्डी अमूर्त थीं
मूर्त दिखा धनुधारी का वेश
स्वंयवर चयन में जब प्रचंड टंकार हुआ
तब परशुराम का अद्भुत दिखा प्रवेश
क्रोध अधिक था किंचित प्रश्न उपजा मन में
प्रत्यक्ष राम के तेजस्वी रूप बल ने
स्थापित किया उत्तर का अवशेष
~डॉ रीना'अनामिका'

तिरंगा कफन चाहिए
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उजबक परिस्थितियों को कर सकें हम नियंत्रित
सूझ बूझ का हो पारखी ऐसे युवाओं का
अब देश को आधार चाहिए.
उनके उत्साह में कोई कमी न हो
धरा के खातिर मर मिटेंगे
ऐसा बालक भी समझदार चाहिए. .
‘मैं‘ भी काम आऊं “वतन“ के
मन से कर सकूँ विकारों को दूर
ऐसी सदबुद्धि और विचार चाहिए
बस एक ही ख्वाहिश है मेरी
मेरे मरने पर तिरंगा कफन चाहिए. .
~~~`
जिंदगी को देख सकें करीब से
ऐसा मन क्रम और वचन चाहिए. .
चुनौतियों से चुनौतियों को मात दें सकूं
ऐसे जुनून का अरमान चाहिए. .
...
देश सेवा का व्रत हो मेरे लहू के कण कण में
अरिदल से लड़ सकूँ हर क्षण
...
झूठा न कोई अभिमान चाहिए
बस इक ही ख्वाहिश मेरी
मेरे मरने पर तिरंगा कफन चाहिए. ..
डॉरीना 'अनामिका'


मंहगाई की शक्ल
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मंहगाई की शक्ल से बाजार भर गया
थैलियों में साग सब्जियां कम, दवाई भर गया.
......
कोई भी पूछ लेता है चौराहे पर सरेआम,
परिवार का हाल...
कह पड़ते हैं लोग... हाल बेहाल हो गया.
.....
लोग एक दुसरे को सलाह दे रहें हैं सकारात्मक रहा करो
भयभीत हैं मन ही मन ...
सभी का ख्याल भी नकारात्मक हो गया.

वर्तमान में कोरोना से जीना दूभर हो रहा था..
अब सवाल जवाब दे रहा था,
पर लोग हो रहें स्वयं हताश..

---- डॉरीना "अनामिका"


माँ लेखनी है

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क्या कहूँ?
माँ अर्थात संपूर्णता
माँ अर्थात सुरक्षा
माँ अर्थात पालन
माँ अर्थात दया
माँ अर्थात क्षमा
माँ अर्थात ममता
माँ अर्थात सबकुछ
और कोई शब्द ही नहीं “माँ “
मेरे शब्दकोश में.

~~

माँ ही लेखनी है
माँ शब्द ही स्वंय लेखनी है
उसी ने लिखा है मुझको
आप सभी को..
और.
उसकी तूलिका में सभी रंग है
जिससे लिखा करती है भविष्य हम सबका
..
फूल की रंगत सा स्वर्णिम आभा बिखेर देती है जीवन में..
ममता, समता, दया, क्षमा, सब हैं इसके हथियार..
..
ठोक पिटकर हाड़ मांस के इस लोथड़े को..
दे देती सुंदर सा आकार.
..
कब वह रूकती है, कब वह थकती है
परिंदों सा जोश भर देती है
----डॉरीना'अनामिका'
#मातृशक्ति


नारी तू समता है
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शब्द नहीं है नारी हेतु
इतने सुंदर हैं उसके संस्कार
ममता, समता, दानपुण्य का खाता
सबकुछ है उसके अख्तियार
धरा, बही, सही, सबकुछ
है जननी. ..
इसके बगैर सूना संसार
# डॉरीना'अनामिका'
----अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

मजदूर
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टेढे़ मेढे़ शक्ल के पत्थरों को
तोड़कर,काटकर
नया आकार देकर
भविष्य की संरचना करता
हर पल..
प्रतिक्षण..
उसे ईश्वर कहूँ
या कहूँ शिल्पकार.
उसे लोग मजदूर कहतें हैं
पर वह है ईश्वर के बाद का
नया विस्तार..
पल पल देता धरा को एक नया आकार
#मजदूर_दिवस
# डॉरीना'अनामिका'

व्यथित लोकतंत्र

______ _____
क्या करे कोई
जब दूर षड्यंत्र हो..
मन व्यथित हो
पर लोकतंत्र हो..
प्राण से बढकर
बदले की भावना
हर ओर स्वतंत्र हो...
मचा हो घमासान
ह्रदय में..
काली धुंध सा जटिल
जीवन तंत्र हो..
कोई तो उपाय होगा
जिससे हर ओर बसंत हो
#डॉरीना 'अनामिका'

कड़वा
वक्त बहुत गहरा है,अवसाद का सेहरा है..
ज़ख्म अभी भरा नहीं,जहर पर पहरा है..
~~
परख क्यों न हो जौहरी की..
पल पल वह देखे सोने का तार..
~
सत्य कहूँ पर कड़वा लगेगा
~
बिना मिलावट कब बनता है
जड़ाऊ बेशकीमती सोने का हार..

#डॉरीना'अनामिका'