पार्ट - 15
सलिल का चूरमा नाम पड़ने की कहानी पर हर कोई ठहाके मार कर हँस रहा है। सलिल गुस्से में सबको देख रहा है। मैं तो ये सोच रही हूँ ये सलिल इतना भोला -भाला भी हो सकता है कभी ? मुझे तो शक्ल से ही चालाक लगता है।
सलिल - बस करो सब। क्या दांत दिखा रहे हो ?
दादू - अच्छा ,भाई। बहुत हुआ मजाक। अब अंदर चलो सब।
सलिल - एक मिनट दादू।
दादू - क्या हुआ ?
सलिल - पहले मुझे मेरी छाया से तो मिलने दीजिये। काका। कहाँ है वो ?
नेहा - अरे , आपकी छाया तो आपके पीछे ही है।
सलिल - (पीछे मुड़ कर apni परछाई को देखते हुए ) मैं इस छाया की बात नहीं कर रहा।
सुमन - फिर किसकी बात कर रहे हैं आप ?
जोर से एक आवाज़ आयी - मेरी।
एक लड़की दिखने में बिलकुल बच्ची सी लेकिन उम्र में 20 साल के करीब दौड़ती हुई आयी ओर सलिल के गले लग गयी। सलिल भी बड़ी खुशी से उसे गले लगाए हुए उसके सर पर हाथ फेर रहा था।
सलिल - ( अपने से दूर करते हुए ) कहाँ थी तू अब तक छाया ?
छाया - भैया ,मैं अंदर कुछ काम कर रही थी।
प्राची - छाया , अपनी बहन से नहीं मिलना क्या ?
छाया - दौड़ कर प्राची से गले मिली। दोनों को देख कर ऐसा लग रहा था मानों बरसो बाद मिल रही हैं।
छाया बारी -बारी से सबसे मिली। हमे दादाजी ने बताया की छाया शंकर काका और शांति काकी की बेटी है। थोड़ी ही देर में हम सब घर के अंदर पहुंचे। घर पूरी तरह से आलीशान ,हर चीज अपनी जगह पर ,सच में ,घर को बड़े अच्छे तरीके से सजाया हुआ था। अब हम सब को अपने -अपने कमरे मिल गए थे। मुझे और प्राची को एक ही रूम मिला था। नेहा को पूजा के साथ रूम मिला था। सुमन को तो अपने मियां के साथ रूम मिला था। थोड़ी ही देर में फ्रेश होकर सब चाय -नाश्ते के लिए आये। सबने चाय -नास्ता किया और सब आराम करने के लिए अपने रूम में चले गए। मैं भी कुछ देर के लिए सो गयी क्यूंकि सफर से बड़ी थकान मह्सूस हो रही थी।
जब आँख खुली तो 9 बज रहे थे। जल्दी से हाथ -मुँह दोए और डिनर के लिए निचे आयी। सब डिनर कर रहे थे। मैंने भी खाना स्टार्ट कर दिया। सच में ,राजस्थानी खाना पहली बार खा रही थी मैं। इतना टेस्टी और इतनी वैरायटी खाने में। पेट भर गया था पर जीभ से स्वाद नहीं जा रहा था। देखने वाली हालत तो शिव भैया की है शांति काकी उन्हें खिलाये ही जा रही है।
शिव भैया - काकी ,बस करे। मेरा पेट भर गया है।
शांति काकी - ऐसे कैसे जमाई सा ! अभी तो आपको और खाना है।
सब शिव भैया की हालत पर हंस रहे हैं। अब कोई कर भी क्या सकता है आखिरकार शिव भैया इकलौते जमाई सा जो ठहरे उनके। अब आवभगत तो बनती ही है। सब ने अपना खाना खतम किया और हॉल में गप्पे मारने के लिए बैठ गए।
दादाजी - सुनो भाई , दो दिन हैं तुम लोगों के पास शॉपिंग और घूमने के लिए। उसके बाद शादी की रस्में शुरू हो जाएँगी।
राजेंदर अंकल - दो दिन में सब अपनी शॉपिंग कर लेना। बाद में मुझे कोई बहाना नहीं सुनना।
आंटी (सलिल की माँ )- जी ठीक है। हम सब कर लेंगे।
दादाजी - (बच्चो से ) अरे तुम बच्चे क्या बड़ों के बीच बैठे हो। सब दोस्त बाहर गार्डन में जाओ। बातें करो।
सुमन - ये हुई ना बात दादाजी।
दादाजी - छाया बेटा , सबको ले जा बाहर।
हम सब सिवाय सलिल के हॉल से उठकर गार्डन में आ गए। छाया ने पहले से ही इंतज़ाम कर रखा था सबके बैठने के लिए। हम सब अपनी -अपनी जगह बैठ गए। मार्च महीने की शुरुआत की मीठी -मीठी ठण्ड ,हल्की -हलकी हवा चल रही है। आसमान में तारे चमक रहे हैं। यहाँ आकर बड़ा ही सुकून मिल रहा है। वरना दिल्ली तो दिन -रात दौड़ती ही रहती है।
छाया - (शिव भैया से ) जीजो सा ! कैसा लगा यहाँ आकर ?
शिव भैया - जी साली साहिबा , हमे तो यहाँ आकर बड़ा अच्छा लगा।
नेहा - वाह शिव भाई ,जीजो सा ! क्या बात है ?
अमन - भाई ,तेरा तो जबरदस्त परमोशन हुआ है डायरेक्ट जीजो सा !
नेहा - (एक पेपर को शिव के सामने फोल्ड करते हुए ) अब इस परमोशन के बारे में कुछ कहना चाएंगे शिव भाई ?
प्राची - नेहा , चल छोड़ क्यों शिव को छेड़ रही है ?
सुमन - हाय ! प्राची क्या बात है ? अभी से शिव की साइड ले रही है।
मैं - (प्राची को छेड़ते हुए ) सच में भई , तू अब पराया धन हो गयी है। लोग सच कहते हैं चाहने वाले के ज़िंदगी में आने के बाद दोस्तों की तो कदर ही नहीं रहती।
पूजा - और नहीं तो क्या ? प्राची तो अभी से अपने मियां की साइड ले रही है।
शिव भैया - अरे बस करो तुम लोग। क्या बेचारी प्राची के पीछे पड़ गए।
नेहा - ओह ...., ओह .... बेचारी हु हूँ ............
आशीष - मतलब मामला दोनों तरफ से सीरियस है।
मैं - हो भी क्यों ना ? लव मैरिज जो है।
नेहा - दोनों का लव भी ऐसा -वैसा नहीं है। बचपन का लव है। (प्राची को कोहनी मारते हुए ) क्यों प्राची ?
प्राची शर्म से लाल हुए जा रही है और सब उसको चिड़ाये जा रहे हैं।
शिव भैया - अरे बस करो तुम लोग। कुछ और करते हैं।
अमन - कुछ और मतलब ?
नेहा - क्यों ना हम लोग अंताक्षरी खेले ?
सुमन - नहीं कुछ और करते हैं। कुछ अलग।
मैं - कुछ और मतलब ? जैसे.....
प्राची - जैसे हमे आज अमन अपनी मैरिड लाइफ के नोक -जोंक भरे किस्से सुनाएगा।
नेहा - उससे क्या होगा ?
शिव भैया - हमे भी तो पता चले अमन और सुमन की नोक -जोक के बारे में।
मैं - पता क्या चलना है भैया ? हर नोक -जोक में सुमन ही जीतती होगी।
अमन - सही कहा तूने चाहत।
आशीष - फिर तू क्या हर नोक -जोक में हार जाता है।
अमन - भाई एक बात नोट कर ले अभी से जीवन में चाइये सब चंगा तो बीवी से नो पन्गा।
अमन की ये बात सब सुन कर जोर से हंस पड़ते हैं। तभी सलिल आता है और कहता है - यार अमन ! बड़ा जल्दी सीख गया तू ये सब।
अमन - भाई कोई और चारा भी तो नहीं है। तू तो जानता ही है मैंने कुछ सुमन से कहा तो इसकी ये तिकड़ी मुझे फिर से ना मार दे।
मैं - अमन ,तुम उस बात से अब तक नाराज़ हो क्या हमसे ? वो तब की बात थी ? अब बात कुछ और है।
अमन - मैं नाराज़ नहीं हूँ तुम सब से। बस मैं ऐसे ही मजाक कर रहा था। और रही सुमन की बात , उससे हारना मुझे अच्छा लगता है।
सुमन -( अमन के गले में हाथ डालते हुए ) वैरी गुड ! मेरे अमन। ऐसे ही रहना।
अमन - क्यों नहीं मेरी सुमन ?
नेहा - हे बेशर्मो। बस करो। हम भी यहाँ बैठे हैं। रोमांस कमरे में जाकर कर लेना।
पूजा - हाँ , अभी कुछ और करते हैं।
आशीष - क्या ?
नेहा - ( आशीष से ) मोटे , चल तू हमे डांस करके दिखा। इसी बहाने तेरा एक -दो किलो वजन कम हो जायेगा।
आशीष - नेहा , तुझे कितनी बार कहा ? मैं मोटा नहीं हूँ बस healthy हूँ।
पूजा - वैसे आशीष , 90 किलो थोड़ा कम ही वजन है तेरा। ऐसा कर 10 किलो और बड़ा पूरी सेंचुरी। ( नेहा को हाई -फॉय देते हुए ) क्यों कैसा लगा आईडिया ?
सब लोगों ने पूजा की बात सुन कर जो छेड़ा है ना आशीष को omg !
आशीष - (चिढ़ते हुए ) चाहत , देख ले ये मेरे साथ क्या कर रहे हैं ?
मैं - यार बस करो। क्यों चिड़ा रहे हो इसे ?
नेहा - चीनू , तू हमेशा इसकी साइड लेती है।
मैं - क्यों ना लूँ ? दोस्त है वो मेरा।
प्राची - दोस्त तो हम भी हैं तुम्हरे।
मैं - हाँ , हो। पर मैंने कब मना किया है ?
शिव भैया - बहुत हुआ हंसी -मजाक। अब कोई अच्छा सा गाना सुनाएगा हमे।
अमन - कौन ?
छाया - मैं जानती हूँ कौन सुनयागा।
आशीष - बताओ भी कौन ?
छाया - सलिल भैया।
नेहा - क्या सलिल को गाना आता है ?
छाया - मेरे भैया को सब आता है सिवाए डांस के।
प्राची - छाया , अब तो भैया डांस भी बड़ा अच्छा करते हैं।
छाया - सच में दीदी।
नेहा - और नहीं तो क्या ? सगाई में क्या नचाया था चीनू ने सलिल को।
मैंने सलिल की और देखा तो वो मुझे ही देख रहा था। मैंने अपनी नजरें दूसरी तरफ कर ली।
छाया - फिर तो चाहत दीदी का कोई जवाब नहीं।
आशीष - क्यों ?
शिव भैया - वो इसलिए क्यूंकि इन महाशय को कोई नहीं नचा पाया था।
प्राची - वो सब छोड़ो , भैया चलो अब एक अच्छा -सा गाना सुना दीजिये।
सलिल - नहीं प्राची ,मैंने कितने साल से नहीं गाया है।
छाया - ( सलिल से ) कुछ भी क्यों ना हो भैया ? आप से अच्छा कोई नहीं गा सकता। plzz !
सलिल - भला तुझे मैंने कभी मना किया है ? अभी सुनाता हूँ।
सलिल अपनी एक पल के लिए आंखे बंद करके खोलता है और गाता है -
कैसे बतायं क्यूँ तुझको चाहें ,यारा बता ना पाहें
बातें दिलों की , देखो जो बाकी ,आंखें तुझे समजायँ
तू जाने ना .....तू जाने ना.............
सलिल की आवाज़ में मैंने दर्द महसूस किया
मिलके भी हम ना मिले तुमसे ना जाने क्यूँ
मीलो के हैं फासले तुमसे ना जाने क्यों
अनजाने हैं सिलसिले तुमसे ना जाने क्यूँ
सपने है पलकों तले तुमसे ना जाने क्यूँ
तू जाने ना ...........
मैं सलिल की ओर देख रही हूँ। सलिल मेरी आँखों में देखते हुए
निगाहों में देखो जो मेरी है बस गया
वो है मिलता तुमसे हूबहू
वो। .. जाने तेरी आंखें थी या बातें थी वजह
हुए जो तुम दिल की आरज़ू
तुम पास होके भी , तुम आस होके भी
अहसास होके भी अपने नहीं
ऐसे हैं हमको गिले तुमसे ना जाने क्यूँ
मीलो के हैं फासले तुमसे ना जाने क्यूँ
तू जाने ना...........
अचानक सलिल ने गाना बंद किया और वहां से उठ कर चला गया।