चाहत - 14 sajal singh द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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चाहत - 14

पार्ट -14

सब लोग डिनर कर रहे हैं। मैं अपनी ड्रेस को साफ़ करने के बहाने से प्राची के रूम में आ गयी। ड्रेस साफ़ करना तो बहाना था। मैं तो सलिल से बात करना चाहती थी। जल्दी से पानी को टिश्यू पेपर से पोंछ कर मैं प्राची के कमरे से बाहर निकली तो देखा सलिल सामने से आ रहा है। वो जैसे ही मेरे पास आया मुझे लगा वो रुक कर बात करेगा मुझसे। लेकिन वो तो मेरे पास से निकल कर निचे जाने ही वाला था कि मैंने उसे आवाज़ दी।

मैं - रुकिए। मुझे आपसे बात करनी है।

सलिल -(मुड़ कर ,मेरी ओर देखते हुए ) मुझसे बात करनी है तुम्हे ?

मैं -हाँ। आपसे।

सलिल -क्या कहना है ? कहो।

मैं -उस दिन के बारे में बात करनी थी।

सलिल -किस दिन के बारे में ?

मैं -उस दिन वाले बैडमिंटन मैच के बारे में बात करनी थी।

सलिल - (मेरी ओर बढ़ते हुए )इसमें बात करने वाली क्या बात है ? तुम जीत गयी थी और मैं हार गया था।

मैं - झूठ ! आप उस दिन जान -बूझ कर क्यों हार गए ?

सलिल - इसमें झूठ क्या है ? और तुम्हे किसने कहा कि मैं जान -बूझ कर हार गया था ।

मैं -मुझे पता चल गया है कि आप उस दिन आराम से शर्त जीत सकते थे। तो हारे क्यों ?

सलिल - (अपनी आंखे बड़ी -बड़ी करके ) हार तो कोई भी सकता है। मैं भी। फिर तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि मैं हार नहीं सकता।

मैं - आप झूठ बोल रहे हो हो।

सलिल - तुम्हें मेरी बात झूठ लगती है तो लगे। इसमें मैं कुछ नहीं कर सकता। और कुछ कहना है ?

मैं - हाँ। मुझे आपसे अभी जवाब चाहिए अपने सवाल का।

सलिल - अगर मैं ना दूँ तो ?

मैं - आप क्यों नहीं देंगे जवाब भला ?

सलिल - (गुस्से में ) तुम देती हो क्या जवाब जो मैं दूँ। एक्सक्यूज़ me ! मुझे तुम्हे जवाब देने के अलावा और भी काम हैं। (इतना कहकर वो निचे चला गया। )

मैं बस उसे जाते हुए देखती रही। और मन ही मन सोचा इतना क्या बदल गया सलिल में ? पहले तो वो मेरी ओर देखने ,बात करने के बहाने ढूंढ़ता था और अब देखो कितने rude तरीके से बात की है उसने। उसका इस तरह से बात करना मुझे बहुत चुभा। कुछ ही पल बाद मैं भी सलिल के पीछे -पीछे निचे आ गयी। सब डिनर के बाद बैठ कर गप्पे मार रहे हैं।

सलिल - दादू ,मैंने बस बुक कर दी है। कल सुबह 9 बजे आने के लिए बोल दिया है।

दादाजी - ये बहुत अच्छा किया तुमने।

शिव भैया - मेरा दोस्त हमेशा अच्छा ही करता है दादू।

नेहा - क्या शिव भाई , अपने दोस्त की बड़ी तारीफ़ किये जा रहे हो।

दादाजी - मेरा सलिल है ही तारीफ़ के काबिल।

दादीजी - भाई साहब। ये तो आपने सच कहा। बस अब ये बताइये कि सलिल की शादी की मिठाई कब खिलाने वाले हैं ?

आंटी (प्राची की माँ )- क्या बताऊँ माँ जी। कितने रिश्ते आते हैं इसके लिए। लेकिन ये और पापा हर रिश्ते को मना कर देते हैं।

दादाजी - (प्राची की माँ से ) बेटा। एक भी रिश्ता मेरे सलिल के लायक नहीं था।

राजेंदर अंकल ( प्राची के पापा )- ऐसे कैसे पापा ? आप दोनों तो लड़कियों से मिलते भी नहीं। और बिना मिले ही मना कर देते हो।

आंटी (प्राची की माँ )- जी , मिलना तो दूर की बात है। ये सलिल तो लड़कियों की फोटो पर भी नज़र नहीं डालता।

मैंने सलिल की ओर देखा जो चेहरे पर बिना किसी एक्सप्रेशन के दीवार की ओर देख रहा था।

दादाजी - हाँ तो ठीक तो है।

प्राची - क्या ठीक है दादू ? आप बोलो ना भैया से की वो शादी के लिए हाँ बोल दे।

सलिल - प्राची , तेरी सादी हो रही है ना। वही बहुत है। मुझे नहीं करनी कोई शादी।

दादीजी - पर सलिल बेटा , शादी तो तुम्हे करनी ही होगी। देखो , तुम्हारा दोस्त शिव भी तो कर रहा है।

दादाजी - अरे बस करो सब। क्यों मेरे पोते को तंग कर रहे हो सब के सब। वैसे भी मैंने अपने पोते के लिए लड़की ढूंढ रखी है।

सब एक साथ - क्या ? कौन है वो ?

दादाजी - (मेरी और देखते हुए ) सही समय आने पर बता दूंगा। अब सब मिलकर कल के लिए तैयारी करो। कल जल्दी निकलना है हम सबको।

हम सब प्राची के घर से अपने घर आ गए। आते ही फ्रेश होकर सबने अपनी पैकिंग स्टार्ट कर दी। मैंने अपनी पैकिंग करके नेहा की हेल्प करनी शुरू कर दी। अब मैंने और नेहा ने अपने दोस्तों को सुबह जल्दी आने के लिए बता दिया था।

नेहा - चीनू , आज ये तेरी शक्ल को क्या हुआ है ?

मैं - क्या हुआ है ?

नेहा - देख अपने चेहरे को इस पर कोई ख़ुशी ही नहीं है। कुछ तो बात है।

मैं - कोई बात नहीं है। अपना दिमाग मत दौड़ा। चल सो जा सुबह जयपुर के लिए निकलना है।

नेहा - ओके ! गुड नाईट !

मैं - गुड नाईट ! (इतना बोलकर मैं अपने कमरे में आ गयी। )

सलिल का घर -

यहाँ सलिल अपने दादू से बात कर रहा है।

सलिल - दादू। आपको तो सब पता है फिर आपने ये सबके सामने लड़की ढूंढ ली आपने मेरे लिए ऐसा क्यों कहा ?

दादू - अरे तुम्हे सबकी बातों से बचाने के लिए कहा था।

सलिल - फिर ठीक है। मुझे लगा आप ने सच में लड़की ढूंढ ली है।

दादू - हाँ ,लड़की तो ढूंढ ली है मैंने।

सलिल - क्या ??????????

दादू - हाँ ,

सलिल - (मायूस होकर ) आपको तो सब पता है। फिर भी आप ऐसा कह रहे हो ?

दादू - (हल्का सा हँसते हुए ) मजाक कर रहा था मेरे शैलू।

सलिल - सच कह रहे हो ना ?

दादू - हाँ ,बेटा। वैसे भी मुझे तुम्हारे लिए चाहत ही पसंद है। अब तुम बताओ तुम्हारी लव स्टोरी कहाँ तक पहुंची ?

सलिल - दादू , मैं तो आज भी उसी का इंतज़ार कर रहा हूँ। पर वो.........

दादू - पर क्या ?

सलिल - वो वही अपनी ज़िद्द पर खड़ी है। आप बताएं दादू क्या कमी है मुझमे ?

दादू - कोई कमी नहीं है तुममे।

सलिल - (आँखों में नमी लेकर ) दो साल हो गए हैं दादू मुझे अपने प्यार का इज़हार किये हुए उससे। आप बतायं क्या करूं मैं उसे अपने प्यार का यकीन दिलाने के लिए ? कई बार मैं सोचता हूँ कि मैंने एकतरफा प्यार कर लिया है उससे ।

दादू - तू उदास मत हो। वो भी एकदिन तुम्हारे प्यार को समझेगी। अब देख हम जयपुर जा रहे हैं , वहां शादी के माहोल में तुम उसका प्यार जीतने की कोशिस करना।

सलिल - जी दादू।

दादू - चल अब सो जा। गुड नाईट !

सलिल - ओके ! दादू। गुड नाईट !

( सलिल अपने प्यार के बारे में सोचते हुए अपनी सपनो की दुनियां में चला गया। )

यहाँ मेरी आँखों में तो दूर -दूर तक नींद नहीं है। मैं अपनी खिड़की से आसमान को देख रही हूँ। पापा और माँ के जाने के बाद जब भी अकेलापन महसूस होता तो मैं आसमान में उनकी मौजूदगी मह्सूस कर उनसे बात कर लेती। मैं आसमान में पापा को देख कर - पापा। आपको पता है अगर आप ज़िंदा होते तो मैं आपको सलिल के बारे में आपको सबसे पहले बताती। वो कहता था कि उसे मुझसे प्यार है। लेकिन आज तो उससे बात करके ऐसा लगता है कि वो सिर्फ मुझे बेवकूफ बना रहा था कोई प्यार नहीं था उसे मुझसे। ठीक ही है पापा कि उसने अपने कदम पीछे हटा लिए वरना आप बताइये कि मुझ जैसी लड़की से कौन रिश्ता रखना चाएगा , जो अपनों को ही नहीं बख्शती। सब की खुशियों की दुश्मन हूँ मैं................

फिर भी पता नहीं पापा आज मुझे सलिल की बेरुखी इतना क्यों खल रही है ? क्यों मुझे उसकी बातों से दर्द हो रहा है ? क्यों मुझे बुरा लगा जब सलिल ने आज मुझे प्यार भरी नजरों से नहीं देखा ? फिर ना जाने कब खिड़की पर सर रख कर सो गयी।

सुबह हो चुकी है। सब जयपुर निकलने के लिए तैयार है। सुमन ,अमन ,आशीष और पूजा भी आ चुके हैं। बस अब बस आनी बाकि है। बस भी 9 बजते ही आ पहुंची। बस में से सलिल का परिवार निचे आया और सब से मिला। मैंने आशीष और पूजा को भी सबसे मिलवा दिया। हम सब ने अपना सामान बस में रखा और जयपुर के लिए निकल पड़े। सब सफर को एन्जॉय करने के लिए बारी -बारी से गा रहे हैं। जब सब अपना मिक्सउप गाकर थक गए तो कोई सो रहा है ,तो कोई गप्पे मार रहा है। मैं तो खिड़की के पास बैठकर बाहर रास्ते को देखे जा रही हूँ। आज पहली बार जो मैं राजस्थान जा रही हूँ। दिल्ली की भीड़ -भाड़ से कितना अलग है ये राज्य। यहाँ के लोगों का पहनावा कितना uniuqe है। जो किसी को भी अपनी और आकर्षित कर ले।

5 घंटे के सफर के बाद हम जयपुर पहुंचे। देखने में इतना सुन्दर की क्या कहूं ? आखिर में बस सलिल के पुस्तैनी घर में आकर रुकी। हम सब निचे उतरे तो ढोल से हमारा स्वागत हुआ। सब पर फूल बरस रहे हैं। जब मैंने घर देखा तो देखती ही रह गयी। बाहर से एकदम किसी राजा का महल लग रहा था वो भी राजस्थानी लाल पत्थर से बना हुआ। घर के बाहर इतना -बड़ा गार्डन ,गार्डन में फाउंटेन , गार्डन में खिले हुए फूल किसी को भी अपनी ओर मोहित कर ले। तभी एक दम्पति हमारे पास आये। वो देखने में 50 साल के करीब लग रहे थे। उस दम्पति ने सलिल के दादाजी के पैर छुए और आशीर्वाद लिया।

दादाजी - ( सब से ) ये मेरा शंकर है। ये और शांति ही घर को सम्हालते हैं।

शंकर और शांति जी - (सब से हाथ जोड़ कर ) कमागणी सा !

नेहा - इसका मतलब क्या होता है?

प्राची - अरे नेहा , ये मारवाड़ी में नमस्ते बोल रहे हैं।

सब ने उनसे अच्छे से बात की और हाल- चाल पूछा। शंकर और शांति जी ने दादीजी से भी आशीर्वाद लिया।

शांति जी -( सलिल की माँ से ) बाई सा ! सलिल कहाँ है ? दिखा नहीं।

आंटी (सलिल की माँ ) -(हँसते हुए ) सब्र कर शान्ति। आया है तेरा सलिल। बस से सामान निकाल रहा है।

शंकर जी - मैं मदद करता हूँ सलिल की सामान उतरवाने में।

दादाजी - शंकर , तुम रहने दो सामान उठाने को। स्टाफ उठा लेगा। तुम सबको अंदर ले चलो।

जैसे ही हम लोग दो कदम अंदर की ओर चले पीछे से जोर से आवाज़ आयी - लगता है कोई अपने चूरमे को भूल गया है ?

सब पीछे की ओर मुड़े तो सलिल हाथ बांधे मुँह फुलाए खड़ा था।

शांति जी - (भागती हुई सलिल के पास गयी , अपना हाथ उसके सर पर फेरकर ) मेरा चूरमा , कैसा है तू ?

सलिल - मुझे नहीं बात करनी आपसे ?

शांति जी - देखो तो , कितना लम्बा हो गया है। लेकिन मुँह वैसे ही फुलाता है। अब बता नाराज़ क्यों है ?

सलिल - काकी। आप और काका मुझे भूल गए इसलिए मैं नाराज़ हूँ।

शंकर जी - अरे , नहीं सलिल। बताओ हम दोनों भला तुम्हे कभी भूल सकते हैं ?

शांति जी - देख चूरमे ! ज्यादा गुस्सा किया तो मैंने जो दालभाटी चूरमा तेरे लिए बनाया है वो मैं मेरी प्राची को खिला दूंगी। फिर ना कहियो कि काकी आप मारे से प्यार नहीं करती।

दादाजी - देख ले सैलू ? मान जा वरना नुकसान तेरा ही है।

आंटी (सलिल की माँ ) -सलिल ,शांति ने तेरे बारे में पूछा था। नाराज़ ना हो अब अपनी काकी से।

सलिल - ठीक है मान जाता हूँ। लेकिन मेरी एक शर्त्त है।

शांति जी - बोल क्या शर्त्त है ?

सलिल - आप मुझे रोज अपने हाथ से दालभाटी चूरमा खिलएंगी।

शांति जी - मान ली तेरी शर्त्त। अब खुश ?

सलिल -(हँसते हुए ) अच्छा ,काकी। (शांति जी के पैर छूकर ) अब अपने चूरमे को आशीर्वाद दीजिये।

शांतीजी - ( सलिल के सर पर हाथ फेरते हुए ) खुश रह महारा चूरमा। खूब तररकी कर !( सलिल उठ कर शांतीजी के गले लग गया। )

सलिल - (शंकरजी के पैर छूते हुए ) काका। आप भी आशीर्वाद दीजिये अपना।

शंकरजी - (सलिल को छूते हुए ) बेटा जीवन में खूब नाम कमा ! (सलिल अब शंकर जी के गले लगा और ज़ोर -ज़ोर से हसे जा रहा है। )

सलिल - काका ,आप कैसे हैं ? और बताइये मेरी काकी का ख्याल रखते हैं या नहीं ?

शंकरजी - अरे ,तेरी काकी का ख्याल ना रखूं मैं भला ऐसे हो सकता है ?

उनकी ये बातें सुनकर हर कोई हसे जा रहा था। मेरे लिए तो सलिल का ये हंसना -मिलना ,बड़ों की रिस्पेक्ट करते देखना बिलकुल ऐसा था जैसे मैं पहली बार सलिल को देख रही हूँ।

शिव भैया - (हँसते हुए ) अरे , सलिल तूने बताया नहीं हमे आज तक कि तेरा नाम चूरमा है।

सलिल - चुप कर तू। इस नाम से मुझे सिर्फ काकी बुलाती हैं।

अमन - पर यार। तेरा नाम चूरमा कैसे ?

सलिल - शट अप अमन !

आंटी (सलिल की माँ ) - मैं बताती हूँ। बचपन में सलिल सिर्फ चूरमा ही खाता था। और शांति का पल्लू पकड़ कर अपनी तोतली जुबान में ऐसे चिल्लाता था - काकी चुलमा दो ,चुलमा दो। तब से शांति प्यार से सलिल को चूरमा ही कहती है।