Karn Pishachini - 10 books and stories free download online pdf in Hindi

कर्ण पिशाचिनी - 10



भाग - 5

विवेक की मां भगवान की मूर्ति के सामने से उठ ही नहीं रही हैं । केवल गुरु महाराज शांत व स्थिर हैं ।
अंत में सभी को आश्चर्य करते हुए रात में लगभग साढ़े तीन बजे ममता के पिता जी का फोन आया । वो सभी तथा कुछ रिश्तेदार आधे घंटे में ही विवेक के घर पर आ रहे हैं । यहीं से सभी एक साथ गुरु महाराज के घर जाएंगे । अचानक ही सभी मानो जीवित हो उठे । तय हुआ कि विवेक के माता- पिता , दीदी व जीजाजी के अलावा कुछ रिश्तेदार साथ में जाएंगे । बाकी इसी घर में रुके रहेंगे ।
गुरु महाराज ने किसी को फोन लगाकर सबकुछ व्यवस्थित रखने का आदेश दिया । सुबह के 5 बजे सभी रवाना हुए और लगभग 9 बजे के आसपास सभी गुरु महाराज के गांव वाले घर पर पहुंचे । गुरु महाराज के कार में विवेक और ममता थे और साथ में विवेक की माँ और जीजाजी भी थे । पूरे रास्ते ममता सो रही थी । विवेक जानता है कि ममता मन ही मन बहुत ही गुस्सा है इसीलिए उससे कुछ भी नहीं पूछा ।
गुरु महाराज का घर बड़ा व पुराने जमाने के घर जैसा है । घर की देखरेख करने के लिए आदमी हैं और उनका परिवार भी है । इसके अलावा गुरु महाराज के कुछ शिष्य भी हैं देवी कालचंडी की आराधना करने के लिए । देवी कालचंडी इस परिवार के पूर्वज द्वारा 300 साल पहले स्थापित देवी काली की मूर्ति है । गुरु महाराज के परदादा के दादा और भी पूर्व पुरुष सिद्ध तंत्र साधक थे । उनके ऊपर देवी महाकाली की कृपा थी । उनके एक पूर्व पुरुष को एक मंदिर स्थापित करने का स्वप्नादेश मिला था तब उन्होंने यहां आँगन में देवी काली की मूर्ति को देवी कालचंडी नाम से स्थापित किया था ।

गुरु महाराज ने विवेक और ममता को स्नान कर लेने को कहा । स्नान समाप्ति के बाद पहले विवेक को लेकर मंदिर के अंदर चले गए और दरवाजा बंद कर दिया । गुरु महाराज ने लगभग 1 घंटा यज्ञ करने के बाद विवेक के हाथ में एक कवच बांध दिया । और विवेक को सख्त आदेश दिया कि वह ममता से इस वक्त ना मिले और ना ही बात करे । उसके बाद गुरु महाराज ममता के पास चले गए ।
विवेक को यह सब कुछ बहुत ही अद्भुत लग रहा था । ममता को देखने का आज उसे बहुत मन हो रहा है । ममता के प्रति आज उसे एक जबरदस्त खिंचाव महसूस हो रहा है लेकिन इससे पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ था । दूसरी तरफ उसके मन में ममता से ना मिलने की एक सोच भी अपना शक्ति प्रदर्शन कर रहा है । विवेक के मन में एक अद्भुत युद्ध चल रहा है । लेकिन कुछ भी हो गुरु महाराज की बातों को वह कभी नहीं टालेगा ।
अचानक बाहर के मंदिर से ममता के चिल्लाने की आवाज आई । यह सुनकर विवेक मंदिर की तरफ भागा । उसके पिता जयप्रकाश और जीजा आशुतोष दोनों ने उसे रोकने की कोशिश चाहिए लेकिन असफल रहे । ममता के चिल्लाने की आवाज को सुनकर कई और लोग भी मंदिर के आंगन में जमा हो गए । ममता गुरु महाराज के ऊपर गुस्से में बहुत सारी बातें चिल्लाते हुए कह रही है लेकिन गुरु महाराज पूरी तरह शांत हैं । उन्हें ममता के गुस्से व दुःख से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ रहा ।
विवेक जानता है कि अगर वह एक बार ममता को जाकर समझाए तो वह शांत हो जाएगी ।
इसीलिए वह आगे बढ़कर बोला ,

" ममता तुम शांत हो जाओ । किसी के ऊपर ना सही तुम मेरे ऊपर थोड़ा विश्वास रखो । "

विवेक की बात समाप्त होने से पहले ही गुरु महाराज लगभग चिल्लाते हुए बोले ,
" हे भगवान ! विवेक आखिर तूने ऐसा क्यों किया । मैंने तुम्हें मना किया..... "

पूरी बात समाप्त होने से पहले ही विवेक के आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा । वह जमीन पर बेहोश होकर गिर पड़ा । बेहोश होने से पहले उसने ममता के गुस्से से लाल भयानक आँखों को देखा था ।


गुरु महाराज यानि नित्यानंद उपाध्याय जी को यहां पर सभी व उनके शिष्य साधु बाबा कहकर बुलाते हैं ।
विवेक के बेहोश होकर जमीन पर गिरते ही उन्होंने अपने शिष्यों को इशारे में कुछ बताया । उनके 6 - 7 शिष्यों ने तुरंत ही वहाँ उपस्थित सभी को बाहर ले गए । गुरु महाराज ने विवेक और ममता के घरवालों से अनुरोध किया कि वो सभी अंदर अपने अपने कमरे में चले जाएं । मंदिर में केवल गुरु महाराज , विवेक , ममता और उनके शिष्य ही रहेंगे । लेकिन विवेक और ममता के माता-पिता अपने लड़के और लड़की को इस अद्भुत परिस्थिति में छोड़कर अंदर नहीं जाना चाहते थे । मंदिर के पास से दोनों के माता-पिता के अलावा सभी के जाते ही गुरु महाराज ने अपने जनेऊ को विवेक के माथे से लगाकर मंत्र पढ़ना शुरू कर दिया । विवेक ने अपनी आंखों को खोलने का प्रयास किया लेकिन नहीं कर पाया ।
गुरु महाराज ने सिर उठाकर ममता की तरफ देखा । ममता की आंखें अब भी घृणा से भरी हुई है । गुरु महाराज की दृष्टि अब धीरे-धीरे गंभीर हो रहा है , उस दृष्टि में क्रोध है शासन है ।

यह मंदिर अच्छा खासा बड़ा है । मंदिर के सामने एक बड़ा सा चौखट भी है । और उसके चारों तरफ बड़े-बड़े
डिजाइन किए हुए पिलर हैं । गुरुदेव के निर्देशानुसार एक शिष्य ने लाल धागे के एक सिरे को पिलर में बांधकर बाकी धागे को मंदिर के चारों तरफ घुमाकर बांधने लगा । इसके बाद गुरु महाराज ने मंदिर के चारों तरफ एक रक्षा लकीर बना दिया । विवेक और ममता के माता-पिता लकीर के बाहर ही कौतूहल वश खड़े रहे । इसके बाद गुरु महाराज अपने 3 शिष्यों को लेकर विवेक जहां पर लेटा हुआ था उसके चारों तरफ घेरकर बैठ गए । विवेक के सिर के पास गुरु महाराज बैठे और बाकी तीन विवेक के दोनों तरफ और पैर के पास बैठ गए । सभी ने अपने जनेऊ को अंगूठे में फंसाकर बाकी चार उंगलियों से विवेक के शरीर को स्पर्श करके आँख बंद कर मंत्र पाठ करने लगे । ममता अब तक एक तरफ खड़ी होकर सब कुछ देख रही थी । लेकिन जितना मंत्र पाठ आगे बढ़ता गया उतना ही उसकी अस्थिरता बढ़ती गई । अंत में वह किसी पिंजरे में बंद शेरनी की तरह इधर उधर चलने लगी । उसकी आंखें गुस्से में पूरी तरह लाल हो गई और वह किसी नागिन की तरह फुंफकार रही थी । लेकिन गुरु महाराज और उनके तीन शिष्य कोई भी उस तरफ नहीं देख रहे , वो केवल अपने मंत्र पाठ में व्यस्त थे । लगभग आधे घंटे बाद गुरु महाराज ने लकीर के बाहर चार शिष्यों को बुलाया । सभी ने संभाल कर विवेक के अवचेतन शरीर को बाहर ले गए । गुरु महाराज ने सख्त आदेश दिया कि लकीर के लाल धागे में विवेक का शरीर नहीं छूना चाहिए । विवेक को अंदर भेजकर गुरु महाराज ने राहत की सांस ली । इसके बाद उन्होंने किसी को फोन लगाया,
" वैसे तुम कितनी देर में यहां आ रहे हो ? हाँ तुम जो अंदाजा लगा रहे थे शायद ऐसा ही है । जल्दी से चले आओ । "

ममता की मां बोली ,
" मेरी लड़की को क्या हुआ है ? उसे आप क्यों .... "

गुरु महाराज बोले ,
" शांत हो जाओ बेटी घबराओ मत । मैं उसे लौटाकर अवश्य लाऊंगा । देवी माता को शरण कीजिये । "

ममता के पिता जी बोले ,
" लौटाकर लाएंगे से आपका क्या मतलब है ? वह तो आपके सामने ही खड़ी है । फिर किसे लौटाकर लाएंगे आप ? "

अगला भाग क्रमशः...

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