कर्ण पिशाचिनी - 4 Rahul Haldhar द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • द्वारावती - 72

    72दोनों ने अदृश्य ध्वनि की आज्ञा का पालन किया। जिस बिंदु पर...

  • कालिंदी

    अशोक एक मध्यम वर्गीय आम आदमी था, जो कर्नाटक के एक छोटे से कस...

  • आई कैन सी यू - 40

    अब तक हम ने पढ़ा की रोवन और लूसी की रिसेपशन खत्म हुई और वो द...

  • जंगल - भाग 9

    ---"शुरुआत कही से भी कर, लालच खत्म कर ही देता है। "कहने पे म...

  • My Devil Hubby Rebirth Love - 52

    अब आगे वाइफी तुम्हारा रोना रूही गुस्से में चिल्लाई झूठ बोल र...

श्रेणी
शेयर करे

कर्ण पिशाचिनी - 4

भाग - 4


अगले दिन शाम को यज्ञ - हवन शुरु हुआ । दीपिका एक कमरे के अंदर बंद थी । गुरुदेव ने अपना और दीपिका की देह - बंधन कर रखा है । शाम जितना बढ़ता गया चारों तरफ हवा की गति भी उतनी ही बढ़ती गई । हवा की वजह से आसपास के पेड़ों की शाखाएं टूटने लगी । इधर दीपिका भी कमरे के अंदर छटपटाने लगी ।
घर के चारों तरफ 3 दिया जलाया गया है । गुरुदेव अपने गंभीर आवाज में मंत्र को पढ़ते जा रहे थे ।
क्रमशः अंधेरा बढ़ता गया । सड़े मांस और मल - मूत्र के दुर्गंध से पूरा वातावरण ऐसे दूषित हुआ कि सभी भागकर अपने घर के अंदर चले गए । केवल गुरुदेव , शारदा देवी और जमीदार हरिश्चंद्र वहीं बैठे रहे । इसी तरह रात्रि की प्रथम , द्वितीय तथा तृतीय पहर बीता ।
कमरे के अंदर दीपिका पागलों की तरह चीजों को तोड़ने लगी । रात्रि के चौथे पहर में चारों तरफ का दुर्गंध धीरे-धीरे समाप्त होकर शुद्ध शीतल हवा बहने लगी । उधर दीपिका भी शांत होकर बेहोश हो गई । गुरुदेव ने यज्ञ कुंड में पानी डालकर यज्ञ को समाप्त किया ।
अगले दिन गुरुदेव वहां से जाने वाले थे । उसी वक्त गांव के कुछ लोगों ने आकर बताया कि कल श्मशान में किसी ने पूरी रात तांडव मचाया था लेकिन वो सभी डर की वजह से बाहर नहीं निकले । सभी ने आज सुबह जाकर देखा तो श्मशान में चारों तरफ अधजली लकड़ी, सिंदूर , मांस , शराब की बोतल इत्यादि बिखरा पड़ा है तथा वहां से तांत्रिक बाबा गायब थे ।
शारदा देवी ने इसका कारण गुरुदेव से जानना चाहा ।
गुरुदेव महानंद आचार्य बोले,
" दीपिका को माध्यम बनाकर किसी ने निम्न स्तर की पिशाच साधना करना चाहा था । उसी उद्देश्य से नारियल के पत्ते को चलाया था । वह नारियल का पत्ता जिसे स्पर्श करता वही माध्यम बनता । "
" और इतने जीवो को किसने मारा? " शारदा देवी ने जानना चाहा ।
" इस साधना में प्रतिदिन पिशाच को संतुष्ट करना पड़ता है । दीपिका को माध्यम बनाकर तांत्रिक वही कर रहा था । लेकिन इस बार के लिए नहीं हुआ और वैसे भी ऐसे लोग जहाँ बाधा पाते हैं वहाँ साधना नहीं करते । इसीलिए बड़ी मां आप निश्चिंत रहिए । "

महानंद आचार्य ने अंतिम बार उसी दिन गोपालेश्वर को देखा था । इसके बाद बीत गया लगभग 20 साल , हाँ सोनपुर के उस घटना को पूरे 20 साल बीत चुके हैं । इसी बीच दामोदर नदी से बहुत सारा पानी बह गया । कंकालीतला के घटना से गोपालेश्वर फिर महानंद जी के दिमाग में लौट आया था । विजयकांत द्वारा पिशाच साधना दर्शन करने की घटना को कुछ महीने बीत चुके हैं ।

जिस गोपालेश्वर ने इस बार कर्ण पिशाचिनी साधना में असफल होकर कंकालीतला को छोड़ा । उसी के बारे में थोड़ा जान लेते हैं ,

गोपालेश्वर वर्तमान में करीमपुर के पास रहता है । जलंगी नदी जहां भगीरथी नदी ( गंगा नदी ) में मिला है वहाँ के महाश्मशान में उसने डेरा डाला है ।
घर को छोड़े हुए उसे 35 साल बीत गए । शुरुआत में एक तांत्रिक का साथ पाकर उसका पथ ही बदल गया था ।
उस तांत्रिक ने कर्ण पिशाचिनी साधना में सिद्धि लाभ किया था । उस तांत्रिक में कई रहस्यमय शक्ति व सही भविष्यवाणी करने की क्षमता थी । गोपाल यह देखकर बहुत ही अचंभित हुआ था । पंडित रामराम के घर में हमेशा ही सुख की कमी पर मेहनत ज्यादा था । यह देखकर गोपाल ने मन बना लिया था कि उसे पिशाच साधना करना ही होगा । उसने इस साधना के प्रभाव और अर्थ को कभी समझना नहीं चाहा । वह केवल शक्ति चाहता था जो उसे आम मनुष्य की श्रेणी से कई गुना ऊपर ले जाए । मां की मृत्यु से यह पथ और सरल हो गया । पिताजी के साथ उसका कभी नहीं बनता इसीलिए उनसे डरता भी था । इसकी शुरुआत जब पिताजी को पता चल गया तभी वह समझ गया था कि यह घर छोड़ना ही पड़ेगा । छोड़ना नहीं पड़ा पिताजी ने ही भगा दिया । इसके बाद इतने सालों में उसने कितने ही तांत्रिकों को अपना गुरु बनाया उसे याद नहीं । इतने सालों से उसने बहुत सारा त्याग किया है । जितना संभव था उससे ज्यादा खुद को गन्दा बना लिया । साधना के कारण मल - मूत्र को भी खाया है तथा मरे हुए मनुष्य का सड़ा मांस खाने में भी उसने कभी नहीं हिचकिचाया । धीरे-धीरे खुद को तैयार किया । कभी कभी साधना में असफल हुआ तो कभी सफल भी हुआ । अब बहुत सारे पिशाच - पिशाची उसके वश में हैं लेकिन कर्ण पिशाचिनी सिद्धि में वो अब भी असफल है ।
पिछले कुशग्रहणी अमावस्या को उसे इसमें भी सिद्धि प्राप्त होने वाला था । लेकिन एक अनजाने आदमी ने उसके पूरी मेहनत पर पानी फेर दिया । उस दिन ही वह उसे समाप्त कर देता अगर वह यज्ञ स्थल सीमा के बाहर न रहता । उस दिन देवी कर्ण पिशाचीनी प्रकट होकर भी चली गईं । इसके बाद पिछले 1 साल से खोजते हुए उसने पिछले महीने ही उस व्यक्ति का पता लगा लिया है । उसके एक वशीभूत पिशाची ने उसका पता लगा लिया , उस व्यक्ति का नाम विजयकांत और घर बर्धमान में है ।
वर्तमान में वह यहीं पर रह रहा है इसीलिए गोपालेश्वर भी यहां उपस्थित हुआ है । एक बार साधना में बैठने के लिए विजयकांत का शव उसे चाहिए वरना साधना पूर्ण नहीं होगा । लेकिन पिछले 1 महीने से बहुत कोशिश करने के बाद भी वह विजयकांत का कुछ भी नहीं बिगाड़ पा रहा । किसी ने उसका देह - बंधन करके रखा है । किसने किया? क्यों किया ? गोपालेश्वर को कुछ भी समझ नहीं आ रहा । इसका मतलब क्या कोई उसका प्रतिद्वंदी भी है ? शायद उस प्रतिद्वंदी से उसे सावधान रहना होगा ।

इधर विजयकांत पिछले कुछ दिनों से परेशान है । जिस घर में वह रहता है वहां कुछ अजीब घटनाएं होने लगी है । बीच-बीच में विजयकांत को लगता कि उसके अलावा इस घर में कोई और भी है । विजयकांत उन्हें देख नहीं पाता लेकिन उनका अस्तित्व महसूस करता है । 1 महीने पहले भी यहां सब कुछ ठीक था लेकिन अचानक ऐसा न जाने क्यों होने लगा । इन अंधेरे परछाइयों ने विजयकांत का जीना मुश्किल कर रखा है । चलते वक्त बाधा बनते । खाने में गंदी चीजें मिला देते । साफ-सुथरे कमरे में कचड़ा फैला देते हैं । विजयकांत को कोई हानि नहीं पहुंचाते लेकिन हमेशा परेशान करते रहते । परेशान होकर विजयकांत ने गुरुदेव महानंद जी को एक चिट्ठी लिखा ।
कंकालीतला से घर लौटने के बाद गुरुदेव से फिर वह नहीं मिला था । उसके 6 महीने बाद ही वह एक स्कूल शिक्षक की नौकरी लेकर बर्धमान से यहां करीमपुर चला आया । इसके बाद घर भी नहीं जाना हुआ । इच्छा यह है कि पूजा की छुट्टी में वह घर जाएगा लेकिन इसी बीच यह सभी अद्भुत घटनाएं शुरू हो गई ।
कुछ दिनों बाद उनके स्कूल सहकर्मी जयदीप ने सभी शिक्षकों कों अपने घर काली पूजा के लिए आमंत्रित किया ।
वो विजयकांत से बोले,
" हर साल कुछग्रहणी अमावस्या को हमारे यहां बड़ी धूमधाम से काली पूजा होती है इस बार तुम्हें भी आना होगा । "
" यह भाद्रपद महीने वाली कुशग्रहणी अमावस्या है ? "
जयदीप और भी न जाने क्या-क्या बोल रहे थे लेकिन विजयकांत के कानों में कुछ भी नहीं जा रहा था । वो मन ही मन कंकालीतला के उस भयानक रात में लौट गए थे । एक साल होने वाला है लेकिन उस रात का आतंक अब भी उनके सीने में है ।
" जयदीप जी अमावस्या कब है ? "
" अभी 12 दिन बाकी है । इस शनिवार के अगले शनिवार । "
बिना कुछ बोले ही विजयकांत उठ खड़े हुए । और चलते हुए मन ही मन सोचने लगे कि एक तो अमावस्या और वह भी शनिवार को , उस दिन वो कहीं भी नहीं जाएंगे । घर से बाहर ही नहीं निकलेंगे । गुरुदेव को चिट्ठी मिली या नहीं क्योंकि अभी तक कोई उत्तर नहीं आया ।
देखते ही देखते 10 दिन बीत गए । विजयकांत इन दिनों चिंता से आधा हो गया है । उसे ऐसा लग रहा है कि कुछ बहुत ही भयानक व अशुभ होने वाला है । उसे घर चले जाना चाहिए था लेकिन अब देर हो गई है । गुरुदेव ने कहा था कि गोपालेश्वर तांत्रिक उसे जरूर हानि पहुंचाएगा । विजयकांत मन ही मन सोचता रहा कि उस बार बच गया था लेकिन इस बार अगर कुछ हुआ तो उसे कौन बचाएगा ?.....

अगला भाग क्रमशः ।।


@rahul