कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 56) Apoorva Singh द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 56)

परम राधिका और प्रेम तीनो छत पर बैठे हुए बातचीत कर रहे हैं।
राधु :- परम भाई!हमने आपको यहां इसीलिए बुलाया था की हमे आपसे किरण की पसंद के बारे में कुछ पूछना था।

'क्या भाभी' पूछिये आप।परम बोला
राधु :- वो हमने अपनी छोटी देवरानी के लिए ज्वैलरी में कुछ पसंद किया है तो आप एक बार देख लेते तो हम प्रेम जी से कह उसे पैक करा लेते।

'ओह हो भाभी' अब किरण को क्या पहनना है ये आप और वो दोनो मिलकर देख लें।मुझ जैसे अबोध से पूछ रही हैं बताओ मुझे कहां आता है ये सब मैंने भी तो अपनी सारी जिम्मेदारी आप दोनो पर छोड़ रखी है परम बोले।जिसे सुन राधु बोली, "नही आता न तो कोई बात नही किरण आ रही है न सब सिखा देगी"।फिलहाल हमारी मदद करो न कहते हुए वो प्रेम जी की का फोन उठाती है और उसका लॉक खोल उसमे क्लिक किये हुए ज्वैलरी के पिक्स दिखाती है।ओह गॉड कहां फंसा दिया मुझे अब भाभी ने कहा है तो देखना ही पड़ेगा सोचते हुए परम ने आंख बंद कर एक फोटो सेलेक्ट करके कहा ये देख लो भाभी।।उसकी ये नौटंकी देख राधु हंसते हुए बोली ठीक है आपकी इन हरकतों के बारे में हम जब किरण से कहेंगे न तब देखना आप..!

ये सुन परम बोला "मुझे पता है आप सपने में भी ऐसा नही करेंगे।भला अपने प्यारे और भोले देवर की हंसी आप कैसे बनने देगी।न ऐसा नही करेंगी आप"।

हम्म और इसी बात का आप हमेशा फायदा उठाते हैं राधु ने कहा।

हम्म तो आप सब का छोटे हूँ तो हरकते भी वैसी ही होंगी न।परम ने कहा और प्रेम की गोद में सर रखकर लेट गया।

ठीक कहा और हम ठाकुर जी से हमेशा यही प्रार्थना करेंगे कि आप इसी तरह हमेशा सबके चेहरो पर मुस्कान बिखेरते रहे।

चित्रा घर आ गयी और मुस्कुराते हुए शोभा से बोली, आंटी जी मैं दो की जगह चार बॉक्स लड्डू ले आई हूँ।ठीक किया न।

चित्रा की बात सुन शोभा बोली :- बहुत अच्छा किया।मैं भी सोच ही रही थी कुछ और मिठाई एक्सट्रा मंगा लेनी चाहिए थी।जैसा बताया वैसा करो और दो बॉक्स किचन में रख आना ठीक है।

जी आंटी जी चित्रा ने कहा और वो मुस्कुराते हुए रसोई में चली गयी।लड्डू रखते हुए चित्रा ने बॉक्स दो जगह रख दिये और एक सुन्दर सी पॉलीबैग में उन्हें रख बाहर ले आयी और शोभा जी को देते हुए बोली आंटी जी आपने जैसा बताया वैसे पैक कर मैं ले आई हूँ।

ठीक चित्रा अभी इन्हें टेबल पर रख दो और अर्पिता के कमरे में जा कर उसे मेरे पास भेज दो।शोभा जी कुछ सोचते हुए बोली।

जी आंटी जी कह चित्रा ऊपर अर्पिता के कमरे में चली आती है अर्पिता त्रिशा का सर अपनी गोद में रख उसे थपकी दे रही होती है त्रिशा सो चुकी है ये देख चित्रा बोली इसे मैं कमरे में सुला दूंगी।तुम्हे आंटी जी नीचे बुला रही है।

जी अर्पिता बोली।चित्रा आगे आती है त्रिशा को उठा कर अपने कमरे में ले जाती है।अर्पिता नीचे चली आती है।आंटी जी आपने हमे बुलाया अर्पिता शोभा के जाकर खड़े होते हुए बोली।

'हां अर्पिता' यहां आओ मेरे पास शोभा जी बोली।अर्पिता थोड़ा आगे बढ़ती है और शोभा जी के पीछे जा थोड़ा झुकते हुए उनके पास जाती है तो शोभा जी धीमे से उससे कहती है ये मिठाई के बॉक्स पार्लर वाली टीम को देने है। एक बार देख लो सब ठीक है कि नही।अगर सब सही हो तो अपने हाथ से इन्हें दे देना।ठीक है।

'जी आंटी जी' अर्पिता बोली और वो बैग उठाकर अंदर चली जाती है।कुछ सोचकर वो उनकी पैकिंग चेंज कर देती है एवं अपनी तरफ से कुछ अमाउंट भी उसमे रख देती है।कुछ देर बाद अर्पिता अपने दोनो हाथो में उन्हें लेकर आती है जिसे देख शोभा कहती है, अच्छी सज्जा की है अर्पिता।अर्पिता मुस्कुरा देती है।और दोनो मिठाई के बॉक्स उन्हें देते हुए कहती है "आप आई उसके लिए थैंक यू।आपके लिए ये हमारे घर के सबसे चहीते परम जी की शादी की मिठाई आंटी जी ने दी है अब शादी वाले घर से खाली हाथ कैसे कोई जायेगा"।

जी इसके लिए थैंक यू पार्लर वाली टीम ने कहा और वो वहां से चली जाती है।धीरे धीरे शाम हो जाती है घर में मेहंदी के लिए चहल पहल दिखने लगी है लेकिन शान अभी तक नही आये हैं।अर्पिता की नजरे बार बार दरवाजे तक जाती और फिर लौट आती।शोभा शीला कमला तीनो ही ये देख फुसफुसाते हुए कहती है लगता है ध्यान बटाना पड़ेगा।मैं कुछ करती हूँ जीजी शोभा ने कमला से कहा।

अरे अर्पिता !ये क्या माना की मेहंदी लड़के की है तो क्या संगीत धमाल नाच गाना नही होगा।प्रेम कहां है बुलाओ उसे वो तो कह रहा था कि इस शादी में खूब धमाल करेगा वो सब ख्वाहिशे पूरी करेगा जो अपनी शादी में नही कर पाया था। कहां है वो बुलाओ तो उसे?शोभा बोली।

अर्पिता :- हम देख कर आते हैं आंटी जी!कहते हुए अर्पिता राधु के कमरे की ओर चली जाती है।जहां चित्रा अपनी दो ड्रेस लेकर राधु से पूछ रही होती है

राधु बता इनमे से कौन सी पहनूँ मैं?बता न कौन सा रंग पहनूँ मैं।उसके चेहरे की खुशी देख राधु अर्पिता शान के प्रेम की बात छुपाते हुए बोली अरे वाह अब तो रंगो से भी प्रेम हो गया है तुम्हे चित्रा।।

चित्रा मुस्कुरा कर पलटते हुए बोली

श्वेत रंग ही अस्तित्व में था मेरे लिए!राधु
लेकिन जब से "वो" आया है मुझे हर रंग से इश्क़ हो गया है

चित्रा की बात सुन राधिका खुद को रोक नही पाती और कहती है चित्रा इन राहो पर बढ़ते हुए अपने कदम यहीं थाम लो।प्रशांत भाई के हृदय पर पहले से ही कोई और दस्तक दे चुका है।

राधु की ये बात दरवाजे से आती हुई अर्पिता सुन लेती है उसके कदम वहीं रुक जाते हैं।इतने से ही उसके हृदय की धड़कने बढ़ जाती है।वो दरवाजे को थाम वहीं खड़ी हो आगे सुनती है

राधु :- चित्रा सुन रही हो तुम।हमे ये बात कल ही पता चली अगर पहले से पता होती तो हम तुम्हे आगे बढ़ने के लिए नही कहते।प्लीज अपने कदम रोक लो और अपने आप को सम्हालो।प्रशांत अर्पिता से प्रेम करते हैं।तुमसे नही।

राधिका की बात सुन चित्रा की आँखे भर आती है वो तुरंत राधिका के गले लग जाती है।ये दृश्य देख अर्पिता वहां से चली आती है।उसे चित्रा के लिए बुरा लग रहा है वो मन ही मन कहती है चित्रा जी आप बहुत अच्छी है।हमे नही पता था कि आप भी शान से प्रेम करती हैं।हम भी बुद्धू है समझ ही न पाये वो है ही इतने अच्छे कि उनसे किसी को भी प्रेम हो जाये।हम सम्मान करते हैं आपकी भावनाओ का लेकिन शान वो कोई वस्तु थोड़े ही है जो हम बांट सके।वो सोच में ही डूबी होती है कि सामने से प्रेम आते हुए दिख जाते हैं।वो अपने आंसू पोंछ प्रेम जी के पास जा कहती है आपको आंटी जी बुला रही है।

अर्पिता को उदास देख प्रेम जी उसकी उदासी का कारण प्रशांत का वहां न होना समझते है।

प्रेम जी :- उदास मत हो!प्रशांत मेहंदी शुरू होने से पहले यहां पहुंच जायेगा मेरी बात हो गयी है उससे।।

"जी" कह अर्पिता वहां से चली आती है और वो मुस्कुराने का अभिनय करते हुए शोभा जी के पास बैठ जाती है।प्रेम जी भी वहीं से मुड़ कर वापस चले आते है।

वहीं कमरे में चित्रा जब शांत होती है तो राधिका से कहती है, राधु अच्छा किया जो तूने मुझे फिर पाप करने से बचा लिया।नही तो फिर कोई न कोई अनर्थ हो ही जाता।मैं प्रशांत की खुशी से खुश रहने का प्रयास करूँगी।।मैं जानती हूँ ये थोड़ा मुश्किल होगा मेरे लिए लेकिन तुमसे ही तो सीखा अपने प्रेम की खुशी में खुश रहना।।मैं कमरे में जाती हूँ तैयार हो नीचे भी तो आना है आखिर हमारे छोटे यानी परम जी की शादी है तो थोड़ा सा थिरकना तो बनता है।कहते हुए चित्रा मुड़ती है और वहां से अपने कमरे में चली जाती है जहां जाकर वो फफक फफक कर रोते हुए मन में भरा सारा दर्द आंसुओ के जरिये निकालने लगती है।

चित्रा के जाने के बाद राधु दुखी होते हुए मन ही मन कहती है हमे पता है तुम बहुत दुखी हो चित्रा लेकिन अब तुम जाताओगी नही।लेकिन भविष्य में गहरा आघात पहुंचने से तो अच्छा ही है कि अभी सत्य को स्वीकार कर लिया जाये।हम अब तैयार होते हैं छोटे हमारा इंतजार कर रहे होंगे।बस उम्मीद करते है हम जब तुम्हारा दर्द बाहर निकलेगा तब तुम सबके पास नीचे आ जाओगी।

कहते हुए वो बेड पर रखे कपड़े उठाती है और उन्हें ले कर कबर्ड में रख देती है।एक बार फिर आईना देखती है और फिर कमरे से बाहर परम के पास आकर बैठती है।

सबको देख शोभा बोली अब जब सब आ ही गये है तो अब किसका इंतजार है अब नाच गाना शुरू करो। थोड़ा बहुत तो रंग जमाओ महफ़िल सजाओ।।प्रेम बेटे उतर आओ मैदान में शुरुआत तुम ही करो।शोभा प्रेम की ओर देख बोली।

शोभा की बात सुन प्रेम जी ने राधिका की ओर देखा और बोले :- मां, मैं अकेले कैसे महफ़िल में रंग सजाऊँ और भी तो कोई होना चाहिए साथ में।न ही प्रशांत है और न ही सुमित भाई और स्नेहा भाभी वो भी तो आजकल आर्य को लेकर ही व्यस्त रहती है तो बताओ अब मैं अकेला क्या करूँ।

प्रेम की बात सुन शीला बोली, क्यों अकेला कहां है ये है तो अर्पिता ये देगी न तेरा साथ।।क्यों अर्पिता शीला ने अर्पिता से कहा जिसे देख शोभा और कमला दोनो हैरानी से एक दूसरे की ओर देखने लगी।कमला फुसफुसाते हुए बोली, "शोभा लगता है तुम्हारी बातों ने कुछ तो असर दिखाया है छोटी पर"।

'हां जीजी' मुझे भी ऐसा ही लगता है।
शीला की बात सुन अर्पिता मुस्कुराते हुए बोली 'जी बिल्कुल आंटी जी'!कहते हुए वो उठकर सबके बीच से निकल सामने आ जाती है।

प्रेम जी राधिका की ओर देखते है जो बैचेनी के साथ उसकी ओर देख रही है।

प्रेम जी कुछ सोचते है और वहीं एक तरफ मौजूद नमन की ओर देख हाथो से ट्यून कर गिटार लाने का इशारा करते हैं।नमन वहां से अंदर जाता है।और प्रशांत का गिटार लाकर प्रेम जी को दे देता है।

प्रेम जी वही खड़े हो उसे ट्यून करते है अर्पिता पीछे हट शोभा के पास जा बैठती है और सबकी मेहंदी देखने लगती है।उसकी आँखे बार बार दरवाजे की ओर जाती हैं शान को आता हुआ न देख वो निराश हो जाती है।

प्रेम जी गिटार ट्यून करते हुए गुनगुनाते हैं|वो एक बार फिर राधु की ओर देखते हुए कहते हैं,ये सॉन्ग तुम्हारे लिए राधु..!

परम :- हां भाई एक गाना तो बनता है।

प्रेम जी गिटार ट्यून करते हुए जगजीत सिंह जी द्वारा गायी हुई ग़ज़ल गाना शुरू करते हैं :-

वहीं अर्पिता ये देख मन ही मन सोचती है कुछ गुण आपको विरासत में ही मिले है शान!लेकिन कहां हैं आप आपको तो अब तक आ जाना चाहिए शान!सांझ भी ढल चुकी है सभी यहां है सिर्फ आप ही नही है।सभी नही चित्रा जी यहां नही है हमे उन्हें यहां बुलाकर लाना होगा सोचते हुए अर्पिता वहां से उठ कर चित्रा के पास जाने के लिए उठती है लेकिन सामने शान को आता हुआ देख वो रुक जाती है।प्रशांत आकर वहीं प्रेम के बैठ जाते हैं और एक बार अर्पिता की ओर देखते है।जो अपने चेहरे पर मुस्कुराहट को सजाये सबको अपने प्रसन्न होने का संदेश दे रही है।

शान को अपने पास बैठा देख प्रेम जी उसे आगे गाने के लिए इशारा करते हैं।।शान हल्का से गर्दन हिला आगे गाते हैं -

आंखों में नमी हंसी लबो पर?
प्रेम :- आंखों में नमी हंसी लबो पर

क्या हाल है क्या दिखा रहे हो
शान(अर्पिता से) :- क्या हाल है क्या दिखा रहे हो?
क्या गम है जिसको छुपा रहे हो।
प्रेम जी :- तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो।

गाना खत्म होता है तो सभी तालियां बजाते हुए कहते हैं वैसे इस बार काफी मजा आया।।

राधु मुस्कुराते हुए परम से कहती है :- लीजिये देवर जी!मेहंदी भी लग गयी है अब आपके।।

शोभा :- उसके तो लग गयी अब तुम तीनो भी लगा लो और चित्रा वो कहां है त्रिशा अब तक सोइ नही क्या..?शोभा जी ने राधु से कहा तो।राधु अपनी परेशानी छिपाते हुए बोली, नही मां उसने बोला था हमसे कि वो कुछ ही देर में आ जायेगी।

ओह तो परेशानी का कारण कहीं चित्रा तो नही है।पता करता हूँ कहते हुए प्रेम जी ऊपर चित्रा के फ्लोर की ओर बढ़ जाते है और दरवाजे पर जा चित्रा से कहते है "कहां हो चित्रा आओ नीचे सभी एन्जॉय कर रहे हैं तुम ही नही हो" चित्रा बिन दरवाजा खोले ही बोली "मैं दस मिनट में पहुंच रही हूँ आप चलिये"।
ठीक है कह प्रेम वापस नीचे आ जाते हैं।

शान भी फ्रेश होने के लिए अपने कमरे में चले जाते हैं।मेहंदी वाली अर्पिता राधिका और स्नेहा के भी मेहंदी रखने लगती है एवं कुछ ही समय में वो सबके हाथों पर मेहंदी से एक सुन्दर से चित्र बनाती है।अर्पिता अपने एक हाथ पर सुन्दर सी डिजाइन और दूसरे हाथ पर केवल एक गोल चांद बनवाती है।वहीं राधिका और स्नेहा मुस्कुराते हुए एक दूसरे को अपनी मेहंदी लगे हाथ दिखाती है।परम वहां से उठकर प्रशांत के रूम की ओर बढ़ जाते हैं।प्रिति महक शोभा शीला सभी मिलकर खूब नाच गाना करते हैं।सबको एकसाथ देख राधु प्रेम जी से फुसफुसाते हुए बोली, प्रेम जी अब सब लोग इतने खुश है तो कुछ मीठा खाने का मन कर रहा है,आप कुछ मीठा ला देंगे,प्लीज़"?
राधु की बात सुन प्रेम जी हैरानी से बोले, "मीठा चाहिए राधु वो भी इस समय!
राधु अब मन तो मन है प्लीज ला दो न,कहीं से भी लाओ लेकिन हमे अभी चाहिए राधु ने प्रेम जी से धीमे स्वर में जिद करते हुए कहा।

ठीक है लाता हूँ अब मेरी राधिका ने कुछ मांगा हो और प्रेम न लाये ऐसा इन दो सालो में तो कभी हुआ नही। मैं लेकर आता हूँ तुम बस इंतजार करो!कहते हुए प्रेम शोभा के पास गये और शोभा से, मां मैं अभी कुछ देर के लिए बाहर जा रहा हूँ राधु को कुछ मीठा खाना है।।
शोभा :- तो उसके लिए बाहर नही रसोई में जाओ मैंने दोपहर में ही दो डिब्बे मिठाई के मंगवा लिए थे दोनो ही ले आना सब मिल बांट कर खाएंगे।

ओके मां धन्यवाद!कह प्रेम वहां से रसोई में चला जाता है और दोनो मिठाई के डिब्बे उठा लाता है।और लाकर शोभा को देते हुए कहता है "लीजिये मां"!
शोभा प्रेम से:- एक काम करो एक एक सभी को बांट दो और जितने बचे उन्हें रसोई में रख देना।

प्रेम :- ठीक है मां।कहते हुए सभी को बांट देते है शुरुआत अपने पिताजी से करते हैं।राधिका के हाथ में मेहंदी लगी होने के कारण उसे वो अपने हाथ से खिला कर आगे बढ़ सभी को बांट देते हैं अर्पिता लेने से मना कर देती है।आधा बॉक्स बचता है जिसे ले जाकर प्रेम रसोई में रख आते हैं।

कमला प्रेम से कहती है" प्रेम बेटे बहुत देर हो गयी है इसे अंदर ले जाओ सर्दी भी बढ़ रही है सर्दी लग जायेगी अब"
प्रेम जी राधु को लेकर वहां से चले जाते हैं।अर्पिता वहीं शीला और शोभा के साथ रुककर सब कुछ समेटने में मदद करती है।चित्रा भी खुद को सम्हाल नीचे आ जाती है।शोभा जी चित्रा की ओर देखते हुए मुस्कुराती हैं। उसकी लाल आँखे देख वो उससे इशारे में ही पूछती है क्या हुआ।चित्रा इशारे से ही बोलती है कुछ नही।

शीला(शोभा से) :- जीजी प्रशांत आ गया है तो मैं जरा उसे देख कर आती हूँ उसे कुछ चाहिए तो नही

ठीक है शीला शोभा ने कहा तो शीला उठ कर प्रशांत के कमरे में चली जाती है।अर्पिता और चित्रा भी अपने अपने कमरो में चली जाती है।कमरे में जा अर्पिता अपने हाथो से मेहंदी छुटा लेती है।

शीला प्रशांत के पास गयी और उससे बोली,बहुत व्यस्त रहा न आज का दिन!

प्रशांत :- हां मां! थोड़ा सा।
शीला :- गुड!एक काम कर फ्रेश हो ले फिर बाहर आ जाना मैं अर्पिता से बोल दूंगी तेरे लिए खाना लगा देगी।।मैं जीजी के साथ कल के दिन के बारे में चर्चा कर लूंगी।अब कल बारात जायेगी तो क्या कुछ रस्मे होनी है सब देख लूं समझ लूं।

अर्पिता नाम सुन कर ही प्रशांत के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है लेकिन सामने मां को देख खुद को रोक लेते हैं।अब मां है बच्चे के हाव भाव से ही सब समझ जाती है सो शीला शान की दबी मुस्कान देख लेती है और मन ही मन कहती है नाम सुन कर ही चेहरा खिल गया है।एक मौका देकर देखती हूँ अर्पिता को शायद जीजी गलत नही है अब इतने दिन से यहां रह रही है तो ऐसा तो मुझे कुछ गलत नही लगा।सिवाय उस गिफ्ट के जो क्या था ये नही पता।

क्या हुआ मां क्या सोच रही हो?शान ने पूछा तो शीला अपनी सोच से बाहर आते हुए बोली, 'कुछ नही प्रशांत' मैं जाती हूँ जल्द ही आ जाना ठीक है।

'जी मां' शान ने कहा तो शीला जी उठकर वहां से बाहर चली आती है।वो अर्पिता के कमरे में जाती है और उससे बोली, " अर्पिता मुझे जीजी के साथ कुछ जरूरी कार्य करना है तुम जरा प्रशांत के लिए खाना लगा देना"।

जी आंटी जी अर्पिता बोली।शीला जी वहां से चली जाती है।अर्पिता नीचे चली आती है और रसोई में रखा खाना गर्म कर डायनिंग पर लगा देती है और प्रशांत के आने का इंतजार करने लगती है।

प्रशांत भी तब तक आ जाते है उन्हें देख अर्पिता खाना थाली में निकाल शान के पास रख दूसरी तरफ आ कर सामने बैठ जाती है।

शान ने अप्पू की ओर देखा और बोले, "तुमने खाया"
अर्पिता :- नही मन नही था!सुबह से कुछ न कुछ खा ही रहे हैं शान कभी पापड़ तो कभी पूड़ी इसीलिए अभी शाम को मन ही नही हुआ।

ठीक है अप्पू! बैसे ये बताओ क्या हुआ परेशान क्यों हो मां ने कुछ कहा क्या तुमसे?शान ने पूछा।

अर्पिता बोली -नही शान आंटी जी ने कुछ नही कहा!बल्कि वो तो बहुत अच्छी हैं।और हम परेशान नही है बस यूँ ही मन भारी हो रहा था।।

ठीक है कहते हुए वो थोड़ा सा खाना खाते है और थाली में रखा लड्डू उठाकर खाते हुए कहते है, लड्डू बड़े टेस्टी है एक और मिलेगा!

हम्म शान!हम लेकर आते है अर्पिता ने कहा और रसोई की ओर जाने लगी जिसे देख शान बोले मैं छत पर इंतजार कर रहा हूँ वहीं ले आना।और मेरे लिए भी साथ ही अपने लिए भी लेकर आना ठीक है कहते हुए शान उठ कर छत पर चले जाते है।वहीं अर्पिता डायनिंग साफ कर सारे बर्तन साफ कर फिर लड्डूओ को एक कटोरी में रख छत पर ले जाती है।

प्रशांत ने जो लड्डू खाये है उनमे भोलेनाथ जी का प्रसाद होता है जिसका असर उन पर होना शुरू हो गया है जिस कारण उन्हें उसका टेस्ट भी अच्छा लग रहा है।अर्पिता ऊपर आ जाती है उसे देख शान कहते है, "अब आई हो अप्पू मैं कब से तुम्हारे आने की रह देख रहा था पूरे पंद्रह मिनट लेट हो तुम!

अर्पिता :- सॉरी शान वो हम..!अर्पिता आगे कुछ कहती उससे पहले ही शान झूले से उठकर आगे आये और उससे बोले कोई बात नही अप्पू देर हुई सो हुई अब ये बताओ वो लड्डू लाई हो न..!

हम्म शान अर्पिता ने कहा और लड्डू की कटोरी शान के आगे कर दी।

क्या बात है मेरी पगली को मेरा ख्याल तो बहुत है।लाओ मुझे कहते हुए शान वो लड्डू उठाकर खा लेते हैं और अर्पिता से कहते हैं 'खड़ी क्यों हो अप्पू चलो कुछ देर वहां झूले पर बैठते हैं"।

ठीक है शान अर्पिता ने कहा और झूले पर जाकर बैठ जाती है।शान भी आकर वहां बैठ जाते हैं।और अर्पिता के कंधे पर सिर रख कहते है, पता है अप्पू जब मैंने तुम्हे पहली बार देखा था वहां गाते हुए तब ही मुझे तुमसे प्रेम हो गया था।लेकिन फिर जब मॉल में हम मिले तब एक नया ही रूप देखा तुम्हारा और फिर मुझे तुमसे प्रेम हो गया।किरण के रिश्ते के लिए जब हम तुम्हारी मासी के घर गये तब एक बार को तो मैं डर ही गया था मुझे लगा कि मैं तुम्हे खो ही दूंगा। उस पल मुझे कैसा लग रहा था मैं ही जानता हूँ।उसके बाद वो ट्रेन हादसा!मैं घबरा गया था अप्पू!और सच बोलूं उस दिन मेरा कोई काम नही था कानपुर मे मैं बस तुम्हारे लिए वहां गया था मैं ट्रेन हादसे वाली बात सुन बहुत डर गया था घबरा गया था मैं कि कही मैंने तुम्हे...कहते हुए शान अर्पिता को गले लगा लेते हैं।मैं बस ठाकुर जी से प्रे कर रहा था कि तुम्हे कुछ न हो तुम मुझे सही सलामत ही मिलो।शान का गला भर आता है और वो आगे कुछ नही बोल पाते।

अर्पिता ने पहली बार शान को इतना भावुक देखा है वो शान से कहती है हम जानते है शान आप हमारी परवाह करते है,और प्रेम तो उससे भी ज्यादा करते है आपकी खामोशी हमसे सब कहती है।हम समझते है आपकी खामोशी में छुपे अल्फाज़ो को।हमारा यकीन मानिये शान हम सांस लेना छोड़ सकते है लेकिन आपको, आपको कभी नही छोड़ सकते।शान की अर्पिता शान से बहुत बहुत प्रेम करती है।

अर्पिता की बात सुन शान बोले..हम्म जानता हूँ मेरी पगली हो तुम!सिर्फ मेरी।अच्छा अब बातें बाद में अप्पू पहले अभी मेरे लिए कोई गाना गाओ !प्रसाद का असर शान पर अब पूरी तरह से हो चुका है।वो अभी जो भी कह रहे है वो कहे जा रहे हैं उन्हें कुछ भान नही है वो क्या कह रहे हैं।क्या कर रहे हैं।

गाना!अभी!!शान समय देखिये रात के बारह बज रहे हैं।इतनी रात को कौन गाता है भला अर्पिता ने शान के हाथ में बंधी घड़ी देख कर कहा।

तो क्या हुआ अप्पू!मुझे नही पता तुम कुछ भी गाओ लेकिन गाओ!शान जिद करते हुए बोले!शान का व्यवहार देख अर्पिता मन ही मन कहती है,शान जिद कभी नही करते आज क्यों कर रहे है और ये बाते कैसी कर रहे है।आज तक कभी इतना नही बोले कहीं ऐसा तो नही ये नशा करके आये हो।लेकिन नशा और शान सम्भव ही नही है इस घर में कोई नशा नही करता फिर...!कहीं अनजाने में कुछ ऐसा तो नही खाया जो नशे का कारण हो..!खाना खा रहे थे तब तक तो ये ठीक थे फिर लड्डू..हो न हो उन लड्डुओं में ही कुछ होगा।हमे नीचे जाकर देखना होगा।सोचते हुए अर्पिता उठी तो फिर दो कदम चलकर रुक गयी।और अपने दुपट्टे का छोर छुड़ाते हुए आगे कदम बढ़ाती है तो शान अभी न जाओ छोड़कर ये दिल अभी भरा नही गुनगुनाने लगते है ।आगे बढ़ती हुई अर्पिता रुक जाती है और सोचती है अगर हम अभी नीचे गये और फिर कही पीछे ये भी नीचे आ गये तो परेशानी बढ़ जायेगी।हमें यहीं रुकना होगा बाद में जाकर देखते है।और अर्पिता वापस आकर वहीं शान के पास ही बैठ जाती है।

शान मुस्कुराते हुए वापस कंधे पर सिर रखकर कहते हैं मुझे पता था तुम नही जाओगी अप्पू।अच्छा सुनो कल तुम न जब बारात में जाओगी न तब नीली वाली साड़ी पहनना मेरा पसंदीदा रंग है।और उसके साथ गोल्डन वाली ज्वैलरी रखना और हां मेरे पास तुम्हारे लिए एक छोटा सा गिफ्ट है वो मैं कल तुम्हे दूंगा।नही एक नही दो गिफ्ट है एक बड़ा गिफ्ट और एक छोटा बातें करते हुए शान को नींद आ जाती है और वो वहीं अर्पिता की गोद में सर रख लेते है एवं नींद की आगोश में चले जाते है।

क्रमशः ....