चाहत - 2 sajal singh द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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चाहत - 2

पार्ट -2 सुनसान सड़क के किनारे पर मैं और पापा हल्के कोहरे के बीच एक बेंच पर बैठे हैं | मैं पापा से शिकायत कर रही हूँ क्यों पापा ? आप और माँ हम सब को छोड़ कर इतनी जल्दी चले गए | पता है हम सब कितने अकेले हो गए हैं |

पापा -मेरी गुड़िया, जीवन और मरण तो निश्चित हैं | एक दिन तो सब को जाना पड़ता है | फिर तू अकेली कहाँ है ? राघव और रिया तो है ना तेरे पास |

मैं -पापा ,वो दोनों तो हैं ही | पर आप दोनों के जाने के बाद हमारे जीवन में कितना अकेलापन आ गया है |

पापा -(मेरे सर पर हाथ रखते हुए )मेरी प्यारी परी ,अगर हमारे जीवन से कोई जाता है तो कोई नया हमारे जीवन में आता भी तो है |

मैं -मतलब ?

पापा -गुड़िया ,अब वक़्त आ गया है की तुम्हारे जीवन में भी कोई आये | तुम अपने जीवन के उस पड़ाव में हो जहाँ पर तुम्हे एक जीवनसाथी के साथ की जरूरत है |

मैं -नहीं पापा ,आप जानते तो हैं मेरा संकल्प |

पापा -गुड़िया ,वक़्त सब ठीक कर देगा | बस तुम अपनी ज़िद्द छोड़ कर उस इंसान का हाथ थामना जो जीवन के सफर में तुम्हें कभी कमज़ोर ना पड़ने दे |

(पापा उठ कर चलने लगते हैं, मैं पापा को आवाज़ लगा रही हूँ | लेकिन वो अपनी दुनिया में चले जात्ते हैं | तभी अलार्म की आवाज़ से मेरा ख्वाब टूट जाता है | )

मैं अलार्म बंध करके बेड पर बैठ जाती हूँ | और यादों के भँवर में खो जाती हूँ | कैसे पापा ही मेरे सब कुछ थे | उनके बिना मैं एक दिन भी नहीं बिता सकती थी | माँ को कई बार पापा से कहते सुना था कि आप को अपनी गुड़िया के साथ दहेज़ में जाना पड़ेगा यदि यही हाल रहा तो | तब पापा माँ को प्यार से कहते श्रीमती जी ऐसी नौबत आएगी ही नहीं मैं अपनी गुड़िया के लिए घर जमाई ढूंढगा | ये सुन कर सब ज़ोर से हॅसते थे |

यादें भी कितनी अजीब होती हैं एक पल में चेहरे पर मुस्कान ले आती हैं तो दूसरे ही पल उदासी | लेकिन मैं आज का सपना समझ नहीं पा रही थी | पापा को दो साल हो गए थे गए हुए | फिर अचानक उन्होंने ये किसी के आने की बात क्यों की ? खैर ,सपना ही तो है | और नींद में लिए हुए सपनों की उम्र उतनी ही तो होती है जितनी उस नींद की | लेकिन अच्छी बात ये है कि मैंने पापा से बात की उनको देखा | (तभी भाभी की आवाज़ आती है | )

भाभी -चीनू ,जल्दी तैयार हो जा | आज हम मंदिर जायेंगे |

मैं -भाभी ,आपको पता तो है कि मैं नास्तिक हूँ |

भाभी -पता है | लेकिन ये भी जानती हूँ की तू अपनी भाभी को ना नहीं करोगी |

मैं -तो मेरे प्यार का नाज़याज़ फ़ायदा उठा रही हैं आप |

भाभी -ड्रामा बंध करो | जल्दी करो | फिर आज तुम्हरा कॉलेज में भी तो फर्स्ट डे है | पहले ही दिन लेट हो जाओगी |

(दस मिनट में मैं तैयार होकर आ जाती हूँ | और मंदिर के लिए हम निकल पढ़ते है| ) रास्ते में भाभी कहती हैं -चीनू ,तुम कितनी सुन्दर हो | फिर भी तुम हमेशा अपनी सुंदरता को छुपाती क्यों हो ?

मैं -मैं कोई सुन्दर नहीं हूँ भाभी | बस आप मुझसे प्यार करती हैं तो आप को इसलिए मैं सुन्दर लगती हूँ |

भाभी -देखो अपने आप को ,सिल्की लंबे बाल ,बड़ी -बड़ी प्यारी आंखे ,गुलाब की पंखुरियों से कोमल होंठ, दूध जैसा सफ़ेद रंग ,ऊंचा कद ,साथ में बाज जैसा तेज दिमाग | और क्या रह गया भला ?

मैं -आप भी ना भाभी |

भाभी -सच में मेरी चीनू है ही इतनी प्यारी जो भी देखे दीवाना हो जाये | पर तुम हो कि अपनी ज़िद्द और गुस्सा छोड़ती ही नहीं |

मैं -भाभी ,मंदिर आ गया है | शिकायत बाद में कर लेना |

(हम दोनों मंदिर में जाती हैं | भाभी मेरे नाम से प्रसाद चढ़वाती हैं | भाभी मुझे ईश्वर का आशीर्वाद लेने के लिए कहती हैं | तो उनका मन रखने के लिए मैं हाथ जोड़ लेती हूँ |और भाभी से कहती हूँ आप की ख़ुशी के लिए तो मैं कुछ भी कर सकती हूँ फिर ये तो एक मूर्त के सामने नतमस्तक ही होना है | भाभी हल्का सा मुस्कुरा देती हैं | फिर हम घर के लिए निकल पढ़ते हैं | इस बात से अनजान की कोई और भी हमारी बातें सुन रहा था | )

(घर पहुंचकर चेंज करने के बाद नाश्ता कर ही रहे थे कि शिव भैया आ धमके )

शिव भैया -चीनू ,कल तुम अकेले ही कॉलेज में एडमिशन करवा कर आ गयी | मुझसे मिली भी नहीं |

राघव भैया -तो शिव ,तुम गायब कहाँ थे कल ?

शिव भैया -मैं असाइनमेंट सबमिट करवा कर पहुंचा तब तक चीनू निकल चुकी थी |

मैं -कोई ना भैया | अब रोज ही तो मिलेंगे हम कॉलेज में |

शिव भैया -हाँ !याद रखना मैं तुम्हारा सीनियर हूँ कॉलेज में | मेरी बड़ी धाक है पुरे कॉलेज में |

(शिव भैया की बात सुन कर हम सब ज़ोर से हँसते हैं | तभी शिव भैया कहते हैं तू कॉलेज मेरे साथ ही चला कर | )

मैं -भैया ,मेरी क्लासेज आपकी क्लासेज से लेट स्टार्ट होती हैं | मैं स्कूटी से ही आ जाउंगी |

शिव भैया -चल कोई ना | अब मैं चलता हूँ ,कॉलेज में मिलेंगे |

(शिव भैया कॉलेज के लिए निकल गए | तभी सोचने लगी कैसे इस अनजान शहर में आते ही हमे शिव भैया और उनके पेरेंट्स मिल गए थे | भैया हमारे बगल वाले घर में ही रहते हैं | दिल्ली आने के बाद कुछ दिनों में ही ऑन्टी और अंकल हमसे घुल -मिल गए थे | तब ऑन्टी ने बताया था कि उनके जीवन में एक बेटी की ही कमी थी जो चीनू के आने से पूरी हो गयी | शिव भैया ने भी मुझे बहन मान लिया और कहा मुझे हमेशा से छोटी बहन की कमी महसूस होती थी ,अब नहीं होगी | वो सिर्फ बहन मानते ही नहीं थे बल्कि मेरी राघव भैया की तरह केयर भी करते थे |शिव भैया भी एम.बी.ए. ही कर रहे हैं | वो फाइनल ईयर में हैं | उन्होंने ही मेरा एडमिशन उनके कॉलेज में करवाया है | )

भाभी -चीनू ,

मैं -(एकदम से अपनी सोच से बाहर आते हुए ) जी भाभी |

भाभी -ये क्या ?फिर से तुम ये सूट पहनकर कॉलेज जाओगी |

मैं -भाभी ,मुझे सूट ही अच्छे लगते हैं | जीन्स में मैं कम्फर्ट फील नहीं करती |

भाभी -लेकिन कॉलेज में आमतौर पर सब वेस्टर्न ही पहन कर आते हैं |

भैया -मेरी गुड़िया दुसरों को देखकर अपनी ज़िन्दगी नहीं जीती | वो वही करती है जो उसे पसंद है |

भाभी -चलो ,आप लोग जीते मैं हारी | आप दोनों जल्दी नाश्ता करो नहीं तो देर हो जाएगी |

(नाश्ता करके भैया हॉस्पिटल के लिए निकल गए ,और मैं अपनी स्कूटी लेकर कॉलेज के लिए | )

मैं स्कूटी पार्क करके अपनी क्लास में पहुंची और लास्ट डेस्क पर बैठ गयी | तभी प्रोफेसर साहिबा क्लास में आती हैं | सब उनका अभिवादन करते हैं |

प्रोफेसर -(मेरी तरफ इशारा करते हुए )तो तुम हो नई स्टूडेंट जिसका कल एडमिशन हुआ है |

मैं -(अपनी सीट पर खड़े होते हुए )जी मैडम |

प्रोफेसर -तुम दो महीने लेट आयी हो | इसलिए सिलेबस कवर करने में कोई भी हेल्प चाहिए तो तुम अपने क्लास मेट से ले सकती हो | फिर बाकी स्टूडेंट्स को कहते हुए i hope तुम सब नई स्टूडेंट की हेल्प करोगे |

(सब स्टूडेंट्स हाँ में जवाब देते हैं | फिर मैडम अपना मार्केटिंग विषय पढ़ाना शुरू कर देती हैं | )

लगातार चार लेक्चर लगाने के बावजूद एक लेक्चर फ्री होता है | मैं लाइब्रेरी जाने ही लगी थी की एक लड़की मेरे पास आती हैं | देखने में सांवली पर नैन -नक्श सुन्दर ,आँखों पे बड़ा सा गोल चश्मा | वो अपना परिचय देती है |

hi मेरा नाम है -neha aggarwal .योर क्लास मेट |

मैं -हेलो ! मेरा नाम है चाहत बाजवा |

नेहा -तुम्हे कोई भी मदद चाहिए ,तुम मुझसे कहना |

मैं -(सोचते हुए हेल्प की जरुरत तो है मुझे )sure .

नेहा -चल चाहत कैंटीन चलते हैं |

मैं -पर मुझे लाइब्रेरी जाना था |

नेहा -बाद में चले जाना |

फिर हम कैंटीन गए और नेहा ने कॉफी आर्डर की | फिर हम एक कोने में बैठ गए |

नेहा -चाहत ,मैं तुम्हे अपने नोट्स दे दूँगी | तुम सारे टॉपिक कवर कर लेना |

मैं -थैंक्स ,मैं जल्दी से जल्दी तुम्हे नोट्स कॉपी करके लौटा दूँगी |

नेहा -आराम से देना ,मुझे कोई जल्दी नहीं है | वैसे मैं हॉस्टल में रहती हूँ |

मैं -तुम्हारा घर कहाँ है ?

नेहा -आगरा | वहीं मेरी पूरी फैमिली रहती है | तभी नेहा किसी को आवाज़ देकर बुलाती है |

(तभी हमारी कॉफ़ी भी आ जाती है | और एक दुबली -पतली लड़की आती है | )

नेहा -चाहत ,ये सुमन है | अपनी ही क्लास में है | और सुमन ये चाहत है | आज ही अपना कॉलेज ज्वाइन किया है |

सुमन -हेलो चाहत !

मैं -हेलो !

नेहा -वैसे सुमन मैडम ,आज आप इतनी लेट कैसे ?

सुमन -यार क्या बताऊँ ? फिर से fb पर बात करते -करते रात बीत गयी | और सुबह 11 बजे आँखे खुली |

नेहा -हँसते हुए....क्या मिला कोई मिस्टर राइट ?

सुमन -नहीं यार | वैसे तुम मेरी छोड़ो ,अपने बारे में कुछ बताओ चाहत |

मैं -हम अभी कुछ वक़्त पहले दिल्ली शिफ्ट हुए हैं | हौज़ खास में घर लिया है हमने |

सुमन -अच्छा ,तुम्हारी फैमिली में कौन -कौन है |

मैं -भैया -भाभी और मैं | भैया डॉक्टर हैं | भाभी होम मेकर हैं |

नेहा -और तुम्हारे माँ -पापा ?

मैं -वो अब इस दुनिया में नहीं हैं |

(नेहा और सुमन दोनों ही सॉरी बोलती हैं | )

मैं -its okk !

सुमन -यार ये तेरी भाभी तुझे तंग तो नहीं करती | टीवी सीरियल वाली भाभी की तरह तुझ पर जुल्म तो नहीं करती |

मैं -(मुस्कुरा कर )नहीं ,वो अपनी बच्ची की तरह रखती हैं मुझे |

सुमन -चल यार ,ये सुन कर मेरी तो जान में जान आ गयी | और हाँ मेरा घर सरोजिनी नगर में है | अपने घर ज्यादा दूर नहीं हैं | तू कभी आना मेरे घर |

मैं -ओके !अब मुझे लाइब्रेरी जाना है | कुछ book issue करवानी हैं | तुम दोनों से मिल कर अच्छा लगा | अब कल मिलते हैं |

कैंटीन से निकल कर मैं लाइब्रेरी की तरफ मुड़ गयी | और स्लिप को ध्यान से देखते हुए जा रही थी | तभी मेरी टक्कर किसी में लगते -लगते रह गयी | (मेरी एक आदत थी कि मैं किसी को नज़रे उठा कर rare ही केस में देखती थी | पता नहीं ये अच्छी आदत थी या बुरी ?) अबकी बार भी नहीं देखा | सामने से आवाज़ आयी आप देख कर चलिए नहीं तो आप गिर सकती हैं | आवाज़ किसी लड़के की थी एकदम सॉफ्ट पर इस आवाज़ में हिदायत थी | मैंने सॉरी कहा और आगे बढ़ गयी | लाइब्रेरी से बुक इशू करवा कर मैं घर के लिए निकल गयी |