झुमरी तलैया S Sinha द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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झुमरी तलैया

बीते दिनों की बात है. पान की उस दुकान पर अच्छी खासी भीड़ जमा थी. उन दिनों प्रातः आठ बजे से रेडियो सीलोन पर नयी फिल्मों के फरमाइशों गानों का प्रोग्राम आता था. सुबह के आठ बजने में चंद मिनट ही रह गए थे. रेडियो सिलोन से के एल सहगल का गाना “ एक बंगला बने प्यारा.... “ समाप्त होने वाला था. रेडियो सीलोन ने कहा - सुबह के आठ बजे हैं और अब आपकी पसंद का पहला गाना, पेश करने जा रहे हैं... झुमरी तलैया से रामेश्वर प्रसाद बर्णवाल और गंगा प्रसाद मगधिया...... और इतना सुनने के बाद वहां मौजूद कुछ लोग तालियां बजा उठे.

“ तब चल रे गंगा, दे एक बीड़ी इसी बात पर, तेरा नाम रेडियो सीलोन ने अमर कर दिया है. हर रोज कम से कम एक बार तो तेरा नाम जरूर सुनता हूँ इस प्रोग्राम में. “

“ और तू अंगदवा, अंगद की तरह पैर जमाये रहता है बीड़ी के लिए. रोज इसी बहाने कम से कम एक बीड़ी तो फ़ोकट के जरूर ले जाता है. “

गंगा प्रसाद ने एक बीड़ी अंगद को पकड़ाते हुए कहा. अंगद ने एक कागज का टुकड़ा उठाया और किनारे रखी हुई ढिबरी से अपनी बीड़ी जलायी. फिर एक दमदार कश लेते हुए वह आगे बढ़ गया.

यह कस्बा नुमा छोटे से उभरते शहर झुमरी तलैया की बात थी. उन दिनों यह शहर अविभाजित बिहार का हिस्सा था. कहने को तो शहर का नाम कोडरमा था पर दुनिया इसे झुमरी तलैया के नाम से जानती थी. यहाँ से कुछ ही दूर पर तलैया डैम था,इसलिए यह तलैया नाम से ज्यादा मशहूर हुआ. यह नाम रेडियो सिलोन की मेहरबानी से इतना मशहूर हुआ कि कितनी फिल्मों और फ़िल्मी गानों में झुमरी तलैया का जिक्र होने लगा, भले इसे किसी ने देखा भी न हो. इसके अलावा विविध भारती के फरमाइशी गानों के प्रोग्राम में भी गंगा प्रसाद और रामेश्वर प्रसाद वर्णवाल के नाम आने के चलते झुमरी तलैया और भी मशहूर हुआ. इन दोनों के देख कर तलैया से और लोग भी रेडियो सीलोन और विविध भारती पर गानों की फरमाइश भेजने लगे.

कोडरमा माइका कैपिटल ऑफ़ इंडिया कहा जाता था. विश्व का सर्वोत्तम माईका यानि अबरख ( MICA ) की सैकड़ों खानें यहाँ थीं. यहाँ का माइका पूरे विश्व में निर्यात किया जाता था जो बिजली के यंत्रों में इंसुलेशन के अतिरिक्त अन्य कामों में भी आता था. यहाँ के लोग कहते हैं कि कभी माईका के बड़े व्यापारियों ने तो सुप्रसिद्ध अभिनेत्री और गायिका सुरैया तक को यहाँ के कॉन्सर्ट में बुला लिया था. उन दिनों भी यहाँ मर्सिडीज और पोर्शे कार दौड़ती थीं जो राजधानी पटना ने नहीं देखी थी. विदेशी लोग वर्ल्ड का बेस्ट माइका खरीदने के लिए यहाँ आया करते थे.

अंगद माइका खदान में काम किया करता था. अपनी ज़्यदातर कमाई तो वह शराब, बीड़ी - सिगरेट और जुए में फूंक देता था. तीन बेटियां और एक बेटा चार चार बच्चों का पेट पालने के लिए उसकी बीबी छमिया सेठ के घरों में बर्तन, झाड़ू किया करती थी. बाद में उसकी बड़ी बेटी कांति भी उसका हाथ बटाने लगी थी.

अंगद टी बी का शिकार हुआ और कुछ वर्षों में चल बसा. तब तक उसकी बेटी कांति चौदह पार कर चुकी थी और वह मिडिल पास कर चुकी थी. उसने अब अकेले दो सेठों के यहाँ काम पकड़ लिया था. उसका बड़ा भाई सुरेश माइका खदान में काम करता था, वह कांति से मात्र एक साल बड़ा था. परिवार का खर्च आराम से चल रहा था. पर दो साल के अंदर ही सुरेश ने शादी कर अपनी गृहस्थी अलग बसा ली. कांति अपनी माँ और दो छोटी बहनों के साथ शहर के एक छोर पर अपनी झोंपड़ी में रहती थी.

कांति देखने में बहुत सुंदर तो नहीं थी फिर भी बहुतों से बहुत अच्छी थी. वह एक सेठ के यहाँ काम करती थी, वह उसे बहुत मानता था. सेठ की उम्र तीस के आस पास थी. अपने पिता के निधन के बाद वही उनके बिजनेस का मालिक था. कांति पर यौवन का आक्रमण हो चुका था, उसके अंग अंग पर निखार छाने लगा था. एक दिन जब कांति उसके घर काम करने गयी, सेठ की पत्नी कहीं बाहर गयी थी. उसका आठ नौ साल का बेटा भी किसी दोस्त के साथ बाहर खेलने गया था.

सेठ ने कांति को अपने कमरे में बुलाया और उसे आलिंगन में ले लिया. कांति को इसकी उम्मीद नहीं थी, इसके पहले कभी सेठ ने इस तरह की कोई हरकत नहीं की थी. सेठ ने अपने होठों से उसके अधरों को छूना ही चाहा था कि अचानक सेठ का बेटा आ गया. सेठ ने कांति को आजाद कर दिया, पर तीनों कुछ देर तक स्तब्ध रहे थे. कांति अपने को सहज करती हुई अपने काम में लग गयी.

बेटे ने माँ को अपनी आँखों देखी कहानी सुनायी. सेठानी तो यह सुन कर आग बबूला हो उठी. कांति बाथ रूम में कपड़े धो रही थी . सेठानी वहां जा कर उसे घूरने लगी. कांति को इसका आभास तो था, फिर भी वह सर नीचे किये अपना काम किये जा रही थी. कुछ पल बाद सेठानी हूंकार उठी “ क्यों री निर्लज्ज, कब से यह सब चक्कर चल रहा है ? तू क्या समझती थी तेरा भंडाफोड़ नहीं होगा. बेहया कहीं की, अभी के अभी निकल जा घर से. आज के बाद इधर आई तो टांग तुड़वा दूंगी, अपनी माँ को भेज देना तुम्हारे बाकी पैसे उसे दे दूंगी. “

इसके बाद तो सेठानी ने उसका हाथ पकड़ कर खींचते हुए घर से बाहर निकाल दिया, वह बोलती रही

“ मालकिन, मैंने कुछ भी गलत नहीं किया है, मेरा कोई भी कसूर नहीं है. “

सेठ चुप चाप यह तमाशा देखता रहा, उसके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकल रहा था. बहुत मुश्किल से उसने सहमते हुए कहा “ बेचारी को क्यों काम से निकाल दिया ? “

“ वाह, बड़ा प्यार आ रहा है बेचारी पर न. तो क्या उसे छोड़ दूँ तुम्हारे साथ रास लीला मचाने को ? मैं तो पूरे शहर में उसकी बदचलनी का ढिंढोरा पिटवा दूंगी. “ और सही में सेठानी ने ऐसा ही किया. कांति उस छोटे से शहर में बुरी तरह बदनाम हो गयी. उसकी शादी भी लगभग तय थी, वह भी टूट गयी. उसकी माँ छमिया होने वाली समधन से हाथ जोड़ कर कहती “ मेरी बेटी निर्दोष है, इसको ऐसी सजा न दो. “

“ तो क्या घाट घाट के पानी पिए हुए इस बदचलन लड़की को अपने बेटे के गले मढ़ दूँ ? “

बात इतनी जल्दी फ़ैल गयी कि कांति को तो कहीं काम नहीं ही मिल रहा था, उसकी माँ को भी ज्यादा घरों से निकाल दिया गया था. चार जनों का खर्चा चलाना मुश्किल हो रहा था. छमिया ने बेटे सुरेश से मदद की गुहार लगाई तो वह बोला “ खदान बंद हो गए हैं, मुझे ही मुश्किल से चोरी छुपे काम मिल रहा है. मैं चाह कर भी कोई मदद नहीं कर सकता हूँ. “

उन दिनों माइका के बढ़ते खदान से वन संपदा को होते नुकसान से बचाने के लिए सरकार ने माइका की माइनिंग पर रोक लगा दी थी. हालांकि चोरी छुपे कुछ खदानों में माइनिंग अभी भी चल रही थी, पर पहले की तरह अब खदान में रोजगार का अवसर नहीं रहा था. इसके अलावा अब इंडस्ट्री में माइका के लिए विकल्प इंसुलेटिंग मैटीरियल भी उपलब्ध थे.

उसी समय तलैया से कोई 150 किलोमीटर दूर स्थित रांची शहर का विकास हो रहा था. सड़कें और अपार्टमेंट्स बन रहे थे. छमिया अपने बेटियों के साथ रांची आ गयी. उसने अपनी झोंपड़ी को बेटे को दे दी. रांची में उसने निर्माणाधीन इमारतों में ईंट गारों का काम पकड़ लिया. बिल्डिंग के आस पास ही बिल्डर अपने मजदूरों के लिए ऐस्बेस्टस की झोंपड़ी बनवा देता था, उसी में वह रहती थी. या कभी अधूरे बिल्डिंग के किसी कमरे में रह लेती थी. कांति को भी वहीँ काम मिल जाता था. उसने अपनी छोटी बहनों की पढ़ाई जारी रखी, उन्हें काम नहीं करने दिया. मिडिल की पढ़ाई तो उसने तलैया में पूरी कर ली थी. अब आगे भी समय निकाल कर प्राइवेट पढ़ना जारी रखा था.

छमिया को बेटियों को लेकर चिंता होती थी, पर इत्तफाक से बिल्डर बहुत नेक और भरोसेबंद इंसान था. उसने वाचमैन को बोल रखा था कि इन पर नजर रखे, किसी तरह की दिक्कत न हो. बिल्डर छमिया और कांति के काम से बहुत खुश था. कांति को पढ़ने के लिए वह प्रेरित करता और किताबों आदि से उसकी मदद करता था.

तीन साल में बिल्डर ने दो अपार्टमेंट कम्प्लेक्स का काम पूरा किया. कांति भी दसवीं बोर्ड की परीक्षा पास कर चुकी थी. बिल्डर ने उसे अपने स्टोर्स की देखभाल में लगा दिया था जहाँ सीमेंट और अपार्टमेंट्स में लगने वाले अन्य फिटिंग्स आदि रखते थे.

एक अपार्टमेंट के बेसमेंट में छोटा सा कमरा भी छमिया को रहने को मिल गया था. कांति ने साथ में थोड़ी बहुत सिलाई बुनाई की ट्रेनिंग भी ले रखी थी. उसने अपनी छोटी बहनों को भी सिलाई बुनाई की ट्रेनिंग दिलवाई. फिर उसने एक सिलाई और एक बुनाई मशीन खरीदी. तीनों बहनें बड़ी दुकानों से आर्डर ले कर रात में सामान तैयार कर उन्हें सप्लाई करतीं.

कुछ दिनों बाद कांति की दोनों बहनों ने भी दसवीं परीक्षा पास कर लिया. एक दिन झुमरी तलैया वाला सेठ रांची आया था. उसकी बिल्डर से भी जान पहचान थी. तलैया की माइका की खदानें बंद होने से वह वैकल्पिक बिजनेस करने के लिए विचार विमर्श करने आया था. झारखण्ड राज्य बनना और रांची का राजधानी बनना अब तय था. बिल्डर ने सुझाया कि लैंड एंड ईस्टेट बिजनेस में आ सकते हो, पर इसमें पैर ज़माने में काफी वक़्त लगेगा, साथ साथ अनेकों एजेंसियों से नो ऑब्जेक्शन लेना और माफिया से ताल मेल बैठाना होगा. पर सेठ ने कपड़े की दूकान में इक्छा जताई. तभी उसकी नजर कांति पर पड़ी.

 

उसने पूछा “ तुमलोग यहाँ हो ? “

बिल्डर ने जब पूछा इसे कैसे जानते हो तो सेठ ने उसे पुरानी बात बताई और कहा “ इस बेचारी का कोई दोष नहीं था. मेरी गलती की सजा इसे भुगतनी पड़ी. “

“ इसे कोई सजा वजा नहीं मिली ये तो बूम इन डिस्गाइज समझो जिसे हम आम भाषा में बिल्ली के भाग्य से छींका टूटना कहते हैं. आजकल यह मल्टीपर्पस काम करने लगी है. इसके पास पूँजी होती तो इसका अपना अच्छा ख़ासा कारोबार होता. “ बिल्डर बोला

“ यह तो बहुत अच्छी बात है, पूँजी मेरी रहेगी और काम यह और इसकी बहनें करेंगीं. “

“ यह भी अच्छा रहा, अनदर बूम इन डिस्गाइज. “

कुछ दिनों बाद तलैया से पुरानी सेठानी भी रांची आयी और छमिया और उसकी बेटियों से अपने बर्ताव के लिए क्षमा मांगी. सेठ ने एक दुकान रांची में खोली और दूसरी झुमरी तलैया में. सेठ ने एक छोटा वर्कशॉप तलैया में बनवाया जहाँ सिलाई बुनाई आदि के मशीनें थीं. उसने पूरे छमिया परिवार को काम पर लगाया. कांति और उसकी बहन रांची और झुमरी तलैया दोनों जगहों पर कपड़े, स्वेटर आदि सप्लाई करतीं. सेठ कांति को अपने मुनाफा का दस प्रतिशत अंश भी देता था.

छमिया का सारा परिवार अब खुशहाल था.

समाप्त