अध्याय 16
सबेरा हुआ।
बड़े पीपल के पेड़ पर पक्षी चह-चहा रहे थे।
वहां एक पिलर के पास सहारा लेकर गीता खड़ी थी।
लक्ष्मी ट्रांसपोर्ट की मिनी बस कब आएगी उत्सुकता से वह देख रही थी।
आज बृहस्पतिवार है।
आज मोती ही मिनी बस का ड्राइवर होगा।
आने दो।
आते ही भाग कर बस में चढ़ना है।
वहां जो एक सीट है उस पर बैठूँगी ।
आ जाओ! आ जाओ! आपने ज़िद की थी ना! अब मैं आ गई।
सबको लात मार कर आ गई। मुझे अब ले जाइए। मेरे दिल में अब आप ही हो.... आपके प्यार को, आपकी तड़प को, आपकी इच्छा को मैंने अच्छी तरह समझ लिया। इतने दिनों परिवार के गौरव की चिंता मेरे मन में थी। अब इस पत्थर में फूल उगा है... मुझे बात करना है... मैं आज बात करते नहीं थकूँगी।
आंखों को चमकाते-चमकाते बात करना है।
दिल को ठंडक पहुंचे इतनी बात करनी है।
मेरे शरीर में सिहरन होना चाहिए।
अब मेरे सब कुछ तुम ही हो!
मैं आपको समझ गई।
मुझे लेकर जाइए...
इतने दिनों आपका अपमान करने के लिए आप को रुलाने के लिए मुझे माफ कर दीजिएगा....
फूट-फूट कर रोना चाहिए ऐसा उसे लगा ।
यदि बस में भीड़ ना हो तो उनके कंधे पर सर रख देना चाहिए।
यह सब बातें गीता अपने मन में सोच रही थी।
यह सब बातें उसके मन में उठ रही थीं।
हमेशा मिनी बस 8:30 बजे बराबर आ जाती है।
इस बस स्टैंड में आकर पाँच मिनट खड़ी रहती है।
यात्री उतरे और चढ़ने पर रवाना हो जाती है।
आज 8:45 हो गए फिर भी मिनी बस नहीं आई। क्या हो गया?
क्या हुआ होगा ?
क्यों नहीं आया।
तड़पते हुए उस रास्ते को ही गीता देख रही थी। मिनी बस से शहर जाने वाले यात्री अपने सामान को उठाकर बड़बड़ाते हुए खड़े थे ।
गीता अपने प्रेम को स्वीकारने के लिए उसका इंतजार कर रही थी।
9:00 बज गए।
लक्ष्मी ट्रांसपोर्ट की मिनी बस नहीं आई।
एक आदमी बाइक पर तेजी से वहां आया। वह बोला "आज मिनी बस नहीं आएगी। आप सभी लोग मेन रोड तक पैदल जा कर... दूसरे बस से जाइए.."
"मिनी बस को क्या हुआ ? टायर फट गया क्या..? रिपेयर हो गया क्या?" बस का इंतजार कर रही एक महिला ने पूछा।
"एक्सीडेंट हो गया..." वह बोला। गीता एकदम परेशान हो गई।
"क्या...?"
"मेन रोड से उतरते समय सामने से ट्रक आकर भीड़ गया।
मिनी बस वहां के तालाब में ही गिर गई। बस में भीड़ नहीं थी। कंडक्टर और क्लीनर के थोड़ी ही लगी है। ड्राइवर को बहुत ज्यादा चोट आई। उसका जिंदा रहना मुश्किल है बोल रहे हैं। एंबुलेंस आई.. तीनों को गवर्नमेंट अस्पताल में लेकर गए हैं।" उस बाइक वाले ने बोला।
"आज का ड्राइवर कौन था...?"
"अपना मोती ही था.."
"अरे..! वह तो जवान है.. अभी शादी भी नहीं हुई है.. हमेशा हंसते हुए रहता था... उस आदमी की ऐसी दशा...?"
एक बूढ़ी औरत बेचारी आंखों में आंसू लाकर ‘बेचारा’ बोली।
गीता के सिर पर बिजली गिर गई है ऐसा लगा। बुरी तरह तड़पी। मुंह खोल कर रो भी नहीं सकती बड़े मुश्किल से अपने आप को जप्त किया।
मोती बचेंगे नहीं क्या?
मोती को गहरी चोट लगी है?
उसका दिल फट जाएगा जैसे धड़कने लगा। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे।
मोती.... मोती.....
वह बहुत तड़पी।
उसके आंखों के सामने अंधेरा छाया। चक्कर आएगा जैसे हुआ।
आप मुझे ढूंढ कर आए... मैं सब कुछ भूल गई। मैंने ही आपको वापस भेज दिया। परंतु अब मैं ही आपको ढूंढ कर आई हूं। आप नहीं जीए! ऐसा क्यों? यही विधि का विधान है? यही मेरे तकदीर में लिखा है? क्या मैं पापी हूं? मैं तिरस्कृत हुई जीव हूं? आखिर में मुझे कभी खुशी नहीं मिलेगी? मैं अभागिन हूं क्या? इसीलिए ऐसा हुआ?
लड़खड़ाते हुए उठी।
दूसरी बस पकड़ने के लिए मेन रोड में जा रहे लोगों के पीछे जाने लगी। हाथ में एक रुपया भी नहीं था। साथ में आ रही उसके गांव की लड़की से पाँच रुपया उधार लिया।
"शहर जाने के लिए दीदी... मेरे हाथ में पैसे नहीं है। पाँच रुपया दे दो कल मैं वापस लौटा दूंगी।"
"टिकट ही तो चाहिए... मैं ले लूंगी बेटे। तुम्हें वापस देने की जरूरत नहीं है।" वह लड़की बोली। बीस मिनट में मेन रोड पर आ गए।
मोती के जिंदा रहते समय ही मैं एक बार उन्हें देख लूं। मेरे दिल में आप ही हो मुझे बोलना है।
आंखों में आंसू के साथ सामने आ रही भारत ट्रांसपोर्ट को हाथ दिखा कर सब लोग उसमें चढ़े गीता भी चढ़ गई।
राजकीय चिकित्सालय।
मोती आईसीयू में भर्ती था।
समाचार मिलते ही भाग कर आई सविता।
अस्पताल के बरामदे में ही गिरकर बिलखने लगी। लक्ष्मी ट्रांसपोर्ट के मालिक और उनका लड़का उसको आश्वासन दे रहे थे।
"अम्मा मत रोइए... मोती को कुछ नहीं होगा..."
"यहां कुछ नहीं हो सकता। अब जयपुर ही ले जाना पड़ेगा बोल रहे हैं..?"
"डॉक्टरों से जहां तक हो सकेगा अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं... मोती के सर पर जबरदस्त चोट लगी है...? डॉक्टर ने जो ट्रीटमेंट दिया है उससे वह आधे घंटे में होश में आ जाएगा। यदि नहीं आया तो उन्हें जयपुर ले जाना पड़ेगा।"
"क्या है साहब... आप ऐसे कैसे बोल रहे हो ....?" सविता बिलखने लगी।
"फिकर मत करो अम्मा... मोती मेरा छोटा भाई जैसे हैं.... कितने भी रुपए खर्च हो जाए खर्च करके मैं उसे बचाऊंगा। ... आप मत रोइए, जयपुर ले जाना पड़ेगा तो मैं ले जाऊंगा। आप इस तरह रोएंगी तो कुछ नहीं कर पाएंगी।"
"मेरा लड़का नहीं बचे... तो मैं भी अपनी जान छोड़ दूंगी।"
"आप चुप रहिए अम्मा.."
सब लोग घबराए हुए नीम के पेड़ के नीचे ही बैठे थे।
धड़कते हुए हृदय से।
रोते हुए वहां आ पहुंची गीता।
वह बुरी तरह से हांफ रही थी।
आंखों में आंसू लबालब भरा था।
ड्राइवर मोती जिंदा हो गए...?
हर एक से गीता पूछ रही थी। अस्पताल में बहुत भीड़ थी। गीता के प्रश्न का किसी ने जवाब नहीं दिया... मालूम नहीं बेटा.. नर्स से जाकर पूछो...
"ड्राइवर मोती जिंदा है क्या...?"
रो रही सविता के पास उसने जाकर पूछा। वही मोती की अम्मा है वह न जानते हुए पूछा।
"तुम.. कौन हो.." सरिता ने गर्दन ऊंची करके पूछा।
"मेरा नाम गीता है.. ड्राइवर मोती जिंदा रहेंगे ना... वे जिंदा हो गए अम्मा..."
रोते हुए प्रेम से पूछने वाली को सविता ने आश्चर्य से देखा।
"तुम जाकर चाहो तो देखो... 'गीता मुझे ढूंढ कर एक दिन आएगी...?' मोती के बोले हुए शब्द उसके कानों में गूंजने लगे।
'ऐसे आए तो तुमसे ज्यादा मैं खुश होंगी' अपने कहे हुए शब्दों को उसने सोच कर देखा।
"अरे... तुम आ गई बेटी ?"
गीता को उन्होंने गले लगाया।
"आप ?" बिना समझे गीता ने पूछा
"मैं मोती की मां हूं।"
"मोती कैसा है अम्मा ?"
"तुम आ गई... अब वह निश्चित रूप से जिएगा। मुझे यह विश्वास आ गया..." सविता अपने भावनाओं को प्रदर्शित करते हुए उसके चेहरे में एक प्रकाश सा चमका। उसी समय "अम्मा आपके बेटे होश में आ गए। अब कोई डर नहीं है। आप जाकर मिलिए... उनसे बात करिए..." नर्स ने आकर सूचना दी तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा।
"देखा... तुम्हारे आते ही मेरे बेटे को होश आ गया। तुम ही पहले उससे मिलो। तुम्हें देखते ही वह तुरंत उठ कर बैठ जाएगा। वह चलना भी शुरु कर देगा..."
आंखों में आंसू के साथ ही हंसी सविता।
गीता को गले लगाते हुए उसका हाथ पकड़ कर आईसीयू की तरफ चलें।
गीता अपने अंदर संचित किए हुए पूरे प्रेम को मोती पर उड़ेलना चाह रही थी। बड़ी उत्सुकता के साथ उसने आईसीयू में प्रवेश किया। आंखों को बंद कर मोती पड़ा था।
उसके पूरे शरीर में पट्टियां बंधी थी। पूरे 35 टांके लगे थे। ड्रिप चल रही थी। गीता उसके पास गई।
"मोती..."
मोती ने आंखें खोल कर देखा। उसकी आंखें इधर-उधर देखने लगी।
"मोती"
झुक कर "गीता... गीता..."
"मैं आ गई। अब मेरे सब कुछ आप ही है ऐसा सोच मैं आ गई। मेरे दिल में अब आप ही हो..."
ऐसे चित्कार करते हुए उसने मोती के माथे को चूमा।
मोती की आंखें लबालब भर आई।
सबको देखकर खड़ी सविता का मन भी भर आया।
कुछ भी अपने पास नहीं है।
सब कुछ भाग्य के हाथ में ही हैं।
उसी भाग्य ने दोनों के दिलों को एक साथ में मिलाया।
समाप्त