कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 39) Apoorva Singh द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 39)

चित्रा वापस आते हुए कहती है, "वो मुझे आपको बताना था कि हमारे बिजनिस प्रतिद्वंदी में से एक मिस्टर तलवार का फोन आया था कि हम इस बिजनिस रेस से अपने कदम पीछे खींच ले नही तो हमारे साथ अच्छा नही होगा।

प्रशान्त :- डोंट वरी! आप इस विषय मे ज्यादा नही सोचिए ये गरजने वाले बादल है,सो गरज कर ही रह जाएंगे, बरसेंगे नही।बाकी देख लेंगे आगे क्या समस्या लेकर आते है।

चित्रा :- ओके।वहां से चली जाती है।
वहीं प्रशान्त एक बार फिर से अर्पिता की ओर देखते हैं।अर्पिता कार्य से फ्री हो कुछ देर शांति से बैठी होती है कि तभी उसके जेहन मे रात के स्वप्न की यादे ताजा हो आती है।और वो अपने दिमाग पर जोर लगा सोचने लगती है --

अर्पिता :- कल जो स्वप्न देखा हमने उसमे हमने प्रशान्त जी को प्रशांत न बुलाकर कुछ और ही कहा था ..शा..शान! हां शान ही तो कहा था हमने।लेकिन काहे? चेहरा,व्यक्तित्व सब उनका और नाम लिया शान!ये कैसा स्वप्न आया था।हमने ये नाम भी कही सुना है..शान.।। कहाँ सुना है हमने ..किसी सोशल साइट्स पर सुना है शायद..!कौन सी साइट्स शायद वही एकमात्र जो हम उपयोग करते हैं।।हमे देखना होगा..!

श्रुति तुम्हारा फोन कहाँ है?अर्पिता ने अपनी सोच से बाहर आते हुए पूछा।।

श्रुति :- फोन!पर्स में पड़ा है?अब ऑफिस है तो केवल लंच में ही अलाउ है फोन।इसीलिए निकाला ही नही?

अर्पिता:- ठीक है।कह वो वहीं खाली पड़े पेपर्स में एक नोट लिखती है और उसे अपने पर्स में लिख कर रख लेती है।और सोचती है 'शान'! बस इसी नाम से पुकारेंगे हम आपको।हम,यानी शान की अर्पिता।।

इधर प्रशान्त के पास रविश का कॉल आता है।

प्रशान्त :- हां!रविश!कहो?कैसे याद किया भाई?
रविश:- भाई।कोई मिस्टर खन्ना है जो तुमसे एक बार मिलना चाहते हैं?

प्रशान्त :- मिस्टर खन्ना! लेकिन मैं किसी मिस्टर खन्ना को नही जानता हूँ।वैसे ये किस संबंध में मिलना चाहते हैं।

रविश :- अब ये तो मुझे नही पता है तुम एक बार मिल लो।

प्रशान्त :- कोशिश करता हूँ।तुम उन्हें एकैडमी में आने के लिये बोल देना।वहीं मिल सकता हूँ उनसे।अलग से मिलने के लिए समय नही है।
रविश :- ठीक मैं बोल दूंगा उन्हें।रखता हूं बाय।कह कॉल कट कर देता है।

प्रशान्त विंडो से एक बार फिर अप्पू को देखने लगते हैं।देखते हुए वो सोचते हैं।लगता है अर्पिता अपना कार्य कर चुकी है।तभी दोनो फ्री बैठी हैं।तो क्यों न थोड़ा बहुत परेशान किया जाए और काम देकर! वो बेल बजा नीलम को बुलाते हैं।

नीलम :- आपने मुझे बुलाया!
प्रशान्त :- जी!अब ये बताओ मैने तुम्हे यहां क्यों अपॉइंट किया है।

नीलम :- काम के लिए सर।
प्रशान्त :- किस तरह के कार्य के लिए।

नीलम :- आपकी असिस्टेंट कम सहायक मैनेजर सर जो सबकी रिपोर्ट रखती है,क्या करना है,किसे,कब और क्या काम देना है।

प्रशान्त :- गुड! यानी याद है तुम्हे?
नीलम :- सर क्या मुझसे कोई गलती हो गयी।

प्रशान्त :- समझ गयी तुम।तो अब जरा सामने वाले केबिन में देखने का कष्ट करें।वर्किंग आवर में वो दोनो नई एम्प्लोयी बैठ कर बातें कर रही है।और आप एक बार भी उनके पास नही गई हैं।मैं जान सकता हूँ क्यों?

नीलम :- सॉरी सर!वो मैं मिस्टर तलवार के बारे में जानकारी कलेक्ट कर रही थी।मैं अभी जाकर उन्हें दूसरा काम समझा कर आती हूँ।

प्रशान्त :- बेहतर रहेगा।उन्हें कार्य समझाने के बाद जो फाइल उन्होंने तैयार ही है वो मुझे मेल कर देना मैं इनके कार्य को चेक तो कर लूं।

नीलम :- स्योर सर।वहां से चली जाती है।

नीलम (अर्पिता से) :- तो कार्य पूरा कर लिया आप दोनों ने।

अर्पिता :- जी मैम!जितना आपने बताया उतना कर लिया।

नीलम :- गुड!काम हो गया तो इसका अर्थ ये तो नही है कि दोनों बैठ कर बातों में लग जाओ।याद रखना आपका केबिन बिल्कुल बॉस के केबिन के सामने हैं।और उनकी नजर क्षण प्रति क्षण आप दोनों पर है।

अर्पिता :- जी।हम याद रखेंगे।।आप हमें अगला कार्य बता दीजिए।

ओके बताती हूँ कह नीलम कम्प्यूटर पर कुछ टाइप कर अर्पिता से कहती है ये लिस्ट है एक बार नजर डाल कर फाइल से मैच कर लीजिए।एवम जब कार्य हो जाये तो मुझे बताना।मैं देख लूंगी।और अर्पिता की तैयार की हुई फाइल प्रशान्त को मेल कर देती है।ओके कंटीन्यू..

जी अवश्य अर्पिता ने फाइल खोलते हुए कहा।नीलम वहां से चली जाती है।

नीलम के जाने के बाद श्रुति अर्पिता से कहती है कुछ ज्यादा ही बोलती है ये।अरे काम करके ही बातें कर रहे थे!ऐसा तो नही था कि फ्री होकर बैठे थे।कुछ ज्यादा ही टफ मिजाजी है भाई..मेरा मतलब बॉस।।

कोई नही हमे इससे क्या लेना।हमारे लिए तो कार्य पहले है।वो हमें करना है,क्योंकि उसी के तो पैसे मिलेंगे।समझी?अर्पिता ने श्रुति से कहा।

हम समंझ गयी अप्पू।श्रुति ने कहा।

लंच टाइम हो जाता है तो एक बार फिर अर्पिता सात्विक श्रुति तीनो बैठ लंच करने लगते हैं।

सात्विक :- अर्पिता जी!कल शाम से एक बात मेरे मन मे उछल रही है कहो तो पूछुं?

सात्विक की बात सुन अर्पिता ने सवालिया नजरो से सात्विक देखा और बोली, "आप सबकी प्रॉब्लम ही बड़ी अजीब है नही।

अरे जब कुछ पूछना है सीधे पूछ लो न इतना सोचने की क्या जरूरत है।अर्पिता ने थोड़ा तुनकते हुए कहा।

सात्विक :- वो मुझे ये पूछना था कि तुम्हे श्रुति के घर घूंघट डालने की क्या जरूरत पड़ गयी।और श्रुति ने ये क्यों कहा कि घूंघट में मेरी पत्नी है।आशी? काहे?और ये आशी का क्या चक्कर है।और मुझे ही बलि का बकरा काहे बनाया?

सात्विक की बात सुन श्रुति कहती है सब मेरी बेवकूफ़ी थी सॉरी!बात बस इतनी ही थी कि भाई के साथ प्रैंक करना चाहते थे।तो मैंने ये प्लान बनाया।

इससे ज्यादा कुछ नही।
सात्विक :- सच मे श्रुति!यही बात थी न।

श्रुति :- हां यही बात थी।
सात्विक :- लेकिन न जाने क्यों मुझे तुम्हारी बात पर यकीन नही हो रहा है।
श्रुति :- ये तुम्हारी प्रॉब्लम है।कह हंसने लगती है।

सात्विक चुप हो जाता है और अर्पिता को देखने लगता है।उसे अपनी तरफ देखता हुआ पाकर अर्पिता कहती है, सात्विक जो हुआ उसे एक छोटी सी फ़न एक्टिविटी समझ कर भूल जाओ।आगे से ऐसी नौबत नही आएगी।और उस बात को लेकर अगर तुमसे कोई कुछ कहे तो कह देना आशी मेरी आश तोड़ कर फुर्र हो गयी।ठीक है।

सात्विक (हंसते हुए) :- ठीक।।

लंच खत्म कर सभी वापस अपने कार्य मे लग जाते हैं।प्रशान्त भी एक के बाद एक मीटिंग अटैंड कर फ्री हो जाते हैं।प्रशान्त का फोन रिंग होता है जो मिस्टर खन्ना का होता है।

प्रशान्त:- हैलो!
मिस्टर खन्ना:- प्रशान्त (संगीत के अध्यापक) बोल रहे हो?

प्रशान्त :- आपको कोई गलतफहमी हो गयी है,मैं कोई संगीत का अध्यापक नही हूँ,मैं तो बस एक बिजनेसमैन हूँ।

मिस्टर खन्ना :- ऐसा कैसे हो सकता है?रविश ने तो मुझे यही नंबर दिया था,बोल रहा था कि शाम को चार बजे इसी नंबर पर फोन कर लेना।

कहीं आप मिस्टर खन्ना तो नही बोल रहे हो?प्रशान्त ने पूछा।

जी!फोन के दूसरी तरफ से मिस्टर खन्ना बोले।ओके मिस्टर खन्ना!फिर आप शाम छह बजे मुझे एकैडमी में मिलना।अभी के लिए क्षमा।मैं जरा सा व्यस्त हूँ।कहते हुए प्रशान्त फोन रख देते है और बाइक की चाबी उठा फुर्ती से बाहर निकल जाते हैं।

बाहर अर्पिता खड़ी उनका इंतजार कर रही होती है।उन्हें देख वो घड़ी देखती है।और उनके पास जा कहती है पूरे पांच मिनट लेट?

हां!अब इतना तो ऊपर नीचे होता है।आज लेट तो कल जल्दी आ जाऊंगा।प्रशान्त ने कहा।जिसे सुनते हुए अर्पिता बाईक पर बैठ जाती है और प्रशान्त शोर गुल से दूर सड़क पर बाइक दौड़ा देते है।ये शांति कुछ पलो की होती है कुछ ही मिनट बाद दोनों शोरगुल भरे हाइवे पर आ जाते हैं।

रास्ते मे निकलते हुए अर्पिता की नजर एक बर्गर शॉप पर पड़ती है।जिसे देख वो कुछ याद कर मुस्कुराती है।उसकी इस मुस्कान पर प्रशान्त की नजर पड़ती है तो वो एक बार पीछे मुड़ देखते है और फिर से राइडिंग पर ध्यान देने लगते हैं।

घर के सामने पहुंच वो बाइक रोकते हैं तो अर्पिता उतर कर अंदर चली जाती है।प्रशान्त वहीं से वापस ऑफिस के लिए निकल जाते हैं।रास्ते मे वो उसी शॉप पर जाकर बाइक रोकते हैं -

प्रशान्त :- भाई! दस मिनट के अंदर एक ऑर्डर प्लेस करना है हो जाएगा या नही?

ये निर्भर करता है आपके द्वारा बताई हुई जगह पर!वहां मौजूद व्यक्ति ने उत्तर दिया?

प्रशान्त :- जहां पहुंचाना है वो जगह यहां से ज्यादा दूर नही है मैं एड्रेस देता हूँ ...कह वो एड्रेस बता देते हैं।

यस सर हो जाएगा।आप ऑर्डर प्लेस कीजिये?

प्रशान्त :- ओके फिर नोट कीजिये!दो चीज बर्गर विदाउट ऑनियन! विथ एक्स्ट्रा सॉस!वन कोल्ड कॉफ़ी।ये पूरा ऑर्डर अर्पिता व्यास तक पहुंचना है और हां ये चिट ऑर्डर प्लेस करने से पहले उन्हें देना है।ठीक! प्रशान्त ने एक श्वेत चिट आगे बढ़ाते हुए कहा।

ओके सर।व्यक्ति ने कहा तो प्रशांत पेटीएम कर ऑफिस के लिए निकल जाते हैं।

अर्पिता प्रशान्त की दी हुई की से लॉक खोल कुछ देर रेस्ट करने लगती है।उसे हल्की सी भूख का एहसास होता है वो कुछ बनाने का सोचती है कि तभी नीचे बैल बजती है।मकान मालकिन दरवाजा खोलती है।

'आप अर्पिता व्यास है'? डिलीवरी बॉय ने मकान मालकिन से पूछा।

मकान मालकिन बोली नही,मैं अभी बुलाती हूँ, कह वो अर्पिता को आवाज लगाती हैं-

अर्पिता!जरा नीचे आइए!आपका ऑर्डर आ गया है?

अर्पिता (हैरानी से) :- ऑर्डर? भला हमने क्या ऑर्डर कर लिया?शायद प्रशान्त जी ने कुछ मंगाया हो देखते है जाकर कहते हुए वो नीचे आती है।

आप अर्पिता व्यास?लड़के ने पूछा?

जी!ओके ये आपके लिए कह वो श्वेत चिट निकाल अर्पिता को देता है।अर्पिता असमझ की स्थिति में उसे पढ़ती है -

ये मेरी तरफ से तुम्हारे लिए, :मेरे जन्म दिवस की भेंट'! ☺️

लिखावट देख वो समझ जाती है कि ये प्रशान्त ने ही भेजा है।वो ऑर्डर ले लेती है और ऊपर चली जाती है।हॉल में पड़े हुए सोफे पर बैठ वो उसे खोलती है जिसमे बर्गर देख वो खुशी से चौंक जाती है।, "क्या कहें हम अब आपसे प्रशान्त जी"यूँ बिना हमारे कहे समझ लेने की कला आम बात नही होती।सच ही कहा है किसी ने है रूह को समझना भी जरूरी, महज़ हाथो को थामना साथ नही होता! कब कैसे आप हमें समझने लगे है ये बात हम खुद नही समझ पाये।बस इतना पता है हमे कि --

जैसे भोर की रश्मि रात्रि के अंधकार को दूर करती है कुछ वैसे ही आप हमारे लिए है 'शान' !

वो जिसने हमारा तब साथ दिया जब हम हर ओर से नाउम्मीद थे।तब जब हमे सहारे की सबसे ज्यादा आवश्यकता महसूस हुई थी।हमें तो आपकी इस परवाह से भी इश्क़ हो गया है शान! इतना कि हमारे सारे अल्फाज भी कम पड़ गए है इसे अल्फाजो में ढालने के लिए.. अब तो हम जताने से भी डरने लगे है क्योंकि सुना है इश्क़ नाम के पंछी को जमाने की नजर बड़ी जल्दी लगती है।और पंछी घायल हो ऐसे गिरता है कि या तो वो तर जाता है या या मर जाता है।

वो प्लेट लेने रसोई में जाती है तो उसे नोट बुक दिख जाती है।उसे उठा कर वो उसमे चंद लाइन लिखती है एवं बाहर आकर हेलमेट रखने वाली जगह पर वो चिट दबाकर रख देती है।

सोफे पर आ वो टेबल पर रखा बर्गर फिनिश करती है और कोल्ड कॉफी ले जाकर फ्रिज में रख आती है।

कुछ देर रेस्ट करने के बाद वो घड़ी देखती है और बैग उठा एकैडमी के लिए निकल जाती है।

इधर उसके निकलने के बाद प्रशान्त श्रुति को लेकर घर आ जाते हैं।श्रुति के हाथ मे एक बड़ा सा पैक्ड खाने का पार्सल होता है जो प्रशान्त ने सबके लिये कराया है।(अब हमारे प्रशांत जी सेल्फिश थोड़े ही है जो केवल अर्पिता के लिए ही ऑर्डर प्लेस करेंगे)

प्रशान्त अंदर आते है और हेलमेट अपनी जगह रखते है जहां नोट देख वो मुस्कुराते हुए उठाते है..

जैसे भोर की रश्मि रात्रि के अंधकार को दूर करती है कुछ वैसे ही आप हमारे लिए है 'शान'! ☺️

शान! नाम पढ़कर प्रशान्त चौंके! और बोले अप्पू, तो तुमने पता लगा ही लिया मेरी सीक्रेट पहचान के बारे में।वेरी इंटरेस्टिंग!लेकिन पता लगाया तो कैसे?क्योंकि यहां मैंने ऐसा कुछ नही छोड़ा,प्रेम भाई के अलावा न ही यहां किसी को पता है मेरे इस नाम के बारे में।फिर तुमने कैसे पता लगाया।।

खैर ये बात तुमसे पूछुंगा।अभी के लिए मुझे निकलना है नही तो देर हो जाएगी।।वो जल्दी से अपने कमरे में जाते हैं और वहां से गिटार उठा एकैडमी के लिये निकल जाते हैं।अर्पिता क्लास में पहुंच चुकी होती है।और क्लास अटैंड करती है।वहीं प्रशान्त एकैडमी के केबिन में इंतजार कर रहे मिस्टर खन्ना से जाकर मिलते हैं।
कुर्ता धोती पहने, माथे पर दुर्लभ प्राप्त होने वाले लाल चंदन का तिलक धारण किये,चेहरे पर रौब,और आंखों में तेज टपकता हुए वो एक औसत लंबाई का लगभग पैतालीस वर्षीय व्यक्ति है।जो प्रशान्त को देखते ही माथे तक दोनो हाथ जोड़ कर प्रणाम करता है।जो उसके दबंग स्वभाव को दर्शाता हुआ प्रतीत होता है।उसके पीछे काले कपड़ो में दो व्यक्ति खड़े है जो हावभाव से उसके प्रोटेक्टर प्रतीत हो रहे हैं।

मिस्टर खन्ना :- तो आप है प्रशान्त मिश्रा!
प्रशान्त :- यस!और आप शायद मिस्टर खन्ना!चार बजे आपसे बात हुई थी।

मिस्टर खन्ना :- जी।पूरा नाम अभयेन्द्र प्रताप खन्ना।
प्रशान्त:- ओके।तो आप बताइए किस लिये मिलना चाहते थे आप?
मिस्टर खन्ना :- बताते है भाई!इतनी भी जल्दी क्या है तनिक रुकिए तो सही।

प्रशान्त:- थोड़ा तल्ख लहजे में, देखिये आपके पास समय की भरमार होगी लेकिन मेरे पास समय का अभाव है,काहे कि मुझे यहां लेक्चर अटैंड करने हैं।

एक दिन नही करोगे तो आसमान नही न टूट पड़ेगा।वैसे भी रविश बोल रहा था कि आप यहां अपनी मर्जी से पढ़ाते हैं।कोई फीस वगैरह नही लेते हैं।तो एक दिन न् पढ़ायेगा तो कछु बिगड़ियेगा थोड़े ही।

फिर तो आपने यहां आकर अपना टाइम वेस्ट किया है।क्योंकि जिसे समय की कदर नही उसके लिए मेरे पास समय नही।गुड बाय!कह प्रशान्त उठ जाते है और अपनी क्लास में जाने लगते हैं।

प्रशान्त को यूँ इस तरह रूखा व्यवहार कर जाता हुआ देख वो व्यक्ति अपना हाथ उठा इशारा करता है तो वो दोनो उसके प्रोटेक्टर उसके आगे आकर खड़े हो जाते हैं।

प्रशान्त रुक जाता है और मुड़ कर उसकी ओर देखता है।

मिस्टर खन्ना:- अब सीधी तरह आप रुके नही तो मैं क्या करूँ।मैंने तो कहा था पहले ही कि मेरी पूरी बात सुने बिना नही जाइयेगा।

प्रशान्त (थोड़ा गुस्से में) :- तो मैंने कौन् सा आपकी बात सुनने से मना किया था।अब जब आप समय ही व्यर्थ करने पर उतारू है तो इसमें मैं क्या कर सकता हूँ।

ओके तो मैं सीधा मुद्दे पर आता हूँ।बात बस इतनी सी है कि मेरे घर दो बच्चे है जिन्हें आपको संगीत सिखाना है।इस एकैडमी की ही एक लड़की पूर्वी ने आपकी बड़ी तारीफ कर दी उन बच्चों से सो उन्होंने जिद पकड़ ली है कि उन्हें आपसे ही संगीत सीखना है।

पूर्वी! पूर्वी ने कैसे?क्या आप पूर्वी को जानते हैं।

मिस्टर खन्ना :- मेरी लड़की अश्लेषा की दोस्त है।इसी कारण घर मे आना जाना लगा रहता है।

प्रशान्त :- ठीक।लेकिन मैं कहना चाहूंगा कि जिन्हें भी संगीत सीखना है वो यहीं एकैडमी में आकर सीख सकते हैं।जैसा कि मैंने पहले भी कहा था कि मेरे पास समय का अभाव है सो घर जाकर पढ़ाने के लिये मेरे पास समय नही है।

मिस्टर खन्ना :- तो क्या ये आपका अंतिम निर्णय है।
प्रशान्त :- जी।

मिस्टर खन्ना :- बच्चे यहां नही आएंगे आपको वहीं पढ़ाने आना होगा तो आना होगा।न सुनने की आदत तो नही है मेरी।।आप एक बार फिर से सोच विचार कर लें।

अरे।आप तो सरासर धमकी दे रहे है।और प्रशान्त धमकी से डर जाए ये गलतफहमी है आपकी खन्ना साहब।प्रशान्त ने कहा और वहां से उठकर क्लास के लिये निकल गए।

धमकी समझने की भूल कर आपने गलती कर दी मिश्रा जी।अब गलती का परिणाम भुगतने के लिए भी तैयार रहिए।कहते हुए वो खड़ा होता है और बाहर निकल जाता है।बाहर उसकी गाड़ी होती है सो गाड़ी में बैठ वो एक फोन घुमाता है और कुछ ऑर्डर दे कुटिलता से मुस्कुराते हुए फोन रख देता है ---

क्रमशः...