अर्पिता अटकते हुए धीरे धीरे आगे कहती है लेकिन हमारी एक समस्या भी है!!
प्रशांत जी :- मैं जानता हूँ।तुम्हारी समस्या है कि तुम यहाँ रहकर अंकल आंटी को कैसे ढूंढोगी।तो इसके लिए मेरा यकीन मानो मैं पूरी कोशिश करूंगा उनके बारे में पता लगाने की।वो जहां भी होंगे बिल्कुल ठीक होंगे।उम्मीद वो चिराग है जो अंधेरो से जूझने की भरपूर शक्ति देता है।
बस तुम खुद को सम्हालो और हिम्मत मत हारो।हम सब मिल कर उन्हें ढूंढ निकालेंगे।
प्रशान्त की बात सुनकर अर्पिता उनहे थैंक्स कहती है।तो प्रशांत जी बोले और भी कुछ कहना है तो कह सकती हो।
अर्पिता न में गर्दन हिला देती है तो प्रशान्त जी उससे कहते है फिर थैंक्स कहने की भी आवश्यकता नही है।तुम्हारी मदद करने के पीछे कुछ कारण है,पहला तो कारण है हमारे घर का आपस में जुड़ने वाले संबंध "किरण और परम्" के रूप में।दूसरा काऱण है तुम श्रुति की दोस्त है और तुमने भी मुसीबत के समय उसे अकेला नही छोड़ा।तीसरा कारन है इंसानियत,कहते हुए चुप हो जाते है । और चौथा कारण है 'इश्क़'! जो मुझे तुमसे बेहद है प्रशान्त जी ये मन ही मन कहते है एवम अर्पिता को रूम पर जाने को कहते है और खुद ऑफिस के लिये निकल जाते हैं।अर्पिता वहां से रूम पर निकल जाती है।रूम पर जाकर वो हॉल में बैठती है और कुछ सोचने लगती है।
अर्पिता :- हमे मां पापा को भी ढूंढना है।माना कि प्रशांत जी मदद करेंगे इसका अर्थ ये तो नही कि हम हाथ पर हाथ रख बैठे रहें।हम एक बार भाई से इस बारे में बात कर लेते हैं।लेकिन भाई... वो तो पहले से ही हमारी आगे पढ़ाई के चलते सबसे खफा थे।।तभी तो भाभी के साथ वो बैंगलुरु मे जॉब करते हुए अलग रह रहे थे।ऐसे में अगर हमने उन्हें बता दिया कि हम यहां अकेले रह रहे है तो फौरन हमे उनके पास आने के लिये कह देंगे।।फिर बैंगलुरु में रहकर हम मां पापा को कैसे ढूंढेंगे।नही अभी हमे इस बात को सीक्रेट ही रखना होगा।किस्मत भी न जाने कैसे कैसे खेल दिखाती है।।अब हमें सब कुछ अपने दम पर शुरू करना होगा।यानी अब हमें पढ़ाई के साथ साथ जॉब भी कंटीन्यू करनी होगी।जॉब..!इस शहर में बिन जान पहचान के ढूंढना कितना मुश्किल है।क्या हम एक बार श्रुति,या प्रशान्त जी से बात करे..नही अर्पिता पहले से ही उन्होंने हमारी इतनी मदद की है और अब..कैसे..?!अब खुद से ही हमें कोशिश शुरू करनी होगी काहे कि जितनी जल्दी हमे जॉब मिलेगी उतनी ही जल्दी हम अपने माँ पापा को ढूढने की कवायद शुरू करेंगे।।हमे पूर्ण विश्वास है वो जहां भी है सुरक्षित हैं।गॉड जी इतने निर्दयी नही हो सकते ..!
लेकिन हम शुरू कहां से करे।कैसे करे क्या करे कुछ समझ नही आ रहा है हमें।कहीं न कहीं से तो शुरू करना ही होगा न।सोचते हुए अर्पिता समाचार पत्र देखने लगती है।जिसमे कुछ एक जॉब के लिए इश्तिहार दिए रहते हैं।अर्पिता दो इश्तिहारों को छांट कर अलग करती है उन पर पेंसिल से गोल बना देती है।अब दूसरी समस्या उसके सामने खड़ी हो जाती है फोन की।काहे कि उसके पास फोन तो है नही उसका फोन तो कल ही गिर चुका होता है।ये नई परेशानी देख वो उदास हो जाती है।सच मे नई शुरुआत करना इतना आसान भी नही होता।अर्पिता श्रुति के नोट्स निकालती है और उन्हें पढ़ने लगती है।कुछ घण्टे बाद वो उठती है और चलने फिरने लगती है।प्रशांत जी के कमरे का लॉक लगा है और बाकी पूरा फ्लोर खाली है ये सोच वो रसोई बालकनी श्रुति का कमरा सब एक बार फिर से देखती है।अर्पिता बालकनी में जाकर खड़ी हो जाती है और खिले खिले पौधों को देखने लगती है।कुछ एक उनमे सूख रहे है और कुछ एक कि जमीन थोड़ी कड़क हो गयी है।ये देख वो उन पौधों की देखभाल करते हुए सड़ी गली पत्तियां हटा कर उनकी गोड़ाई करती है और उनमे पानी डाल देती है।एवम उन्हें दोबारा सलीके से सेट कर देती है।उसके बाद वो रसोई में आ जाती है जो प्रशान्त और परम् ने पहले से इतनी ज्यादा व्यवस्थित करके रखी होती है कि कोई भी देख हैरान हो जाये कि ये रसोई दो पुरुष सम्हालते हैं। अर्पिता आगे बढ़ती है जहां उसकी नजर एक छोटे से फ्रिज पर पड़ती है। जिसके ऊपर वही प्रशान्त जी के रूम वाला पेपरवेट रखा होता है।अर्पिता आगे बढ़ कर उसे उठाती है तो उसके नीचे रखा पेपर उसे दिख जाता है।अर्पिता जल्दी जल्दी उसे खोल कर देखती है जिसमे लिखा होता है, " फ्रिज में खाना रखा हुआ है भूख लगने पर गर्म कर खा लेना" और अंकल आंटी के बारे में सोच सोच कर परेशान नही होना मैं अपने तरीके से पता करने की पूरी कोशिश कर रहा हूँ" ☺️!!
नोट देख अर्पिता कहती है श्रुति तुम सच मे बहुत लकी हो जो तुम्हे ऐसे प्यार करने वाले भाई मिले हैं।जो एक अजनबी की इतनी परवाह कर सकता है वो अपनी फैमिली की कितनी वैल्यू करता होगा।।
उधर अपने ऑफिस में प्रशान्त जी अपने कैबिन में फ्री होकर बैठे होते हैं।तभी वो अपना फोन निकलते हैं और उसमें कानपुर के सिटी हॉस्पिटल के एक सीनियर डॉक्टर का नंबर डायल करते हैं वो कुछ देर उनसे बात करते है और फोन रख देते हैं।उनके मन मे अर्पिता का ख्याल आ जाता हैं।अर्पिता न जाने क्या कर रही होगी।कहीं फिर से अंकल आँटी को लेकर फिर से परेशान तो नही हो रही है।परेशान तो हो ही रही होगी।मैं श्रुति से पूछता हूँ।कहते हुए वो श्रुति को कॉल लगा घर जाने के बारे में पूछते हैं।
उधर अर्पिता खाना निकालती है और गर्म करने रख देती है।कुछ ही देर में खाना गर्म हो जाता है।वो घड़ी देखती है जिसमे दोपहर के दो बज रहे होते है।श्रुति भी आने बाली होगी ये सोच वो खाना निकाल कर लगा लेती है और बाकी बर्तन साफ कर उनकी जगह रख देती है।कुछ ही देर में श्रुति आ जाती है।और आते ही अर्पिता से कहती है --
श्रुति - अप्पू, तुम एक बात बताओ मुझे!! यार दोस्त तुम मेरी हो और फिक्र तुम्हारी मेरे भाई इतनी करते है जैसे मुझसे ज्यादा वो तुझे जानते हैं।पता है सुबह से दस बार फोन कर पूछ चुके है कि मैं घर कितनी देर में पहुंच रही हूं।तुम यहाँ अकेली होगी।तुम्हे अच्छा भी नही लग रहा होगा।पता नही तुमने खाना ..कहते हुए रुक जाती है फिर पूछती है
अप्पू, तुमने खाना खाया ?
अर्पिता - वो हमने गर्म कर लिया है तुम्हारा ही इंतजार कर रहे थे हम।अब आ गयी हो तो मिल कर खाएंगे।
ओएमजी।मतलब प्रशांत भाई सही कह रहे थे तुमने अभी तक खाना नही खाया होगा।।यार अब तो तुम मुझे बताओ ये राज ...भाई को हर किसी के बारे में हर बात कैसे पता चल जाती है।
तुम्हे पता है भाई की ये खासियत है वो किसी से एक या दो मुलाकात कर ले फिर उसके स्वभाव के बारे में न जाने कैसे बता देते है।घर पर भी उन्हें सबकी पसंद नापसंद सबके बारे में सब पता है।लेकिन उनकी खुद की पसंद नापसंद के बारे में कोई नही बता सकता सिर्फ एक इंसान के...
और वो एक इंसान जरूर तुम्हारी राधिका भाभी होंगी।अर्पिता ने श्रुति की बात पूरी करते हुए कहा।
अर्पिता की बात सुन श्रुति आंखे बड़ी कर हैरानी से उसकी तरफ देखती है।जिसे देख अर्पिता कहती है इसे ही ऑब्जर्वेशन कहते है।समझी...! यही खासियत है दोनो में।
यार दोनो नही तीनो..! तीनो में।श्रुति ने कहा।तीनो! तीसरा कौन? अर्पिता ने पूछा।
तुम और कौन श्रुति आराम से सोफे पर बैठते हए बोली।।तभी तो दो ही मुलाकात में इतना कुछ पता कर लिया।।अब तो बच के रहना पड़ेगा तुझसे।
कोई जरूरी न् है तुम ऐसी ही अच्छी हो।अर्पिता ने श्रुति से कहा।
अच्छा तुम एक बार भाई से बात कर लो वो कह रहे थे कि घर पहुंच कर एक बार तुमसे बात करा दूं।सबकी परवाह करते है मेरे भाई।कहते हुए श्रुति प्रशान्त को फोन उठा कर कॉल लगाती है।
अर्पिता रिंग जा रही है भी फोन उठा ले तो तुम बात कर लेना मैं बस अभी आई समझा कर.. कहते हुए श्रुति फोन् अर्पिता को दे कर वहां से अपने कमरे में अंदर चली जाती है।
वहीं श्रुति के यूँ अचानक से फोन देने पर अर्पिता हड़बड़ा जाती है..क्या कहे फोन पर समझ नही पाती है..
प्रशांत जी फोन पर:- हेल्लो श्रुति! घर पहुंच गई क्या।।अप्पू कैसी है वो ठीक है?
हम्म।अर्पिता धीरे से कहती है।उसकी आवाज सुन प्रशान्त जी एक पल को तो चुप हो जाते हैं।दो घड़ी की खामोशी उनके बीच मे आ जाती है..जिसे तोड़ते हुए वो कहते है "गुड"! और मेरा नोट मिला?
अप्पू :- जी मिला!
प्रशान्त :- तो फिर काम पूरा किया?
अप्पू :- जी बस श्रुति का इंतजार कर रहे है हम।
प्रशान्त :- बहुत अच्छे।।वो अभी आती ही होगी।तुम उसके साथ समय व्यतीत करो अगर कोई परेशानी है तो बेझिझक श्रुति या मुझसे कहना, ठीक है?
प्रशान्त ने बड़े ही अपनेपन से कहा जिसे अर्पिता महसूस कर भावुक हो जाती है।और कहती है जी।
उसकी आवाज में उदासी को महसूस कर लेते है लेकिन कुछ कहते नही।अच्छा अब मैं रखता हूँ बाय।
बाय अर्पिता कहती है और फोन रख देती है।और सोचती है कोई इतना अच्छा भी हो सकता है हमने कभी सोचा ही नही।तब तक श्रुति आ जाती है।उसे देख अर्पिता अपनी आंखों में भरे हुए आंसू पोंछ लेती है।
श्रुति ये देख लेती है।अप्पू, रोना नही है यार।भरोसा रखो सब अच्छा होगा।सब ठीक होगा
भाई ने कहा है न कि वो अंकल आंटी को ढूंढ लेंगे।तुम ज्यादा न सोचो।।और मुस्कुराते हुए ये खाना एन्जॉय करो और बताओ मेरे भाई कुक कैसे है?
श्रुति ने अप्पू का मन हल्का करते हुए उससे कहा।
ओह ऐसी बात है फिर तो हम अभी बताते हैं।वैसे ये तो बताओ कि ये खाना तुम्हारे कौन से भाई ने बनाया है।पता चले हम तारीफ पर तारीफ करते रहे और हमें ये ही न पता हो कि बनाया किसने?अर्पिता सोचते हुए कहती है।
अब ये कौन सी बड़ी बात है अप्पू, अभी बताती हूँ।ये खाना हमारे प्रशान्त भाई ने बनाया है।परम भाई बनाते नही है बस प्रशांत भाई की मदद करते हैं।खैर अब तुम मुझे बताओ कैसा लगा? कहते हुए श्रुति एक्साइमेन्ट में अर्पिता की ओर देखने लगती है।
अर्पिता ओके कह टेस्ट करती है और मुंह बनाते हुए कहती है काफी अच्छा...है।सच कहूं तो हमे बनाना ही नही आता।बस इतने दिनों में यहीं सीख लिया थोड़ा बहुत।।
कोई नही सीख लेना।।और फिर भी न आये तो तुम परमानेंट यही रह लो ।मेरे भाई के साथ उनकी पार्टनर बनकर...! लाइफ टाइम सर्विस मिलेगी।।श्रुति हंसते कहती है..।उसकी बात सुन अर्पिता उसके सिर पर चपत लगाते हुए कहती है कुछ ज्यादा ही दिमाग चल रहा है कोई जरूरत नही है इतना फालतू दिमाग चलाने की...! ओ तेरी...! ये हम क्या कह गए अप्पू।।क्या कमाल का आइडिया दिया है।अप्पू कितना स्वीट साउंड कर रहा है।मेरी बेस्ट फ्रेंड मेरे भाई के साथ...!हाय..?
सोचते हुए श्रुति कल्पना करने लगती है।
जिसे देख अर्पिता नकली गुस्से में कहती है।लगता है तुम्हे हमारा यहां रहना रास नही आ रहा है।अब अगर तुमने अपना ये मजाक का कारखाना बंद नही किया तो हम यहां से चले जायेंगे।ओके...!
नही....नही....मेरी जान।इतना गुस्सा अच्छा नही है वो तो मैं तुझे हंसाने के लिए कह रही थी।अब नही कहूंगी लेकिन ये जाने की बात न करो...कहते हुए अपने माथे पर एक हाथ रख एक हाथ पीछे कर लेती है।
उसकी नौटंकी देख अर्पिता खिलखिलाकर हंसने लगती है।
श्रुति:- बस यही मुस्कान देखना चाह रही थी मैं।तुम्हे पता है सात्विक आज तुम्हारे बारे में पूछ रहा था।
अर्पिता :- अच्छा क्या कह रहा था वो?वैसे कैसा है वो?
श्रुति:- है तो एकदम चंगा।लेकिन आज थोड़ा बुझा बुझा रहा कॉलेज में।शायद उसकी लाइफ में कोई प्रॉब्लम चल रही है।मैंने बहुत पूछा लेकिन् उसने कुछ कहा नही टाल दिया।।
अर्पिता :- ओह कोई नही हम उससे बात कर लेंगे पूछेंगे।और बता कॉलेज के क्या हाल चाल है।
सब बढ़िया है लेकिन तेरे बिन न आज मज़ा नही आया कल जब साथ चलेंगे तो बहुत मस्ती करेंगे।श्रुति मुस्कुराते हुए कहती है।
श्रुति की बात सुन अर्पिता एक पल को खामोश हो जाती है।फिर कहती है श्रुति , हम अब कॉलेज रेगुलर नही जाएंगे।कभी जब बहुत जरूरी होगा तब ही जाएंगे!
क्या? लेकिन क्यों अप्पू?श्रुति ने पूछा।
अर्पिता बोली क्योंकि हम अब जॉब करना चाहते हैं इसीलिए।अब इतना समय तो नही मिलेगा न कि हम कॉलेज भी जॉइन कर ले और जॉब भी साथ साथ कर ले।
क्या..श्रुति हैरानी से बोली।तुम जॉब करोगी।तो मुझे कॉलेज अकेले ही जाना पड़ेगा।नही फिर तो मैं भी रेग्युलर नही जाऊंगी।।जब जाऊंगी तुम्हारे साथ ही जाऊंगी।।बस!श्रुति अपना फरमान सुनाते हुए अर्पिता से कहती है और उठकर अपने कमरे में चली जाती है।
ओह हो ये लड़की भी न।।हमारी मजबूरी नही समझ रही अगर हम कॉलेज जाएंगे तो कभी न कभी किरण या मौसा जी को पता चल ही जायेगा न।और हम अभी ये रिस्क नही ले सकते।।पता चला हमारी वजह से हमारी मासी के घर मे महाभारत छिड़ गया।खुद से ही कहते हुए अर्पिता खाली पड़े बर्तनों को ले जाकर साफ़ कर रख देती है।
और बाहर आकर सोफे के टेबल पर रखी मैगजीन पढ़ने लगती है।वो संगीत हस्तियों से रिलेटेड होती है जिसे देख वो सोचती है हो न हो ये जरूर प्रशांत जी की ही पसंद होगी।
कुछ देर पढ़ने के बाद वो श्रुति के पास चली जाती है जो बेड पर औंधे मुंह लेट आराम से पढ़ाई कर रही है।उसे देख अर्पिता हंसने लगती है और उसके पास जाकर कहती है ये पढ़ाई का कौन सा नया तरीका ईजाद किया है तुमने।
श्रुति अपना ध्यान किताब से हटा अर्पिता को देखती है और कहती है..ये तरीका है श्रुति मिश्रा का।।जो अपने आप मे इकलौता पीस है तो उसके तरीके भी इकलौते ही होंगे न।।
हां ये भी सही है।इस बारे में हमने सोचा ही नही।ठीक है तुम पढ़ो हम बाहर जाकर बैठते हैं।
ओके कह अर्पिता वहां से बाहर चली आती है।और आकर हॉल में बैठ जाती है।शाम के पांच बज चुके हैं।और प्रशांत जी आज जल्दी ही ऑफिस से आ जाते है।बाइक नीचे गैलरी में खड़ी करते हुए मकान मालकिन देख लेती है।वो अपने कमरे से निकल प्रशांत जी के पास आकर खड़ी हो जाती है।
प्रशान्त :- आंटी जी आप!प्रणाम।।
मकान मालकिन :- प्रणाम !! तुम्हे देखा तो आ गयी।।वैसे आज कुछ ज्यादा जल्दी आ गए तुम?
हां आँटी जी आज कुछ खास काम नही था तो शाम की क्लास न जाकर यहीं आ गया।अब यहीं से निकल जाऊंगा।प्रशान्त ने कहा।
माकन मालकिन:- ओह अच्छी बात है।वैसे आज श्रुति भी जल्दी आ गयी।शायद अपनी दोस्त की वजह से आ गयी होगी। सुबह श्रुति ने बताया था न कि उसकी दोस्त यहीं रुकेगी ..!
उसकी बात सुन प्रशांत मुस्कुराते हुए मन ही मन् कहते है मुझे खबर थी कि आप बिना वजह तो चलकर मेरे पास बात करने आएंगी नही।घुमा फिरा कर बात तो अप्पू की छेड़ेंगी जरूर।और उनसे कहता है :- हां आँटी जी वो सुबह हम लोग जल्दी में थे तो बस इतना ही बोल पाये आपको कि वो आज यहीं रुकेगी।लेकिन बात ये है कि वो अब से श्रुति के साथ यहीं रहेगी।दोस्त है उसकी यहां पढ़ने के लिए आई है एक ही कॉलेज में है तो साथ आना जाना रहेगा अब अकेली इतने बड़े शहर में कहां रहेगी ।इसिलिये श्रुति ने उसे यहीं रहकर पढ़ाई करने के लिए कहा है।।
ये तो ठीक किया श्रुति ने।अब इतने बड़े शहर में अकेले रहना भी तो समझ नही आता।बड़ा मुश्किल होता है।अब जितना किराया वहां देगी उतना यहां मिलकर एडजस्ट कर लेगी है न्।।मकान मालकिन ने प्रशांत के चेहरे की ओर देख कर कहा।जैसे कि वो आंखों से उसके एक्सप्रेशन को स्कैन कर रही हो।
उनकी सब गतिविधियों को समझते बुझते प्रशान्त उनसे कहते है जी आँटी जी इसी शर्त पर तो वो यहां रहने को तैयार हुई है।अच्छा अब मैं चलता हूँ बाय..!
इधर अर्पिता प्रशान्त जी की आवाज सुनती है तो उठकर सीढियो के पास उसे देखने आती है।लेकिन मकान मालकिन की बात सुनकर वहीं खड़ी हो जाती है।
प्रशांत को जाता देख वो पीछे से टोकती हुई कहती हैं "अरे प्रशान्त! बेटे तुम तो घनी जल्दी में लग रहे हो'।मेरी पूरी बात भी नही सुनी और चल दिये।
ओह नो अब ये वही कहेंगी आज हमारे जाने के बाद अर्पिता रूम लॉक कर बाहर गयी थी।।इनकी जासूसी भी न कभी खत्म नही होनी है।सोचते हुए वो रुक जाते हैं ..और मुस्कुराते हुए पीछे मुड़ मकान मालकिन को देखने लगते हैं
अरे वो मैं ये पूछ रही थी कि ये पहले कहीं और रहती थी क्या? आज ये बाहर गयी थी न फिर कुछ देर बाद वापस आ गयी।।
अरे आँटी जी कहीं और नही रहती कल ही तो बाहर से आई है। वो क्या है न आज ठहरा बुधवार और ये ठहरी भगवान कृष्ण की भक्त तो बस मंदिर गयी थी दर्शन के लिए।।प्रशांत जी ने बातें बनाते हुए कहा और फिर ऊपर चले जाते हैं।और सीढियो के पास खड़ी अर्पिता को देख रुक जाते हैं।
वो ...सॉरी..वो आँटी जी।।प्रशांत जी अटकते हुए कहते हैं।उनके चेहरे के हावभाव को देख अर्पिता उनके पास आती है और धीरे से कहती है आज फिर आपने हमारे लिये झूठ बोला प्रशान्त जी।
उसकी बात सुन प्रशांत जी उसके थोड़ा और पास आते है और कहते है, हां!लेकिन इस झूठ से किसी का भी कोई नुकसान नही होगा।हमारे घर सभी ठाकुर जी के भक्त है तो उनकी नीति अपनाने में संकोच नही करते।और मुस्कुराते हुए वहां से अपने कमरे की ओर बढ़ जाते हैं।कमरे का लॉक खोल वो अंदर जाकर चेंज करते है।और सोचते है इनका व्यवहार देख तो मुझे यकीन हो गया है कि ये बिल्कुल ठीक है।बस इसी तरह खुद को सम्हालते हुए आगे बढ़े।और अपना गिटार लेकर बाहर चले आते हैं।
अर्पिता जो वहीं होती है उसे देख कहते है अप्पू सुनो, आज तुम बोर हो गयी होगी न घर पर।अगर चलना चाहो तो मेरे साथ अकैडमी चल सकती हो।
जी।।हम श्रुति से पूछ कर तैयार होकर आते हैं।हो सकता है वो भी चले।।अर्पिता ने कहा।
प्रशान्त :- ओके।।ठीक है पूछ लो।मैं नीचे इंतजार कर रहा हूँ।जल्दी आना। प्रशान्त जी अपना गिटार लेकर नीचे चले आते हैं।
अर्पिता कमरे में जाती है और श्रुति को देखती है जो बेड पर ही लुढ़क चुकी है।।उसे देख अर्पिता कहती है हम तो आये थे इन्हें पूछने लेकिन यहां तो ये खुद सपनो की दुनिया मे ही खोई हुई है।चल अर्पिता खुद ही चलो।कहते हुए वो दो मिनट में तैयार हो नीचे आ जाती है।जहां प्रशान्त जी उसका इंतजार कर रहे होते हैं।अर्पिता बाइक पर बैठ जाती है और प्रशान्त जी बाइक दौड़ा देते हैं।
अर्पिता और प्रशान्त दोनो ही खामोश रहते हैं।अर्पिता मन ही मन खुश हो रही है आखिर आज वो अपने पहले प्यार के साथ, कुछ अच्छे पल व्यतीत कर रही है।वहीं प्रशांत भी मन ही मन मुस्कुराते हुए कहते है 'मेरी वो कहीं तो होगी" आज मेरे पास है उसके साथ आज मेरी पहली छोटी सी बाइक डेट हो गयी।शुक्रिया ठाकुर जी। दोनो अपने मन मे एक दूजे के साथ को पाकर खुश हो रहे है लेकिन जता कोई नही रहा है।दस मिनट में ही वो अकैडमी पहुंच जाते हैं।अकैडमी के गेट पर वो बाइक रोक देते है।अर्पिता दरवाजा देख उतर जाती है।
यहीं एक तरफ रुकना मैं बाइक पार्क कर अभी आया।प्रशान्त जी अर्पिता से कहते है।
जी कह अर्पिता एक तरफ खड़ी हो जाती है तो दरवाजे से आने जाने वाले छात्र उसे देख आगे बढ़ जाते हैं।
चले।प्रशांत जी ने आते हुए अर्पिता से कहा।
जी !! कह दोनो अंदर पहुंचते है।प्रशान्त उसे अपनी क्लास में बुला ले जाते है और कोई भी सीट चुनकर बैठने को कहते हैं।अर्पिता जानबूझकर सबसे आखिर वाली सीट चुनती है और जाकर उस पर बैठ जाती है।
क्रमशः .....