अध्याय 15
सुबह 3:30 बजे के करीब ताई अपने दो लठैत के साथ कार से आकर उतरी। उन लोगों का इंतजार करते हुए रितिका जाग रही थी, जल्दी जल्दी उठी।
"आओ.. दीदी बरामदे में आकर बैठो...."
"बैठने की फुर्सत नहीं है..…जल्दी से बच्ची को भेज दे... हमें जाना है..." ताई बहुत नम्रता से बोलती हुई जल्दी में थी।
घर के अंदर नहीं आई, घर के बाहर ही खड़ी हुई थी।
"ठीक है दीदी.... अभी बुला कर ला रही हूं।"
रितिका अंदर आई। हल्की रोशनी थी। मिट्टी के तेल का दीया जल रहा था। राकेश खर्राटे भर कर सो रहे थे। मनाली और कमला पास-पास सोए हुए थे। गीता नीचे जमीन पर सिमटी हुई पड़ी थी।
"अरी... गीता.." उसके गाल को थपथपाया । मौसी कहकर बुदबुदाई।
मौसी.. बुदबुदाई।
"उठ रे..."
रितिका डांटने लगी। उसके कंधे पर जोर से मारा। हड़बड़ा कर उठी गीता। आंखें फाड़-फाड़ कर देखने लगी।
"मौसी... क्यों जगा रही हो...?"
"मेरे पीछे आ री...."
उसे खींचते हुए बाहर की तरफ लाई।
"यह लीजिए दीदी...."
गीता को ताई के हाथ सौंपा। ताई के दिए रुपयों को रितिका ने ले लिया।
"आजा प्यारी बिटिया चलते हैं।"
गीता के गाल को चूम कर ताई अपने कार के सामने गई ।
"नहीं मौसी.... मैं इनके साथ नहीं जाऊंगी..." गीता बिलखने लगी।
"यहां रहकर क्या करने वाली है ? गाय चराने के लिए धूप में मरना है क्या? दीदी तुझे रानी जैसे रखेगी। दीदी के साथ कपड़े का व्यापार करके मुझे सिर्फ हर महीने रुपये भेज देना?" रितिका ने डांटा।
"मौसी..." गीता स्तंभित रह गई। मौसी इतनी जल्दी मेरा सौदा कर देगी उसने नहीं सोचा।
"एक थप्पड़ लगाऊँ तो सारे दांत गिर जायेंगे... जिद्द ना करके दीदी के साथ चली जा... दीदी को देर हो गई।"
रुपयों को गिनते हुए घर के अंदर रितिका जाने लगी।
"आ जाओ बिटिया हम चलें।"
ताई के दोनों लठैतों ने उसके हाथों को पकड़कर ले गए। गीता घबराई।
पूरा गांव सो रहा था।
'मैं चिल्ला कर आवाज दूँ तो कोई भी इस वक्त नहीं आएगा ऐसा उसको लगा।'
वैसे भी कोई भाग कर आ जाएं तो मुझे नहीं बचाएगा वह बात उसके समझ में आई।
रितिका के डर से वे पीछे हट जाएंगे।
मुझे तो इस ताई के साथ जाकर बर्बाद होना पड़ेगा।
मान, अपमान, परिवार का गौरव और मनाली कमला के भविष्य के बारे में सोच कर ही तो मैं इतने दिनों से सहन करती हुई रही?
उस गौरव और सम्मान की ही बलि चढ़े तो चुप रहना चाहिए क्या?
"अबे ऐसे कैसे खड़े हो..? लड़की को खींचकर कार के अंदर डालो..." कहते हुए आगे के सीट पर जाकर ताई बैठ गई। दोनों लठैत गीता को गाड़ी के अंदर करने की कोशिश करने लगे।
"छी: छी:... छोड़ो रे.."
अपने पूरे बल को समेट कर, उन्हें जोर से धक्का देकर घर के अंदर भागकर गीता चली गई।
"यह... क्या है.. यहां कहां भाग कर आ रही है?"
रितिका ने डांटा।
भागकर रसोई में घुसकर हँसिये को गीता ने हाथ में उठा लिया।
"गीता..." घबराकर रितिका ने उसे देखा।
"थू... तुम एक औरत हो क्या ?"
"रितिका के मुंह पर गीता ने थूका।
"क्या बात है तेरी जुबान बहुत चल रही है ?"
"चुपचाप ताई से जो रुपए लिए उसे वापस कर दे... नहीं तो इस हँसिये से ही तुझे काट दूंगी...." बिना सम्मान दिए बिना आवेश में चिल्लाती हुई हँसिये को ऊपर उठाने लगी।
वह बिल्कुल बदल गई।
उसकी आवाज ही बदल गई।
आंखें लाल हो गई।
उसकी नस और नाडिया बुरी तरह फड़फड़ाने लगी।
"कल्याणपुरा वाले बाबूलाल से मेरी शादी कराने की तुम्हारी हिम्मत पर मैं क्यों चुपचाप सहन की पता है ? बूढ़ा भी हो तो वह परंपरा होने वाली शादी थी। मेरे मुताबिक वह एक गौरव वाली शादी थी। इसीलिए मैंने विरोध नहीं किया। परंतु अब तुम जो कर रही हो वह काम तो माफ करने लायक नहीं है। मैं इसे सहन नहीं कर सकती।"
गीता के जोर से चिल्लाने के कारण हड़बड़ा कर मनाली और कमला उठ गए।
"वह ड्राइवर मोती बहुत अच्छा आदमी है। परंपरा के अनुसार लड़की मांगने आए। तुमने उसको अपमानित करके भेजा। फिर भी वे मेरे साथ भाग के आ जाओ ऐसा उन्होंने बहुत अनुनय-विनय किया। जिद्द भी की। मैं चाहती तो उसी समय भाग सकती थी!... ऐसा मैंने क्यों नहीं किया सोच कर देख? उसी से नहीं छोड़ा? कल्याणपुरा में देवी के मंदिर पर बाबूलाल जी के साथ मेरी शादी को रोकने के लिए पुलिस को लेकर आए! उस समय भी मैं चाहती तो पुलिस को कह सकती थी यह शादी मुझे पसंद नहीं! क्यों नहीं बोला तुमने सोच कर देखा?"
गीता...
"मेरी वजह से इस परिवार का गौरव खराब नहीं होना चाहिए.…. मनाली और कमला के भविष्य पर एक प्रश्नवाचक चिन्ह नहीं लगना चाहिए। उसके लिए.... इसके लिए इतने दिनों मेरे मन को पत्थर बना कर रखी... अब नहीं हो सकता... अब मैं सहन नहीं कर सकती..."
गीता आगे बोली "यदी तुम्हारी लड़की होती तो ताई को तुम सौंपती क्या?"
"गीता.…"
"मेरा नाम मत ले.... तुम जैसे लोगों को जिंदा ही नहीं रहना चाहिए..."
बाहर की तरफ रितिका दौड़ने लगी।
गीता भी हँसिये को लेकर बाहर आई।
इतने में पड़ोसियों की खिड़कियां खुल गई। बड़ी फुर्ती से लोग तमाशा देखने आ गए। द्रोपदी भी आगे आई।
"गीता... यहां क्या हो रहा है..."
"तुझे ही पहले मारना चाहिए। तुम्हारे जैसे लोगों को जिंदा नहीं रहने देना चाहिए.…तू भी औरत है ना... मेरी मौसी भी औरत है.. मुझे बेचने के लिए तूने उसे योजना बताई... उसके लिए उसने मुझे ताई को बेच दिया.." द्रौपदी के चेहरे पर उसने थूका। एकदम से द्रौपदी अपने आप को अपमानित महसूस किया ।
गीता काली माता बन गई।
ताई भीड़ को देखकर डर गई। पहले से ही उस गांव में वह बदनाम थी। गीता को चोरी छुपे ले जाने के लिए ही ताई रात के अंधेरे में आई। गीता ऐसे चिल्लाएगी, काली माता का रूप धारण करेंगी उसे उम्मीद नहीं थी।
"मेरे रुपए वापस करो।"
रितिका से रुपए छीनकर, अपनी जान बचाकर वह अपने लठैतों के साथ कार में चढ़कर चली गई।
"मुझे ही काटने आई तू...? अब तू इस घर में कैसे रहती है मैं देखती हूं...? रितिका चिल्लाई।
"तू बोले तो भी इस घर में मैं नहीं रहूंगी...
"कहां जाएगी...?
"तुम्हें क्या कहीं भी जाऊं...?
"वह दांतो को पीसी।"
"मुझे रोकी तो सचमुच में काट दूंगी....! मैं एक लड़की हूं... युवा लड़की हूं... मेरे मन में भी इच्छाएं होंगी। प्रेम है। तड़प है। उम्मीदें हैं। इतने दिनों मैं अपने आप को धोखा देती रही.... अब मैं अपने आपको धोखा नहीं दूंगी...."
गीता का तमाशा देखने जो आसपास के लोग आए वे स्तंभित रह गए। उन्हें बहुत खुशी हुई।
मनाली और कमला दोनों की आंखें लबालब भर आई और उन्होंने गीता को बड़े गर्व से देखा। राकेश ने भी बेटी को आश्चर्य से देखा।।
"एक लड़की हमेशा ही फूल जैसे नहीं रहेगी..."
कोई जोर से ऐसा बोला। हंसिए को नीचे फेंक कर अंधेरे में पैर जहां चले उसी तरफ गीता चली गई ।
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