Mission Sefer - 20 books and stories free download online pdf in Hindi

मिशन सिफर - 20

20.

चिंतित नुसरत राशिद के इंतजार में काफी देर तक बाहर खड़ी रही, पर इंतजार की घड़ियां थीं कि घटने का नाम ही नहीं ले रही थीं। आखिर थक-हार कर वह अंदर लौट आई थी और किचन में कुछ काम करके खुद को मसरूफ रखने की कोशिश में लगी थी। तभी उसे घर के बाहर किसी वाहन के रुकने की आवाज आई। वह हाथ का काम छोड़कर तुरंत बाहर भागी। बाहर खड़ी एंबुलेंस को देखकर वह परेशान हो उठी। उनके घर के सामने यह एंबुलेंस क्यों आई थी? उसका दिल कुशंका से धड़कने लगा था। अब्बू भी उसके पीछे आकर खड़े हो गए थे और एंबुलेंस देखकर सकते में खड़े थे।

अभी वे कुछ सोच भी नहीं पाए थे कि एंबुलेंस से दो लोग उतरे और घर के दरवाजे पर आकर अब्बू से पूछने लगे – “अंकल, राशिद यहीं रहता है ना?”

चिंतित अब्बू ने हकलाते हुए कहा था – “हां, यहीं पीछे वाले कमरे में रहता है, क्या बात है भाईजान?”

“उसका एक्सीडेंट हो गया था। दो दिन से अस्पताल में था.........।“

“एक्सीडेंट? कैसा, कहां, कैसा है वो?” – अब्बू ने घबराते हुए कहा था।

“घबराइये नहीं, अब ठीक है वो, चिंता की कोई बात नहीं है।“

“आप लोग?”

“हम उसके साथ ऑफिस में काम करते हैं। मैं सुनील हूं और यह गौरव। प्लीज हमें बताइये उसका कमरा कहां है?

“वो तो बताता हूं, पर राशिद....?”

जवाब में उस आदमी ने एंबुलेंस की तरफ इशारा करते हुए कहा था – “स्ट्रेचर बाहर निकालो और उसे अंदर ले आओ।“

एंबुलेंस का पीछे का दरवाजा खुला और दो आदमी स्ट्रेचर पर लेटे राशिद को बाहर निकाल कर उसे दरवाजे की तरफ ले आए।

नुसरत जड़ सी खड़ी थी। आखिर उनकी कुशंका ही सही निकली थी। उसने आगे बढ़कर दरवाजा पूरा खोल दिया था और राशिद के कमरे की डुप्लीकेट चाबी लेने के लिए घर के भीतर भागी थी।

जब तक वह चाबी लेकर लौटी तब तक अब्बू रास्ता दिखाते हुए स्ट्रेचर को राशिद के कमरे तक ले आए थे। उसने कांपते हाथों से ताला खोला और स्ट्रेचर वालों को भीतर जाने का इशारा किया।

राशिद को खाट पर लिटा दिया गया था। वह खामोश लेटा था। उसके सिर पर और दाहिने हाथ पर पट्टियां बंधी हुई थीं। उसकी नजरें नुसरत से मिलीं तो एक फीकी सी मुस्कराहट उसके होंठों पर फैल गई थी। उसके चेहरे की मुस्कराहट देखकर नुसरत के दिल को जहां थोड़ा सुकून मिला था, वहीं उसकी आंखें भर आई थीं।

एंबुलेंस जाने के बाद उसके दोनों साथी कमरे में आ गए थे। उन्होंने अब्बू को पूरी बात विस्तार से बताते हुए कहा था – “अब घबराने की कोई बात नहीं है। राशिद बिलकुल ठीक है। घाव भरने में कुछ दिन लगेंगे, उसे पूरे आराम की जरूरत है। आप उससे ज्यादा सवालात न करें। बस, ज्यादा से ज्यादा एक सप्ताह में उसके घाव भर जाएंगे और वह पूरी तरह ठीक हो जाएगा।“

“शुक्र है अल्लाह का” - अब्बू ने लंबी सांस भरते हुए कहा था। “वह बड़ा कारसाज है। उसी की मेहरबानी से आप जैसे दोस्त वक्त पर पहुंच गए और सबकुछ संभाल लिया। हमें तो कुछ पता ही नहीं चला, बस चिंता करते बैठे थे।

“मालूम पड़ा था, इनका कोई रिश्तेदार नहीं है, यहां राशिद अकेले ही रहता है।“

“जी हां, हमारे यहां किराए पर रहते हैं। पर, हमारे बेटे जैसे हैं।“

“गुड, आप जैसे अच्छे लोग हैं यहां यह देखकर हमारी चिंता दूर हो गई है। नहीं तो यही सोच रहे थे कि वह अकेला रहता है, उसकी तीमारदारी कौन करेगा। अब आप लोग उसका ख्याल रखने के लिए हैं तो देख लेना राशिद को ठीक होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। हां, कुछ दवाइयां दी हैं अस्पताल के डाक्टर ने, ये इन्हें समय पर देते रहें” – एक लिफाफा पकड़ाते हुए राशिद के सहकर्मी ने कहा था।

लिफाफा पकड़ते हुए अब्बू ने कहा था – “आप लोगों ने राशिद का इतना ख्याल रखा, किन शब्दों में आपका शुक्रिया अदा करूं।“

“इसमें शुक्रिया की क्या बात है। वह हमारे साथ काम करता है। हमारा दोस्त है। किसी भी मुश्किल घड़ी में एक-दूसरे की मदद और देखभाल करना हमारा फर्ज बनता है। अब हम चलें?”

“ऐसे कैसे बेटा, चाय पीकर जाना।“

“नहीं अंकल, ऑफिस में काम बहुत है। आप फिक्र न करें, हम दोनों के अलावा हमारे और भी कई साथी राशिद को देखने के लिए बराबर आते रहेंगे। किसी भी चीज की जरूरत हो तो हमें बिना हिचक बता दें।“

फिर उन्होंने राशिद से कहा था – “राशिद भाई, अभी हम चलते हैं। शाम को फिर आएंगे। नरेंद्र और शफी भी शायद आएं। हममें से कोई ना कोई आता ही रहेगा। तुम अपना पूरा ख्याल रखना और दवाई समय पर लेते रहना। बस, जल्दी से ठीक होकर काम पर आना है,  समझे।“

राशिद ने ‘हां’ कहा था और उनका शुक्रिया अदा करने के लिए अपना बायां हाथ माथे तक ले गया था। दाहिने हाथ में पट्टी बंधी हुई थी। वह उन्हें जाते हुए देखता रहा। उसकी आंखों से ओझल होने से पहले सुनील और गौरव ने मुड़कर उसकी तरफ हाथ हिलाया तो उसने भी अपना हाथ उठाकर उन्हें बाय कहा और उन्हें जाते हुए देखता रहा। नुसरत ने नोट किया कि राशिद की आंखों में कृतज्ञता भरी हुई थी।

सुनील और गौरव के जाने के बाद अब्बू भी यह कह कर उठ गए कि उन्हें कुछ देर के लिए बाहर जाना है। जाते-जाते उन्होंने नुसरत से कहा कि वह राशिद का ख्याल रखे और लिफाफे में रखा पर्चा देखकर यह पता लगा ले कि राशिद को कब-कब कौनसी दवा देनी है और उसे वक्त पर दवा देना न भूले।

अब्बू के जाने के बाद नुसरत कुर्सी खींच कर राशिद की खाट के पास ले आई और उस पर बैठते हुए बोली – “इस इतने बड़े हादसे का हमें तो पता ही नहीं चला, नहीं तो मैं और अब्बू अस्पताल चले आते।“

“क्या करते आप लोग वहां आकर? परेशान ही होते”।

“यहां हम कितना परेशान थे, इसका अंदाजा है आपको? तरह-तरह की बातें दिमाग में घूम रही थीं। परेशानी में बुरी बातें ही दिमाग में आती हैं। अल्लाह से दुआ कर रहे थे कि आप सही-सलामत हों। पर, यह अनहोनी सच भी हो गई। पता है, अब्बू कितना परेशान हुए, यह भी तो पता नहीं था कि आप किस कंपनी में काम करते हैं और आपका ऑफिस कहां है। आपकी कोई खबर नहीं आ.............।“

“मुझे खुद की ही कोई खबर नहीं थी। कैसे एक्सीडेंट हुआ, किन लोगों ने अस्पताल पहुंचाया और कब मेरा ऑपरेशन हुआ। कुछ पता नहीं था, नुसरत। आपको कैसे खबर करता। अब्बू की और आपकी परेशानी समझ सकता हूं मैं। आप तो इंतजार में बाहर खड़ी रही होंगी और बड़ी मुश्किल से नींद आई होगी आपको। इस सबके लिए मैं मुआफी.......।“

“चलो, अब जाने दीजिए। अल्लाह का शुक्र है कि आप ...।“

“आप लोगों की दुआ और मेरे ऑफिस के साथियों की मेहनत और प्यार का ही यह नतीजा है कि मैं जिंदा.......।“

“बस कीजिए, ज्यादा मत बोलिए आप। आपके दोस्त बता कर गए हैं कि आपको पूरा आराम करना है। अब कैसा लग रहा है?”

“सिर में चोट ज्यादा आई है, कई टांके लगे हैं। दर्द महसूस हो रहा है। दाहिना हाथ भी दर्द कर रहा है। पैरों और घुटनों में भी चोटें हैं, पर डाक्टर बता रहे थे, ज्यादा गंभीर चोटें नहीं हैं। उठकर बाथरूम तक तो जा ही सकता हूं मैं।“

“अल्लाह का शुक्र है। अच्छा, यह दवा तो कुछ खाने के बाद लेनी है। बताओ क्या बना लाऊं आपके लिए?”

“कुछ भी। दवा जल्दी से दे दो ताकि दर्द कम हो जाए।“

“बस मैं गई और आई” – नुसरत ने उठते हुए कहा।

वाकई वह बहुत जल्दी लौट आई थी। अपने हाथ में पकड़े आटे के हलवे की कटोरी राशिद की तरफ उसने बढ़ाई तो राशिद ने उठने की कोशिश की, पर उससे उठा नहीं गया। नुसरत चम्मच से उसके मुंह में हलवा डालने लगी और वह लेटे-लेटे ही खाने लगा। गले से नीचे उतरता गर्म-गर्म हलवा उसे बहुत अच्छा लग रहा था। उसे हलवा खिलाने के बाद नुसरत कटोरी और चम्मच लेकर किचन में चली गई। वह चाहती थी कि राशिद को ज्यादा नहीं बोलना पड़े और उसे पूरा आराम मिल सके।

करीब दस मिनट बाद वह लौटी और आते ही उसने राशिद को दवा दे दी। दवा खाने के कुछ देर बाद ही राशिद को दर्द में आराम महसूस हुआ और उसे नींद आ गई। उसे नींद में देखकर नुसरत वहां से चली आई और अपने काम निपटाने लगी।

काम करते-करते वह राशिद के बारे में ही सोचती रही। राशिद पर अल्लाहताला ने कितनी बड़ी मेहरबानी की थी, वर्ना इस एक्सीडेंट में कुछ भी हो सकता था। अगर ऐसा कुछ हो जाता तो........। उसे अपनी सोच पर बहुत गुस्सा आया था। वह राशिद के बारे में ऐसा सोच भी कैसे सकती है। उसके बिना रहने की कल्पना करना भी उसे भीतर तक हिला गया था। उसने एकबार फिर दोनों हाथ उठाकर ऊपरवाले का शुक्रिया अदा किया और अब्बू को खाना देने चली गई।

अब्बू को भी राशिद की फिक्र लगी हुई थी। वे दिन में दो-तीन बार उसके कमरे का चक्कर लगा आते। किसी मौलवी से ताबीज भी बनवा लाए थे, जिसे कलमा पढ़कर उन्होंने राशिद के सिरहाने रख दिया था।

उस दिन उन्होंने राशिद से कहा था – “पांचों वक्त की नमाज पढ़ने वालों पर अल्लाहताला की खास मेहरबानी होती है। उसी ने आपको उस भयानक हादसे से बचाया और वही आपकी तबीयत जल्दी ठीक करेगा।“

राशिद ने एक लंबी सांस भरते हुए कहा – “अब्बू, अब तो मेरी नमाजें भी नहीं हो नहीं पा रही हैं। अल्लाह मेरी किसी बात से नाराज हो गया है शायद।“

“बीमार आदमी पर तो नमाज़ का फर्ज वैसे भी आयद नहीं होता। बस, उस परवरदिगार को हर वक्त दिल से याद करते रहो और अपने उन गुनाहों की माफी मांगते रहो जो अनजाने में हमसे हो जाते हैं।“

“आप ठीक कहते हैं अब्बू। पता नहीं कौन-कौन से गुनाह होते रहते हैं हमसे। जिन्हें हम सवाब समझते हैं, क्या पता वे अल्लाहताला के नजदीक गुनाह ठहरते हों।“

“राशिद मियां, उस परवरदिगार पर भरोसा रखो। और हां वक्त-वक्त पर दवा वगैरह लेते रहो। नुसरत आपको टाइम से दवा तो दे रही है ना?”

“जी अब्बू। नुसरत को भी बहुत परेशानी हो रही है मेरी वजह से।“

“नहीं, नहीं ऐसी बात नहीं है, इंसान ही इंसान के काम आता है। आप ज्यादा न सोचा करें। अच्छा अब आप आराम करें। मैं चलता हूं।“

शाम होते ही राशिद के ऑफिस से उसका कोई ना कोई दोस्त उसे देखने चला आता। फल-फ्रूट तो वे साथ लाते ही, उसकी जरूरियात के बारे में भी दरियाफ्त कर जाते। उस दिन तो उसके बॉस रमणी साहब भी उसका हालचाल पूछने चले आए थे। वे खुश थे कि राशिद की हालत में दिनोंदिन सुधार आ रहा था। उन्होंने कहा था – “जल्दी से ठीक हो जाओ राशिद। आपके जैसे काबिल इंजीनियर की हमें बहुत जरूरत है। सच कहूं आपकी कमी खल रही है हमें। किसी भी चीज की जरूरत हो, हमें इत्तला कर देना।“

राशिद को अस्पताल से आए एक सप्ताह गुजर गया था। उसकी तबीयत काफी सुधर गई थी। उसका दर्द लगभग समाप्त हो चला था। पर कमजोरी बनी हुई थी। वह ज्यादातर चुपचाप पड़ा रहता और सोचता रहता। अब्बू और नुसरत भी उसे तभी उठाते थे जब कुछ खिलाना-पिलाना हो या दवा देनी हो।

इस बीच सुनील और गौरव आकर उसे अस्पताल ले गए थे। डाक्टर ने उसका पूरा मुआयना किया था। वे राशिद की रिकवरी की स्थिति से खुश थे। उन्होंने उसकी पट्टियां खोल दी थीं और दवा बदलते हुए कहा था कि यह नई दवा उसे एक सप्ताह तक खानी होगी। इस दवा से उसे नींद आएगी। अगर वह काफी देर तक सोता रहे तो चिंता करने की जरूरत नहीं है। उसे आराम की सख्त जरूरत है, इसलिए उसे यह दवा दी जा रही है। उसके घाव लगभग भर चुके हैं। सप्ताह भर बाद यह दवा बंद कर दें। उसे खाने के लिए ताकत बढ़ाने वाली चीजें दें ताकि उसकी कमजोरी भी तेजी से दूर हो सके।

नुसरत और अब्बू राशिद की जिस तरह से तीमारदारी कर रहे थे उससे राशिद को लगता कि वह गैर-मुल्क में गैरों के बीच नहीं, बल्कि अपनों के बीच है। पाकिस्तान में तो अपना कहने के लिए उसके पास कोई था ही नहीं। अगर वह इस मिशन पर हिंदुस्तान नहीं आता तो अब्बू और नुसरत के इस अपनेपन और प्यार से महरूम रह जाता। पाकिस्तान में कोई भी तो ऐसा नहीं था जो उसकी इतनी मोहब्बत से देखभाल करता। ऐसे समय उसे अपराध-बोध होने लगता। इस प्यार-मोहब्बत के ऐवज में वह उन्हें और उनके मुल्क को क्या देने वाला था। सही और गलत क्या था, यह वह तय नहीं कर पा रहा था। कई बार वह इतना बेचैन हो उठता कि उसे घबराहट होने लगती। वह जानता था कि इस समय सिर्फ और सिर्फ अल्लाहताला ही उसे सही राह दिखा सकते थे। ऐसे समय वह खुद को समझाने लगता कि अपने वतन, कौम और मज़हब के लिए उसका फर्ज सबसे ऊपर था, बाकी सबकुछ उसे भूल जाना चाहिए।

उस दिन वह यही सब सोच रहा था कि खिड़की पर खटखट ने उसका ध्यान अपनी तरफ खींचा। बाहर वही शख्स खड़ा था। उसने अपने हाथ में पकड़ा लिफाफा राशिद की तरफ बढ़ाया और खुद हमेशा की तरह बिना बोले तेजी से चला गया।

राशिद ने कमरे का दरवाजा बंद किया और उस लिफाफे को खोल डाला। उसमें रखे टाइप किए हुए कागज पर उसने नजर दौड़ाई तो उसकी उलझन और बढ़ गई। उसमें लिखा था –

“अल्लाह के फज़ल से आप एक्सीडेंट की चोटों से उबर चुके हैं। अब आप अपना पूरा ध्यान अपने मिशन पर लगाएं। हमें पता है कि इस मिशन को अंजाम तक पहुंचाने के आप काफी करीब पहुंच चुके हैं। कुछ ही दिनों में आप पूरी तरह सेहतमंद हो जाएंगे। आप नई ताकत के साथ अपने मकसद को कामयाब बनाने में लग जाएं। एक्सीडेंट की वजह से पहले ही काफी कीमती वक्त जाया हो चुका है। हम यह चाहते हैं कि आप पूरी ऐहतियात बरतते हुए अब इस मिशन को जल्द से जल्द कामयाब बनाएं और अपने वतन, मजहब और कौम के लिए अपना फर्ज निभाएं। याद रखें, इस मिशन में अल्लाहताला आपके साथ हैं। कामयाबी हमसे बस चंद कदम दूर है और हमें किसी भी कीमत पर इसे हासिल कर लेना है।“

राशिद बहुत देर तक उस कागज को हाथ में लिये बैठा रहा। उसके आकाओं की पूरी नजर उस पर थी। उसने महसूस किया कि वह अपने असली मकसद और फर्ज को भूल रहा था जो किसी भी नजरिये से वाजिब नहीं था। चंद दिनों में वह काम पर जाने लगेगा और अपने मकसद को कामयाब बना कर सुर्खरू होगा। उसके पीछे आइएसआइ अपनी पूरी ताकत से खड़ी थी और जब अल्लाह साथ हो तो फिर कामयाबी को उसके कदम चूमते कितनी देर लगेगी। उसकी शिराओं में खून तेजी से बहने लगा। उसने उस कागज को चिंदी-चिंदी किया और खिड़की के बाहर हवा में उछाल दिया।

उसने दरवाजा पूरा खोल दिया। शाम बीत चुकी थी और रात के साये ने हर चीज को अपने आगोश में ले लिया था। जब से वह अस्पताल से लौटा था नुसरत उसका खाना कमरे में ही ले आती थी। उसे खाना खिलाने के बाद दवा देती और जब वह सोने के लिए खाट पर लेट जाता तब वहां से जाती। कुछ ही देर में नुसरत खाना लिये वहां आ गई। राशिद को तेज भूख लग रही थी। वह उसके आते ही खाना खाने बैठ गया। उसने खाना खत्म किया तो नुसरत ने उसे दवा दे दी और पूरा आराम करने की सलाह देकर वहां से चली गई।

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