Mission Sefer - 19 books and stories free download online pdf in Hindi

मिशन सिफर - 19

19.

राशिद आज बहुत रोमांचित था। उसने सोचा भी नहीं था कि वह इतनी जल्दी मुख्य कंप्यूटर तक पहुंच जाएगा। जिस टीम के साथ वह काम कर रहा था, उसके इंचार्ज ने टीम के सभी सदस्यों की एक सीक्रेट बैठक बुलाई थी और कहा था – “साथियो, हम जिस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं, वह देश का बहुत ही महत्वपूर्ण और महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है। परमाणु क्षेत्र की यह नई तकनीक हमें नई ऊंचाइयों पर ले जाएगी और हमारा देश इस क्षेत्र में ऐसी क्रांति लेकर आएगा जिससे विश्व की बड़ी-बड़ी ताकतें भी अचंभित होकर रह जाएंगी। हमारे वैज्ञानिकों की दिन-रात की मेहनत रंग लाई है और वे कुछ ऐसे नतीजों पर पहुंच चुके हैं, जहां से इस प्रोजेक्ट की सफलता सुनिश्चित हो जाती है। वैज्ञानिकों ने अपना काम लगभग समाप्त कर लिया है और अब हम इंजीनियरों की अब तक की सबसे अहम भूमिका शुरू हो रही है। हमें कड़ा परिश्रम करना होगा और प्रोजेक्ट को उसके अंतिम पड़ाव तक पहुंचाने के लिए वैज्ञानिकों की मदद करते हुए उनके निष्कर्षों को कंप्यूटरीकृत और कोडिफाइ करने में तथा उनकी अपेक्षा के अनुसार अन्य प्रकार से योगदान देना होगा। आप समझ सकते हैं कि यह हमारी कितनी बड़ी जिम्मेदारी है, जिसे हमें बिना कोई चूक किए पूरा करना होगा। “

“मैं यह कहना चाहूंगा कि हम पिछले कई वर्षों से अपने वैज्ञानिकों की रिसर्च में हर संभव तकनीकी मदद करते आए हैं और हमारे काम को सराहा भी गया है। रिसर्च के दौरान हमसे जो भी सहायता मांगी गई, उसे हमने अपनी पूरी क्षमता से सम्पन्न किया है और आज भी हम अपनी भूमिका निभाने के लिए पूरी तरह सन्नद्ध हैं। यह बात सही है कि अतिगोपनीय होने के कारण आज तक हमने नेपथ्य में रहकर ही वैज्ञानिकों की मदद की है। लेकिन, अब हमसे यह अपेक्षा की जा रही है कि हम उस समस्त कार्य को कोडिफाई रूप में कंप्यूटरीकृत करने में उनकी मदद करें ताकि प्रोजेक्ट और उसके निष्कर्षों को पूरी तरह से सुरक्षित किया जा सके।“

“हमने इस महत्वपूर्ण चरण के लिए अपने सबसे अच्छे बारह आइटी और सिस्टम इंजीनियरों की टीम बनाई है और इतने दिन से उन्हें आज के लिए तैयार करते आए हैं। यह टीम मेरे सामने बैठी है। आप बारह लोग ही इस महत्वपूर्ण टीम के सदस्य हैं। आपकी काबिलियत को, आपकी मेहनत को, आपकी ईमानदारी को और कुछ कर गुजरने की आपकी अदम्य इच्छा और शक्ति को बारीकी से परखने के बाद ही आपको इस टीम में शामिल किया गया है। आप सभी के लिए यह गर्व की बात होनी चाहिए।“

“एक जरूरी बात यह है कि इस प्रोजेक्ट की तकनीक और इसके प्रयोग की जानकारी हासिल करने के लिए बहुत से देशों की खुफिया एजेंसियां जी-जान से लगी हुई हैं। इसलिए इस रिसर्च के परिणामों और उनके उपयोग की सारी बातें सांकेतिक भाषा में दर्ज की गई हैं। जब हम इस काम से जुड़ेंगे तो सांकेतिक भाषा में होने के कारण हमें भी उन निष्कर्षों आदि का पता नहीं चलेगा, पर बहुत सी महत्वपूर्ण और गोपनीय बातें हमारी जानकारी में आ सकती हैं। हमें पूरा विश्वास है कि इस टीम के सदस्य अपने देश से प्यार करते हैं और उसके लिए मर-मिटने को तैयार हैं। आप सभी को बड़े विश्वास के साथ प्रोजेक्ट के इस महत्वपूर्ण चरण से जोड़ा गया है। आप एक दिन बाद से इस प्रोजेक्ट के मुख्य कंप्यूटरों पर काम शुरू करने वाले हैं। आपसे अपेक्षा की जाती है कि आप उन सभी जानकारियों को पूरी तरह गोपनीय रखेंगे जो काम करते समय आपकी जानकारी में आएंगी। आप सब तैयार हैं इसके लिए?”

“जी, सर।“ सभी ने समवेत स्वर में कहा।

“शाबास, आइये मेरे साथ यह प्रतिज्ञा करें कि कोई भी लोभ, लालच, भय और प्रलोभन हमें अपने कर्त्तव्य-पथ से विचलित नहीं करेगा और हम अपने देश के लिए कोई भी कुर्बानी बेहिचक दे देंगे।“

सभी के साथ राशिद ने भी उस प्रतिज्ञा में भाग लिया था। प्रतिज्ञा लेते समय उसके मन में लेशमात्र भी हिचक नहीं थी और न ही इसमें उसे कोई बुराई या गलत बात नजर आई थी क्योंकि जहां बाकी ग्यारह लोग अपने देश हिंदुस्तान के लिए कुर्बान होने की प्रतिज्ञा ले रहे थे वहीं वह अपने मुल्क पाकिस्तान के लिए कुर्बान होने की प्रतिज्ञा ले रहा था। वह अपने मुल्क के लिए किसी भी प्रकार की कुर्बानी के लिए ही तो तैयार होकर यहां आया था।

राशिद मन ही मन उत्साह से भरा हुआ था, पर उसके भीतर एक अज्ञात भय भी छुपा था कि कहीं उसका मिशन पूरा होने से पहले कोई अनपेक्षित बाधा खड़ी न हो जाए। घर जाने का समय हो गया था। उसने अपनी स्कूटी उठाई और घर की तरफ चल दिया।

रास्ते भर वह सोचता रहा कि किस प्रकार उसे अपने मिशन को अंजाम तक पहुंचाना है। वह उन बाधाओं के बारे में भी सोच रहा था जो उसके काम के बीच में आ सकती थीं। मुख्य कंप्यूटर तक पहुंचना उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती थी। यहां तक पहुंचने के बाद उसे पासवर्ड भी मिल जाएगा। लेकिन, अब उसे बहुत एहतियात से काम लेना होगा। उसकी जरा सी भी जल्दबाजी या कोई छोटी सी भी गलती उसे शक के दायरे में ला सकती थी और यहां तक पहुंचने की उसकी मेहनत और इतना लंबा इंतजार पूरी तरह जाया हो सकता था। वह किसी भी सूरत में ऐसा नहीं होने दे सकता था। वह अपना मिशन पूरा करके ही रहेगा। वह अपनी सोच में इतना खो गया कि उसे यह भी याद नहीं रहा कि वह स्कूटी चला रहा है। सामने से आती कार उसे दिखाई नहीं दी। जब तक वह संभलता तब तक वह कार से टकरा गया था, स्कूटी वहीं गिर पड़ी थी और वह उछल कर कई फुट दूर जा गिरा था।

एक्सीडेंट देखते ही आसपास से गुजर रहे लोग वहां भागे चले आए थे। कारवाला भी अपनी कार से उतर कर बाहर आ गया था। वह बुरी तरह घबराया हुआ था। सभी लोगों ने देखा था कि कार वाले की कोई गलती नहीं थीं, स्कूटी वाला ही गलत साइड पर आकर कार से टकरा गया था। राशिद को काफी चोट आई थी, वह होश में नहीं था। कार वाले ने कई दूसरे लोगों की मदद से उसे कार में डाला और पास के हॉस्पिटल में ले गया।

चूंकि मामला एक्सीडेंट का था, इसलिए डाक्टरों ने पुलिस को फोन कर दिया था। थोड़ी ही देर में पुलिस वहां पहुंच गई। राशिद के गले में लटका आइडेंटिटी कार्ड देखकर पुलिस ने उसके ऑफिस को खबर कर दी थी। थोड़ी ही देर में राशिद के साथ काम करने वाले उसके कई साथी अस्पताल पहुंच गए थे। उनके आने से पहले ही राशिद को आइसीयू में ले जाया जा चुका था। उसका मुआयना करने के बाद डाक्टरों ने निर्णय लिया था कि उसका तुरंत ऑपरेशन करना होगा। इस बीच उसका काफी खून बह गया था, इसलिए उसके ब्लड-ग्रुप के खून की भी जरूरत थी। उसके ऑफिस से आए उसके साथियों ने तत्काल अपना खून टेस्ट करने और राशिद के इलाज के लिए काम में लाने की पेशकश कर दी थी। टेस्ट से पता चला कि सुनील और गौरव का ब्लड-ग्रुप राशिद के ब्लड-ग्रुप से मेल खाता था, इसलिए उन्हें राशिद को खून देने के लिए तुरंत ही अंदर ले जाया गया। चूंकि वहां राशिद का कोई रिश्तेदार मौजूद नहीं था, इसलिए उसके लिए खून देने वाले उसके दोस्तों ने ही ऑपरेशन के फार्म पर दस्तखत किए थे।

कारवाले के साथ राशिद को अस्पताल पहुंचाने आए लोगों ने पुलिस के सामने इस बात की तस्दीक की थी कि दुर्घटना में कारवाले की कोई गलती नहीं थी, राशिद ही अचानक गलत साइड में कार के सामने आ गया था। चश्मदीदों का बयान दर्ज करने के बाद पुलिस ने कारवाले से पूछताछ की थी, उसके कागजात चेक किए थे और उसका भी बयान दर्ज किया था।

कारवाले ने अपनी कोई गलती न होने के बावजूद राशिद के इलाज का सारा खर्च उठाने की पेशकश की थी। लेकिन, राशिद के साथियों ने इसे यह कह कर स्वीकार नहीं किया कि जब उसका कोई कसूर ही नहीं है तो वह यह खर्च क्यों उठाएगा। फिर, नियमों के अनुसार राशिद के इलाज का पूरा खर्च उनका ऑफिस उठाने वाला था, इसके लिए उन्होंने फोन पर ऑफिस में बात भी कर ली थी। इन सब औपचारिकताओं के बाद पुलिस ने कारवाले को यह कह कर जाने दिया था कि चश्मदीदों के बयानों को देखते हुए उस पर कोई केस दर्ज नहीं किया गया है। हां, राशिद के होश में आने और उसका बयान लेने के बाद कभी जरूरत पड़ी तो उसे बुला लिया जाएगा।

राशिद का ऑपरेशन करीब पैंतालीस मिनट तक चलता रहा था। ऑपरेशन सफल रहा था, पर उसे अभी होश नहीं आया था। डाक्टरों ने स्पष्ट कर दिया था कि उसे कम से कम दो दिन अस्पताल में ही रहना होगा। उसके बाद ही उसे घर ले जाया जा सकेगा। जहां तक ऑफिस जाने का सवाल है, वह पूरी तरह ठीक महसूस करने तक काम पर नहीं जा सकेगा। तय यह हुआ कि उसे खून देने वाले दोनों साथी घर जाकर आराम करेंगे और कमल के साथ शफी रात को अस्पताल में ही रुकेगा। उसके ऑफिस में सभी को यह पता था कि वह किराएदार के तौर पर किसी घर के एक कमरे में अकेला ही रहता था, इसलिए उसके मकान-मालिक को किसी ने भी तत्काल सूचना देने की कोई जरूरत नहीं समझी थी।

नुसरत ने काफी देर तक राशिद का इंतजार किया, फिर जब रात होने को आ गई तो उसने इंतजार करना छोड़ दिया और अंदर जाकर अब्बू के लिए और अपने लिए खाना लगाने लगी। उसे खाना लगाते देखकर अब्बू ने पूछा था – “राशिद, अभी तक नहीं आए हैं क्या?”

“हां अब्बू, अभी तक तो नहीं आए हैं। बहुत देर हो गई है, आपने अभी तक कुछ नहीं खाया है और मुझे भी भूख लगने लगी है, इसलिए मैं खाना लगा रही हूं।“

“ठीक है बेटा, राशिद तो काम से ऑफिस में ही रुके होंगे, वहीं कुछ ना कुछ खा-पी लेंगे ।

“लगता तो यही है। जबसे उनका तबादला नए महकमे में हुआ है तब से बहुत लेट होने लगे हैं।“

“पर, इतना लेट?”

“कह रहे थे कि वहां काम बहुत ज्यादा है। इसलिए बहुत देर हो सकती है। कभी-कभी तो रातभर भी ऑफिस में रुकना पड़ सकता है।“

“वो तो ठीक है, पर पहले से पता चल जाया करे कि उन्हें कितनी देर होगी तो बेहतर है। आखिर तुम भी खाना लिये कब तक उनका इंतजार किया करोगी?”

“अब्बू मैंने कहा था उनसे। पर उन्हें खुद पहले से पता नहीं होता कि कब और कितनी देर लगेगी।“

“हां, हमारे घर में फोन भी तो नहीं है जो वो हमें इसकी इत्तला दे सकें। पास-पड़ोस में भी किसी के पास नहीं है।“

“आजकल घर में फोन लगाता कौन है अब्बू। सबके पास अपने-अपने मोबाइल हैं, उन्हें वे जहां भी जाते हैं, अपने साथ ले जाते हैं।“

“हम भी एक मोबाइल ले लेते हैं...।“

“बहुत मंहगा आता है अब्बू, हजारों रुपयों का। बेकार में इतना पैसा क्यों लगाएंगे?”

“बेकार नहीं है बेटा, ऐसे वक्त कितना काम आएगा। मैं राशिद से बात.......।“

“जाने भी दीजिए अब्बू, नौकरी है तो यह सब तो लगा ही रहेगा।”

अब्बू को तो यह कह कर उसने समझा दिया था, पर उसे खुद को चैन नहीं पड़ रहा था। जैसे-जैसे रात बीत रही थी, उसकी चिंता भी बढ़ती जा रही थी। जब रात आधी से भी ज्यादा बीत गई तो उसे लगने लगा कि ऑफिस में रातभर रुकने की जो बात राशिद ने की थी, शायद, ऐसी ही वह रात आ गई थी। उसने मन को समझा लिया था कि राशिद अब रात में घर नहीं आएगा और काम खत्म करके सुबह ही घर आ पाएगा। इस विचार के साथ ही वह सोने की कोशिश करने लगी और थोड़ी ही देर में उसे नींद आ गई।

सुबह उसकी नींद थोड़ी देर से खुली। नींद खुलते ही वह राशिद के कमरे की तरफ इस आशा से चल पड़ी कि शायद देर रात आकर वह अपने कमरे में सो गया हो। पर, उसे निराशा ही हाथ लगी। अगर इस समय तक वह नहीं आया था तो इसका मतलब यह था कि वह आज का ऑफिस भी करने के बाद घर लौटेगा। बेबसी में उसने सिर को एक झटका दिया और अपने काम निपटाने चली गई।

वह काम करती जा रही थी, लेकिन उसकी निगाहें मेन गेट की तरफ लगी हुई थीं, शायद वह आ जाए। पर, उसकी सूनी निगाहें यूं ही लौट आती थीं। उसने तय किया कि आज राशिद लौटेगा तो वह उससे साफ-साफ कह देगी कि अगर उसे ऑफिस में जरूरत से ज्यादा देर होती हो या ऑफिस में रातभर रुकना हो तो इसकी इत्तला देने के लिए उसे कोई ना कोई इंतजाम करना होगा। पता है, चिंता में घुलते रहना कोई आसान काम नहीं होता।

पूरा दिन निकल गया था। फिर शाम भी निकल गई और रात गहराने लगी, लेकिन राशिद के आने की कोई सुगबुगाहट भी नहीं हुई तो नुसरत के साथ-साथ अब्बू को भी चिंता होने लगी। लेकिन, उन्हें नहीं पता था कि वे उसे कहां ढूंढ़ें। उन्हें अच्छी तरह यह भी पता नहीं था कि वह कौनसी कंपनी में काम करता है और उसका ऑफिस कहां है। जब उनकी चिंता बढ़ने लगी तो दोनों ही उस ऊपरवाले के हुजूर में हाथ उठाकर दुआ मांगने लगे कि राशिद जहां भी हो हिफाजत से हो। अल्लाह करे उसके ऑफिस का काम आज पूरा हो जाए और वह घर आकर उनकी चिंता मिटा दे। उन्होंने एकसाथ “आमीन” कहा था और सबकुछ ऊपर वाले पर छोड़कर अपनी चिंता से मुक्त होने की कोशिश करने लगे थे।

उस रात भी जब राशिद घर नहीं लौटा तो उनकी चिंता आसमान छूने लगी थी। ऑफिस में ऐसा भी क्या काम कि कोई दो रात तक अपने घर न लौटे। नुसरत यह सोच-सोच कर हलाकान हुई जा रही थी कि अगर वह आज भी नहीं लौटा तो वे क्या करेंगे। उसके साथ कोई अनहोनी न हुई हो, इसके लिए वे अल्लाहताला से दुआ करने के अलावा और कर ही क्या सकते थे। नुसरत बार-बार राशिद के कमरे में जाकर देखती, पर बाहर ताला लटका देखकर मायूस वापस लौट आती। हर बार उसके दिल की घबराहट पहले से ज्यादा बढ़ जाती और वह बेचैनी से भर उठती।

बड़ी मुश्किल से वह रात कटी। सुबह हुई तो अब्बू भी खासे परेशान नजर आ रहे थे। वह इस बात से खुद पर नाराज थे कि उन्होंने राशिद से कभी उसकी कंपनी का नाम क्यों नहीं पूछा था। कम से कम उसके ऑफिस का पता ही पूछ लिया होता तो आज इस कदर परेशान नहीं होना पड़ता। अगर दोनों में से एक भी चीज उनके पास होती तो वे वहां जाकर पता कर आते। अब तो बस अल्लाह पर ही भरोसा था और उसकी मेहरबानी होने तक राशिद का इंतजार करते रहना था।

नुसरत सोच रही थी कि ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ कि राशिद दो-दो रात ऑफिस में रुका हो। चलो, ज्यादा काम की वजह से रुकना भी पड़ा हो तो कम से कम उन्हें किसी तरह इसकी खबर तो भिजवा देते। क्या उन्हें नहीं पता कि अब्बू और मैं कितना परेशान हो रहे होंगे। क्या उन्हें हमारी परेशानी की कोई परवाह ही नहीं है। हम होते भी कौन हैं उनके जो वो हमारी परेशानी की सोचें। नुसरत मन ही मन झुंझला कर रह गई थी।

तभी अब्बू वहां आए थे और उन्होंने कहा था – “अब तो इंतजार की भी हद हो गई है। राशिद का कुछ पता ही नहीं है। अगर वह आज की रात भी नहीं आए तो? नुसरत सोचता हूं कि अल्लाह न करे, राशिद के साथ कहीं कोई ऐसी-वैसी बात न हो गई हो। हमें कुछ तो करना पड़ेगा।“

“क्या करना पड़ेगा अब्बू? हम अल्लाहताला से दुआ करने के अलावा और कर ही क्या सकते हैं।“

“हम हाथ पर हाथ धर कर भी तो नहीं बैठ सकते। बेहतर रहेगा कि हम पुलिस को इसकी इत्तला दे दें।“

“पुलिस को? नहीं अब्बू यह तो बेकार ही पचड़े में पड़ने वाली बात हो जाएगी। पुलिस को इत्तला देने पर अगर राशिद नाराज हुए तो?”

“या अल्लाह, क्या करें, कुछ तू ही रास्ता बता” - अब्बू ने लंबी सांस भरते हुए कहा था।

“अब्बू कहा तो था उन्होंने कि उनका काम बहुत ज्यादा बढ़ गया है। आज और इंतजार कर लेते हैं” - नुसरत ने कहा था।

“ठीक है बेटा। आज रात भी वो नहीं आये तो फिर पुलिस में रिपोर्ट करनी ही पड़ेगी। हमारे मकान में रह रहे हैं तो हमारी जिम्मेदारी बनती है।“

“जैसा आप बेहतर समझें अब्बू, कल सुबह तक देखते हैं।“

“चिंता में डूबे अब्बू उठकर चले गए तो नुसरत तरह-तरह से खुद को समझाने में लग गई। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर राशिद या उनकी कोई खबर क्यों नहीं आ रही है।“

उसका किसी काम में मन नहीं लग रहा था। होठों में दुआएं लिए वह थोड़ी-थोड़ी देर में बाहर झांक आती और फिर बेबस सी लौट आती।

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