Mission Sefer - 7 books and stories free download online pdf in Hindi

मिशन सिफर - 7

7.

तौफीक अहमद साहब ने उसे तुरंत अपने केबिन में बुला भेजा था और खड़े होकर हाथ मिलाते हुए कहा था – “खुशआमदीद राशिद, आपके बारे में मुझे सबकुछ बता दिया गया है। इतनी जहीन शख्सियत को इस महकमे में मुलाजमत देकर हम आप पर कोई अहसान नहीं कर रहे हैं। मैंने तो कादरी भाई को बता दिया था कि ऐसे लोगों की तो हमें शिद्दत से तलाश रहती है।“

“मेरी खुशकिस्मती है जनाब, जो आप मेरे बारे में ऐसा सोचते हैं और अपने मातहत काम करने और वतन की खिदमत करने का मौका अता फरमा रहे हैं। आपके मातहत काम करना मेरी खुशनसीबी होगी और मुझे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।“

“हां सीखने को तो यहां आपको काफी कुछ मिलेगा। आपकी ज़हनी कूबत के हिसाब से हमने आपको खास काम के लिए चुना है, इसलिए आपको खास किस्म की ट्रेनिंग दी जाएगी और आपसे यह उम्मीद की जाएगी कि आप पाकिस्तान के लिए अपना सौ फीसदी देंगे।“

“जी जनाब, अपने वतन के लिए मैं कुछ भी करने के लिए तैयार हूं।“

“पता है मुझे। पाकिस्तान के ज्यादातर इंजीनियर तो बस दफ्तर में बैठकर काम करने को ही अपनी ज़िंदगी की इंतिहा मानते हैं। ना...ना, मैं यह नहीं कह रहा हूं कि वे वतनपरस्त नहीं हैं, बस यह कह रहा हूं कि बहुत कम ऐसे लोग हैं जो आप जैसा जज़्बा रखते हैं। हमें हर तरह के नौजवान चाहिए जो दफ्तर में बैठकर भी काम कर सकें और फील्ड में भी।“

“आप मुझ पर एतमाद रख सकते हैं, जनाब...।“

“क्यों नहीं, पूरा एतमाद है आप पर।“ तभी उन्होंने घंटी बजाई तो तुरंत ही एक शख्स हाजिर हो गया। उससे उन्होंने कहा – “इन्हें अबू काजमी से मिला दो। बाकी बात मैं इंटरकॉम पर कर लूंगा।“ दोनों तौफीक साहब को सलाम करके केबिन से बाहर निकल गए। वह शख्स बहुत अदब के साथ राशिद को एक दूसरे केबिन में लेकर पहुंचा। वहां कुर्सी पर बैठे शख्स ने केबिन में उनके घुसते ही कहा – “आओ, राशिद मियां आओ। तौफीक साहब ने मुझे आपके आने की इत्तला दे दी थी और कहा है कि आपको काम के बारे में सबकुछ बता दूं।“ फिर अपना हाध आगे बढ़ाते हुए कहा – “मैं अबू काजमी हूं। ट्रेनिंग का इंचार्ज। आप महकमे में नए आए हैं तो पहले आपको ट्रेनिंग लेनी होगी। आज आपको महकमे के दूसरे स्टाफ से मिलवा दिया जाएगा, कल आपको हमारे काम की जानकारी दी जाएगी। जुमे के बाद वाले दिन से बाकायदा आपकी ट्रेनिंग शुरू हो जाएगी।“

“जी जनाब, बेहतर है...।“

“देखिए राशिद भाई हमें बताया गया है कि आप जैसे जहीन इंजीनियर को वतन के लिए कोई खास काम करना है, इसलिए आपको खास ट्रेनिंग दी जाएगी।“

“जी जनाब..।“

“चलिए आपका बाकी स्टाफ से तआर्रुफ करा देता हूं।“

अबू काजमी ने राशिद को पूरे दफ्तर में घुमाया और स्टाफ से उसका तआर्रुफ कराया। सभी उससे बहुत ही गर्मजोशी से मिले। हारुन नाम के एक शख्स ने अबू काजमी से पूछ लिया था – “जनाब, इन्हें किस डेस्क पर रखा जाएगा।“ अबू काजमी ने उस पर एक कड़ी नजर डालते हुए कहा था – “अभी तय नहीं किया गया है।“

राशिद को उनके ऐसा कहने पर बहुत ताअज्जुब हुआ था। उसे पता था, जुमे के बाद उसकी ट्रेनिंग की बात तय थी। वह कुछ बोलने को ही था कि उससे पहले अबू आजमी ने दखल देते हुए कहा – “अभी तो आए हैं राशिद भाई। कहां, कैसे और किसके साथ काम करना है, यह भी तय कर लेंगे। इन्हें महकमे के काम की पूरी जानकारी तो लेने दो। इसके लिए इन्हें पहले रुटीन ट्रेनिंग दी जाएगी।“

हारुन और राशिद ने एकसाथ सिर हिलाया था।

उसके बाद अबू काजमी राशिद को लेकर हॉल से बाहर निकल आया था। राशिद को स्टॉफ केंटीन दिखाते हुए उसने कहा था – “यहां सब्सिडाइज्ड रेट पर नाश्ता, चाय और खाना मिलता है।“

“जी जनाब।“

“आज मैं तुम्हें कुछ फाइलें देता हूं पढ़ने के लिए। उन्हें ध्यान से देख लेना। फिर कल से तो आपकी खास ट्रेनिंग शुरू हो ही जाएगी। अभी कुछ खाने का दिल है?”

“नहीं, सुबह हॉस्टल से नाश्ता करके ही निकला हूं।“

“ठीक है, चलो मेरे केबिन में चलते हैं।“

केबिन में आने के बाद अबू काजमी ने राशिद को सामने वाली कुर्सी पर बैठने का इशारा करते हुए दीवार में बनी एक अलमारी का ताला खोला और उसमे से एक फाइल निकाल कर उसे पकड़ाते हुए कहा – “साथ वाला केबिन खाली पड़ा हुआ है, आप वहां आराम से बैठ कर यह फाइल देखिए। आज दफ्तर से जाते समय यह फाइल याद से मुझे देते जाइये। कुछ पूछना हो तो यहां मैं बैठा ही हूं।“

राशिद ने वह फाइल ली थी और साथ के खाली पड़े केबिन में जाकर बैठ गया था। अल्लाह की कैसी मेहरबानी थी, आज से उसकी वह नौकरी शुरू हो रही थी, जिसके लिए उसने तमाम मेहनत की थी और सपने देखे थे। उसने “बिस्मिल्लाहो रहमानो रहीम” कह कर फाइल खोली और फिर उसे पढ़ने-समझने में डूब गया। यह फाइल किसी खास प्रोजेक्ट के बारे में थी, जिसमें दुनिया भर में एटम से बाबस्ता इदारों की लिस्ट थी, इन इदारों में क्या काम होता था, इसका ब्योरा था। उसके जैसे इंजीनियर इन इदारों में क्या काम करते थे इनका ब्योरा था और कुछ ड्राइंग थीं। उसने उन ड्राइंग को समझने की बहुत कोशिश की थी, पर ये क्या थीं और क्यों थीं, उसे खास समझ में नहीं आया था। अबू काजमी के पास जब वह फाइल लेकर उन्हें समझने गया तो उसने सिर्फ इतना ही कहा – “बरखुरदार, बस ये फाइल पढ़ जाओ। बहुत ज्यादा समझने की जरूरत नहीं है। कल से जो आपकी खास ट्रेनिंग शुरू हो रही है, उसमें तफ्सील से आपको सबकुछ बताया जाने वाला है। हां, एक बात और, यहां दोस्त बनाओ, पर आपको क्या ट्रेनिंग दी जा रही है, इसके बारे में किसी को कुछ बताने की जरूरत नहीं है।“

“जनाब, कोई पूछे तो......?”

“बोल देना महकमे के काम के बारे में जनरल ट्रेनिंग है, समझ गए?”

“जी जनाब।“

“वैरी गुड, आप बहुत खुशकिस्मत हैं कि आपको इस ट्रेनिंग के लिए खासतौर पर अपाइंट किया गया है और वतन के किसी खास प्रोजेक्ट में आपको शामिल किया जा रहा है।“

राशिद के चेहरे पर कई सवाल उग आए थे, जिन्हें देख कर अबू काजमी ने कहा था – “परेशान होने की जरूरत नहीं है, ट्रेनिंग शुरू होने दीजिए, आपके सारे सवालों के जवाब मिलते जाएंगे। जो कुछ आपके बारे में मालूमात हुई हैं, उनकी बिना पर मैं कह सकता हूं कि जिस किसी प्रोजेक्ट के साथ आपको जोड़ा जाएगा, उसमें काम करके आपको दिली खुशी मिलेगी।“

“जी जनाब, बेहतर है।

“अब आज आप जा सकते हैं। कल समय पर आ जाइये, आपकी ट्रेनिंग सुबह ठीक दस बजे से शुरू हो जाएगी। आपके ट्रेनरों से आपकी मुलाकात कल खुद मैं कराऊंगा। ठीक है?”

“जी, ठीक है। तो मैं अब चलूं?”

“कहा ना, अब आप जा सकते हैं, कल सुबह मिलते हैं, हम।“

दूसरे दिन राशिद समय से पहले ही दफ्तर पहुंच गया था। वह थोड़ी देर इधर-उधर घूमता रहा और आसपास का जायजा लेता रहा। तभी उसे अबू काजमी दफ्तर में घुसते दिखाई दिए। वह भी तेज-तेज कदमों से चलता हुआ उनके पास जा पहुंचा। दोनों में दुआ-सलाम होने के बाद अबू काजमी ने कहा – “राशिद भाई आप कल वाले केबिन में जाकर बैठें। थोड़ी देर में मैं आपको बुलाता हूं।“

दस मिनट के इंतजार के बाद अबू काजमी ने उसे बुला भेजा। वे उसे साथ लेकर सबसे ऊपर की मंजिल में बने एक कमरे में ले गए। यह कमरा क्लास रूम जैसा लग रहा था। लिखने के लिए बोर्ड था और एक प्रोजेक्टर के साथ-साथ और भी ऐसी चीजें थीं, जिनके बारे में उसे जानकारी नहीं थी।

उसने सोचा था, वहां ट्रेनिंग के लिए बहुत सारे लोग होंगे, पर उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि वहां वह अकेला ही था। उसे वहां बैठाकर अबू काजमी कहीं चले गए। जब वे वापस लौटे उनके साथ दो लोग और थे। अबू काजमी ने उनका तआर्रुफ कर्नल जैदी और डा. मसूद के तौर पर कराया और कहा – “राशिद भाई, ये दोनों अपने-अपने फन में माहिर हैं। इनसे ट्रेनिंग लेना खुद में एक बड़ी बात है। अब मैं चलता हूं। आपकी ट्रेनिंग शुरू हो रही है, इसे सीरियसली लेना है। मुल्क के लिए आपकी ये ट्रेनिंग बहुत अहमियत रखती है।“

अबू काजमी के जाने के बाद उसकी ट्रेनिंग बाकायदा शुरू हो गई थी। उसी कमरे से लगे एक दूसरे कमरे में लैब भी थी, जिसमें कई तरह की नई-नई मशीनें लगी थीं। दोंनों ट्रेनरों ने उसे बहुत सी हिदायतें दी थीं और कहा था – “पहले आपको क्लास रूम ट्रेनिंग दी जाएगी और फिर इस लैब में प्रेक्टिकल ट्रेनिंग का भी मौका मिलेगा।

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