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मिशन सिफर - 9

9.

उसकी ट्रेनिंग खत्म हो चुकी थी। उसे वाकई बहुत कुछ नया और पेचीदा सीखने को मिला था। उससे कहा गया था कि वह अब कुछ दिन आराम करे। उसे अगले आर्डर तक क्वार्टर में ही रहना था। उसने जानने की कोशिश की थी कि कब तक उसे वहां रहना है, पर किसी को भी कुछ पता नहीं था। बिना कुछ किए ही उसने बड़ी मुश्किल से वे चार दिन गुजारे थे। उसे ज्यादा इधर-उधर घूमने की भी मुमानियत थी, इसलिए बोरियत भरे दिन निकालना कोई आसान काम नहीं था। फिर वह कयास लगा-लगा कर थक चुका था और एक अजीब सी बेचैनी उस पर तारी होने लगी थी।

शायद इंतजार की घड़ियां खत्म होने को थीं, उससे कहा गया था कि वह कल सुबह तैयार रहे, उसे लेने कोई आने वाला था। उसे कहां जाना है, यह किसी को पता नहीं था। उसकी पूरी रात बेचैनी में कटी और वह सुबह जल्दी ही उठ कर तैयार हो गया। नाश्ता करने के बाद वह क्वार्टर के बाहर चहल-कदमी करते हुए काफी देर तक इंतजार करता रहा। फिर थक-हार कर अपने बेड पर जाकर बैठ गया।

उसे खीज होने लगी थी। वह कपड़े उतार कर बिस्तर पर लेटने की सोच ही रहा था कि तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया। उसने तुरंत उठ कर दरवाजा खोला। सामने दो हट्टे-कट्टे शख्स खड़े थे। उनमें से एक ने उससे पूछा – “आप ही राशिद हैं?”

“जी जनाब, मैं ही राशिद हूं और आप?”

“मैं रहमान हूं और ये शकूर भाई हैं। हमें आपको लेने के लिए भेजा गया है।“

“आइये, अंदर आ जाइये।“

“नहीं, इतना टाइम नहीं है हमारे पास। आप तैयार हैं तो चलिए निकल चलते हैं।“

“कहां जाना है हमें?”

“आपको थोड़ी देर में पता चल ही जाएगा। बेहतर है, तुरंत निकल चलें। पहुंचने में चालीस-पैंतालीस मिनट तो लग ही जाएंगे। आपका इंतजार किया जा रहा है वहां।“

क्वार्टर बंद करके वह उन दोनों के साथ चल दिया। बाहर एक कार उनका इंतजार कर रही थी। उनके बैठते ही वह अनाम मंजिल की ओर दौड़ने लगी।

करीब पैंतालीस मिनट में उनका सफर समाप्त हुआ और कार किसी बड़ी दोमंजिला इमारत के गेट पर जाकर रुकी। वे दोनों राशिद को इमारत के अंदर ले गए। कड़ी सीक्यूरिटी से गुजरते हुए वे दूसरी मंजिल के एक कमरे के सामने रुके। इंटरकॉम पर उन्होंने किसी से बात की और फिर थोड़ी ही देर में उसे अंदर जाने का इशारा किया।

कमरे के अंदर जाकर उसने देखा वह एक छोटा सा मीटिंग रूम था। सामने की दीवार पर टीवी जितना बड़ा कंप्यूटर लगा हुआ था जिसकी बगल में कुछ नक्शे टंगे हुए थे। उन्हीं के नीचे रखी कुर्सियों पर तीन वर्दीधारी बैठे हुए थे। कमरे में रोशनी थोड़ी कम थी, इसलिए वह उनकी सूरत ठीक से नहीं देख पा रहा था। कमरे में उसके दाखिल होते ही उनमें से बीच में बैठे हुए शख्स ने कहा – “आइये राशिद, हम आपका ही इंतजार कर रहे थे। आप उस सामने वाली कुर्सी पर आराम से बैठ जाइये।“

राशिद ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा – “जनाब, मुझसे कहा गया था कि किसी बड़े प्रोजेक्ट में शामिल करने के लिए मुझे यहां भेजा जा रहा है। मैं अपने वतन और मज़हब की खिदमत करने के लिए बेकरार हूं। इसके लिए मुझे दो-दो बार कड़ी ट्रेनिंग भी दी गई है। क्या अब मुझे और कोई ट्रेनिंग लेनी है या फिर .......।“

“देखिए राशिद आप पाकिस्तान के एक बहुत बड़े और अहम् मिशन में शरीक किए जा रहे हैं। आपकी पूरी हिस्ट्री हमें पता है, इसलिए हम आप पर पूरा एतमाद रखते हैं। आपसे कोई भी बात छुपा कर नहीं रखी जाएगी क्योंकि आप इस मिशन का अहम् हिस्सा हैं। आप आराम से बैठिए और तफसील से सारी बातें सुन-समझ लीजिए।“

“जी जनाब..।“

इस समय आप आइएसआइ के एक खुफिया दफ्तर में मौजूद हैं।

वह बुरी तरह चौंक पड़ा था – “आइएसआइ?”

“जी हां, मजहब और वतन के लिए मर मिटने के आपके ख्वाब को जिंदा करने के लिए ही आपको इस मिशन के लिए चुना गया है। अब जब आप यहां तक आ गए हैं तो हम खुल कर सब बातें आपको बता देना मुफीद समझते हैं। आप पर शुरू से ही हमारी नजर लगी हुई थी। कादिर साहब से लेकर जिस-जिस शख्स ने आपकी मदद की है, वे हमारे ही आदमी थे। आप जैसा काबिल इंजीनियर और जोशो-खरोश से भरा नौजवान ही इस मिशन को अंजाम दे सकता है।“

हैरत से राशिद का मुंह खुला रह गया था। जिन वाकयों को वह किस्मत का खेल समझता आया था, वे सोची-समझी तरकीब का हिस्सा थे। वह मन ही मन उन वाकयों को सिलसिलेवार लगाने लगा था और उसके सामने सबकुछ शीशे की तरह साफ होने लगा था।

तभी उसकी सोच को झटका लगा। आइसआइ का वह अफसर कह रहा था – “राशिद आपको तो पता ही है, हमारे पड़ोसी मुल्क हिंदुस्तान में हमारे मुसलमान भाइयों पर किस-किस तरह के जुल्म ढाए जा रहे हैं। दंगों के नाम पर उन्हें मारा-काटा जा रहा है। उनके साथ वहां दोयम दर्जे के शहरी से भी बदतर सुलूक किया जा रहा है। मां-बहनों के साथ जो कुछ किया जा रहा है, उसे जुबान पर लाने में भी जुबां कटती है। मस्जिदों को तोड़ा जा रहा है या उन पर ताले लगाए जा रहे हैं। मकतबों को बंद किया जा रहा है। हमारे मुसलमान भाइयों को हिंदू बनाने की मुहीम चल रही है। उन्हें दर-बदर करने के लिए साजिशें रची जा रही हैं। वे वहां दांतों के बीच जीभ की तरह रह रहे हैं। वहां का बदहाल और डरा हुआ मुसलमान बड़ी उम्मीद से पाकिस्तान की तरफ देख रहा है। ऐसे हालात में हम चुप नहीं बैठ सकते। बोलो चुप बैठ सकते हैं क्या?”

“बिलकुल नहीं जनाब, ऐसे लोगों को तो माकूल सबक सिखाना चाहिए।“

“वही तो। हमने हिंदुस्तान को कड़ा सबक सिखाने के लिए ही इस मिशन की बुनियाद रखी है। इस मिशन को हमने मिशन-सिफर नाम दिया है क्योंकि इसके जरिये हम एटमी हथियारों के मामले में अपने दुश्मन को सिफर बनाने का बिस्मिल्लाह करने जा रहे हैं। अब हम आपको इस मिशन की बारीकियां बताएंगे।“ उस अफसर के बगल में बैठे शख्स ने दीवार पर लगा कंप्यूटर चालू कर दिया। कंप्यूटर पर एक ब्लूप्रिंट उभर आया। उस पर पाइंटर रखते हुए वह राशिद को कुछ समझाने लगा। कंप्यूटर और दीवार पर लगे नक्शों के साथ वह तकरीबन एक घंटा तक समझाता रहा। बीच-बीच में राशिद से पूछता जाता था – “कोई शक कोई शुबहा।“

जहां कहीं राशिद को समझ में नहीं आया था, उसे फिर से समझाया गया। जब यह सैशन खत्म हुआ, राशिद को मिशन की बारीकियां अच्छी तरह समझ में आ गई थीं। उसने पूछा था – “और कौन इस मिशन पर मेरे साथ जाएगा?”

उसे चौंकाने वाला जवाब मिला था – “इस मिशन की किसी को कानोंकान खबर न हो, इसलिए आप अकेले ही जाएंगे। हां, हिंदुस्तान में हमारे एजेंट आपके संपर्क में रहेंगे। याद रखना आपको वहां हिंदुस्तानी बन कर रहना है। घुलमिल जाना है वहां सबसे। आपके भारतीय पासपोर्ट, आधार कार्ड सब तैयार हैं। अपने मकसद को पूरा करने के लिए जरूरी लोगों से संपर्क बनाना है। हमारे हिंदुस्तानी एजेंट मुंबई में आपके रहने-खाने का सारा इंतजाम तो कर ही रहे हैं, वहां के नए एटमी प्रोजेक्ट में आपको मुलाजमत दिलाने में भी मदद करेंगे।“

“समझ गए ना? याद रखना आप इस्लाम के दुश्मन हिंदुस्तानी दरिंदों के इरादों को नेस्तनाबूद करने जा रहे हो। उस मुल्क में जितनी तबाही मचेगी, उतनी ही जहान भर के हमारे मुसलमान ब्रादरान और पाकिस्तान में खुशी की लहरें दोड़ेंगी। ऐसे देश में तबाही मचाने से आपको ही नहीं, आपकी सात पुश्तों को सवाब मिलेगा और अल्लाहताला आपको जन्नत अता करेंगे।“

सारी बातें सुन-सुन कर राशिद की नसों का खून उबलने लगा था। उसे यह यकीन हो गया था कि खुद अल्लाहताला ने उसे इस मिशन के लिए चुना था, नहीं तो आज वह पाकिस्तान के इस बड़े खुफिया मिशन का हिस्सा कैसे बनता। उसके अकेले के ऊपर इस मिशन की सफलता का दारोमदार था। वह अपने मज़हब और अपने वतन के लिए कितनी अहमियत रखता था। उसके मुंह से बेसाख्ता निकला था – “जनाब बेफिक्र रहें, जब तक दम में दम है, मैं इस मिशन को शिद्दत से पूरा करूंगा।“

“शाबास, हमें आपसे यही उम्मीद थी” – तीनों अफसरों ने एकसाथ कहा था। फिर उसे बताया गया कि अब वह तब तक आइएसआइ के ताबे में ही रहेगा जब तक कि उसे सीमापार नहीं करा दिया जाता। सीमा पार करने के बाद वे अपने एजेंटों के जरिये उसके संपर्क में रहेंगे। बहुत जरूरत होने पर ही एजेंट उससे खुद संपर्क करेंगे। ज्यादातर उनसे कोई संपर्क नहीं रखा जाएगा क्योंकि जरा सा भी शक और शुबहा पूरे प्लान और पूरी मेहनत को बरबाद कर सकता है। राशिद ने सारी बातें ध्यान से सुनी थीं और उन्हें यह भरोसा दिलाया था कि वह इस खुफिया मिशन को खुफिया रखने के लिए पूरी एहतियात बरतेगा।

मेजर जनरल के स्तर के एक अफसर ने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा था – “राशिद मियां, हमें आप पर पूरा भरोसा है, ख्याल रहे कि इस मिशन की कामयाबी आपकी काबिलियत और वतन-परस्ती पर ही निर्भर करती है।“

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