ये उन दिनों की बात है - 6 Misha द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ये उन दिनों की बात है - 6

मैं जब चंडीगढ़ से आई तो पता चला अंकल आंटी यहाँ से चले गए और उदयपुर शिफ्ट हो गए | घर भी बेच दिया |

ह्म्म्म्म्म..............दरअसल चिंटू की जॉब उदयपुर में लग गई थी और हमारा पुश्तैनी घर भी है वहां | अधिकतर हमारे रिश्तेदार भी रहते हैं, इसलिए चिंटू उन्हें अपने साथ ही ले गया |

जब चिंटू की नई नई जॉब लगी थी उदयपुर | थोड़े दिन तो वो अकेला रहा, पर उसे मम्मी पापा की याद आने लगी और उन्हें वहीँ बुला लिया | कहा, आप यहीं आ जाओ | मुझे यहाँ बिलकुल अच्छा नहीं लगता आपके बिना | इसलिए पापा ने घर बेच दिया और उदयपुर ही शिफ्ट हो गए |

चिंटू की वाइफ भी बहुत अच्छी है | मम्मी पापा का बहुत ख्याल रखती है | टीचर है स्कूल में |

इसलिए हमारा कॉन्टैक्ट नहीं हो पाया | अगर तू फेसबुक पर होती तो मैं कबका तुझसे कॉन्टैक्ट कर लेती और हम मिलते रहते | खैर कोई नहीं | लेकिन अब तू अपना फेसबुक अकाउंट खोल लेना | अपनी स्कूल और कॉलेज की अधिकतर लड़कियां है उस पर |

हाँ! ज़रूर!! मैं हँसते हुए बोली |

और नैना ? कैसी है ? कहाँ है ?

दिल्ली में है और उसकी लाइफ बहुत मस्त चल रही है | उसके हसबैंड डॉक्टर है एम्स में और वो एक कॉलेज में लेक्चरर है | एक बेटी है उसकी नाम है "दिशा" |

"वाओ ओसम" और तूने जॉब क्यों नहीं की ?

इन्हें पसंद नहीं था | कहा, मैं इतना अच्छा कमा लेता हूँ, तो तुम्हें जॉब की क्या ज़रूरत है | तुम तो बच्चों और मम्मी पापा का ख्याल रखो | लेकिन खाली बैठे बैठे मुझे कोफ़्त होने लगी थी, इसलिए मैंने हॉबी क्लासेज स्टार्ट कर दिया | दिन का समय इसी में व्यतीत करती हूँ और रिफ्रेश रहती हूँ | मैं मैगजीन्स और पत्रिकाओं के लिए कवितायेँ भी लिखती रहती हूँ |

"लेट्स गो मम्मा"! "डैड इज कॉलिंग", सिया ने पुकारा |

अच्छा दिव्या!! अब चलती हूँ | समय कितनी जल्दी बीत गया पता ही नहीं चला | ऐसा लगता है, अभी थोड़ी सी ही देर तो हुई है | जी ही नहीं भरा | अभी तो तुझसे ढेर सारी बातें करनी है | कुछ मेरी कहनी है | कुछ तेरी सुननी है | और हम दोनों एक दुसरे के गले मिले |

कल आना दिव्या, जीजाजी और बच्चों संग |

धीरज जी!, कल ज़रूर आइयेगा | हमें भी आपकी सेवा का मौका मिले, जीजाजी ने इंसिस्ट किया |

हाँ जीजाजी! आप सब प्लीज कल आइयेगा |

ठीक है | इन्होंने कहा |

उनके जाने के बाद इन्होंने पूछा | कौनसी सहेली है ये तुम्हारी?, ये थोड़ा गुस्से में थे |

मेरी बचपन की सहेली है और कितने सालों बाद मिल रहे हैं हम | तो दो-चार बातें तो होनी ही थी |

क्यों इन्वाइट किया था इनको ? कितना टाइम ख़राब कर दिया इन लोगों ने ? टाइम देखा | साढ़े ग्यारह बज चुके हैं | एक तो आये लेट और ऊपर से लेट ही गए | मुझे ये सब बिलकुल पसंद नहीं | वक़्त का कुछ भी होश नहीं | वे गुस्से में भुनभुना रहे थे |

मुझे गुस्सा तो बहुत आया, पर क्योंकि आज दिवाली थी और बच्चों के बारे में सोचकर मैंने चुप रहना ही ज़रूरी समझा | क्यों एक इंसान की वजह से अपने बच्चों की खुशियां बर्बाद करूँ ? नहीं तो मुझे बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं हुआ था कि कोई मेरी सहेली और उसके परिवार के बारे में कुछ भी भला बुरा कहे कहे | मैं सोने चली गई थी |

दुसरे दिन सुबह ही कामिनी का फ़ोन आ गया |

कब आ रही हो ?

मेरी आँखों से आंसू आ गए | उन्हें जल्दी से पौंछते हुए बोली, हाँ ! जल्दी ही आ जायेंगे |

हम कामिनी के घर चल रहे हैं, मैंने धीरज को कहा |

क्यों ? क्या काम है ? कहीं नहीं जाना मुझे और तुम भी कहीं नहीं जाओगी | और दीदी भी आ रही हैं शाम को तो अभी से उनकी तैयारी में लग जाओ |

अगर उसके घर नहीं गए तो उसे बुरा लगेगा और जीजाजी ने भी तो आपको इन्वाइट किया था | और दीदी तो शाम को आ रही हैं | हम जल्दी ही आ जायेंगे |

इन्होंने साफ़-साफ़ मना कर दिया था, लेकिन बाद में बच्चों के इंसिस्ट करने पर राजी हुए |

हम कामिनी के घर पहुंचे | घर वाकई में अद्भुत था | वो हमारा बेसब्री से इंतज़ार ही कर रही थी |

हम दोनों एक दुसरे के गले मिली |

आप लोगों को घर ढूंढने में तकलीफ तो नहीं हुई ना |

अरे! बिलकुल नहीं! ये अपना जयपुर है | एकदम सीधा-साधा |

है ना !!! और दोनों बुक्का फाड़कर हँस पड़ी | इनको मेरा इतनी ज़ोर से हँसना बिल्कुल पसंद नहीं आया, क्योंकि उनके चेहरे पर हँसी और गुस्से के मिश्रित भाव मैंने देख लिए थे, पर कुछ नही कह सके लेकिन मैं बिल्कुल बेफिक्र थी |

"वाओ," "सो नाइस" | बहुत सुन्दर घर है

इसका श्रेय मेरी देवरानी आराधना को जाता है | ये आराधना और रोहित मेरे देवर-देवरानी | कामिनी ने उनसे परिचय कराया |

स्वरा, सिया-रिया के साथ बिज़ी हो गई और समर, आराधना के बेटे आरव के साथ क्रिकेट खेलने में |

सच में!, घर बहुत ही सुन्दर था | उसके देवर देवरानी की काफी सारे फोटोज एक ट्री के रूप में दीवार पर लगी हुई थी | लाइटिंग्स भी काफी अच्छी थी, एकदम लेटेस्ट | और दीवारों का टेक्सचर भी अलग ही था | एक वाल पेंटिंग थी, बहुत ही खूबसूरत | एक दीवार पर बड़ा सा मिरर लगा हुआ था, जिसके चारों तरफ सुन्दर सी कारीगरी की हुई थी | रास्ते में आते वक़्त मैं कामिनी-जीजाजी, आराधना-रोहित के बारे में सोच रही थी | कितने सुलझे हुए है इन दोनों के हस्बैंड!!! कितनी केयर करते हैं !!! अपनी-अपनी पत्नियों के लिए | रोहित ने सबके लिए चाय बनाई थी ताकि आराधना आराम से बैठ कर बाते कर सके |