जोरू के गुलाम है दोनों ही, मेरी सोच को विराम तब लगा, जब मैंने धीरज को ये कहते हुए सुना |
जी, कुछ कहा आपने |
तुम अपनी सहेली से जरा दूर ही रहना | तुम उसके साथ रह रहकर कहीं मुझसे ये एक्सपेक्ट मत करने लगना कि मैं भी वहीं करूँ, जो वो दोनों जोरू के गुलाम करते हैं | औरतों को हमेशा मर्दों का कहना ही मानना चाहिये |
और तुम ! कुछ ज्यादा ही हँस रही थी | शर्म नहीं आती, इतनी जोर से हँसते हुए | पता नहीं किस टाइप की औरतों की संगत में रहने लग गई हो आजकल |
दुःख होता है, मुझे | आपकी सोच पर और किसके बारे में कह रहे हैं आप | कामिनी के बारे में, तो उसके सुलझी हुई, समझदार और दोस्ती में कोई शर्त ना रखने वाली लड़की आपने आज तक नहीं देखी होगी |
तुम और तुम्हारी सहेलियाँ ? बस अब दोबारा यहाँ दिखनी नहीं चाहिए|
धीरज का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था, इसलिए मैंने चुप रहना ही बेहतर समझा | क्योंकि मैं नहीं चाहती थी मेरे बच्चों को इसकी भनक भी लगे |
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मन बहुत उदिग्न हो रहा था, मैंने कामिनी को फ़ोन लगाया |
क्या हुआ दिवू ? क्यों रो रही हो ?
मैं मिलना चाहती हूँ |
मैं बस अभी आई |
नहीं, आज नहीं, कल, और यहाँ नहीं | मेरे घर पर | हमारे पुराने मोहल्ले में |
अब तू रोना बंद कर | मैं जल्दी ही आ जाऊंगी |
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दिवू !! मैं पीछे मुड़ी |
मैं भागकर कामिनी के गले लगी और रोने लगी |
दिवू, दिवू | देख तू रोना बंद कर | बात क्या है ? बता मुझे ?
और मैंने उसे अपने दिल का हाल कह सुनाया |
मैं तो उसी दिन समझ गई थी कि तुम दोनों के बीच कुछ भी ठीक नहीं है | जीजाजी के हाव भाव से ऐसा ही लग रहा था, कामिनी ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा |
पति पत्नी के रिश्ते में जो अंडरस्टैंडिंग होनी चाहिए ना, वो उनकी तरफ से तो बिलकुल भी नहीं है | कभी भी उन्होंने प्यार के दो मीठे बोल भी नहीं बोले | साथ बैठकर चाय पीना तो दूर की बात है | खाना भी साथ बैठकर कभी नहीं खाया | हमेशा कुछ ना कुछ कमी निकाल ही देते हैं | चलो वो तो मैं सहन भी कर सकती हूँ, पर मेरे परिवार और मेरी प्रिय सहेली के बारे में औछी बातें मुझे बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं |
कहकर मैं चुप हो गयी | थोड़ी देर तक हम दोनों ऐसे ही खामोश बैठे रहे |
कुछ खिलाएगी पिलाएगी नहीं | कामिनी ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा |
क्या लोगी ? चाय या कॉफ़ी ? मैंने आंसू पूछते हुए कहा |
पर, यहाँ सामान कहाँ है ? कामिनी ने मायूस होते हुए कहा |
किरायेदार है ना | वो किस दिन काम आएंगे, मैंने चेहरे पर मुस्कान लाते हुए कहा |
किरण, ओ किरण |
जी दीदी |
ज़रा दो कप चाय तो बना दे |
अभी बनाती हूँ दीदी |
और हाँ, राघव को भेज |
राघव नीचे आया |
बेटा सबके लिए कचोरियाँ लेते आना, मैंने उसे पैसे देते हुए कहा |
और कुछ खायेगी तू ?
नहीं, बस काफी है |
ये कचोरी का स्वाद तो अभी भी बरक़रार है, कामिनी ने जैसे ही एक बाईट लिया, उसके मुँह से यहीं निकला |
हम बचपन में खाते थे ना | सच में वे भी क्या दिन थे | काश!! वे पल फिर से लौट आये और फिर मैं जगजीत सिंह और चित्रा सिंह का वो गीत गुनगुनाने लगी | ये दौलत भी ले लो, ये शौहरत भी ले लो, मगर मुझको लौटा दो बचपन का मौसम, वो कागज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी |
वाह! वाह! कामिनी ने ताली बजाई |
शुक्रिया, मैंने सर झुकाया |
चाय पीने के बाद, मैं कामिनी को उस कमरें में ले गई, जहाँ मेरे बचपन की यादें खिली हुई थी |
कामिनी की आँखें चौंधिया गई थी |
ये देख अपने खिलोने, ये रस्सी, जिससे हम रस्सी कूदा करते थे |
तूने तो सब संभाल कर रख हुआ है |
हाँ, जब भी यहाँ आती हूँ | इन्ही चीजों के साथ कुछ वक़्त बिताती हूँ जो मुझे मेरे बचपन की यादों में ले जाते हैं |
ये देख, मेरी और नैना की गुड़िया | हम इनको अपने पास ही लेकर सोया करते थे | मम्मी ने हमारी गुड़िया के लिए ढेर सारे कपड़े सिले थे ताकि रोज उन्हें नए नए कपड़े पहना सकें |
फिर मैंने उसे वो पुराना संदूक खोलकर दिखाया, जिसमें वे कपड़े थे |
अभी भी बिलकुल नए जैसे हैं, कामिनी हैरान थी |
हाँ, शादी से पहले | ये सब मैंने इसी संदूक में रख दिए थे, ताकि इधर उधर ना हो जाये |
ये वाली फ्रॉक तो अंकल ने तुझे तेरे बर्थडे पर गिफ्ट की थी | वही है ना, कामिनी ने याददाश्त पर ज़ोर डालते हुए कहा |
हाँ वही है | वैसे तुझे भी सब कुछ याद है |
होगा क्यों नहीं | बचपन के दिन भी कोई भूलता है भला |
कुछ फोटोज भी है | लेट मी गेस | ये उन दिनों की तस्वीर है, जब अंकल नया कैमरा लेकर आये थे तो सबसे पहले यही तस्वीर खींची थी उन्होंने, कामिनी काफी चकित थी |
ये आंटी, मम्मी-पापा, नैना, तू और मैं, अंकल, चिंटू | अरे, चिंटू, कितना छोटा सा था !! हाउ क्यूट !
तभी कामिनी की नज़र मेरी डायरी पर गई | उसने उठा ली और पन्ने पलटने लगी | पहले ही पन्ने पर "सागर" लिखा था |
सागर नाम लेते ही कुछ अनकही, दबी हुई, छुपी हुई यादें, मेरे सामने आने लगी | एक-एक कर, परत-दर-परत, खुलने लगी |