6.
एक महीने तक उसे अलग-अलग तरह के हथियार चलाने समेत दुश्मन पर टूट पड़ने और उससे बचाव के तरीकों की ट्रेनिंग दी जाती रही। उसके उस्ताद उसके समझने और सीखने के माद्दे से बहुत खुश थे। जुमे की नमाज के बाद खास तकरीर की जाती, जिसमें बताया जाता कि इस्लामी देशों को छोड़कर सभी गैर-इस्लामी मुल्क इस्लाम के दुश्मन बने हुए थे। वे चाहते थे कि पूरी दुनिया से इस्लाम का नामोनिशां मिट जाए। खासकर काफिर मुल्क हिंदुस्तान का तो बस एक ही मकसद था कि कैसे वह पाकिस्तान और उसकी सरहद से लगे अफगानिस्तान जैसे इस्लामी मुल्कों को अपने कब्जे में ले ले। हिंदुस्तान में मुसलमानों पर ढ़ाए जा रहे जुल्मों का ऐसा खाका खींचा जाता कि सुनने वाले हर नौजवान के अंदर का खून खौलने लगता और खद-ब-खुद उनके मुंह से नारा-ए तकबीर ऊंची आवाज में निकलने लगता। उनको बताया जाता कि हिंदुस्तान ने कैसे कश्मीर को गैर-वाजिबी तौर पर अपने कब्जे में रखा हुआ है और हिंदुस्तानी फौज वहां के वाशिंदों को कैसी-कैसी ज़हनी और बदनी तकलीफें दे रही है, जिसको सुनकर ही बदन के रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
हमारा नामोनिशां मिटाने को हिंदुस्तान ने हमारे मुल्क पर तीन बार हमले किए। लेकिन, वह पाकिस्तान की बहादुर फौज का मुकाबला करने में नाकाम रही। पूर्वी पाकिस्तान में हुए बबाल का फायदा उठाकर हिंदुस्तानी फौजें वहां पहुंच गईं और उन्होंने उसे पाकिस्तान से अलग करके एक नया मुल्क बांगला देश खड़ा कर दिया। हमारे मुल्क को दो टुकड़ों में तकसीम होने का दर्द हमने झेला है। जब तक हम हिंदुस्तान के कई टुकड़े नहीं कर देते हम चैन से नहीं बैठ सकते। आपमें से कौन है जो इसका बदला लेने के लिए तैयार है।
सभी एकसाथ चिल्लाते हम लेंगे हिंदुस्तान से इसका बदला। एक-एक मुसलमान के खून का बदला हम लेंगे। हम लड़ेंगे, आखिरी सांस तक लड़ेंगे। मारेंगे तो सवाब मिलेगा और मरेंगे तो शहादत मिलेगी। जीते तो वतन मुबारक, हारे तो कफन मुबारक। हर जुमे की नमाज के बाद ऐसी तकरीरें सुन-सुन कर हर नौजवान जिहाद की कस्में उठाता और काफिरों के खून से अपने हाथ रंगने के लिए उतावला हो उठता।
इस बीच कादरी भाई एक बार भी राशिद से मिलने नहीं आए थे। उसे अजीब तो लगता, पर वह यह सोच कर चुप रह जाता कि उन्होंने अगर उसे इस हॉस्टल में जगह नहीं दिलाई होती तो फिर वह वहीं यतीमखाने में ही पड़ा रहता। फिर, यहां उसे किसी बात की कोई कमी, कोई परेशानी भी नहीं थी। रहने-खाने की कोई फिक्र नहीं थी। हुब्बे-वतनी और अल्लाहताला की राह में कुर्बान होने के लिए उसे जो तालीम और ट्रेनिंग दी जा रही थी, वह नायाब थी। अपने फन में उस्ताद लोग उन्हें ये ट्रेनिंग दे रहे थे। इस कड़ी और लगभग पूरे दिन चलने वाली ट्रेनिंग में समय इतनी जल्दी निकल रहा था कि पता ही नहीं चलता था। वह बहुत खुश था। पर, वह बड़ी बेताबी से अपने रिजल्ट का इंतजार भी कर रहा था। चाहता था कि उसका रिजल्ट जल्द से जल्द आ जाए और उसकी इंजीनियरी पढ़ाई उसके मुल्क और मज़हब के काम आए।
उस दिन दोपहर के खाने के बाद वह अमजद के साथ बाहर खड़ा बातें कर रहा था कि उसे सामने से कादरी भाई आते दिखाई दिए। वह अमजद से बात करना छोड़ भाग कर कादरी साहब के पास पहुंचा। दोनों ऐसे गले मिले जैसे ईद का दिन हो। राशिद ने पूछा – “इतने दिन कहां रहे कादरी भाई? लगता था भूल ही गए।“
“वह सब छोड़ो, पहले यह बताओ, यहां सब कैसा चल रहा है। यहां के महौल में तुम्हें कैसा लग रहा है?”
“सबकुछ अच्छा है, भाईजान। मैंने सोचा भी नहीं था कि आप मेरे खाने-पीने और रहने का ही इंतजाम नहीं कर रहे हैं, वरन् इतनी नायाब ट्रेनिंग का भी इंतजाम कर रहे हैं।“
“मैंने तो दोस्ती का फर्ज अदा किया है राशिद भाई। चलो छोड़ो इन बातों को। मैं तो आपके लिए खुशखबरी लेकर आया हूं।“
“कैसी खुशखबरी कादरी भाई?”
“सुनोगे तो खुशी से पागल हो जाओगे।“
“बताइये ना, नहीं तो मैं इंतजार में ही पागल हो जाऊंगा।“
“बताता हूं, बताता हूं, सांस तो लेने दो......... राशिद भाई आप अब्वल दर्जे से पास हो गए हैं।“
“क्या बात कर रहे हैं? रिजल्ट आ गया?”
कादरी भाई ने अपने कुर्ते की जेब से मुड़ा हुआ अखबार निकाला और राशिद को पकड़ा दिया।
राशिद ने उनके हाथ से अखबार लगभग खींच लिया और बेताबी से रिजल्ट वाला पेज पलटा। कादरी भाई ने जो कुछ कहा था, वह सही था। वह खुशी से उछल पड़ा था और उसकी आंखों में खुशी के आंसू छलछला आए थे।
कादरी भाई ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा – “जज़्बाती मत बनो राशिद भाई। अभी तो इससे भी बड़ी खुशी आपको सहन करनी है...।“
राशिद ने चौंक कर उनकी ओर देखा था और कहा था – “पहेलियां मत बुझाओ कादरी भाई। मेरी जान निकल जाएगी उसके बाद बताओगे क्या?”
“जान निकले हमारे दुश्मनों की। बात यह है कि आपका रिजल्ट दो दिन पहले ही आ गया था। यहां अखबार आता नहीं, इसलिए आपको पता नहीं चला। आपकी तरह मैं भी इसके इंतजार में था। यह तो अच्छा हुआ अखबार में उन दस लोगों के नाम छपे हैं, जिन्होंने टॉप किया। आपका नाम सबसे ऊपर देख कर मैं भी आपकी तरह खुशी से उछल पड़ा था। चाहता था तुरंत आपके पास भागा आऊं, पर दोनों खुशियां आपको एकसाथ सुनाना चाहता था।“
“दोनों खुशियां? भाईजान आप फिर पहेलियां बुझाने लगे...।“
“थोड़ा सब्र रखो मियां। मेरा एक दोस्त बहुत बड़े सरकारी ओहदे पर है। मैंने जब आपके बारे में उसे बताया तो वह बहुत खुश हुआ। बोला – ऐसे लोगों की तो हमें तलाश रहती है। आइटी और सिस्टम इंजीनियर की एक जगह हमारे पास खाली पड़ी है। आप तुरंत उन्हें मेरे पास ले आओ। ऐसे टॉप इंजीनियर को हर हाल में मुलाज़मत मिल जाएगी।“
“क्या कह रहे हैं आप कादरी भाई?”
“अल्लाह कसम यह बिलकुल सच है।“
“ओह, कादरी भाई, मेरे लिए आपको खुद अल्लाताला ने रहबर बना कर भेजा है” – यह कह कर उसने कादरी भाई के दोनों हाथ पकड़ कर चूमते हुए उन्हें अपनी दोनों आंखों से लगा कर शुक्रिया अदा किया तो उन्होंने उसे अपने गले से लगा लिया और कहा – “कल सुबह ठीक 10 बजे तुम इस महकमे के तौफीक अहमद साहब से मेरा नाम लेकर मिल लेना। बाकी सब खुद-ब-खुद ठीक हो जाएगा। और एक बात.... मैं यहां मेहमूद भाई से मिलकर जाऊंगा। उनसे सारी खबरें मिलती रहीं हैं मुझे। मेहमूद भाई आपकी बहुत तारीफ कर रहे थे। बड़ी काबिलियत के साथ आपने अपनी ट्रेनिंग पूरी की है। अब कल से आपकी यह ट्रेनिंग खत्म हो जाएगी। आपको तो अब वतन की और भी बड़ी खिदमत करनी है। कल आप तौफीक अहमद साहब से मिल ही रहे हैं, मैं मेहमूद भाई को सब बता कर जाऊंगा, यहां से आपको जाने-आने में कोई परेशानी नहीं होगी।“
कादरी भाई उसका कंधा थपथपा कर चले गए। वह बहुर देर तक उन्हें जाते देखता रहा। उसके लिए तो वे फरिश्ता बन कर आए थे। कादरी भाई के अलावा शायद ही कोई होगा जो बिना किसी मतलब के उस जैसे यतीम नाचीज पर इतनी मेहरबानियां कर सके। उसने मन ही मन अल्लाहताला का शुक्रिया अदा किया और अगले दिन की अहम् मुलाकात के बारे में सोचता हुआ अपने कमरे की ओर चल दिया। अब्वल दर्जे से और वह भी मेरिट के साथ पास होने की खुशी के साथ-साथ सरकारी नौकरी मिलने की खुशी उससे संभाले नहीं संभल रही थी। वह जल्द से जल्द उसे यतीमखाने की इंतजामिया कमिटी के मेंबरान और उसे इस मुकाम तक पहुंचाने में बहुत बड़े मददगार साबित हुए वकील साहब और यहां बन गए अपने बहुत सारे दोस्तो के साथ बांट लेना चाहता था।