कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग - 13) Apoorva Singh द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग - 13)

भाग ‌13



वहीं अर्पिता किरण के कमरे में है और उससे बातचीत कर रही है।


अर्पिता – किरण क्या हो गया था तुम्हे तुम मौसा जी से बातचीत क्यू नही कर रही थी।मौसा जी तुमसे बात करने आये थे क्यूं चुप रही थी तुम्। बोलो अब जवाब दो।


अर्पिता हर बार यही होता है पिछली बार भी अचानक से आकर बोल दिया कि जाओ किरण नीचे तुम्हे देखने लड़के वाले आए है यार ये क्या बात हुई भला। अर्पिता इंसान हूँ मै कोइ खिलोना नही जिसके अंदर कोई भावना नही होती है।मेरे अंदर भावनाये है। किसी भी लड़की को ये खबर सुन कर एड्जस्ट करने में समय लगता है और एक मेरे साथ तो हथेली पर सरसो जमाने की आदत है सबको।किरण ने चिढते हुए अर्पिता से कहा।अर्पिता किरण की बात ध्यान से सुनती है और उससे कहती है किरण हमें एक बात स्पष्ट बताओगी।


किरण: हाँ पूछो।


अर्पिता : तुम्हे इतनी परेशानी किस कारण हो रही है मौसा जी ने अचानक से तुम्हे खबर दी इस कारण या फिर तुम किसी और को पसंद करती है इस कारण॥ क्या बात है साफ साफ कहो।हम तुम्हे बचपन से जानते हैं और तुम ऐसी नही हो जैसी आज तुमने बनने की कोशिश की।और फिर ऐसे सोचो न कि अभी तो तुम्हे देखना है कि वो लोग कैसे हैं कैसे नही है।और एक बात कहे हम किस्मत वाली होती है लड़किया जो उन्हे अपनी घर की लक्ष्मी बनाने के लिये लोग खुद चल कर आते हैं।बड़े ठाठ होते है मैडम॥ कुछ तो नखरे दिखाना बनता है॥।नही समझ आये तुझे तो हमें बताना अपने तरीके से निपटेंगे जैसे हमने अपने कॉलेज में कुछ के दिमाग ठिकाने लगाये थे याद आया कुछ....।


ओह माय गॉड॥याद आया यार।किरण ने हंसते हुए कहा।


किरण के चेहरे पर हंसी देख अर्पिता उससे कहती है तो फिर इतनी परेशानी क्यूं किरण?


अर्पिता की बात सुनकर किरण सोच में पड़ जाती है कुछ पल मौन रहती है फिर कहती है,अर्पिता सच कहूं तो मैने कभी तुम्हारे नजरिये से सोचा ही नही कि मै परेशान हो काहे रही हूँ। जबकि मेरी लाइफ में आज तक कोई नही आया और कल जिससे टकराई वो तो बस टकराव ही था न्।उसके बारे में क्या सोचूं।किरण ने मुस्कुराते हुए अपनी बाई आंख दबा कर कहा॥ बाकि एक बार इस आने वाले नमूने से मिलकर देखते है अगर मेरे टाइप का नही हुआ तो फिर तुम और मै मिलकर तिकड़म भिड़ा ही लेंगे नई...।


हाँ हाँ काहे नही इसी बात पर हाई फाइव अर्पिता ने अपना हाथ आगे बढाते हुए कहा॥


या कहते हुए किरण और अर्पिता दोनो हाई फाइव करती है।किरण मुस्कुराने लगती है वहीं अर्पिता एक बार मन ही मन कहती है जीवन के इस सफर में काश कभी आपसे दोबारा मुलाकात हो प्रशांत जी...। और मुस्कुराने लगती है।


अच्छा सुनो किरण हम नीचे जा रहे हैं मासी को हमारी मदद की जरुरत हो सकती है।तो हम देखते हैं हमारे लायक कोई काम हो तो हम करवा लेते हैं।अर्पिता ने कहा।


ठीक है लेकिन जल्दी आना।किरण अपनी किताबे समेट कर कबर्ड में रखते हुए कहती है।अर्पिता वहाँ से बीना जी के पास चली आती है।



अरे अर्पिता आप आ गयी किरण का मूड बना कि नही।वो मानी कि नही? बीना जी ने एक साथ प्रश्नो की झड़ी लगाते हुए अर्पिता से कहा।



रिलेक्स मासी। किरण मान गयी है और उसका मूड भी बहुत अच्छा है।आप बेफिकर होकर सारे कार्य कीजिये।


ये खबर सुन कर बीना जी अर्पिता के माथे को चूम लेती है। वो थोडी भावुक हो जाती है।ये देख अर्पिता अपनी गर्द्न हिला कर न कहती है जिसे देख कर बीना जी बस धीमे से मुस्कुरा भर देती है।



अर्पिता : मासी। हम तो नीचे आये थे कि आपकी थोड़ी बहुत मदद कर दे लेकिन आपने तो सारा कार्य पूर्ण कर लिया है अब हम क्या यहाँ बैठ्कर प्याज काटे।



ना मेरी बच्ची प्याज नही तुम तो अपना पसंदीदा काम करो और वो करो जिसमे तुम बेस्ट हो ये लो कॉफी और थोड़ी सी शक्कर और साथ में मिल्क्॥ अब यहाँ आराम से बैठ कर इसे फेंटो और फेंटती जाओ जब तक ये सभी मिल कर एकरूप नही हो जाते।


सच कहा मासी आपने।यही तो विवाहित जीवन की खुशियों की चाबी है बिल्कुल कॉफी के जैसे.. ।


एक कप मन की कॉफी बनाने के लिये हमें कुछ चीजे बिल्कुल सही मात्रा में डालनी होती है।और ये संयोग तो देखो मासी जो दो जरुरी चीजे है वो एक दूसरे से बिल्कुल अलग है कॉफी पाउडर जो कड़वा होता है वही शक्कर जो मीठी होती है बिल्कुल दो अलग अलग सोच के व्यक्तियो की तरह।फिर इसे एकरंग करने के लिये हम मिलाते है इसमे जरा सा दूध यानी उन दो अलग अलग सोच के व्यक्ति के द्वारा डाले गये एफर्ट..। जो अगर सही मात्रा में मिलाना आ जाये तो जिंदगी ही खूबसूरत बन जाये।और फिर मन की कॉफी बनती है।यानी मीत से मनमीत बनते हैं॥ और ये झाग वाली कॉफी हमें बेहद पसंद है।लीजिये मासी हो गयी आपकी कॉफी तैयार्।अर्पिता ने बाउल बीनाजी की ओर बढाते हुए कहा।उसके चेहरे पर निश्छल मुस्कान होती है।




वाह कितनी सरलता से अर्पिता ने खुशियो का सार समझा दिया।बहुत ही सुलझी हुई सोच है हमारी अर्पिता की।जहाँ भी जायेगी अपनी सोच और गुणो से सबको अपना बना लेगी।बीनाजी मन ही मन कहती है और मुस्कुराते हुए कॉफी का बाउल अर्पिता के हाथ से ले लेती है।




बीना जी ‌-अच्छा अर्पिता अब तुम जाओ सारा कार्य लगभग हो ही गया है।बारह बजे सभी आ जायेंगे।कुल मिला कर चार जन आ रहे हैं।और एक हमारी जीजी।तो बारह बजे तुम आ जाना और मेरी जरा मदद कर देना ठीक है।


जी मासी हम तो आपके बिन कहे ही दौड कर आ जायेन्गे भला ये भी कोई कहने की बात है।अर्पिता ने मुस्कुराते हुए कहा।और वहाँ से उपर किरण के कमरे में चली जाती है।


कुछ देर बाद बारह बज जाते है और बारह बजकर एक मिनट पर घर के बाहर एक गाड़ी के रुकने का स्वर आता है।ये देख कर बीना जी अपने फोन से अर्पिता को एक मिस्ड कॉल कर देती हैं।


अर्पिता फौरन ही नीचे चली आती है।और सबके अंदर आने से पहले ही रसोई में चली आती है और एक नजर रखे हुए सभी सामान पर दौड़ाती है।और समझ कर कार्य भी करने लगती है।वहीं बीना जी और हेमंत दोनो ही घरके बाहर जाते हैं। और आने वाले सभी मेह्मानो का स्वागत करते हैं।


बीना जी नमस्ते कमला जी नृपेंद्र जी और...।जी प्रणाम कहते हुए राधिका अपने हाथ जोड़ लेती है।


बीना जी भी मुस्कुराते हुए प्रणाम कहती है।हेमंतजी सभी को अंदर आने के लिये कहते हैं।


जी चलिये कहते हुए नृपेंद्र शोभा कमला और राधिका सभी बीना जी और हेमंत जी के साथ अंदर चले आते है। चारो अंदर जाकर हॉल मे रखे सोफे पर बैठ जाते हैं।


शोभा और राधू बैठते ही एक सरसरी नजर चारो ओर डालती है मानो कि आंखो से ही स्कैनिंग कर रहीं हो।हेमंत जी सभी के पास बैठते हैं और बीना जी एक नजर उपर सीढियों की ओर डालती है। और फिर वहाँ से रसोई में चली जाती है।जहाँ पहले से ही अर्पिता होती है।बीना जी अर्पिता को देख मुस्कुरा देती है और कहती है तुम यहाँ आ गयी मै वहाँ खड़े होकर तुम्हारा इंत्जार कर रही थी।


जी मासी। वो दरअसल आपका कॉल आया था हम तभी आ गये थे।अर्पिता ने मुस्कुराते हुए कहा।


बहुत अच्छा किया।बीना जी ने कहा।


अच्छा मासी हमने न ये पानी गिलास में निकालकर रख दिया है इसके साथ ही कुछ मीठा भी रखा है।हमारे लखनऊ का रिवाज जो ठहरा।


बहुत अच्छा किया लाली।अब एक काम करो तुम इसे बाहर सबके लिये ले जाओ इसी बहाने तुम सबसे मिल भी लोगी।बीना जी ने अर्पिता से कहा।


जी मासी कहते हुए अर्पिता बाहर आये हुए मेहमानो के लिये पानी लेकर आती है।और सभी को पानी सर्व कर हाथ जोड कर प्रणाम करती है।और मन ही मन सोचती है अर्पिता यहाँ तो परिवार आया है लेकिन जिसे वाकई में मिलना चहिये वो तो नदारद है यहाँ से? हमें लग रहा है कुछ ज्यादा ही पुरानी सोच है इन लोगो की। कहीं हमारी किरण वही पुराने जमाने की टिपीकल फैमिली में तो नही फसने तो नही जा रही है पता करना पड़ेगा॥।


शोभा जी – प्रणाम।और हेमंत जी की ओर देख कहती है ये... कौन...?


जी ये बीना की बहन की बेटी है अर्पिता। यहाँ पढने के लिये आई हुई है हमारे साथ ही रहती है।


बहुत प्यारी है। तो क्या पढाई कर रही हैं आप अर्पिता?शोभा ने फिर से पूछा। शोभा के प्रश्न करने से अर्पिता अपनी सोच से बाहर आई।और बोली--


जी हम यहाँ लखनऊ कैम्पस में संगीत विषय से पढाई कर रहे हैं।अर्पिता ने बेहद संजीद्गी से संक्षिप्त उत्तर दिया।


अर्पिता का लहजा सुन कर शोभा और कमला मुस्कुराते हुए राधू की ओर देखती है उनका आशय समझ राधिका मुस्कुरा देती है और अर्पिता से पूछ्ती है वैसे आप मूल रूप से कहाँ की है।


जी हम आगरा से हैं।अर्पिता ने कहा! तब तक डोर बेल फिर से बजती है।



“ हम अभी आते हैं” कह अर्पिता वहाँ से दरवाजे की ओर बढ जाती है।और दरवाजे पर खड़े शख्स को देख उसे एक जोरो का झटका लगता है..।


आ...प यहाँ? अर्पिता के मुख से बमुश्किल चंद शब्द ही निकले।


दरवाजे पर प्रशांत खड़ा होता है।जो गरदन निची किये अपना फोन चला रहा होता है आवाज सुन कर वो नजर उठा कर उपर देखता है तो अर्पिता को देख उसे भी हैरानी होती है।



प..प्रशांत जी आप यहाँ।अर्थात आप सब.. हमारे कहने का.. अरे आप पहले अंदर आइये॥ अर्पिता ने घबराते हुए कहा।


जी बेहतर्। वरना तुम्हारे सवाल सुन कर तो मुझे लगा कि कहीं यहीं खड़े खड़े न समय न गुजर जाये प्रशांत ने धीमे से कहा। उसकी बात सुन अर्पिता कहती है जी वो बस हमने आपका यहाँ होना अस्पेक्ट नही किया था न तो बस ...ऐसा रियेक्शन दे दिया..।


ओह ऐसा क्या...॥प्रशांत ने अंदर आते हुए अर्पिता से कहा।अंदर आकर प्रशांत अपने ताऊजी के पास बैठ जाते है।प्रशांत जी को सबके साथ बैठा हुआ देख कर अर्पिता बुझे हुए स्वर में खुद से बुदबुदाते हुए कहती है तो इनका रिश्ता जुड़ रहा है हमारी किरण से।इसका मतलब हमारी प्रेम कहानी शुरू होने से पहले ही खत्म हो गयी॥ हमारा पहली नजर वाला पहला प्यार अधूरा रह गया।कहते हुए उसके चेहरे पर उदासी घिर आती है जिसे वो छिपाने का प्रयास करने लगती है।


वहीं प्रशांत जी अर्पिता को वहाँ देख मन ही मन कहते है लगता है कि अर्पिता को ही हम सभी यहाँ देखने आये हैं।इसका अर्थ हुआ कि हमारे छोटे(परम) के लिये इन्ही का चुनाव किया गया है क्यूंकि हमारे यहाँ लड़की देखने का अर्थ हुआ रिश्ते पर स्वीकृति की मोहर लगाना।यानी ये अब से हमारे परिवार का हिस्सा कहलायेंगी।कह प्रशांत जी एक पल को सवालिया नजरो से अर्पिता की ओर देखते है जो मुख पर मुस्कान का आवरण ढंके सभी के सामने खुश होने का दिखावा कर रही है।उसे खुश देख कर प्रशांत जी अपनी नजरे फेर लेते हैं। एवम मन ही मन कहता है


सोचा नही था कि तुमसे यूं मुलाकात होगी


किसी खास के लिये टूटती हुई सारी आस होगी॥


अभी तो ख्वाहिशे जग रही थी तुम्हे जानने की


क्या पता था कि वो ख्वाहिशे भी पल दो पल की मेहमान होगी।




बीना जी अर्पिता से किरण को लाने का इशारा करती है।तो अर्पिता बिन देर किये तुरंत ही सदे कदमो से उपर चली जाती है।और कमरे में जाकर किरण को देखती है।जो उसके ही कहने पर तैयार हो आइने के सामने खड़ी है।


किरण को देख उसके मन मे अनको विचार आने लगते हैं “ओह गॉड क्या करे हम, क्या किरण से जाकर कह दे कि वो प्रशांत जी से विवाह करने के लिये मना कर दे क्यूंकि हम उनसे प्रेम करते हैं”।कहीं किरण ने उन्हे देख कर हाँ कर दिया तो क्यूंकि वो है ही ऐसे कि एक बार उनसे मिलने के बाद उन्हे कोई मना नही कर पायेगा। और किरण .... नही अर्पिता ये क्या उल जलूल वाहियाद ख्यालात अपने ह्र्दय में ला रही हो। इश्क़ में छल और हासिल करने का कोई स्थान नही है।और आगे का निर्णय अपनी बहन पर छोड़ दे।दो क्षण में ही क्या क्या ऊंट पटांग सोचने लगी स्टूपिड कहीं की।अर्पिता ने खुद से ही तर्क वितर्क कर स्वयम को समझाते हुए खुद से कहा और फिर से होठों पर मुस्कुराहट रख कर किरण के सामने पहुंचती है।


क्रमश....