आह कोरोना वाह कोरोना .... ( व्यंग्य )
पिछले कुछ महीनों मैं जो हुआ वह " न भूतो ना भविष्यति " का बेहतरीन उदाहरण है । हमारे देश में आज रात बारह बजे वाली घोषणा का सबको बेसब्री से इंतजार रहता है। घोषणा हुई एक धमाके के साथ पूरा देश लॉकडाउन में चला गया याने अघोषित कर्फ्यू । हमारे बचपन में शहर में कर्फ्यू लगा था । गांव के लोग बैलगाड़ी से आने लगे थे शहर में कर्फ्यू सर्कस लगा है सोच कर, जिसे वे देखना चाहते थे । इस बार वे भी जान गए की लॉकडाउन ही कर्फ्यु होता है ।
वर्मा जी लॉकडाउन में क्या गए मजे लेने लगे। लॉकडाउन के उनका फरमाइशी कार्यक्रम शुरू हो गया ;आज भजिया हो जाए ,आज पाव भाजी और आज .........। एक दिन ,दो दिन..... पत्नी भी फरमाइशी कार्यक्रमों से परेशान थी । लॉकडाउन समाप्त होने तक दृश्य बदल चुका था ।वर्मा जी किचन में होते और वर्मानी जी हॉल में " ये रिश्ता क्या कहलाता है " देखती हुई पाई जाती । बेचारे वर्मा जी कामवाली बाई , धोबी और बावर्ची एक साथ बन गए थे । वर्मानी अक्सर कहती अभी तो लॉकडाउन और बढ़ा देना चाहिए वर्मा जी सोचते भगवान कुछ तो तरस खाओ लॉकडाउन जल्दी हटाओ । कुछ घरों में बच्चे पढ़ना -लिखना छोड़ पब्जी में अपना लेवल सुधारने में लगे थे । लड़कियां पाक कला में महारत हासिल कर रही थी । कुछ बेसुरे खूब गा रहे थे । कुछ टिक टॉक पर अपना जौहर दिखा रहे थे । कुछ बिलकुल ही नकारे थे , वह फेसबुक , इंस्टाग्राम और ट्विटर पर अपनी भड़ास निकाल रहे थे।
अधिकारी लगे थे कोरोना से टक्कर लेने में पूरी मुस्तैदी और फंड के साथ । फील्ड में काम करने वाले कर्मचारी स्वयं के खरीदे हुए मास्क और सैनेटाइजर के साथ काम कर रहे थे । यह और बात है की यह साधन हिसाब-किताब में लाखों के खरीदे जा रहे थे । सड़कों पर पुलिस का पहरा था । वे भी अपने अपने साधनों के साथ देशभक्ति का परिचय दे रहे थे,डंडे के जोर पर । ऐसे में सड़क पर कोई दिखा और डंडों से उसकी पीठ का लाल होना निश्चित था । अब जब हमारे पुत्र को बाहर निकलना होता तो वह पड़ोसी मित्र को गाड़ी में बैठा कर ही निकलता ।हमने राज़ पूछा तो उसने बताया कि वो हमारी ढ़ाल है ;हमें पीछे से ड़ंडे पड़े तो वही बचाएगा । बेचारे पांडे जी बेचारे एक दिन बीच सड़क पर पिट भी गए और समाचारों की सुर्खियां भी बने । अब उनसे यदि कोई बाजार जाने को कहता तो वह भड़क जाते ।
पूरी दुनिया अब अपने घरों में सिमट गई थी । कुछ हमारे भाई बाहर थे । उन्हें पूरा मजा लेना था ;बस में मजा लेने के चक्कर में निकल पड़े हजारों किलोमीटर की पैदल यात्रा करने । ऐसा मैं नहीं कहता हमारे माननीय नेता लोग सोचते थे । हमारे समाज की सारी विसंगतियां इस काल में एकदम नग्न अवस्था में सामने आ गई । कोई घर जाने के लिए पैदल निकला था, रोका जा रहा था और कोई पिकनिक पर पूरी अनुमति के साथ जा रहा था; कोई मार खा रहा था तो कोई भीड़ में सम्मान प्राप्त कर रहा था ; कोई खाने के लिए मोहताज था तो कोई उसके खाने में ही अपनी कमाई और सम्मान खोज रहा था। स्थितियां विचित्र थीं ।
लॉकडाउन के दौरान मनोरंजन का भरपूर ध्यान रखते हुए , हमने पूरे मजे से थालियां पीटी और दिए भी जलाएं । कुछ और मनोरंजक कार्यक्रम भी आयोजित हो सकते थे परंतु शायद जिन्हें आयोजित करना था वे कहीं और राजनीति में लग गए होंगे ।अब जब सारे सीरियल फिल्म देख ड़ाली तो अपने ही सामान को उलट-पुलट कर देखने लगे । बहुत सी पुरानी चीजें मिली कुछ को धर्मपत्नी से छुपाकर जलाना पड़ा । कुछ ऐसी चीजें जो आज नहीं चलती जैसे कैसेट, वॉकमैन ,पुराना कैमरा ,पेजर ,डिजिटल डायरी आदि हमारे खजाने में मिली । यह सब चीजें हमने अपने पुत्र को यह कहते हुए सौंप दी कि किसी दिन यह लाखों-करोड़ों में बिकेंगी । वह भी जानता है उसके बाप की यही औकात ।
लॉकडाउन के दौरान यदि गौर से देखा जाए तो बहुत से लोग बेरोजगार हो गए । बस सब के पास एक ही सुलभ धंधा बचा था ।वह था , सब्जी- तरकारी बेचने का साहब भले ही हम मजे में कह रहे हैं लेकिन जो ड्राइवर था अब सब्जी वाला था ,जो प्राइवेट शिक्षक था अब सब्जी वाला था और जो होटल चलाता था अब सब्जी वाला था। वैसे आप माने या ना माने इस दौरान हमने एम.बी.ए .और एम.टेक. सब्जी वालों से सब्जी खरीदी। फिर लाकड़ाउन खत्म होते ही वे फिर से बेरोजगार हो गए । देश सेवा का मौका तो इस बार शराबियों को मिला और भरपूर मिला । पहली बार देश की अर्थव्यवस्था में शराबियों के महत्व को भी सब ने जाना । जैसे ही मौका मिला उन्होंने देश सेवा में बढ़- चढ़ कर हिस्सा लिया । उनके इस योगदान को इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा ।
विदेशों से आया कोरोना अब बड़े-बड़े शहरों से घूमता हुआ छोटे शहरों और गांव में भ्रमण कर रहा है । गांवों में कोई चैनल तो होते नहीं बस उसको चैनलों में स्थान मिलना भी बंद हो गया । पहले हम घरों में बैठ कर दूर से सुनते थे । अब आत्मनिर्भर होकर बाहर निकले है । हमारा अदृश्य शिकारी बिल्कुल कहीं आस-पास ही है ।
आलोक मिश्रा "मनमौज "