शिव क्या है ?
निराकारमोकडंरमूलं तुरीयं
गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशं ।
करालं महाकाल कालं कृपालं
गुणागार संसारपारं नतोहं ।
वैज्ञानिक शोध बताते है कि पृथ्वी की उत्पति कुछ अरब वर्ष पूर्व हुर्इ ; पृथ्वी पर जीवन केवल 7 करोड वर्ष पूर्व आया , मानव तो केवल 3.5 करोड वर्ष पूर्व ही पैदा हुआ है । उनके अनुसार हमारे समान जीवन की संभावना वाले ग्रहों की संख्या भी लाखों में हो सकती है । वैदिक ग्रंथों के अनुसार ब्रम्हाण्ड में जीवन के निर्माण और विनाश का क्रम चलता रहता है । दुनिया का निर्माण अनेकों बार हुआ है और अनेकों बार विनाश भी हो चुका है । यह क्रम अनंत काल से निरंतर चल रहा है । जब भी ब्रम्हाण्ड में कहीें भी ''आदिशक्ति द्वारा जीवन तत्व का निर्माण किया जाता है तो ऐसे संसार के संचालन के लिए तीन संचालनकर्ताओं को पहले उत्पन्न किया जाता है । इन तीन संचालनकर्ताओं को हम इस संसार में ब्रम्हा,विष्णु और महेश के नाम से जानते है । इनके कार्यों का विभाजन भी आदिशक्ति के द्वारा संसार के प्रारम्भ के पहले ही कर दिया जाता है । इस प्रकार प्रत्येक संसार मेंआदिशक्ति साथ ही साथ ब्रम्हा ,विष्णु और महे किसी न किसी रुप ,नाम या कार्य के स्वरुप में हमेशा ही विधमान रहते है । महेश, शंकर ,महादेव, शम्भू आदि सहस्त्र नामों को सामान्यत: शिव के रुप में ही देखा जाता है । आमतौर पर शिव और शंकर को एक ही माना जाता है । शंकर ,दीनबंधु ,त्रिनेत्र हाथी या बाघ के चर्म को वस्त्र के रुप में प्रयोग करने वाले या कभी दिगंबर भी , सांप की माला धारण करने वाले नागेश्वर और जटाजूटधारी औघडदानी । भोलेशंकर ,कैलाशपति , पार्वतीवल्लभ एकांत में ध्यानमग्न विश्व के विध्वंश का प्रतीक है । गंगाधरे, पिनाकहस्ते और विश्वरूप क्या वे ही शिव है ? पूजा स्थलों में विराजमान नंदीश्वर, पशुपते और अर्धनारीश्वर ही क्या शिव है ? वह पुरुषाकृति जो चंद्रशेखर है जो पंचमुख है और जो गंगा की अविरल धारा को धरती पर पहुंचाने के स्त्रोत है क्या वही शिव है ?
शिव जो अविनाशी है । जिसमे संसार का बीज तत्व छुपा है । यह वो तत्व है जिसे जानने और खोजने का आज तक समस्त वैज्ञानिक प्रयास कर रहे है । शिव हमारी उत्पति के रहस्य से जुडे है ,वे स्वयम ही हम मानवों ,जीवों और संसार के जन्म का रहस्य है । उन्हे लिंगरुप मे देखना उचित ही प्रतीत होता है । जीवन के जन्म के लिए यदि मातृ रुप में आदिशक्ति की आवश्यकता थी तो पित्रशक्ति स्वरुप शिव की आवश्यकता भी थी । ऐसी मातृशक्ति लिंग रूप को स्वीकार करने वाले हम विरूपनयन, देवदुखदलन और विभूतीभूषण के भक्त मूलत: लिंग पूजक ही है । आदि रूप में शिव उस बीजतत्व का पर्याय है जो लिंग में निहित है । निराकार को स्वीकार किया जा सकता है परन्तु निराकार की उपासना साकार की अपेक्षा आम व्यक्तियों के लिए कठिन ही है । साकार के भक्तों को साकार भगवान ही चाहिए सो शिव का मानवीय रूप ही शंकर है । शंकर अच्छार्इ और बुरार्इ से ऊपर अपनी ही धुन में संसार का संचालन करते भगवान के रूप में पूज्य हो गए । ऐसे भगवान जो गणनाथ है , ऐसे भगवान जो इतने करूणामयी है कि मानवों ही नहीं राक्षसों और अधमों की भी इच्छा पूर्ण करते है । जो सारे संसार का विष अपने कंठ में रख कर नीलकंठ हो जाते है। भगवान शंकर का जय घोष हर - हर महादेव और बम - बम ... भोले और बोल बम जितना गणों ,अघोरियों और अधमों में गूंजता है उतना ही संत महत्माओं और ग्रहस्थों में भी गूंजता है । र्इश्वर का अनोखा स्वरूप भक्ताें को उनकी भक्ति में ही शक्ति प्रदान करता है । ऐसे परम कृपालु भगवान शिव शंकर को रावण के ताण्डवस्त्रोतम में ध्वनि पर ही विराजमान कर दिया गया है ।
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गले∙वलम्ब्य लमिबताभुजग्डतुग्डमालिकाम ।
डमìमìमìमनिननादवìमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु न: शिव: शिवम ।
आलोक मिश्रा