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रसूल

वो बच्चा गोल चेहरा, सुनहरे से बाल लाल टी-शर्ट और नीली नेकर पहने अपनी अम्मी और अब्बा के साथ घर से निकल पड़ा। ये परिवार पूरी खामोशी के साथ अपने घर से निकला है। सैर-सपाटे के लिये जा रहे होते या वापस आने की कोई उम्मीद भी होती तो वे दरवाजे पर रूक कर ताला लगाते। रूबीना बी ने एक बार पलट कर देखा। उसकी आँखों में आंसूओं की बूंदे चमक उठी। कोई आह नही, कोई कराह नही, वो पलटी अपने नन्हें रसूल और खबिंद इकबाल का हाथ थाम कर आगे बढ़ने लगी।

रसूल अभी छोटा है ,नन्हा और मासूम बच्चा। वो रोज शाम अब्बा के फैक्ट्री से लोैटने का इंतजार करता। अब्बा भी रोज आते ही उसे गोद में उठा लेते और अक्सर शहर में घुमाने ले जाया करते। एक दो बार तो नमाज पर भी वो अब्बा के साथ गया। वो अब्बा को देखता और वैसा ही करने की कोशिश करता। घर में कभी-कभी अम्मी सालन तेज बना देती तो अब्बा उसे मसाला धोकर खिलाया करते। पिछले कुछ दिनों से अब्बा फैक्ट्री भी नहीं जा रहे थे। वो घर में गुमसुम बैठे रहते। रसूल के साथ खेलते भी नही। बाजार तो जाना जैसे बंद ही हो गया। अब तो नमाज भी घर पर ही अदा होने लगी। इकबाल को देख कर रसूल खेल-खेल में नमाज की बैठक सीखने लगा।

रूबीना को एक दिन इकबाल ने आकर बताया कि शहर में जिहादी घुस आए है। अब वे हर परिवार पर जंग में शामिल होने का दबाव डाल रहे है। वे ऐसी चीजों को नष्ट कर रहे है जिन्हें वे जंग में अपने विरूद्ध समझते है। उन जंगियों के निशाने पर इकबाल की विदेशी फैक्ट्री थी। एक दिन उन्होंने विदेशीयों को फैक्ट्री में बंधक बनाकर तथा स्थानिय लोगों को निकाल कर फैक्ट्री को आग के हवाले कर दिया । बस इकबाल बेरोजगार हो गया। जंगियों ने बेरोजगारों से अपील की कि वे सब विद्रोही फौज में शामिल हो जाए, कुछ तो हो भी गये। जो नही हुये वे जंगियों के निशाने पर है।

शहर में युद्ध सा वातावरण है। कभी विद्रोही आगे बढ़ते है तो कभी शासन की सेना। इस चूहे-बिल्ली के खेल में वे शहर की इमारतों और आम नागरिकों को ढाल की तरह प्रयोग करते है। बस शहर के अनेक घर बमों और मिसाइलों से नष्ट हो चुके है। दोनों ही सेनाओं ने स्कूलों और अस्पतालों तक को नही छोड़ा। अब शहर में हर कोई डरा-डरा सा है वो किस गोली का शिकार होगा उसे नही मालूम। तीन दिन पहले सरकारी सेनाओं ने पास की एक हवेली को घेर लिया अंदर से जोरदार गोलियों की बारिस के चलते पूरी इमारत को ही एक धमाके से उड़ा दिया। धमाके के समय रसूल सोया हुआ था। धमाके की आवाज से डरकर चिल्लाया ‘‘अम्मी’’ जल्दी से अम्मी की गोद में छुप गया। उसे लगता है दुनिया से सबसे महफूज जगह यही है। परिवार अब अपने घर में रहते हुये ही बेघर सा था। लोग जा रहे थे कहाँ...... किसी को नहीं पता।

इकबाल ने भी रूबीना को फैसला सुनाया ‘‘हम यहाँ से जा रहे है... आज ही’’ रूबीना बिना कुछ बोले कुछ सामान गठरी में डालने लगी। कुछ कपड़े रसूल के, रसूल का प्यारा खिलौना अपने और इकबाल के कपड़ों के साथ-साथ जेवर और पैसे भी रख लिये। रात के अंधेरे में चुप-चाप घर छोड़ कर वो तीनों समंदर की ओर चल दियें। इकबाल जानता है कि इस देश की सीमाओं के पार कही ऐसी दुनिया है जहां धर्म के नाम पर युद्ध नही होते। इकबाल को मालूम है उस दुनिया का रास्ता समंदर से ही जाता है। समंदर के किनारे पेड़ों के बीच वे छुपकर बैठ गये। ऐसेे कई लोग वहाॅं और थे मगर दम साधे चुप-चाप एक दूसरे को नजरंदाज करते। उन्हें ड़र था तो बस दोनों सेनाओं का ।

रात के तीसरे पहर में कुछ डोंगीनुमा छोटी नाव वाले किनारे पर आये और छुपे हुये लोगो से मोल-भाव करने लगे। लगभग सारे जेवर की कीमत पर डोंगी के कोने में पूरा परिवार बैठ गया। बड़े समंदर में छोटी सी डोगी लहराती हिचकोले खाती किसी अंजान सफर पर निकल पड़ी। धीरे-धीरे जैसे घर छूटा था वैसे ही देश भी छूट गया। समुंदर की गोद में तारों भरे आकाश में यह सफर चलता रहा। फिर लहरे उठने लगी छोटी नाव इन लहरों से अपने मुसाफिरों को बचा सकने में असमर्थ थी। कभी कोई पानी उछल जाता तो कभी कोई। जो जाता हमेशा के लिये जाता।

न जाने दो बीते की चार। नाव में जो थे सब के सब बेसुध, भूखे, प्यासे और धूप और ठंड के मारे। रूबीना ने आंख खोली देखा रसूल नही है वो चिल्लई.....‘‘रसूल’’ इकबाल तो रो ही पड़ा जोर से चिल्लाया "रसूल......रसूल......‘‘रसूल नाव पर होता तो जवाब देता। नाव पर बचे गिने चुने लोगों की भी मानवीयता मर चुकी थी। एक बोला ‘‘लहरे ले गई होगी उसे’’ चलो तो हम से तो पहले पहुंचेगा ‘‘उसका खोजना व्यर्थ ही था शायद उसे लहरो ने अपनी गोद में ले लिया उस मासूम के शायद कष्टों का अंत हो गया हो। इकबाल और रूबीना बिना रसूल के एक अंजान देश में वीरान से टापू पर उतर गये उन्हें नही मालूम इस देश में उन्हें स्वीकार भी किया जायेगा या नही दुनिया यदि सीमाओं में न बटी होती तो कोई भी कही भी रहने के लिये स्वतंत्र होता लेकिन सीमाओं ने मानव मानव के बीच भेद-भाव और संदेह खड़ा कर दिया। रूबीना और इकबाल से हजारों कि.मी. दूर एक शांत और विरान समुंदरी किनारे पर मानवता का चेहरा आधा रेत में गड़ा हुआ था। लाल टी-शर्ट नीली नेकर में।





आलोक मिश्रा


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