सात्विक श्रुति और अर्पिता तीनों ऑटो में बैठ कर निकल जाते है।अर्पिता हाथ में बांधी हुई घड़ी पर नज़रें गढ़ाती है और ड्राईवर से ऑटो तेज चलाने को कहती है।
कुछ ही देर में ऑटो उसे आलमबाग के टेंपो स्टैंड पर पहुंचा देता है।अर्पिता जल्दी में होती है सो ऑटो चालक को बिन देखे पैसे पकड़ा कर घर के लिए कदम बढ़ा देती है।
दो बज चुके है।धूप भी तेज हो रही है।मासी हमारा इंतजार कर रही होंगी और हम अभी तक घर नहीं पहुंचे।उन्हें फोन कर बता देती हूं।ओह गॉड फोन.. उन सब झमेलों में हमें फोन का ख्याल तो बिल्कुल नहीं आया मासी ने भी कॉल अवश्य ही करी होगी। सोचते हुए अर्पिता अपने बेग की पॉकेट में हाथ डाल फोन निकाल कर देखती है।जिसमें बीना जी की दो मिस्ड कॉल पड़ी होती है।
वो भी कुछ ही देर पहले की है।थैंक गॉड अर्पिता उपर गर्दन कर देखते हुए मन ही मन कहती है।और जल्दी जल्दी कदम बढ़ाते हुए घर पहुंचती है।
सॉरी सॉरी सॉरी मासी!. वो हमे आने में थोड़ी सी देर हो गई वो क्या है न दोस्तो के साथ समय का पता ही नहीं चला अर्पिता ने हॉल में बैठी बीना जी से कहा।उसके चेहरे पर थोड़ी सी घबराहट होती है।
अरे कोई बात नहीं लाली।मै क्या समझती नहीं।मैंने भी कॉलेज में पढ़ाई की हुई है।सहेलियों के साथ बैठे बैठे कब टाइम निकल जाता था पता भी नहीं चलता था।बीना जी ने हल्का सा मुस्कुराते हुए कहा।
अर्पिता - हम मासी। अच्छा मासी शाम को जाना है न मॉल।
बीना जी - हां लाली।जाना तो है।
मासी हम कुछ कहना चाह रहे थे आपसे।अर्पिता धीमे स्वर में बीना जी से कहती है और उनके उत्तर की प्रतीक्षा करती है।
अर्पिता जो कहना है स्पष्ट कहिए।इसके लिए इतना क्या सोचना।अब मासी से कहने में भी झिझक महसूस करेगी तो किस से कह पाओगी फिर। हां बीना जी ने अर्पिता की ओर देखते हुए सवाल करते हुए कहा।
नहीं मासी।वो हम ये कहना चाह रहे थे कि आज ... हमे मॉल के ही फूड सेक्शन में खाना खाना है।अर्पिता बात बदलते हुए एक दम से कह जाती है।
बस इतनी सी बात।अब इतना मन है तुम्हारा तो फिर जरूर खाना जो पसंद हो वो लेना।ठीक है इसमें इतना क्या सोचना।बीना जी ने कहा।
थैंक यू मासी अर्पिता कहती है।और वहां से सीधे अपने कमरे में चली आती है।कमरे में आते ही बैग को उसकी जगह रख टेबल फेन चला कर कुर्सी पर बैठ जाती है।
ओह गॉड ये कैसे कैसे ख्यालात आ रहे थे हमारे मन में कि मासी से कहे मासी हम लोग थोड़ा जल्दी चलते है।वो क्या है न शाम को मूवी देखने के लिए हमारी नई नई बनी दोस्त श्रुति ने कहा है।।और अर्पिता अगर तुम मासी से कह देती कि हमे शाम को अपने फ्रेंड्स के साथ टाइम स्पेंड करना है। तो क्या सोचती वो हमारे विषय में।कितना भद्दा लगता उन्हें कि हम उनसे ज्यादा अपने दोस्तो को वरीयता दे रहे है।ये तो उचित नहीं है अर्पिता।
अर्पिता कुर्सी से उठती है और वाशरूम का रास्ता पकड़ हाथ मुंह धुल फ्रेश होकर बाहर आ जाती है।
तीन बज चुके होते हैं।अर्पिता नीचे आ कर कुछ हल्का खाने के लिए लेती है और वापस से उपर चली जाती है।सुबह से कहीं न कहीं व्यस्त थी तो प्रशांत जी उसके ख्यालातों से नदारत थे।लेकिन अब जैसे ही वो फुर्सत में होती है तो सारे ख्यालात एक एक कर दौड़ते हुए उसके मन के मन्दिर में प्रकट हो जाते है।जिसका प्रमाण है उसके चेहरे पर फैली एक छोटी सी मुस्कुराहट।
अर्पिता :: (प्रशांत जी) तो आपको गज़लों और नज़्म का शौक है तो फिर इसी बात पर हम आज कुछ सुनते है।अब आप न सही तो आपकी पसंद सही।प्रशांत जी का आई कार्ड हाथ में लेकर उसमे लगी छोटी सी फोटो से बात करते हुए कहती है।
अर्पिता अपना फोन निकालती है और उसमें यू ट्यूब एप्स का उपयोग कर सदाबहार गजलें सर्च करती है।जिनमें सर्वप्रथम ही जगजीत सिंह जी द्वारा गाई हुई कुछ ग़ज़लें निकल कर सामने आ जाती है।
वो एक गजल चुनती है जिसके बोल कुछ यूं होते हैं ...
होश वालो को खबर क्या बेखुदी क्या चीज़ है!
होश वालो को खबर क्या बेखुदी क्या चीज़ है।
इश्क़ कीजे फिर समझिए
इश्क कीजिए फिर समझिए जिंदगी क्या चीज है...
ग़ज़ल के बोल सुनते सुनते ही अर्पिता खो जाती है।एक रूमानियत महसूस करने लगती है।जैसे जैसे बोल आगे बढ़ते जाते अर्पिता कल्पना लोक में पहुंच जाती है।जहां वो इस गजल के बोल को गुनगुनाने भी लगती है।
ओह माय गॉड ..! आज सूरज ने अपना रास्ता कैसे बदल लिया अर्पिता! किरण ने कमरे में आते हुए अर्पिता से पूछा।अब अर्पिता यहां हो तब न कुछ बोलें।अर्पिता तो कल्पना लोक में प्रशांत जी के सामने बैठी हुई ये ग़जल गुनगुना रही है।
अर्पिता को इतनी गहराई में खोया देख किरण उसे झकझोरते हुए कहती है अर्पिता क्या हुआ यार... कहां खोई हुई हो।
अर्पिता हड़बड़ाते हुए अपने कल्पना लोक से बाहर निकलती है और किरण से कहती है।क्या बात है किरण इतनी जोर से क्यूं हिलाया हमे।
अर्पिता तुम ठीक तो हो यार! पिछले दो दिन से देख रही हूं तुम्हे।बहुत ही अजीब बिहेव कर रही हो।क्या हुआ क्या है तुम्हे!! किरण ने अर्पिता के पास बैठते हुए उससे पूछा।
अरे हुआ कुछ नहीं है। हमे क्या होना है भली तो बैठी हूं तेरे सामने।
हां वो तो दिख रहा है कितनी भली हो।कुछ तो हुआ है अर्पिता।पिछले दो दिन से देख रही हूं तुम्हे।तुम वो कार्य कर रही हो जो तुमने पहले कभी किए ही नहीं।कोई फिल्मी सॉन्ग तुमने कभी सुना नहीं और तुम गाती हो।और आज शायद पहली बार तुमने सेलफोन का यूज गाने सुनने में किया है।और जब तब मुस्कुराती भी रहती हो।बात क्या है।कहीं इसकी वजह वो असाध्य रोग तो नहीं जो एक बार लग जाए तो फिर कभी नहीं जाता।बोलो ..!
किरण अर्पिता के चेहरे की ओर देखते हुए शरारत से कहती है।
किरण की बातें सुन अर्पिता एकदम से चौंक जाती है।।मानो उसकी चोरी पकड़ी गई हो।चेहरे की हवाइयां उस जाती है।
किरण ये देख लेती है।वो धीमी आवाज़ में अर्पिता के पास जाकर गुनगुनाती है ...
कुछ तो हुआ है।कुछ हो गया है।
कुछ तो हुआ है ।कुछ हो गया है।
बदली हुई सी तेरी अदा है....!
किरण का गाना सुन अर्पिता मन ही मन सोचती है।जमाने भर की खूबियां है तुझमें अर्पिता लेकिन चेहरे के भावो को छुपाने की खूबी से तो अभी तक महरूम है।तभी तो कोई भी तेरे चेहरे को पढ़ समझ लेता है सब कुछ ..! अब बदलना पड़ेगा तुझे खुद नहीं तो बड़ी मुश्किल हो जानी है ..! यही खूबी अगर प्रशांत जी ने समझ ली न तेरी तो दो मिनट नहीं लगेगा उन्हें तेरे मन की बात समझने में।फिर क्या सोचेंगे हमारे बारे में ...! न न बदल ही ले तू ये अपना ये स्वभाव अर्पिता।
फिर से खो गई न।इसका मतलब मैंने बिल्कुल सही पहचाना है।चल बता अब कौन है वो??
अर्पिता - कोई नहीं है तेरे मन का फितूर है।और अब ज्यादा बातें वातें तो तुम करो मत।बस तैयार हो जा हमे मॉल निकलना है न।कहीं भूल तो नहीं गई।
नहीं भूली।वैसे तूने टालने का बहाना अच्छा बनाया है।नहीं बता रही है तो मै खुद से ही पता लगा लूंगी। ओके बेबी।मै बस अभी रेडी होकर आती हूं किरण ने कहा और वो वहां से चली जाती है।
किरण के जाते ही अर्पिता एक गहरी सांस लेती है और बड़बड़ाती है ऐसा क्या है हमारे व्यवहार में को हर कोई पता लगा लेता है।थोड़ा सा ध्यान स्वयं पर भी दे अर्पिता।
चार बज चुके है किरण और अर्पिता दोनों ही तैयार होकर नीचे आ जाती है।अर्पिता के चेहरे पर प्रशांत जी से मिलने की खुशी होती है जो उसके चेहरे पर नूर बनकर झलकती है।वहीं किरण अर्पिता को देख मन ही मन खुश होते हुए कहती है।अब तो पता लगा कर ही रहूंगी अर्पिता तेरे इस बदलाव की वजह।
अरे वाह आ गई दोनों तैयार होकर! मै आ ही रही थी तुम दोनों के कमरे में।चलो निकलते है अब।बीना जी ने दोनो को तैयार देख कर कहा।और दया जी के पास जाकर कहती है।
मां जी।हम लोग बाजार निकल रहे है।
दया जी - ठीक। मै ध्यान रखूंगी घर का।और हां समय रहते वापस आ जाना।ठीक है।
जी मां जी।बीना जी कहा और वो वहां से हॉल में चली आती है।
बीना जी : अर्पिता किरण चलो चलते हैं।हम आए। कह दोनों बीना जी के पीछे दरवाजे की तरफ बढ़ जाती हैं।
कुछ ही देर में तीनों पैदल चलते हुए फीनिक्स पहुंचती है।मॉल पहुंचते ही अर्पिता की नज़रें चारो और घूमने लगती है।
आप यहीं कहीं होने चाहिए प्रशांत जी।अर्पिता खुद से ही कहते हुए दाए बाए देखती जाती है।बीना जी और किरण दोनों बातें करती हुई चलती जा रही है।जब अर्पिता की आवाज़ नहीं सुनती है तो बीना जी अर्पिता की ओर देखती है और उससे कहती है।
अर्पिता लाली क्या हुआ..! क्या खोई हुई हो।
क .. कहीं नहीं मासी।वो बस मॉल की खूबसूरती देख रहे थे।सब कितना अच्छा है न।अर्पिता ने कहा।
ओह।अच्छा तो है लाली। ऐसे ही ये आलमबाग का फेमस थोड़े ही है।पूरा लखनऊ इस मॉल को जानता है।
सो तो है मासी।हमने भी बहुत सुना है इसके बारे में।अभी एक दो दिन पहले ही तो हम लोग यहां आए थे तब भी काफी तारीफ हुई थी यहां की।लेकिन मासी आज इस मॉल की सजावट कुछ विशिष्ट ही लग रही है।आज बलूंस वगैरह भी लगे हुए है। किरण तुम देखो जहां तक हमे याद है पिछली बार ऐसा कुछ नहीं था न।
हां यार।मैंने भी ध्यान नहीं दिया।खैर जो भी हो अच्छा लग रहा है।किरण ने धीमी आवाज में कहा।
मां आप जाकर अपनी शॉपिंग करो हम दोनों मॉल में हमारे काम के सेक्शन की तरफ जाती है यानी आर्टिफिशियल ज्वेलरी लेने।जब आपकी शॉपिंग हो जाए तो हमे कॉल कर बता देना।हम यहीं नीचे पेमेंट काउंटर पर मिल जायेंगे आपको।
ठीक है।बीना जी कहती है और वहां से दूसरी तरफ चली जाती है।वहीं किरण अर्पिता को अपनी तरफ घूरता पाकर देखते हुए कहती है ऐसे काहे देख रही हो मां बुरा नहीं मानेगी।वो समझती है हम आज के बच्चे है थोड़ी बहुत प्राइवेसी हमे भी चाहिए होती है। हां उन्हें बुरा अवश्य लगता अगर हम बिन बताए यहां से गायब हो गए होते तो।
अब घूरना बंद करो और मेरे साथ चलो मुझे कुछ ज्वैलरी खरीदनी है।किरण अर्पिता से कहती है।
किरण को देख अर्पिता उससे कहती है तुम्हे खरीदना है न तुम अकेली जाकर खरीदो हम चले मासी के पास।कितने मन से वो हमे यहां बुला कर लाई थी।और तुम उनके मन को ही दुखा गई।
बाय। कह कर अर्पिता बीना जी के पीछे चल देती है।मासी..! हम भी आ रहे हैं।कहते हुए अर्पिता कदमों की चाल तेज कर देती है।और पीछे मुड़ किरण को देखती है जो बड़ी बड़ी आंखे कर उसे ही देख रही है।
अब तो तुम्हे आना पड़ेगा किरण।क्यूंकि आनंद सभी के साथ मिल कर चलने में है।अकेले अकेले में सहूलियत तो है लेकिन आनंद नहीं।सोचते हुए अर्पिता आगे मुड़ती है और कुछ कदम बढ़ाती है तो किसी से टकरा जाती है।अर्पिता स्वयं को सम्हाल कर स्थिर हो जाती है और नीचे देखती है तो एक दो साल की बच्ची उसके सामने खड़ी है।अर्पिता से टकराने के कारण उसके हाथ में चोट लग जाती है और वो वहीं खड़े खड़े अपने हाथ को फूंक मार कर झटकने लगती है।
ओह;;! सो सॉरी लिटिल एंजेल।आपको कहीं लगी तो नहीं।दिखाईये हमे।अर्पिता वहीं नीचे बैठते हुए कहती है।
अर्पिता को अपने सामने बैठा हुआ देख वो बच्ची पीछे देखती है और अपने नन्हे नन्हे कदमों से पीछे ही दौड़ जाती है।और थोड़ा पीछे ही जाकर एक महिला के कदमों में लिपट जाती है।महिला उस बच्ची को देख अपनी गोद में उठा लेती है।
अर्पिता उसे ऐसे देखती है तो मुस्कुरा देती है और उठ कर खड़ी हो जाती है तथा उस महिला को देखती है।
अरे त्रिशा!! क्या हुआ आपको।आप ऐसे क्यूं आ गई।क्या हुआ प्रिंसेस!!
महिला की बात सुन बच्ची अपना हाथ आगे बढ़ा देती है।
ओह तो चोट लग गई है आपके।
बच्ची हां में गर्दन हिला देती है।
अरे तो कोई बात नहीं।मेरी प्रिंसेस तो इतनी स्ट्रॉन्ग है इस छोटी मोटी चोट से घबराती थोड़े ही है।
सच कहा न मैंने।महिला ने मुस्कुराते हुए कहा।
हां मम्मा।बच्ची स्माइल करते हुए कहती है।
गुड गर्ल।दोनों आपस में बात करती है।वहीं अर्पिता उसकी उन दोनों को देख कर उनकी तरफ चली आती है।
अर्पिता: बहुत प्यारी बच्ची है आपकी।लेकिन हमारी वज़ह से उसको चोट लग गई।उसके लिए हम सॉरी कहते हैं।अर्पिता ने बच्ची के सामने अपने हाथ से कान पकड़ कर कहा।उसे देख बच्ची हंसने लगती है।और कहती है मम्मा ये दीदी तो बिल्कुल हमारे चाचू की तरह सॉरी बोल रही है।
श.. श..श .! महिला ने बच्ची की तरफ इशारा किया और जिससे वो बच्ची चुप हो जाती है।वो महिला अर्पिता की ओर देखते हुए कहती है...
अरे कोई नहीं ।आपने जानबूझ कर नहीं किया होगा।अनजाने में ही हुआ होगा आपसे।आप बेवजह सॉरी मत कहिए।और ये थोड़ी सी नटखट भी है।तो लग गई होगी थोड़ी सी।
किससे बात कर रही है आप चित्रा! प्रशांत ने आते हुए पूछा।चूंकि चित्रा अर्पिता के सामने होती होती है जिस कारण वो प्रशांत को देख लेती है लेकिन अर्पिता दरवाजे कि और पीठ कर खड़ी होने के कारण देख नहीं पाती है ।..... वो आवाज़ सुन लेती है और कहती है ये ...ये तो प्रशांत जी की आवाज़ है....अर्थात प्रशांत जी यहां आ गए...! उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान आ जाती है और पीछे मुड कर देखती है.... और धीमे से कहती है प्रशांत जी आप आ गए....!
क्रमश...