इस आलेख में यह दिखाने का प्रयास किया गया कि दुनिया में बढ़ती जनसँख्या की मांग को पूरा करने के लिए हम किस तरह प्रकृति का दोहन कर रहे हैं .......
आलेख - नेचर मांगे मोर स्पेस
बढ़ती जनसंख्या के कारण हमारी जरूरतें काफी बढ़ गयी हैं . भोजन , वस्त्र और आवास की बुनियादी आवश्यकताओं के अतिरिक्त बढ़ते यातायात और बेहतर रहन सहन संबंधी जरूरतें निरंतर बढ़ती जा रहीं हैं . इन पर लगाम लगाना आसान भी नहीं है . दूसरी ओर इन जरूरतों की पूर्ती के लिए हम प्रकृति का दोहन और शोषण कर रहे हैं . पहाड़ , जंगल कट रहे हैं , समुद्र और नदियों को रिक्लेम कर अपनी सुविधा के साधन बना रहे हैं और बायोडायवर्सिटी में संतुलन बिगाड़ रहे हैं . वैज्ञानिकों ने इस विषय पर काफी अध्ययन कर कहा है कि यह हमारे भविष्य के लिए बहुत खरतनाक है .
बायोडाइवर्सिटी क्या है - 1985 से बायोलॉजिकल डाइवर्सिटी को संक्षेप में बायोडायवर्सिटी कहा जाने लगा है . इसका मतलब धरती पर रहने वाले लाखों जीवों का जीवन है . ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रो . डेविड मक्डॉनल्ड का मानना है कि इनके बिना मानव का कोई भविष्य नहीं है . दुनिया के जाने माने अमेरिकी जैव वैज्ञानिक प्रो . एडवर्ड विल्सन , जिन्हें फादर ऑफ़ सोशलॉजी और फादर ऑफ़ बायोडायवर्सिटी कहा जाता है, का कहना है कि हमें अपनी पृथ्वी को अगर भविष्य में स्वस्थ रखना है तो आधी धरती बायोडाइवर्सिटी के लिए सुरक्षित रखना होगा .
अनुमान किया गया है कि प्रतिदिन 386000 बच्चे जन्म लेते हैं . हमारी आवश्यकताओं को पूरी करने के लिए जो कदम हमें उठाने पड़ रहे हैं उनके चलते कुछ प्रजातियां लुप्त हो गयी हैं और कुछ लुप्त होने की कगार पर हैं क्योंकि उनके प्राकृतवास की जगह हमने छीन ली है . लुप्त होती प्रजातियों में सैकड़ों पशु , पक्षी , कीड़े मकोड़े , वनस्पति आदि विभिन्न प्रकार के जीव हैं . इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ़ नेचर के अनुसार 25 % स्तनपेयी जीव , 41 % उभयचर जीव ( जो जल और थल दोनों जगह रहते हैं ) और 13 % पक्षी लुप्तप्रायः हो चुके हैं या होने की कगार पर हैं . जर्मनी में हुए एक अध्ययन के अनुसार विगत 25 वर्षों में करीब 75 % उड़ने वाले कीड़े मकोड़े लुप्त हो चुके हैं . औद्योगिक स्तर पर अनियंत्रित मछली पकड़ने से पिछले कुछ वर्षों में अब कम मछलियां मिल रही हैं . चोरी और तस्करी के अवैध शिकार ( पोचिंग ) और व्यक्तिगत भोजन के लिए किये गए
शिकार के कारण जंगली जीवों में कमी आयी है . ये सभी स्पीशीज बायोडायवर्सिटी के लिए नितांत आवश्यक हैं .
वैज्ञानिकों का मानना है कि हमने जो स्पेस प्रकृति से छीना है उसे व्याज के साथ लौटाना होगा . यह पृथ्वी की जैवविविधता यानि बायोडायवर्सिटी के लिए बहुत जरूरी है . कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि हमें कम से कम पृथ्वी और समुद्र का आधा हिस्सा प्रकृति को देना होगा . इसके लिए उन्होंने “ हाफ अर्थ प्रोजेक्ट “ नामक एक प्रोजेक्ट लांच किया है .
बायोडायवर्सिटी क्यों जरूरी - जितना ज्यादा स्पेस हम देंगे उतना ही स्पीशीज ( जीव जंतु ) सुरक्षित रहेंगे और उतनी ही यह धरती और हम . पिछले 200 - 250 वर्षों में डोडो , स्टेलर सी काऊ , वूली मैमथ , तास्मानियन टाइगर , कैरोलिन पराकरीत , अरबियन ऑस्ट्रिच , न्यूजीलैंड क्वेल , ग्रेट ऑक , पैसेंजर पीजन आदि सैकड़ों पशु पक्षी और 600 से ज्यादा वनस्पति लुप्त हो चुके हैं .कुछ अन्य समुद्री जीव और कोरल रीफ का जीवन भी खतरे में है . विगत 100 साल के अंदर बाघों की संख्या 97 % कम हुई है . हम अक्सर यह कहते हैं या सोचते होंगे कि बहुत से स्पीशीज बेकार हैं , पर यह गलत है .
हम शहरों में बैठे जंगली और समुद्री जनजीवन टीवी पर देखते हैं . पर सच्चाई यह है कि जिस हवा में सांस लेते हैं , जो भोजन हम खाते हैं और जो पानी हम पीते हैं सभी बायोडायवर्सिटी पर ही निर्भर है . बिना पेड़ पौधों के हमें ऑक्सीजन नहीं मिल सकता है और बिना परागन ( पॉलिनेशन ) के फल फूल नहीं हो सकते हैं . मधुमक्खियों , हड्डे , तितलियाँ , भंवरें , पशु - पक्षी सभी पॉलिनेशन करते हैं . कोरल रीफ और मैन्ग्रोव चक्रवात और सुनामी से बचाते हैं . जंगली जीवों कछुए , बंदर , भालू आदि पशु पक्षियों और कीटों द्वारा फेंके गए बीजों के बिना जंगल में घने वृक्ष नहीं होंगे जो वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड दूर करते हैं .
बढ़ती आबादी की मांगों की पूर्ती के लिए खेती , घरों , उद्योगों , यातायात आदि के लिए जंगल कट रहे हैं . 2016 में विश्व में ब्रिटेन और आयरलैंड के क्षेत्रफल के बराबर जंगल काटे गए हैं . इसके चलते कितने स्पीशीज भी नष्ट हुए होंगे . अब पृथ्वी पर रहने वाले हड्डी वाले जीवों में मात्र 3 % जंगली जीव हैं यानि 97 % मानव हैं . सबसे ज्यादा नुक्सान नदियों और झीलों को हुआ है . 1970 के बाद से पेय और कृषि के जल की मांग काफी बढ़ी है . इनकी आपूर्ति के चलते इनमें रहनेवाले जीवों में 81 % कमी आयी है . इसके अलावे डैम्स बनने से और बढ़ते प्रदूषण से भी इन्हें हानि पहुंची है .
बायोडायवर्सिटी में हुए बदलाव का असर जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग पर भी हुआ है . इसे हम भविष्य में दृढ संकल्प और इच्छाशक्ति से बहुत हद तक सुधार सकते हैं . धरती के लाखों जीवों में हर जीव अपने आप में अनोखा है और प्रकृति की अनुपम रचना है . ये स्पीशीज मर गए तो इन्हें दुबारा नहीं पैदा किया जा सकता है .
5 चीजों के लिए बायोडायवर्सिटी जरूरी है -
1 . भोजन और वस्त्र - हमारे भोजन का 75 % अनाज सिर्फ 12 तरह के पौधों से मिलता है और 90 % मांस 15 प्रकार के पशु पक्षी से मिलता है . विडंबना यह है कि ऐसे 27 % स्पीशीज का जीवन अन्य हजारों प्रकार के
जीवों पर निर्भर करता है . हमारे कृषि उत्पाद का करीब एक तिहाई मधुमक्खियों आदि कीटों के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष परागन ( पॉलिनेशन ) पर निर्भर है . मछलियां करोड़ों लोगों के भोजन का हिस्सा है और ये मछलियां भी कोरल रीफ और अन्य जीवों पर आश्रित हैं .
हमें अपने वस्त्रों में सूती कपड़ों की भी जरूरत होती है . सूट के लिए कपास अहम है . मधुमक्खियों और अन्य कीटों द्वारा पॉलिनेशन से कपास के उत्पादन में मदद मिलती है .
2 . स्वास्थ्य - जैव विभिन्नता का संबंध हमारे स्वास्थ्य से भी है . भिन्न पेड़ पौधों से प्राप्त फल और अनाज , पशु पक्षी , फंगी आदि से हमें पौष्टिक आहार मिलता है . चिकित्सा जगत अनुसंधान और आविष्कार के लिए नाना प्रकार के पौधों और जीवों पर निर्भर है . विश्व में पाए जाने वाले स्पीशीज में आधा रेनफॉरेस्ट्स में मिलते हैं . कैंसर की 70 % दवाएं रेनफॉरेस्ट्स के पेड़ पौधों से मिलती हैं . अस्थमा की दवा थ्योफिलिन कोकोआ के पेड़ से बनती है .
3 . इकोसिस्टम -
स्वच्छ हवा - पेड़ पौधों से हमें ऑक्सीजन मिलता है . इसके अतिरिक्त वे वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड और प्रदूषण को दूर करने में सहायक हैं .
स्वच्छ जल - घने जंगल के वृक्ष पानी को सोख कर बाढ़ और भूमि कटाव से रक्षा करते हैं और साथ ही भूमिगत जल को फ़िल्टर कर साफ़ रखते हैं . वेटलैंड ( दलदल ) पानी से कुछ रसायन को भी निकालते हैं .
अच्छी मिट्टी - मिट्टी में अनेकों सूक्ष्म जीव होते हैं . ये अपेक्षाकृत बड़े जीवों के आहार होते हैं . इसके अतिरिक्त जब ये मरते हैं तब मिट्टी को कार्बनिक पदार्थ और अन्य पौष्टिक तत्त्व मिलता है .
रॉ मैटेरियल्स ( कच्चा माल ) - बायोडायवर्सिटी से हमें लकड़ी , बायोईंधन , तेल आदि रॉ मैटेरियल्स मिलते हैं .
4 . रेजिलिएंस या प्रतिरोधक्षमता - जैव विभिन्नता से फोटोसिंथेसिस की गति तेज होती है जिससे बिमारी के प्रति अवरोध होता है . एकल प्लांट या जीव वाले क्षेत्र में किसी विपदा में उनके पूर्णतः नष्ट होने की संभावना ज्यादा है .
5 . एथिक्स ( नीति ) - बायोडायवर्सिटी बनाये रखने से प्राकृतिक उद्भव ( इवोल्यूशन ) की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है . इवोल्यूशन से जीवों को पर्यावरण में आये परिवर्तन के अनुकूल समायोजन कर जीने में मदद मिलती है . हमारा भी नैतिक कर्तव्य है कि बायोडाइवर्सिटी बनाये रखें अन्यथा इस में ज्यादा छेड़छाड़ पूरे इकोसिस्टम को बर्बाद कर सकता है .
क्या नेचर को धरती वापस देना सम्भव है - सिद्धांततः यह असम्भव नहीं है . व्यवहारिक रूप में निकट भविष्य में यह असम्भव है क्योंकि इसका गहरा प्रतिकूल असर हमारे जीवन पर पड़ेगा . मनुष्य की बुनियादी जरूरतों , भोजन , वस्त्र और आवास को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं . अगर धरती कम होगी तो इतनी बड़ी जनसंख्या
को पर्याप्त भोजन मिलना बहुत कठिन हो जाएगा . इसके अतिरिक्त अन्य पहलुओं पर गंभीर मंथन करना होगा .
डॉ विल्सन का “ हाफ अर्थ प्रोजेक्ट “ परियोजना पर अमल करना फिलहाल मुमकिन नहीं है . इस दिशा में हम कुछ कदम उठा सकते है . दुनिया भर में लोगों को जैव विविधता के महत्त्व को समझा कर उन्हें मानसिक रूप से जागृत कर सकते हैं ताकि भविष्य में यथासम्भव बायोडायवर्सिटी बनाये रखें . इस परियोजना के लिए आधुनिक तकनीक का उपयोग कर एक वृहद भौगोलिक मानचित्र बनाना होगा और उन क्षेत्रों को अंकित करना होगा जहाँ सबसे ज्यादा स्पीशीज हैं और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी . इस दिशा में दक्षिण अमेरिका के बड़े क्षेत्र का पता भी लगाया गया है . इसके अतिरिक्त श्रीलंका , इंडोनेशिया , भारत , तस्मानिया ( ऑस्ट्रेलिया ) , अफ्रीका के कांगो , आदि देशों में भी ऐसे क्षेत्र मौजूद हैं .
तब क्या हो सकता है - धरती का एक बड़ा हिस्सा अगर छोड़ना पड़े तो सबसे ज्यादा प्रभावित हमारी पहली बुनियादी आवश्यकता भोजन होगी . इसके लिए सबसे पहले अनाज और खाद्य पदार्थों की बर्बादी रोकनी होगी . जिनके पास जरूरत से ज्यादा है उन्हें कमी वालों को देना होगा और वह भी सड़ने के पहले . विडंबना यह है कि
भारत , चीन , इंडोनेशिया जैसे देशों में जहाँ लाखों को दो वक़्त की रोटी मुश्किल से मिलती है वहां भी खाद्य पदार्थ बर्बाद हो जाते हैं - भारत में 22 % , चीन - 12 % . अमेरिका तो अपने खाद्य उत्पाद का करीब 50 % बर्बाद करता है और विश्व स्तर पर यह बर्बादी करीब 30 % है .
बायोडायवर्सिटी में सुधार के कुछ अन्य उपाय -
1 . वर्तमान वन्यजीवन और हरितक्षेत्र ( ग्रीनस्पेस ) को सुरक्षित रखना .
2 . आंशिक रूप से प्रभावित हरितक्षेत्र की उचित देखभाल और उनमें सुधार लाना .
3 . नष्टप्रायः प्रभावकारी क्षेत्रों को पूर्वावस्था में लाना जैसे वेटलैंड्स ( दलदल ) .
4 . नए हरितक्षेत्रों का निर्माण और वनरोपण .
5 . यथासम्भव घरों में गार्डन लगाना . ऐसे निजी गार्डन में ऑर्गनिक खाद का उपयोग करना .
6 . जब वन्यक्षेत्र के अंदर रोड बनाना हो तब ध्यान रहे कि पशुओं के आवागमन में बाधा न हो और उन्हें किसी प्रकार की दुर्घटना का सामना न करना पड़े .
7 . शहरों या अन्य जगहों के खाली क्षेत्रों में रेनगार्डन और बायोसवेल ( bioswale ) बनाना . बायोसवेल एक प्रकार का नाला है जिसमें कचरा और प्रदूषण न हो . यह बरसात के पानी को वापस किसी खास जगह ले जाता है और इससे ग्राउंड वाटर भी रिचार्ज होता है . रेनगार्डन में नेटिव घास , झाड़ी व अन्य पौधे स्वतः उगेंगे जिससे अन्य जीवों को आवास मिलेगा .
8 . ऐसे पेड़ लगाना जिन पर अनेकों स्पीशीज अपना डेरा बना सकें जैसे ओक ( oak ) , इस पर 500 से ज्यादा प्रजाति के स्पीशीज वास कर सकते हैं .
9 . हमारे जंगलों को आग से बचाना होगा . इधर हाल में दुनिया में अनेकों जंगलों को आग से काफी क्षति हुई है .
10 .शहरों में और उनके आस पास के ग्रीनस्पेस और बायोडायवर्सिटी को पहचान कर उनकी सुरक्षा करना . भविष्य में शहरों और कॉलोनीज की प्लानिंग बिना बायोडायवर्सिटी को हानि पहुंचाये करना होगा .
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