मीता एक लड़की के संघर्ष की कहानी - अध्याय - 15 Bhupendra Kuldeep द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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मीता एक लड़की के संघर्ष की कहानी - अध्याय - 15

अध्याय-15

मीता के पापा अचानक उसकी ओर भागे तब तक सुबोध गाड़ी में बैठ चुका था। सुबोध बेटा सुबोध। एक मिनट।
ड्राईवर एक मिनट रूको। जी बोलिए।
बेटा तुमसे कुछ बात करनी थी।
आपको जो भी कहना है अदालत में आप कह सकते हैं।
नहीं बेटा तुमसे व्यक्तिगत बात करनी थी।
देखिए नियम के तहत कोर्ट के बाहर प्रकरण से संबंधित कोई भी बात करना ठीक नहीं है। वो मेरे कर्तव्यों के विरूद्ध है।
प्रकरण से संबंधित यदि आपकेा कोई बात करनी है तो फिर आप कोर्ट में ही आईये।
बेटा मीता के विषय में बात करनी है।
मैं उसके विषय में कोई बात नहीं करना चाहता।
आप दोनो ने मिलकर रिश्ता तोड़ा था ना तो अब क्यों बचाव के लिए आए हैं। वो मेरे लिए सिर्फ एक अपराधी है जिसके लिए उसे सजा मिलेगी। चलो ड्राईवर, यह कहकर वो निकल गया।
क्या हुआ पापा, मीता ने पूछा।
कुछ नहीं बेटा। पापा बोले।
सुबोध से बात करने की कोशिश कर रहे थे आप ? मीता पूछी।
हाँ।
तो क्या हुआ। वो नहीं सुना ना ? और सुनेगा भी क्यों। आखिर मैंने उसे साफ साफ धोखा दिया है। मीता ने कहा।
यही तो मैं उसे बताना चाहता था कि तुम निर्दोष हो। उसी की भलाई के लिए तुमने ये कदम मजबूरी में उठाई। पर वो सुनने के लिए तैयार ही नहीं है। उसे लगता है कि तुमने अपराध किया है तो तुम्हें सजा मिलनी चाहिए। वो इस अपराध प्रकरण की बात नहीं कर रहा है बल्कि व्यक्तिगत अपराध जो हमने उसके साथ किया उसकी बात कर रहा है।
आप उससे बात क्यों कर रहे हैं पापा ? मुझे उससे कोई शिकायत नहीं है। वो जो भी सजा देगा, मैं आराम से स्वीकार कर लूँगी। वो मेरे बगैर जीन सीख गया है पापा। बड़े पद में है बड़ी गाड़ी है बड़ा बंगला है मैं तो उसे ऐसे ही देखकर खुश हूँ। आप मेरे लिए दुख मत करिए, जो मेरे लिए दुख का विषय था वो तो ऊपर चला गया। अब मैं शांत हूँ।
आप निश्चिंत होकर घर जाइए पापा।
मैं तुम्हारे बेल के लिए अप्लाई करता हूँ बेटा।
हाँ। पर अब एक सप्ताह तो जेल में ही रहना पड़ेगा। मैं जानती हूँ कि सुबोध ने नाराजगी में ही रिमांड की मंजूरी दी है। पर फिर भी मैं खुश हूँ और बहुत अच्छा महसूस कर रही हूँ। ठीक है पापा अब आप जाईए, मुझे जाना होगा।
इतनी देर में बाकी कैदियों की भी पेशी खत्म हो चुकी थी।
ठीक है बेटा मैं शाम को मिलने आऊँगा।
फिर मीता बाकी कैदियों के साथ जेल चली गई।
मि. शर्मा भी बेल के लिए आवेदन करके घर चले गए।
आ गए जी ? क्या हुआ आज कोर्ट में ? श्यामा देवी पूछी।
कुछ नहीं आज ज्यादा कुछ नहीं हुआ। दोनो पक्षो ने अपनी बात रखी पर जज ने मीता का रिमांड सात दिन के लिए बढ़ा दिया।
अरे हाँ! विशेष बात तो मैं तुम्हें बताना ही भूल गया। मालूम है जज कौन था ?
कौन ?
सुबोध।
मीता का सुबोध ?
हाँ वहीं।
क्या ? आप सच बोल रहे हो ? वो जज है।
हाँ वही था और मीता का दुर्भाग्य देखो कि उसका केस उसी के कोर्ट में पेश हुआ। मि. शर्मा बोले।
फिर तो मीता को बेल भी नहीं मिल पायेगी और उसे सजा देने की कोशिश करेगा।
हाँ तुम ठीक बोल रही हो।
देखिए जी वो नाराज इसलिए है क्योंकि वो सच नहीं जानता, अगर वो सच जान जाएगा ना तो मीता को कुछ नहीं होने देगा।
तो मैं क्या करूँ बताओ ? मि. शर्मा बोले।
आप उसे सच बताईये। श्यामा देवी बोली।
लेकिन वो तो कुछ सुनने के लिए तैयार ही नहीं है। उसके मन में तो काफी गुस्सा भरा है और मीता भी नहीं चाहती कि मैं उससे बात करूँ।
तो क्या मीता को सजा हो जाने दोगे। उसको बिना बताए आप सुबोध से बात करिए। श्यामा देवी बोली।
वो क्या मुझसे मिलने के लिए तैयार होगा ? मि. शर्मा बोले।
ट्राई करने में क्या हर्ज है। जब तक मीता रिमांड में है तब तक तो ट्राई करिए।
तुम शायद ठीक कहती हो। हालांकि मुझे नहीं लगता कि वो मिलने के लिए तैयार होगा क्योंकि हमने उसे काफी चोट पहुँचाया है। चलो ठीक है तुम तैयार हो जाओ। मीता को देख लोगी तो सो पाओगी। नहीं तो तुम भी परेशान होगी और मीता भी।
शाम को छह से सात जेल में मिलने का समय रहता है इसलिए वो दोनो ठीक वक्त पर जेल पहुँच गए।
मीता और श्यामा देवी एक दूसरे को देखते ही रोना चालू कर दिए और एक दूसरे का हाथ पकड़कर काफी देर तक रोते रहे। बीच में जेल की दीवार जो थी।
बेटा तू चिंता मत कर तेरे पापा ने बेल के लिए अप्लाई कर किया है और अगर जज तुझे बेल नहीं देगा तो हम हाई कोर्ट में अप्लाई करेंगे।
मुझे सजा की चिंता नहीं है माँ। मुझे आप लोगों की चिंता हैं, मैं ठीक हूँ आप निश्चिंत रहो और प्लीज रोओ मत। पापा, मम्मी को लकर जाइये ये यहाँ जब तक रहेंगी तब तक रोती रहेंगी।
ठीक है बेटा कहकर मि. शर्मा उसकी मम्मी को लेकर चले गए।
घर पहुँचकर उन्होंने श्यामा देवी को छोड़ा और सेसन जज के बंगले की ओर निकल गए।
ढूँढते हुए वो सुबोध के बंगले के सामने पहुँच गए। उन्होंने देखा बाहर बड़े अक्षरों में लिखा था सुबोध कुमार सत्र न्यायाधीश, और एक सेक्युरिटी गार्ड वहाँ पर बैठा था।
क्यों गार्ड जी साहब हैं क्या घर पर ?
क्या काम है आपको ?
जी काम तो उन्हीं से है।
आप कौन है ?
मैं संयुक्त सचिव हूँ पी. डब्लू.डी. में । मेरा नाम मि. शर्मा है।
गार्ड उठा और खट से सैल्यूट मारा ‘‘जय हिन्द सर’’।
नहीं आप बैठिए इसकी काई आवश्यकता नहीं है। एक्चुअली मेरी बेटी का एक प्रकरण है सर के पास। बस उसकी सिलसिले में उनसे मिलना चाहता हूँ।
ठीक है आप इस पर्ची में अपना नाम पता और काम लिखकर दीजिए मैं अंदर पूछ कर आता हूँ।
मि. शर्मा ने उस पर अपना नाम और काम में मीता के विषय में चर्चा लिख कर अंदर भेजा।
थोड़ी देर में गार्ड बाहर आया और बोला - साहब बोल रहे हैं कि वो किसी कैदी के विषय में घर में बात नहीं करते आप कल कोर्ट आ जाईए।
ओह! पर मुझे तो मिलना ही है बताओ मैं क्या करूँ।
सर। आप कल कोर्ट में मिल लीजिए।
नहीं गार्ड भाई मुझे उनसे घर पर ही मिलना है।
देखिए सर। अगर उन्होंने मना कर दिया है तो मैं कोई मदद नहीं कर पाऊँगा।
ठीक है मैं यही इंतजार करूँगा और वहीं जमीन पर बैठ गए।
अरे रे रे! ये आप क्या कर रहे हैं सर ? आप ऊपर चेयर पर बैठ जाईए।
दो घंटे बीत चुके थे। रात के 10 बज गए।
गार्ड ने गेट से ही अंदर फोन किया तो इत्तेफाक से सुबोध ने ही उठाया।
सर वो साहब अभी तक बैठे हैं।
उनसे कहो कि घर चले जाएं। अपना समय नष्ट ना करें मैं उनसे कोर्ट के बाहर नहीं मिलूंगा।
सर रात काफी हो गई है आप सचमुच घर चले जाईये लगे तो कल फिर आ जाईये, पर अपनी तबियत खरात मत करिए। प्लीज।
हाँ ये तुम ठीक कह रहे हो गार्ड भाई। मैं तो रोज आ सकता हूँ। चलो ठीक है मैं कल फिर आता हूँ। अच्छा भाई गुड नाईट। कहकर वो चले गए।
दूसरे दिन वो फिर बंगले के सामने आ गए तो गार्ड ने अंदर फोन किया और बताया - सर वो कल वाले साहब फिर आए है क्या करूँ।
तुमने उन्हें बताया नहीं कि मैं नहीं मिलना चाहता।
बताया हूँ सर पर वो मिलने की जिद्द में बैठे हैं।
ठीक है उन्हें बैठे रहने दो। कहकर सुबोध ने फोन रख दिया।
दो घंटे बाद गार्ड ने फिर फोन करके बताया कि वो साहब अब तक बैठे है पर सुबोध टस से मस नहीं हुआ।
ऐसे रोज मि. शर्मा आकर दो घंटे सुबोध के गेट के सामने बैठे रहते थे पर दोनो ही जिद्दी थे ना तो सुबोध मान रहा था और ना ही मि. शर्मा, और इस बारे में मि. शर्मा मीता को भी नहीं बता सकते थे। उनके लिए ये एक बड़ी मजबूरी थी।
रविवार के दिन मि. शर्मा 5-6 घंटो तक जब उसके घर के सामने बैठे रहे तब सुबोध के बड़े भाई ने सुबोध को समझाया।
सुबोध मैं देख रहा हूँ कि तुम कुछ ज्यादा ही अन्याय कर रहे हो उनके साथ। वो बेचारे रोज आकर तुमसे मिलने के लिए मिन्नत करते है और तुम हो कि टस से मस नहीं होते। उनसे एक बार मिल क्यों नहीं लेते।
भैया। तुम तो उसका पक्ष लो ही मत। वो और बेचारे कैसे हो गए, ऐसे ही मैंने भी एक दिन बहुत गिड़गिड़ाया था पर उन्होंने मेरी एक नहीं सुनी थी। आज मेरी बारी है।
तो क्या बदला लोगे।
हाँ लूँगा।
भूलो मत सुबोध कि तुम एक जज हो। न्याय करने वाली सीट पर बैठते हो। और इस मामले में मैं देख रहा हूँ तुम व्यक्तिगत हो रहे हो। ये तुम्हारे कर्तव्यों के खिलाफ है।
भैया आप मुझे मत बताईये मेरे कर्तव्य। मैं अच्छी तरह जानता हूँ।
जानते हो तो फिर उनको आम आदमी की तरह ट्रीट करो। अगर एक आम आदमी तुमसे मिलना चाहता हो तो क्या नहीं मिलोगे ?
अब सुबोध चुप था।
अच्छा अपने मन से नहीं मिलना चाहते हो तो कम से कम मेरे कहने से मिल लो। पूछ तो लो आखिर क्या बताना चाहते हैं ?
ठीक है भैया सिर्फ आपके कहने पर मैं उनसे मिल लेता हूँ। उसने घंटी बजाया, एक गार्ड अंदर आया।
वो जो साहब बाहर बैठे हैं उन्हें बुला लाओ और मेरे आफिस में लेकर जाओ, कहकर वो अपने ऑफिस में चला गया।
थोड़ी देर में मि. शर्मा उसके ऑफिस में आ गए।
बैठिए। आपके पास पाँच मिनट का समय है बोलिए और चले जाईये।
धन्यवाद सर। मुझे पाँच मिनट देने के लिए। मेरे लिए पाँच मिनट पर्याप्त हैं।
मीता बहुत ही जिम्मेदार और महान लड़की है सर। मैं उस पर जितना भी गर्व करूँ कम है। उसने आपके और मेरे लिए अपनी खुशियों का बलिदान दे दिया। जब मीता की ट्रेनिंग चल रही थी तब वहाँ एक डी.एस.पी. लड़का था दीपक साहनी। वो मीता को पसंद करने लगा। मीता के साथ उसने बदतमीजी भी की और मीता ने उसे झापड़ भी मारा दिया था।
सुबोध ये सब सुनकर एकदम शॉक्ड था, उसे तो कुछ भी पता नहीं था।
जब उसके पिता सांसद थे तो एक दिन मेरे घर आ गए। उसने आपको जान से मार देने की धमकी दी और मुझे सस्पेंड करा देने की धमकी दी। हो सकता है उस दौरान किसी ट्रक ने आपको सिर्फ ठोकर मारकर छोड़ दिया हो क्योंकि बाद में उसने बताया था कि इस बार तो सिर्फ आपको ठोकर मारा है, परंतु अगली बार ट्रक सीधे आपके ऊपर गुजर जाएगी।
सुबोध ने रिकाल किया सचमुच उसके साथ ये घटना हुई थी वो ट्रक वाले को चिल्लाया था परंतु ट्रक उसे गिराकर तेजी से निकल गयी थी।
फिर उसने मुझे झूठे केस में फंसाकर सस्पेंड करवा दिया। ताकि वो मीता को शादी के लिए मजबूर कर सके। अगर वो ये सब आपको बताती तो आप पक्का कुछ कदम उठाते और वो लागे इतने ताकतवर थे कि उसके बदले वो मुझे और उसकी मम्मी को भी नुकसान पहुँचा सकते थे। इसलिए उसने अपनी खुशियों को ताक में रखकर अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया। आप नहीं जानते सर कि वो आपको कितना प्रेम करती है। इतना कि अगर आप उसे फाँसी भी देंगे तो वो उसे हँस कर स्वीकार कर लेगी।
सुबोध एकदम चुप था।
अच्छा सर आपने मुझे पाँच मिनट का समय दिया, उसके लिए शुक्रिया। अब फैसला आप पर है शुभ रात्रि। ये कहकर मीता के पिता बाहर निकल गए।
दूसरे दिन पेशी थी। मीता एक सप्ताह तक जेल में थी। और मन चाहे जितनी भी शांत हो जेल में रहने का असर शारीरिक और मानसिक रूप से भयंकर पड़ता है। वो एक सप्ताह से ठीक से खा पी नहीं पा रही थी। उसे नौकरी से भी सस्पेंड कर दिया गया था। और इधर सुबोध आज उसके लिए क्या फैसला करने वाला था। ये उसके लिए अनिश्चित था। वो थोड़ी चिंतित भी थी। कि सुबोध शायद उसे कड़ी सजा दे। इसलिए वो बहुत कमजोर महसूस कर रही थी। वो तैयार हो कर कोर्ट ले जाने का इंतजार कर रही थी। उसे बताया गया कि आज उसका केस शाम को है। सुबह उसके पिता आकर उसके लिए फ्रुट्स दे गए थे और कहकर गए थे कि वो सीधे कोर्ट में मिलेंगे। घर पर शयामा देवी ने उनसे पूछा।
आपको क्या लगता है जी सुबोध आज क्या फैसला करेगा।
क्या पता श्यामा। मैंने तो उसे पूरा घटनाक्रम बता दिया था। बाकि केस के बारे में तो बता नहीं सकता। अगर विपक्ष के वकील ने ये साबित कर दिया कि वो हत्या के मामले में दोषी है तो उसे सजा तो देनी ही पड़ेगी। ये कोई व्यक्तिगत मुद्दा तो है नहीं।
बाकि अंतिम निर्णय तो जज का ही होता है ना ? श्यामा देवी ने पूछा।
हाँ तुम ठीक कह रही हो। जज निजी जीवन की घटनाओं से भी प्रभावित होता है और मीता ने एक तरह से उसे धोखा ही दिया है तो उसके मन में अगर जरा सी भी ये बात आई तो वो सजा और कड़ी कर देगा।
तो क्या हुआ अगर ऐसा हुआ तो हम ऊपर अपील करेंगे।
हाँ श्यामा, वो तो करेंगे ही परंतु अगर यही से बरी होकर दोषमुक्त हो जाए तो आगे केस ही नहीं बनता।
ठीक है आज मैं दिन भर भगवान से प्रार्थना करूँगी कि सब कुछ ठीक हो जाए।
पुलिस सारे कैदियों को जिनकी पेशी थी उन्हें लेकर कोर्ट पहुँच गई थी। उनमें मीता भी थी। वो बाहर गैलरी में ही बैठी थी क्योकि उसका केस चार बजे के आस पास लगने वाला था। उसके पापा और वकील साहब भी वही पर खड़े थे।
बेटा तुम चिंता मत करना। अगर बेल नहीं मिली तो हम हाईकोर्ट में अप्लाई करेंगे। पर तुझे जल्दी बाहर निकाल लेंगे।
ठीक है पापा पर अब मेरे अंदर शक्ति नहीं बची है। जीवन से लड़ते, संघर्ष करते थोड़ा थक गई हूँ। जो फैसला करना है आज ही कर दे। ताकि मैं मानसिक रूप से शांत हो सकूँ।
ऐसा मत बोल बेटा। मैं तुझे जल्दी से घर ले जाऊँगा। हमने कोई बुरे कर्म थोड़ी किए है कि भगवान हमारी नहीं सुनेगा। उसके पिता सुबकने लगे।
चुप हो जाईये पापा। ये सब तो भाग्य का खेल है, कभी सुख तो कभी दुख और लगता है मेरे भाग्य में भगवान ने कुछ कम ही सुख लिखा है। इसलिए ये सब झेल रही हूँ।
ठीक हो जाएगा बेटा। सब कुछ ठीक हो जाएगा।
मीता की भी आँख में आँसू थे।
तभी उसके नाम की मुनादी हुई।

क्रमशः

मेरी अन्य दो कहानिया उड़ान और नमकीन चाय भी matrubharti पर उपलब्ध है कृपया पढ़कर समीक्षा आ2असहय दे- भूपेंद्र कुलदीप।