मीता एक लड़की के संघर्ष की कहानी - अध्याय - 4 Bhupendra Kuldeep द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

मीता एक लड़की के संघर्ष की कहानी - अध्याय - 4

अध्याय-4

दूसरे दिन सुबह अचानक उसके कान में आवाज सुनाई पड़ी।
ओ मैडम उठिए। आठ बज गए हैं।
मीता ने अंगड़ाई लेते हुए बाँहे फैलायी और सुबोध को अपने ऊपर खीच लिया।
अरे रे रे! ये क्या कर रही हो। दरवाजा खुला है, कोई आ जाएगा अंदर।
तो आ जाने दो अंदर। मुझे प्यार करो ना सुबोध।
जब प्यार करने का वक्त था तब तो सो गई, अब काम में जाने के वक्त मैडम को प्यार की सूझी है।
प्यार के लिए भी कोई वक्त होता है क्या।
मीता ने उसके गले में हाथ डालकर पूछा।
हाँ जी, कम से कम 10 से 05 तो नहीं होता। वो वक्त मेरे काम वक्त होता है और 10 बजने में एक घंटे रह गए है तो कृपया उठिए और मुझे टिफिन बनाकर दीजिए।
पर मुझे तो खाना पकाना नही आता। चाय और मैगी के अलावा मैंने कुछ सीखा ही नहीं।
अच्छा तो चलो फिर ठीक है जब तक तुम खाना बनाना नहीं सीखोगी मुझे मैगी बनाकर ही दे देना।
तुम घर से बनवा का कर ले जाओ। मीता बोली।
नहीं माँ के हाथ खाना तो जिंदगी भर खाया है अब मुझे पत्नि के हाथ का खाना है।
पर....................।
पर वर कुछ नहीं। जब तक तुम मुझे तकलीफ में नहीं देखोगी तब तक कुछ सीखोगी नहीं। उठो और मेरे लिए मैगी बना दो। हाँ उसकी फीस मैं एडवांस में दे देता हूँ। कहकर उसने मीता के होंठो को चूम लिया।
मीता खुश हो गई। उसने मैंगी बनाकर टिफिन में डाल दी और सुबोध काम के लिए निकल गया।
दिन भर मीता को ये बात कचोटती रही कि मेरी वजह से आज सुबोध दिनभर सिफ मैगी के सहारे रहेगा।
जैसे ही सुबोध शाम को आया मीता बेडरूम में गयी और रोने लगी।
क्या हुआ मीता ?
ऐसी भी क्या जिद है तुम्हारी, खाना लेकर नहीं जा सकते थे माँ ने तो बनाया ही था। दिनभर मैं गिल्टी फील करती रही।
पर तुम्हें किसने कहा कि मैं असंतुष्ट हूँ। मैंने तो बड़े मजे से मैगी खाया। तुम कल फिर दोगी तो फिर मजे से खाऊँगा।
मतलब तुम मानोगे नहीं।
किस बात के लिए ?
वही खाना ले जाने के लिए।
तुम बनाकर दो ना मैं ले जाऊँगा।
ठीक है तुम ऐसा ही चाहते हो तो ना मैं कल तुम्हारे लिए रोटी सब्जी बनाऊँगी। माँ से पूछ-पूछकर बनाऊँगी। अब जैसी भी बने कच्ची हो चाहे जली हो जी भरकर खाना। तभी तुम्हें पता चलेगा।
क्या पता चलेगा। सुबोध ने मुस्कुराया।
यही कि जिद्द करने का क्या फल होता है।
मीठा फल होता है और क्या ? अरे मेरी बीवी खाना बनायेगी तो भला मुझे क्यों पसंद नहीं आयेगा। तुम्हारे हाथ की कच्ची रोटी भी चाव से खाऊँगा। कभी शिकायत नहीं करूँगा, चिंता मत करो। यह कहकर उसने मीता को सीने से लगा लिया।
दूसरे दिन वह उठकर सुबोध के लिए खाना बनाई, टिफिन में डाली और भेज दी। बाद में उसने खुद खाकर देखा तो बिलकुल खाने लायक नहीं थी। उसे फिर अफसोस हुआ। लेकिन शाम को जब सुबोध घर लौटा तो वो बेहद खुश था।
मुझे मालूम है खाना कितना खराब बना था। मीता बोली।
लेकिन मुझे तो पता ही नहीं चला क्योंकि उसमें तुम्हारा प्यार मिला था। बस इसी तरह तुम खाने में प्यार डालकर खिलाते रहोगी ना तो मैं फूल कर मोटा हो जाऊँगा। सुबोध मुस्कुराया।
ठीक है ठीक है मैं धीरे-धीरे सीखूँगी।
ओके मैडम। और क्या किया दिनभर।
सब्जियाँ कैरेट्स में डाली और माँ को मदद की। ये सब कुछ बिलकुल नया है मेरे लिए।
गुड! अच्छी बात है, तुम एडजस्ट होने की कोशिश कर रही हो। जब भी तुम्हें ऐसा लगे कि ये काम मुझे नहीं करना तो मुझे बता देना। तुम्हारे लिए कोई जोर जबरदस्ती नहीं है।
ठीक है पर मैं सीखना चाहती हूँ, इसलिए करती हूँ। आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है।
ठीक है मैडम करो। मुझे क्या ?
और इस तरह उनकी रोज की दिनचर्या एक ढंग में ढल गई। अब मीता उनके रंग में पूरी तरह रंग गई थी। वह सब्जियों को परिवार के साथ समेटती, खाना बनाती और घर के सारे काम निपटाती। वो भी खुश थी और उसका परिवार भी उससे खुश था। एक दिन उसने सुबोध से कहा -
सुबोध अब मुझे एक बच्चे की चाहत हो रही है।
ये तो अच्छी बात है मीता। परंतु मुझे लगता है पहले तुम्हारे सपनों को पूरा करना चाहिए और मैंने इसीलिए अब तक बच्चे के बारे में कभी तुमसे बात नहीं की।
तुम भी तो लॉ की पढ़ाई करना चाहते थे। उसको पूरा क्यों नहीं करते। मेरी तो पढ़ने की कोई इच्छा अब नहीं रही। मुझे तो अब बच्चे की ही इच्छा है।
जैसी तुम्हारी मर्जी मीता। मैं तुमको कभी भी किसी बात के लिए फोर्स नहीं करूँगा। हाँ मैं अपनी लॉ की पढ़ाई पूरी करने के लिए आज ही आवेदन करूँगा। फिर मुझे एक वर्ष के अंदर बच्चा चाहिए। मीता बोली।
ठीक है मीता। हम कल ही डॉक्टर डॉक्टर से पास चलेंगे और उन्हीं के हिसाब से प्लान करेंगे।
दूसरे दिन वो डॉक्टर से पास पहुँच गए।
नमस्ते मैडम।
आईये बैठिए। बताईये क्या बात है।
मैडम हम लोग बच्चा प्लान करना चाहते हैं।
दैट्स गुड। तो इसमें पूछने वाली क्या बात है ?
आपका महीना तो ठीक चल रहा है ना ?
जी मैडम। मीता ने कहा।
तो बस उससे 14 दिन बाद लगातार प्रयास करिए ईश्वर ने चाहा तो हो जाएगा।
ठीक है मैडम। यह कहकर दोनो वापस आ गए।
उन्होंने एक महीने, फिर दूसरे महीने फिर तीसरे महीने प्रयास किया, परंतु सब निष्फल। फिर सुबोध ने तय किया कि फिर से एक बार मैडम से मिलना चाहिए।
दोनो फिर से मैडम के पास गए।
मैडम हमने लगातार तीन महीने बच्चे के लिए प्रयास किया पर सब बेकार। कुछ हुआ ही नहीं।
मुझे लगता है आप दोनों को एक बार चेकअप करा लेना चाहिए।
जी मैडम आप जैसा कहें।
मैं लिख देती हूँ आप लोग डायगोनेस्टिक सेंटर चले जाईये।
दोनो डायगोनेस्टिक सेंटर पहुँचकर जाँच कराने के लिए सैंपल दे आए।
दो दिनो बाद जब रिजल्ट आया तो वे उसे लेकर मैडम के पास चले गए।
देखिए आपकी जाँच रिपोर्ट ये कहती है कि मीता तो ठीक है परंतु आपके शरीर का स्पर्म काउंट कम है इसीलिए गर्भधारण में परेशानी हो रही है।
ओह!!
चिंता की कोई बात नहीं है मेडीसीन लिख देती हूँ। आप मेडीसीन लेते रहिए और एक दो महीने फिर से ट्राई करिए। शायद आप सफल हो जाए।
जी मैडम धन्यवाद।
वे दोनो फिर से आशन्वित हो गए कि अब शायद उनकी उम्मीद पूरी हो जाए परंतु परिणाम तब भी निरर्थक था। वे लगातार दो साल तक सभी तरीकों से प्रयास करते रहे। टेस्ट ट्यूब, आई.वी.एफ, सब कुछ जो भी मेडीकल साइस में संभव हो सकता था दोनो सभी कुछ ट्राई कर लिए परंतु परिणाम अब भी शून्य था।
एक दिन सुबोध ने मीता से कहा -
मीता खराबी मुझमे ही है तुम अपने सपनों को क्यों बर्बाद कर रही हो। कम से कम तुम तो अपने सपने को पूरा करो।
कौन सा सपना सुबोध ? बच्चा पाना मेरा एकमात्र सपना था।
नहीं मीता, तुम्हारा एक और सपना था जिसे तुम वक्त के साथ भूल गई हो।
वो क्या ?
लोक सेवा आयोग में चयनित होकर अधिकारी बनना।
वो सपना अब दो साल पीछे छूट चुका है सुबोध। मेरे मन में अब ऐसी कोई बात रही नहीं।
पर मेरे लिए प्लीज तुम ये सपना पूरा करो।
नहीं ना सुबोध। मेरी पढ़ाई लिखाई सब छूट चुकी है। अब मेरे मन में इतना साहस भी नहीं है कि फिर से पढ़कर सलेक्ट हो सकूं।
फिर से कहाँ डियर। ये तो पहली ही शुरूआत होगी, तुमने इससे पहले प्रयास किया कहाँ। करो ना प्लीज मेरी खुशी के लिए कम से कम एक साल तो प्रयास करो।
चलो ठीक है मैं मान लेती हूँ पर तुम भी प्रयास करो ना।
मैं तो यही से पढ़कर प्रयास करूँगा वरना घर कैसे चलेगा।
यही से मतलब ?
मतलब तुमको तो मैं घर के कामों से मुक्त करके बिलासपुर भेजूँगा, ताकि तुम आराम से तैयारी कर सको।
तो यहाँ तुम्हारा ध्यान कौन रखेगा ?
माँ है ना घर में और बाकी लोग भी हैं।
अच्छा और टिफिन कौन बनाकर देगा ? तुम्हें तो सिर्फ मेरे हाथ की टिफिन खाने की आदत है।
तुम्हारे फ्यूचर के लिए सबका त्याग। तुम बस एक बार सलेक्ट हो जाओ तो हमारी स्थिति भी सुधर जायेगी।
हाँ ये तो तुम ठीक कह रहे हो। मीता बोली।
तो फिर कर लो तैयारी। मैं पता करता हूँ बिलासपुर में पढ़ने के लिए सबसे अच्छी संस्था कौन सी है। फिर चले चलेंगे।
अच्छा ठीक है सिर्फ तुम्हारे कहने पर मैं एक साल प्रयास करके देखूँगी और अगर नहीं हुआ तो वापस आ जाऊँगी।
आ जाना वापस, वैसे भी तुमसे दूर रहकर मैं कौन सा यहाँ ठीक-ठाक रहने वाला हूँ, बस अपने को व्यस्त करने के लिए लॉ का अंतिम वर्ष कम्प्लीट कर लूँगा।
हाँ ये ज्यादा उचित है। दोनो पढ़ेंगे तो मन भी लगेगा और समय भी कट जायेगा। मीता बोली।
ठीक है मैं माँ-पिताजी को भी बता देता हूँ कि तुमको एक वर्ष के लिए बिलासपुर भेज रहा हूँ।
सुबोध ने अगले एक सप्ताह के अंदर बिलासपुर जाने की सारी तैयारियाँ कर ली और दोनो एक दिन ट्रेन पकड़कर बिलासपुर के लिए रवाना हो गए।

क्रमशः

मेरी अन्य दो कहानिया उड़ान और नमकीन चाय भी matrubharti पर उपलब्ध है कृपया पढ़कर समीक्षा अवश्य दे-भूपेंद्र कुलदीप।