Mita ek ladki ke sangarsh ki kahaani - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

मीता एक लड़की के संघर्ष की कहानी - अध्याय - 3

अध्याय-3

इधर मीता जब घर पहुँची तो उसकी माँ किचन में थी।
माँ आपसे एक बात करनी है।
अरे मीता तुम। तुम तो आज सुबोध को मिलाने लाने वाली थी न। माँ ने उल्टा सवाल दाग दिया।
हाँ माँ उसी के बारे में आपसे बात करनी थी।
हाँ बताओ ? माँ ने कहा।
दरअसल माँ मुझे तुम्हें उसके पारिवारिक स्थिति के बारे में आपको बताना था।
हाँ तो बताओ ना ?
माँ वो असल में एक सब्जी बेचने वाली फैमिली से बिलांग करता है।
क्या ? उसकी माँ थोड़ी उग्र हो गई।
हाँ माँ उसकी माँ मंडी में सब्जी बेचती है और उसके पिताजी ठेले पर सब्जी बेचते हैं।
और तू उससे शादी करना चाहती है ? तू होश में तो है मीता। श्यामा देवी के चेहरे पर हँसी क्षण भर में गायब हो गई। वो क्रोध से आग बबूला हो गई थी। वो घसीटते हुए मीता को उसके पिता के पास ले गई।
देखिए जी ये पागल हो गई है एक सब्जी बेचने वाले के लड़के से शादी करना चाहती है।
देख मीता ऐसा कुछ भी करने से पहले हमको मरा समझ लेना। बाकी तेरी मर्जी। उसके पिता बोले और उठकर चले गए।
सुन लिया तूने मीता। अब फैसला तुझे करना है। उसकी माँ भी बोलकर चली गई।
मीता समझ गई थी कि सुबोध सच कर रहा था कि ऐसे समाज में जहाँ रिश्ते धन, संपत्ति, पद, प्रतिष्ठा, दान-दहेज और जात बिरादरी देखकर तय किये जाते हैं, वहाँ उसके और सुबोध के रिश्ते को उसके अपने माता-पिता कैसे स्वीकार करेंगे। लेकिन वो तो सोच रखी थी कि अपने पिता से लड़कर ही सही परंतु शादी करेगी तो सिर्फ सुबोध से।
अगले दिन वह वही गार्डन में सुबोध से फिर मिली।
क्या हुआ मीता ? सुबोध ने पूछा।
कुछ नहीं यार, जैसे ही मैंने तुम्हारी पारिवारिक स्थिति के बारे में बताया, मेरे मम्मी-पापा भड़क गए।
देखो मैंने बोला था ना कि तुम जैसे ही मेरे बैकग्राउंड के विषय में बताओंगी वो लोग मना कर देंगे। सुबोध बोला।
तो मैं क्या करूँ तुम ही बताओ सुबोध ?
तुम्हारे पास दो ही विकल्प हैं मीता। पहला ये कि उनकी बात मान लो जिसके मैं पक्ष में हूँ, और उनकी मर्जी से शादी कर लो। क्योंकि मुझ जैसे गरीब और बेरोजगार व्यक्ति के साथ इतनी हड़बड़ी में फैसला लेकर अपना जीवन बर्बाद करना उचित नहीं है।
और दूसरा ?
दूसरा ये कि अगर कठिनाईयों से लड़ने की हिम्मत है तो सब भूलकर मुझसे शादी कर लो।
मैं दूसरा ही विकल्प चाहती हूँ सुबोध।
कुछ दिन सोच लो मीता। कोई हड़बड़ी नहीं है तब तक मैं कहीं छोटा-मोटा जॉब ढूँढ लूँगा। लेकिन तब तक अपने माता-पिता को मनाने का भरपूर प्रयास करो कि वो हमारी शादी के लिए मान जाएं।
मान जाओ ना माँ मीता बोली।
तुम क्यों नहीं समझती हो मीता। वो लड़का तुम्हारे लायक बिलकुल नहीं है। अच्छा तुम ही बताओ कहाँ रहोगी, क्या खाओगी, वो लड़का तो नौकरी भी नहीं करता। क्या खिलाएगा तुमको, और तुम्हारे सपनों का क्या होगा कभी सोचा है।
माँ वो लड़का बुद्धिमान है कुछ ना कुछ तो कर ही लेगा। अगर आप लोंगो ने मेरी शादी कही किसी अधिकारी से कर दी और वो ठीक-ठाक नहीं निकला तो। तब क्या होगा। माँ इंसान का अच्छा होना जरूरी है बाकि तो जीवन किसी न किसी तरीके से चलाया ही जा सकता है।
चुप करो मीता। जितना भी समझाओ तुम समझने का नाम ही नहीं ले रही हो। क्या इसी दिन के लिए तुमको पाल पोसकर बड़ा किया है कि एक दिन बड़ी होकर तुम हमारी इज्जत बिगाड़ो। बेटा हम तुम्हारे माता-पिता है तुम्हारा भला किसमें है तुमसे बेहतर जानते हैं।
आप लोग मेरे दृष्टिकोण से भी सोचकर देखो ना माँ प्लीज। मुझे व्यवहार के हिसाब से उससे बेहतर इंसान कोई नहीं मिलेगा माँ। प्लीज आप लोग मान जाइए ना ?
तेरे पापा तुझे माफ नहीं करेंगे बेटा अगर तूने ऐसी वैसी कोई हरकत की। इसलिए चुपचाप उसे भूल जा, इसी में तेरी भलाई है।
इधर सुबोध ने लोकल कंपनियों में अप्लाई करना चालू कर दिया था कि कहीं जॉब मिल जाए। एक दिन उसे फोन आया।
हेलो कौन ? मिस्टर सुबोध बात कर रहे हैं ?
हाँ जी बोल रहा हूँ।
मैं इंजीनियरिंग कार्पोरेशन से बात कर रहा हूँ आपको साहब ने कल इंटरव्यू के लिए बुलाया है। 11 बजे आ जाइए।
ठीक है धन्यवाद सर, मैं कल आता हूँ। उसने खुश होकर जवाब दिया।
दूसरे दिन वह इंजीनियरिंग कार्पोरेशन कार्पोरेशन के ऑफिस पहुँच गया और कांउटर पर जाकर पूछा - जी मेरा नाम सुबोध है।
अच्छा, अच्छा आप ही सुबोध हैं मैंने ही कल आपको फोन किया था बैठिए। साहब अभी आने ही वाले हैं।
सुबोध वहीं पर बैठ गया।
वो उनके चेंबर पर नाम लिखा देख रहा था सज्जन सिंग। सुबोध भी उसके जैसा जीवन में कुछ करने का सपना देखता था। तभी बाहर एक गाड़ी आकर रूकी और एक रौबदार व्यक्ति उसमें से बाहर उतरा। वह सीधे अपने चेंबर के अंदर गया और बेल बजाया।
सुबोध जी बॉस आपको बुला रहे हैं जाइए।
ठीक है।
मे आई कम इन सर।
आइए बैठ जाइए । क्या नाम है आपका ?
जी सुबोध।
सुबोध जी आप पढ़ाई में तो जोरदार हैं किसी अच्छे नौकरी के लिए तैयारी क्यों नहीं करते।
करूँगा सर पर अभी तो अपनी पारिवारिक स्थिति को ठीक करने के लिए यह नौकरी आवश्यक है।
अच्छा तो फिर ठीक है आपको सुपरवाइजर का पोस्ट दिया जा रहा है और आपको 8000 तनख्वाह दी जाएगी। समय आपका 10 से 5 रहेगा। आपको ये ठीक है ?
जी सर बिलकुल। आपको बहुत धन्यवाद सर जॉब देने के लिए।
सुबोध बाहर निकल गया। आज उसे फिर से कॉलेज के गार्डन में मीता से मिलने जाना था।
हैलो मीता क्या हाल चाल है ?
ठीक नहीं है सुबोध ।
क्यों क्या हुआ ?
मैने माँ से फिर से बात की थी।
तो ?
वो बिलकुल तैयार नहीं है हमारी शादी के लिए। बताओं मैं क्या करूँ।
तो कर लो मुझसे शादी। आज मुझे जॉब मिल गई।
अरे वाह! ये तो खुशी की बात है कहाँ मिला और कितनी सैलरी है ?
तुम यार गरीब आदमी की तनख्वाह पूछती हो ये गलत बात है सुबोध हँस कर बोला।
अच्छा तनख्वाह मत बताओ। कहाँ मिली नौकरी ये तो बताओ ?
यही आठ किलोमीटर दूर में इंजीनियरिंग कार्पोरेशन है वहाँ सुपरवाइजर की जॉब मिली है और तनख्वाह है आठ हजार रूपए।
ये तो अच्छी बात है स्टार्ट अप के लिए आठ हजार तो अच्छी रकम है। तो फिर कल मैं सामान लेकर आ जाऊँ।
तुम मजाक कर रही हो ?
नहीं मैं सीरियसली बोल रही हूँ। एक बार तय कर ली और आ गई तो वापस नहीं जाऊँगी, फिर तुमको मुझसे शादी करनी ही पड़ेगी। कोई डाऊट है तो सोच लो फिर से।
अरे अब क्या सोचना, अब तो मेरे पास नौकरी है भी है। तुम चाहो तो फिर से विचार कर लो। शायद मैं तुम्हारे लायक नहीं।
मैं सोच ली हूँ मेरा फैसला अटल है।
मैं कल ही आ जाऊँगी, तुम शादी का अरेंजमेंट कर लो।
चलो ठीक है आ जाओ। हमारे घर के पास ही एक मंदिर है मैं वहाँ सभी अरेंजमेंट्स कर लूँगा
ठीक है मैं चलती हूँ।
दूसरे दिन सुबोध ने मंदिर में सारे अरेंजमेंट करके मीता की प्रतीक्षा करने लगा। मीता चुपचाप बिना किसी को बताए घर से निकली और सुबोध के घर पहुँच गई। सुबोध के परिवार ने उसका स्वागत किया।
आओ बेटी। सीधे मंदिर में ही चलो। पंडित जी भी आ गए हैं।
ठीक है पिताजी, चलिए सीधे वहीं चलते हैं। मीता बोली।
आओ मीता कहकर सुबोध ने उसका हाथ पकड़ा। आज से ये हाथ मैं जीवन भर नहीं छोड़ूँगा। पंडित जी प्रारंभ कीजिए।
पंडित जी ने विवाह के मंत्र चालू कर दिए।
जैसे ही फेरे खत्म हुए मंदिर के बाहर एक गाड़ी आकर रूकी। मीता समझ गई कि उसके मम्मी-पापा आए हैं।
उसके पापा तेजी से ऊतरकर बाहर आए। बदतमीज, इतना मना करने के बाद भी तुझे समझ में नहीं आया। हमारी इज्जत बिगाड़ने पर तुली है।
माफ कीजिएगा सर, अब मीता मेरी पत्नि है। सुबोध बोला।
मीता के पापा आगे बढ़े और तड़ाक से एक झापड़ सुबोध को मार दिए।
ये सब तुम्हारी वजह से हुआ है मूर्ख लड़के। पापा चिल्लाए।
पापा आप उसको क्यों मार रहे हैं गलती मेरी है। मीता चिल्लाई।
सुबोध एकदम चुप था।
चुप कर लड़की। या तो अभी वापस चल या फिर जिंदगी भर अपनी शक्ल मत दिखाना। समझ लेना कि हम लोग तेरे लिए मर गए हैं।
पापा। पापा। प्लीज पापा मान जाओ। मीता रोते हुए पापा के पैरों पर गिर गई।
उसके पापा पीछे पलटे और बोले - चलो सब यहाँ से। उसने हमें कहीं का नहीं छोड़ा। वो बोले और गाड़ी में बैठकर निकल गए।
मीता वहीं जमीन में बैठकर रो रही थी।
चुप हो जाओ मीता। ये सभी माता-पिता का स्वाभाविक दुख होता है। उन्होंने तुमको जन्म दिया है, तकलीफ तो होगी ही आखिर तुमने उनकी मर्जी के विरूद्ध शादी की है। सुबोध बोला।
मीता आश्चर्यचकित थी।
तुम्हें बुरा नहीं लगा सुबोध ? उन्होंने तुम्हे मारा, एक्चुअली में मारा।
तो क्या हुआ मीता। आखिर हैं तो वो हमारे माता-पिता। उनकी मार खाने में क्या दुख।
किस मिट्टी के बने हो तुम सुबोध ?
बस उसी मिट्टी का मीता जिसकी तुम बनी हो।
तुमने भी बड़ी हिम्मत दिखाई। सुबोध बोला।
मुझे घर ले चलो सुबोध मैं थोड़ा थक गई हूँ, आराम करना चाहती हूँ।
सुबोध उसे घर ले आया। घर आते ही वह सो गई।

क्रमशः

मेरी अन्य दो कहानिया उड़ान तथा नमकीन चाय भी matrubharti पर उपलब्ध है कृपया पढ़कर समीक्षा अवश्य दे- भूपेंद्र कुलदीप।

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