Mita ek ladki ke sangarsh ki kahaani - 6 books and stories free download online pdf in Hindi

मीता एक लड़की के संघर्ष की कहानी - अध्याय - 6

अध्याय-6

अब लगभग रोज का यही रूटीन हो गया था। मीता मन लगाकर पढ़ाई कर रही थी। उसने अपनी पढ़ाई के लिए सब संसाधन जुटा लिए थे। वो हर पंद्रह दिन में एक बार घर आ जाती थी और वापस जाकर फिर से तैयारी में जुट जाती थी। एक दिन पी.एस.सी प्रारंभिक का फार्म भी आ गया।
हैलो सुबोध। पी.एस.सी. प्रारंभिक का फार्म आ गया है।
चलो अच्छा है तुम तो परीक्षा के ठीक सामने आ गई हो। अब तुम्हें अपनी सारी शक्ति लगाकर एक्जाम दिलाना है मीता।
हाँ परंतु मेरा फार्म यही इंस्टीट्यूट से भरा रहा है। इसलिए तुम वहाँ से मत भरना।
अच्छा मतलब प्रारंभिक की परीक्षा भी तुम वहीं से दिलाओगी।
हाँ। सर लोग बोल रहे हैं एक्जाम के बाद डिसकशन के लिए यहीं रूक जाओ। मैं बोली पूछकर बताती हूँ, इसलिए तुमसे पूछ रही हूँ क्या करूँ।
अगर वो ऐसा कहते हैं तो वही से दिलाओ, उसमें क्या है। भर दो वहीं से। ठीक है।
ठीक है मैं यही से भर देती हूँ।
इधर सुबोध के लॉ अंतिम सेमेस्टर के एक्जाम चल रहे थे तभी जज की भी वैकेसी आ गई। उसने फार्म तो भर दिया था पर इस विषय में मीता को कुछ भी नहीं बताया। क्योंकि फिर वो पढ़ने के लिए चिल्लाती।
समय पर प्रारंभिक परीक्षा के पेपर्स खत्म हुए। तो घर आकर मीता ने सुबोध को फोन लगाया।
हैलो सुबोध।
ओ हैलो डार्लिंग। कैसा गया तुम्हारा एक्जाम।
अच्छा गया सुबोध।
गुड। मैं बोला था ना, तुम मेरी शेरनी हो। तुम कभी फेल हो ही नहीं सकती। जल्दी घर आ जाओ हम मिलकर पार्टी करते हैं।
पैसे ज्यादा हो रहे हैं क्या तुम्हारे पास? कोई पार्टी वार्टी नहीं। बस मैं अपने हाथों से खाना बनाकर खिलाऊँगी। समझ में आया कि नहीं ?
अरे मेरे लिए तो वही पार्टी है मैडम। तुम आ तो जाओ।
आती हूँ बस कल एक बार प्रश्नों के उत्तर का मिलान कर लें फिर आती हूँ।
दूसरे दिन इस्टीट्यूट में सभी बच्चों ने सही उत्तरों से मिलान किया तो मीता के बहुत बढ़िया नंबर्स आ रहे थे।
तुम्हारे तो शानदार नंबर्स आ रहे हैं मीता। अंजली ने कहा।
तुम्हारे भी अंजली।
हाँ पर तुमसे थोड़े कम हैं।
पर इससे क्या फर्क पड़ता है। प्रारंभिक परीक्षा के मार्क्स थोड़ी जुड़ते हैं। ये तो बस क्वालीफाईंग है।
हाँ तुम ठीक बोल रही हो। तो कब जा रही हो वापस।
आज ही निकल जाऊँगी। एकात सप्ताह रहकर फिर वापस आऊँगी मेंस की तैयारी के लिए।
ओहो। जीजाजी के साथ हसीन पल बिताने हैं ? वो हँस कर बोली।
फिर तू चालू हो गई। बेटा तू जल्दी शादी कर फिर मेरी बारी आयेगी। मैं भी तेरी ऐसे ही खिंचाई करूँगी।
तू ही ढूँढ दे कोई हैंडसम कलेक्टर टाईप का लड़का और करा दे मेरी शादी। मैं तो शादी करने के लिए मरी जा रही हूँ।
वहीं खोज लेना प्रशासन एकाडेमी में। ढेर सारे लड़के रहेंगे वहाँ तो। मीता बोली।
ठीक है ठीक है चल चलते हैं। तुझे निकलना भी तो है।
मीता घर के लिए निकल गई। रेल्वे स्टेशन पर सुबोध उसे लेने आया था।
क्या हाल है प्रिये।
बस सब कुछ अच्छा हो जाए तो हाल चाल भी अच्छा हो जाए।
चलो घर चलें। घर चलकर बात करते हैं। घर पहुँचकर सुबोध ने पूछा।
और कितने लोग सलेक्ट हो सकते हैं तुम्हारे यहाँ से ?
बहुत लोग हो जायेंगे। वहाँ तो भयंकर कॉम्पीटिशन का माहौल है। तुम्हारे रिजल्ट का क्या हुआ लास्ट सेमेस्टर का ?
72 प्रतिशत आया। काम करते करते पढ़ने में प्रतिशत तो कम होंगे ही।
आप तो ऐसे ही पढ़ कर दिला दिए हो तब 72 प्रतिशत आए हैं अच्छे से पढ़कर दिलाए रहते तो आराम से 90 प्रतिशत आ जाते।
हाँ तुम शायद ठीक बोल रही हो पर मुझे तुम्हारे सपने की फिकर ज्यादा है।
मीता आगे बढ़कर सुबोध को चूम ली, बोली मैं जानती हूँ। कहकर वो सुबोध के सीने से लिपट गई।
अच्छा चलो खाना खाओ और सो जाओ। तुम थक गई होगी। सुबोध बोला।
हाँ शारीरिक और मानसिक दोनो रूप से। मीता बोली।
एक सप्ताह अब पढ़ाई लिखाई को पूरी तरह भूल जाओ। हम ये सात दिन घूमेंगे फिरेंगे और भरपूर एंजॉय करेंगे।
सात दिन सुबोध ने उसे खूब खुश रखा। सातवें दिन उसे फिर से वापस जाना था।
अच्छे से मेंन्स की तैयारी करना मीता। इस घर की कर्णधार हो तुम। तुमसे सभी को बहुत उम्मीदें हैं।
इस तरह मुझ पर उम्मीदों का बोझ मत डालो सुबोध। मैं अगर सफल नहीं हुई तो सह नहीं पाऊँगी।
नहीं अपने दिमाग से किसी प्रकार का प्रेशर मत रखना मीता। तुम बस अच्छे से पढ़ाई करो बाकि ईश्वर पर छोड़ दो।
चलो मैं तुमको रेलवे स्टेशन छोड़ देता हूँ।
वह चली गई और मुख्य परीक्षा की तैयारी करने लगी।
करीब एक महीने बाद प्री का रिजल्ट आ गया।
हैलो मीता। बधाई हो भई तुमको। तुमने तो मैदान मार लिया।
सब तुम्हारी वजह से है सुबोध। जितनी मैंने मेहनत की है, उससे कई गुना ज्यादा तुमने मेरी सफलता के लिए मेहनत की है पता नहीं कितने दिन तुम ठीक से खाना खाए भी होगे कि नहीं, धुले कपड़े पहने होगे कि नहीं, ठीक से सोये होगे कि नहीं। उसे आँखे मे आँसू आ गए।
मेरा कुछ भी नहीं मीता। सब कुछ तुम्हारी मेहनत है। अब अच्छे से मेन्स दिलाओ। तुम पक्का सफल हो जाओगी।
ठीक है रखती हूँ।
दो महीने बाद ही मेन्स का पेपर था और उसी के बीच में लोक सेवा आयोग का न्यायाधीश (जज) का एक्जाम था। मीता और सुबोध ने एक साथ एक्जाम दिलाया हालांकि जज के एक्जाम के विषय में सुबोध ने मीता को नहीं बताया था। उसने सोच रखा था कि नहीं लगा तो पढ़ाई को लेकर मीता व्यर्थ ही नाराज होगी कि मैंने अपने ऊपर खर्च नहीं किया और यदि पास हो गया तो कुछ बोलने की स्थिति में भी रहेगी। अतः उसने उसे नहीं बताना ही उचित समझा।
मेंस की परीक्षा दिलाकर मीता घर आ गई।
कैसा गया मीता तुम्हारा पेपर ?
अच्छा गया है सुबोध।
एक्जाम निकल जायगा क्या ?
क्या पता। हो सकता है निकल जाए और ये भी हो सकता है ना निकले।
मुझे लगता है मीता तुम्हें अपने पैरेन्ट्स को ये बात बतानी चाहिए।
मैंने दो बार लैण्डलाईन से घर मे लगाया था सुबोध पर हर बार मेरे पापा फोन उठाते थे, करके बात नहीं कर पाई। असल में मुझमें अभी भी उनसे बात करने की हिम्मत नहीं है।
तो माँ से बात करो। ऐसे वक्त में फोन करो जब पिताजी घर में ना रहते हो। एक्चुअली दोनो एक साथ ही ऑफिस के लिए निकलते हैं और साथ ही वापसी होती है। इसलिए एक वक्त पर दोनो ही घर पर रहते हैं और मुझे लगता है सलेक्शन के बाद बताऊ तो ज्यादा अच्छा रहेगा।
ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी।
मेंस परीक्षा के एकात महीने बाद रिजल्ट आ गया। जिसमें मीता पास हो गई थी। उनके परिवार में खुशी थी कि उनके घर की बहु शायद बड़ी अधिकारी बन जाए।
सुबोध जैसे मध्यम वर्गीय लड़के के लिए ये बहुत बड़ी घटना थी। एक सब्जी वाले के घर की बहु ने पी.एस.सी. की मुख्य परीक्षा पास कर ली थी। अब सिर्फ साक्षात्कार बचा था जिसकी तैयारी के लिए सुबोध ने उसे फिर से बिलासपुर भेज दिया था।
तैयारी करके वापस आई तो सुबोध स्वयं उसे लेकर लोक सेवा आयोग के ऑफिस गया।
मीता जब इंटरव्यू में अंदर गई तो बोर्ड सिर्फ इसी बात से ही प्रभावित हो गए थे कि एक सब्जी बेचने वाले परिवार ने अपनी बहु को पढ़ाया और आगे बढ़ाया। ये उसका प्लस प्वाइंट था। बाकि इंटरव्यू तो उसका बहुत अच्छा गया था।
दोनो प्रसन्नता से घर वापस आ गए।

क्रमशः

मेरी अन्य दो कहानिया उड़ान और नमकीन चाय भी matrubharti पर उपलब्ध है कृपया पढ़कर समीक्षा अवश्य दे- भूपेंद्र कुलदीप।

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